Home गेस्ट ब्लॉग ग़रीब विद्रोह करते हैं, भिखारी नहीं

ग़रीब विद्रोह करते हैं, भिखारी नहीं

2 second read
0
0
234
ग़रीब विद्रोह करते हैं, भिखारी नहीं
ग़रीब विद्रोह करते हैं, भिखारी नहीं

अंग्रेजों ने ग़रीब बनाए थे और मोदी ने भिखारी. ग़रीब विद्रोह करते हैं, भिखारी नहीं. इसलिए चुनावी नतीजों के विश्लेषण के पहले लाभार्थी (यानि भिखारी) चेतना का ध्यान रखें, ख़ास कर गोबर पट्टी में, वर्ना आपके सारे आकलन धरे रह जाएंगे. आपको गोबर पट्टी के लोगों की स्वैच्छिक ग़ुलाम बनने की ख़ुशी और उन्हें ऐसा बनाने वालों के प्रति अपार कृतज्ञता बोध का कोई अंदाज़ा ही नहीं है.

जहां तक मुझे लगता है, चूंकि गोबर पट्टी में वोट प्रतिशत कम हुआ है, इसलिए विश्लेषकों को लगता है कि चुनाव मोदी के पक्ष में नहीं जा रहा है. उनका मानना है कि चूंकि मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के वोटर बड़ी संख्या में नहीं निकले और यही भाजपा के कोर वोटर हैं, इसलिए भाजपा को हानि होगी. यह अनुमान ग़लत भी हो सकता है, क्योंकि इसका मतलब यह है कि निम्न मध्यम वर्ग और ग़रीबों का वोट प्रतिशत बढ़ा है.

अगर ऐसा है तो भाजपा का ही लाभ हुआ है, क्योंकि इसी वर्ग को मोदी ने अपने अथक प्रयासों से भिखारी बनाया है. ऐसे में इन कृतज्ञ भिखारियों से यह आशा करना कि वे अपने दान दाता से विमुख हो जाएंगे, एक बहुत बड़ी ग़लती है.

चुनाव का दूसरा पक्ष रहा है जिसका निर्धारण जातिगत और धार्मिक आधार पर किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि अल्पसंख्यक वोट एकमुश्त भाजपा के खिलाफ गये हैं या विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न जातियां एकमुश्त अपना वोट किसी एक दल या किसी एक प्रत्याशी के खिलाफ या समर्थन में डाला है. विश्लेषण का यह आधार भी तार्किक नहीं है.

मसलन पूर्णिया में समाज के हरेक तबके का वोट पप्पू यादव को मिला है. ऐसे और भी उदाहरण हैं. बंगाल में ममता बनर्जी और भाजपा के बीच संपन्न हुए चुनावों में चारों सीटों पर कांटे की टक्कर है. वहां पर ममता का पलड़ा भारी है, लेकिन दोनों पक्षों को समाज के हर तबके का वोट मिला है.

दरअसल, जहां जहां भी दोनों पक्षों के बीच कांटे का टक्कर है, वहां वहां आप मान कर चलिये कि समाज के हरेक वर्ग के लोगों का वोट दोनों पक्षों को मिल रहा है. इन सीटों के बारे कुछ भी कहना बेवक़ूफ़ी होगी. दूसरी तरफ़ कुछ सीटों पर एकतरफ़ा वोटिंग हुई है. इनके बारे आप निश्चित तौर पर कुछ कहने की स्थिति में हैं.

इसलिए चुनावी विश्लेषण करने के पहले आप इन दो प्रकार के क्षेत्रों को अलग-अलग कर देखें तो ज़्यादा तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचेंगे. मैं कोई चुनावी विश्लेषक नहीं हूं, लेकिन मुझे जो लगा मैंने आपसे साझा किया है. भारत जैसे विविधताओं वाले देश में किसी भी आम चुनाव के रिज़ल्ट के बारे विश्लेषण करना आसान नहीं है, ख़ास कर तब जब आपके तर्क पर आपके पूर्वाग्रह हावी हो जायें.

मुल्लों को टाईट करने के लिए वोट मत दो. उनके पास हुनर है और उनकी ज़रूरतें कम हैं. बिना शिक्षा या नौकरी के भी उनके बच्चे छोटे मोटे काम कर के गुज़ारा कर लेंगे. अपनी सोचो. बिना किसी हुनर और शिक्षा के आपके बच्चों के पास चोरी, क्राईम या भीख मांगने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचता है. 20 को टाईट करने के चक्कर में 80 ख़ुदकुशी कर रहे हैं गोबर पट्टी में, ये नसीहत वैसे लोगों के लिए है.

Read Also –

भाजपा इवीएम के दम पर हर जगह चुनाव जीतेगी
18वीं लोकसभा चुनाव : मोदी सरकार के 10 साल, वादे और हक़ीक़त
2024 का चुनाव (?) भारत के इतिहास में सबसे ज़्यादा हिंसक और धांधली से होने की प्रचंड संभावनाओं से लैस है
चुनावी फ़ायदे और अपनी नाकामी छुपाने के लिए किसी की हत्या करवाना लोकतंत्र का मज़ाक़ है

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…