Home ब्लॉग दण्डकारण्य के जंगलों में आज एक बार फिर पुलिस-माओवादियों के बीच मुठभेड़ जारी है…

दण्डकारण्य के जंगलों में आज एक बार फिर पुलिस-माओवादियों के बीच मुठभेड़ जारी है…

11 second read
0
1
283
दण्डकारण्य के जंगलों में आज एक बार फिर पुलिस-माओवादियों के बीच मुठभेड़ जारी है...
दण्डकारण्य के जंगलों में आज एक बार फिर पुलिस-माओवादियों के बीच मुठभेड़ जारी है…

दण्डकारण्य के जंगलों (बीजापुर) में आज एक बार फिर पुलिस-माओवादियों के बीच मुठभेड़ जारी है. तत्काल मिली सूचना के अनुसार एक माओवादियों के मारे जाने की खबर मिली है. पिछले चंद दिनों में माओवादियों पर छत्तीसगढ़ पुलिस के द्वारा एक के बाद एक हमले जारी हैं. पिछले दिनों 6 माओवादियों, फिर 13 माओवादियों और फिर 29 माओवादियों का नरसंहार मुठभेड़ द्वारा किया जा रहा है.

माओवादियों पर एक के बाद एक लगातार इस हमले से ऐसा लगता है मानो माओवादियों को दण्डकारण्य की जंगलों से उखाड़ फेंका जायेगा, जैसा कि तड़ीपार से गृहमंत्री बने अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में चुनाव जीतने के पहले और बाद में ऐलान किया था. परन्तु माओवादी आंदोलन के जानकार बताते हैं कि माओवादियों को ‘खत्म’ करने की कार्रवाई करते-करते कहीं अमित शाह और भारत सरकार को यह भारी न पड़ जाये.

जैसा कि 29 माओवादियों के मारे जाने के बाद माओवादी संगठन की ओर से जारी एक प्रेस नोट में बताया गया है कि माओवादियों ने अपनी पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) को आदेश दिया है कि पूरे छत्तीसगढ़ में जहां भी भाजपाई मिले, उसे खत्म कर दो.

ज्ञात हो कि सलवा-जुडूम चलाने वाले कांग्रेस के महेन्द्र कर्मा के साथ-साथ माओवादियों ने छत्तीसगढ़ में पूरे कांग्रेसी नेतृत्व को ही खत्म कर दिया और कांग्रसियों को छत्तीसगढ़ में नेतृत्व के लाले पड़ गये थे. भाजपाईयों की इस हरकत से तो ऐसा लगता है कि भाजपाईयों को समूचे देश में ही नेतृत्व के लाले न पड़ जाये.

बहरहाल, छत्तीसगढ़ में अभी मुठभेड़ जारी है और संभव है आज शाम तक फिर बड़ी संख्या में माओवादियों के मारे जाने की खबर भी सामने आ जाये, लेकिन इससे एक चीज तो साफ हो जाती है कि शांत पड़े माओवादियों को जिस तरह भाजपा सरकार और उसकी पुलिस उसको उकसा रही है, कहीं माओवादी बेहद खूंख्वार होकर बड़े हमले को न अंजाम दे जाये.

क्योंकि माओवादियों के इतिहास को अगर हम ध्यान से देखे तो माओवादियों द्वारा बहुत बड़ी-बड़ी कीमतें (एक अपुष्ट आंकड़े के अनुसार माओवादियों ने अब तक अपने नेताओं, समर्थकों समेत तकरीबन 8 लाख लोगों की शहादतें दी है) चुकाने के बाद भी खत्म होना तो दूर उल्टे और ज्यादा मजबूत हो गये हैं और भारत सरकार के सामने बड़ी चुनौती पेश कर दी.

पश्चिम बंगाल की नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुआ मजदूर-किसानों का जनवादी आन्दोलन आज अपने छठे दशक में है और समूचे देश में जल-जंगल-जमीन की नारों को बुलंद करते हुए फैल गया है. पश्चिम बंगाल में उठे नक्सलबाड़ी आन्दोलन के खिलाफ भारत सरकार की दमनात्मक क्रूर हिंसा में महज एक साल में ही 20 हजार से अधिक बंगाली युवाओं को क्रूरतापूर्ण तरीकों से क्रूर यातना देते हुए मौत के घाट उतार दिया गया था.

नक्सलबाड़ी आन्दोलन के प्रणेता चारू मजुमदार की पुलिस थाने में मौत की नींद सुला देने के बाद भारत सरकार को यह यकीन हो गया था कि उसने सफलतापूर्वक नक्सलबाड़ी आन्दोलन को खत्म कर दिया है. लेकिन जल्दी यह सरकार की यह खुशफहमी धूल में मिल गई और देश भर में नक्सलबाड़ी से निकली ‘चिन्गारी’ समूचे देश में फैल गई और आज वह माओवादी की शक्ल में सरकार से दो-दो हाथ कर रही है.

सवाल है कि यह नक्सलबाड़ी और माओवादी है क्या ? जवाब है भूखी-उत्पीड़ित और उपेक्षित जनसमुदाय के द्वारा अपनी आजादी के लिए युद्ध की उद्घोषणा का नाम नक्सलबाड़ी है और उसी नक्सलबाड़ी का विकास माओवादी है. दरअसल, नक्सलबाड़ी और माओवादी उसका उपनाम है, जिसे प्रतिक्रियावादी सरकार ने उस आंदोलन को नाम दिया है.

असलियत में यह कम्युनिस्ट पार्टी है, यानी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी. नक्सलबाड़ी के नाम से मशहूर पार्टी का नाम है – भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और माओवादी का असली नाम है – भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी).

तो देखा आपने आप जिसे नक्सलबाड़ी और माओवादी कहते हैं वह असलियत में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी है, जिसका सर्वेसर्वा कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स थे, जिसका बाद में विकास लेनिन और फिर माओ त्से-तुंग ने किया था. दूसरे शब्दों में आप यह भी कह सकते हैं कि भारत भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद माओवादियों का वैचारिक पुरखा हैं.

फिर आप कह सकते हैं कि आखिर माओवादी हथियार क्यों उठा लिये ? जवाब है माओवादियों को हथियार उठाने का आदेश ही कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने दिया है, जिसे भारत की जमीन पर भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद जैसे युवाओं ने लागू भी किया था. जैसा कि माओ त्से-तुंग बताते हैं कि ‘मार्क्सवाद के अंदर बहुत से सिद्धांत हैं, लेकिन अंतिम रूप से उन सबको सिर्फ एक पंक्ति में समेटा जा सकता है- ‘विद्रोह न्यायसंगत है.’

तो दूसरे शब्दों में आप यह भी कह सकते हैं कि भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद के राजनैतिक विरासत को आज माओवादियों ने ही थाम रखा है और उनके सपनों को पूरा करने का जिम्मा अपने कंधों पर उठा लिया है. अगर आप अपने पुरखा भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद से नफरत करते हैं तभी आप माओवादियों से नफरत कर पायेंगे वरना कतई नहीं.

Read Also –

वार्ता का झांसा देकर माओवादियों के खिलाफ हत्या का अभियान चला रही है भाजपा सरकार
दस्तावेज : भारत में सीपीआई (माओवादी) का उद्भव और विकास
किसी भी सम्मान से बेशकीमती है माओवादी होना
किसी भी स्तर की सैन्य कार्रवाई से नहीं खत्म हो सकते माओवादी

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…