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18वीं लोकसभा चुनाव : मोदी सरकार के 10 साल, वादे और हक़ीक़त

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18वीं लोकसभा चुनाव : मोदी सरकार के 10 साल, वादे और हक़ीक़त
18वीं लोकसभा चुनाव : मोदी सरकार के 10 साल, वादे और हक़ीक़त

18वीं लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है जो इस साल 19 अप्रैल से 1 जून के बीच सात चरणों में सम्पन्न होगी. इस चुनाव के साथ ही इस बात का फैसला भी होगा कि अगले पाँच साल के दौरान क्या एक बार फिर देश की जनता मोदी सरकार के अधीन शासित होगी या विपक्ष की पार्टियाँ जनता पर सवारी गाँठेंगी ? मोदी सरकार ने अपने 10 साल पूरे कर लिये हैं और अब उसके कामों का लेखा-जोखा लेने की बारी है, जिससे हम जान सकें कि उसने जनता के लिए क्या किया या क्या नहीं किया. इस पुस्तिका में मोदी सरकार द्वारा जनता से किये गये वादों और उनकी हकीकत की चर्चा की जायेगी और सरसरी तौर पर मोदी शासन के दस साल का लेखा-जोखा भी लिया जायेगा.

नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले और बाद में भी मजदूरों, किसानों, छात्रों, नौजवानों, महिलाओं और अन्य मेहनतकश जनता की बेहतरी के बहुत सारे वादे किये थे. मसलन, सरकार में आने से पहले मोदी ने कहा था कि अगर उसकी सरकार आयी तो वह महँगाई कम करेगी, भ्रष्टाचार को खत्म करेगी, डॉलर के मुकाबले रुपये को मजबूत बनाएगी, विदेश से कालाधन वापस लाएगी और सबके खाते में 15-15 लाख रुपये डालेगी, हर साल युवाओं को 2 करोड़ रोजगार देगी. उसने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा दिया था और महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का वादा भी किया था.

सरकार में आने के बाद मोदी ने किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने का वादा किया था. नोटबन्दी के जरिये कालाधन, जाली नोट और आतंकवाद को खत्म करने का वादा भी किया था और उसके लिए 50 दिन माँगे थे. सबका साथ, सबका विकास और अच्छे दिन आने वाले हैं, का सपना दिखाया था. इसके लिए मोदी ने देश की जनता से 60 महीने माँगे थे. जनता ने 60 नहीं पूरे 120 महीने यानी जितना समय माँगा उसका दोगुना समय दिया, लेकिन सवाल यह है कि मोदी सरकार अपने किये वादों पर कितनी खरी उतरी है, जो सपने दिखाये थे वे कितने साकार हुए हैं.

महँगाई दूर करने का वादा

2014 में कांग्रेस सरकार पर हमला करते हुए भाजपा ने नारा दिया था कि ‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार.’ 2013 की एक चुनावी सभा में अपने डभाषण में मोदी ने कहा था कि ‘आप मुझे बताइये कि इसी प्रकार महँगाई बढ़ती गयी तो गरीब क्या खाएगा ? प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) यहाँ आये, लेकिन वे महँगाई का “म” बोलने को भी तैयार नहीं हैं.’

‘महँगाई जा रही है क्योंकि मोदी जी आ रहे हैं.’ इस तरह के विज्ञापनों के जरिये पूरे देश में ऐसा माहौल बनाया गया कि मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही महँगाई उड़न छू हो जाएगी. लेकिन हुआ इसका एकदम उल्टा, मोदी राज में महँगाई रुकने या कम होने के बजाय रॉकेट से भी तेज गति से बढ़ी है.

2013 में जब अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल थी, उस समय भारत में पेट्रोल की कीमत लगभग 66 रुपये और डीजल लगभग 48 रुपये थी, दोनों की कीमत में अन्तर 18 रुपये था. वहीं घरेलू गैस सिलेंडर 414 रुपये का था. सीएनजी गैस लगभग 42 रुपये प्रति किलो और पीएनजी पाइपलाइन वाली घरेलू गैस 24.50 रुपये प्रति लीटर था. तब मोदी ने उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आड़े हाथों लिया था.

जब 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आयी उसके बाद से जैसे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि का सिलसिला चल पड़ा और कोई ऐसा साल नहीं गुजरा जब इनमें बढ़ोतरी न की गयी हो. उस समय भी जनता को महँगाई की मार लगायी गयी जब देश कोरोना महामारी की चपेट में था. इस आपदा को भी मोदी ने अवसर में बदलते हुए, अपने और अपने चहेते पूँजीपतियों के नसीब को खूब चमकाया. ऐसी स्थिति में जहाँ तेल के दाम घटने चाहिए थे, पेट्रोल 72 और डीजल 68 रुपये प्रति लीटर तक चला गया. धन्य हो मोदी जी !

मोदी यहीं नहीं रुके, बल्कि महँगाई की रफ्तार को एक कीर्तिमान बना दिया. उन्होंने तेल के दामों को अब पैसे में नहीं, रुपयों में बढ़ाना शुरू किया. 2020 में पेट्रोल पर 10 रुपये और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर के दाम एक साथ बढ़ाये. इस तरह पेट्रोल की कीमत को 121 रुपये और डीजल 112 रुपये प्रति लीटर तक पहुँचा दिया गया. ध्यान देने की बात यह है कि सभी तरह के तेल और गैस कच्चे तेल से ही निकलते हैं, इसलिए अगर अन्तरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता होगा तो पेट्रोल डीजल, केरोसिन तेल, ग्रीस, मोबिल ऑयल, सीएनजी, घरेलू गैस और विस्फोटक गैस नेपाम, पेट्रोलियम जेली, मोम, कोलतार और तरह-तरह की प्लास्टिक, ये सभी उत्पाद सस्ते हो जाने चाहिए, लेकिन मोदी राज में गंगा एकदम उल्टी ही बही. पिछली सरकार के मुकाबले कच्चा तेल सस्ता रहा, लेकिन मोदी राज में इनकी कीमतें आसमान छूती रही. 2023 में एक गैस सिलेंडर को 1200 रुपये नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाया गया. 100 दिन में महँगाई पर लगाम लगाने का वादा आज 120 दिन बाद एक जुमला बनकर रह गया है.

बहुत हुई महँगाई की मार, अगली बार मोदी सरकार

मोदी ने 2014 में सत्ता में आते ही 108 जीवन रक्षक दवाओं के मूल्य तय करने वाले अधिनियम को दवा कम्पनियों के दबाव में वापस ले लिया था. इसके चलते 9,000 से ज्यादा दवाइयों को दवा कम्पनियाँ अपने मन माफिक दामों पर बेचती हैं, जिससे चिकित्सा लगातार महँगी होती जा रही है. 1 अप्रैल 2023 से दवाओं के दाम 12 प्रतिशत तक बढ़ा दिये गये. इसमें बुनियादी जीवन रक्षक दवा – बुखार, दिल की बीमारियाँ, एंटीबायोटिक, हाइपरटेंशन और दर्द जैसी 800 से अधिक दवाइयाँ हैं. एक साल पहले भी दवाओं के थोक रेट पर 10.7 प्रतिशत दाम बढ़ाया गया था. मिसाल के लिए हाइपरटेंशन की दवा 50 पैसे में खरीद कर इसे 10 रुपये में यानी 2000 प्रतिशत ज्यादा में बेची जा रही है. आज महँगे इलाज के चलते हर साल 6 करोड़ लोग गरीबी के दलदल में धँसते जा रहे हैं.

शिक्षा की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। देश में सरकारी स्कूलों को बन्द किया जा रहा है, जैसे – उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सिर्फ दो राज्यों में 56 हजार प्राथमिक विद्यालय बन्द हो चुके हैं. मोदी राज में पढ़ाई और भी महँगी कर दी गयी है. हर साल प्राइवेट स्कूल फीस में 10 प्रतिशत से ज्यादा वृद्धि कर सकते हैं. प्राइवेट स्कूलों की फीस के साथ-साथ अब किताबें, वर्दी, राइटिंग बोर्ड पर 12 प्रतिशत टैक्स तो नोटबुक पर 18 प्रतिशत जीएसटी टैक्स लगाया गया. वहीं ड्राइंग बुक, चित्रावली किताबों पर, जूते पर 18 प्रतिशत टैक्स, तो पेन पर 28 प्रतिशत तक टैक्स वसूलेगी मोदी सरकार. अब सवाल यह है कि अगर शिक्षा महँगी कर दी जायेगी तो क्या इससे शिक्षा ज्यादा लोगों तक पहुँच पाएगी या कम हो जाएगी ? क्या देश के गरीब बेटा-बेटी महँगी शिक्षा ले पायेंगे ? अगर नहीं तो फिर मोदी का बेटी पढ़ाओ के नारे का क्या मतलब है ?

देश में पहली बार मोदी सरकार ने खाने-पीने की जरूरी चीजों आटा, दूध, दही पर 5 प्रतिशत टैक्स लगा दिया है, जबकि हीरे पर मात्र 1.5 प्रतिशत टैक्‍स है. क्या आम जनता अब रोटी की जगह हीरा खाएगी ? दस साल पहले एक किलो अरहर दाल की कीमत 70 रुपये थी, आज वह 150 रुपये से ऊपर है. आज सरसों के तेल की कीमत भी दोगुनी हो गयी है. दूध और दही की कीमत इतनी बढ़ गयी है कि अब उसे गरीबों की थाली में जगह नहीं मिलती. यही हालत फलों और हरी सब्जियों की है.

आज विटामिन, प्रोटीन और बसा से युक्त तीनों समय का संतुलित आहार खाने के लिए एक व्यक्ति को कम से कम 100 रुपये रोज खर्च करने पड़ते हैं. इस हिसाब से देखा जाये तो 4 व्यक्तियों के परिवार को 400 रुपये रोजाना यानी 12 हजार रुपये मासिक. लेकिन देश की बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी की मासिक आय ही 12 हजार रुपये नहीं है तो उसका परिवार पौष्टिक खाना कैसे खाये. पौष्टिक खाने और साफ पानी के अभाव में तथा प्रदूषित स्थान पर निवास के चलते वे बीमारियों का आये दिन शिकार बनते रहते हैं. यह सोचने वाली बात है कि जिस देश की बहुसंख्यक आबादी कुपोषित और रोगग्रस्त हो, वह देश स्वस्थ कैसे हो सकता है ?

किसानों की आय दोगुनी करने का वादा

फरवरी 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया था कि 2022 तक किसानों की आमदनी दुगुनी कर दी जायेगी. इस वादे की हकीकत कया है ? राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) की रिपोर्ट के अनुसार 2013 में किसानों की औसत आमदनी 6,426 रुपये प्रतिमाह थी जो 2019 में बढ़कर 10,281 रुपये प्रतिमाह हो गयी. यह बढ़ोतरी भ्रम पैदा करती है कि किसानों की हालत बेहतर हुई है. अगर हम आमदनी में हुई इस बढ़ोतरी को महँगाई की तुलना में देखें तो तस्वीर उल्टी नजर आती है. पिछले 10 सालों में जिस तेजी से महँगाई बढ़ी है उस हिसाब से किसानों की आय में वृद्धि नहीं, बल्कि कमी आयी है.

यही रिपोर्ट बताती है कि 2013 के मुकाबले 2019 में फसलों की लागत 41 प्रतिशत बढ़ गयी, जिसके चलते इसी दौरान हर किसान परिवार पर औसत कर्ज 47,000 से बढ़कर 74,121 रुपये हो गया. यानी कर्ज में 57 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुनी करने का वादा किया था लेकिन इस रिपोर्ट के अनुसार किसानों की आय तो दोगुनी नहीं हुई, हाँ कर्ज जरूर दोगुना हो गया.

किसानों की आय दोगुनी करने के लिए मोदी सरकार द्वारा अप्रैल 2016 में गठित दलवई समिति ने अनुमान लगाया था कि इसके लिए किसानों की आय में हर साल 10.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी होनी चाहिए. यह तभी हो सकती है, जब सरकार
किसानों को सब्सिडी दे और खेती में सरकारी निवेश बढ़ाये. लेकिन सच्चाई यह है कि कृषि में सरकारी निवेश घटते-घटते सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का मात्र 0.4 प्रतिशत के आस-पास रह गया है, यानी नहीं के बराबर है.

मोदी सरकार किसानों को सब्सिडी और खेती पर निवेश तो क्या बढ़ायेगी, इसके उल्टे जब किसान आय दोगुनी करने वाला वादा सरकार को याद दिलाते हैं और स्वामीनाथन रिपोर्ट और एमएसपी लागू करने की बात कहते हैं तो मोदी सरकार किसानों पर लाठी-गोली चलाती है, जहरीली गैस, पैलेट गन छोड़ती है, यही नहीं, जालिम और लुटेरे अंग्रेजों से भी चार कदम आगे निकलते हुए यह सरकार बर्बरता और जुल्म की सारी हदें पार कर जाती है.

इतना ही नहीं, सरकार डब्लूटीओ की छत्रछाया में अमरीका की साम्राज्यवादी नीतियों को भारत में लागू करती जा रही है. हम सभी ने देखा कि 2021 में सरकार ने कितनी बेशर्मी से देशी-विदेशी पूँजीपतियों को फायदा पहुँचाने के लिए आनन-फानन में संसद से तीन कृषि कानून को पास करवाया था, वह भी किसान यूनियनों से बिना सलाह लिये और लोकसभा में बिना बहस चलाये ये कानून पास कराये गये जो किसानों को उसकी जमीन और उसकी खेती से उजाड़ देने वाले थे. देश भर के किसानों ने जिस दिलेरी से दिल्ली में एक साल तक इसके खिलाफ आन्दोलन चलाया, वह बेमिसाल था और उसने सरकार को तीन काले कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया.

सरकार की इन्हीं डब्लूटीओ परस्त और खेती-किसानी विरोधी अन्य नीतियों के चलते आज किसान कर्ज की खाई में धँसता ही जा रहा है, जिसके चलते किसान और खेत मजदूरों की आत्महत्या का सिलसिला साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है. सरकारी संस्था राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार 2021 में 10,281 और 2022 में 11,290 किसानों ने आत्महत्या की है. यानी हर घण्टे 6 से ज्यादा किसान और खेत मजदूर अपनी जीवन लीला समाप्त करने को मजबूर हैं. अगर किसान खुशहाल होता और सरकार ने उसकी आमदनी दुगुनी कर दी होती तो वह हताश-निराश हो आत्महत्या क्यों करता ? आज किसानों की खराब हालत के लिए सरकार की किसान विरोधी नीतियाँ जिम्मेदार हैं.

मेहनत की कमाई खाने वाले और पूरी दुनिया को अन्न उपजाकर खिलाने वाले किसानों की आत्महत्या बहुत ही दु:खदायी और चिन्ताजनक है. यह हकीकत किसानों की आय दोगुनी करने वाले मोदी सरकार के झूठे वादे को पूरी तरह बेनकाब करती है.

डॉलर के मुकाबले रुपये की मजबूती, भ्रष्टाचार का खात्मा और विदेशों से काले धन की वापसी का वादा

अगस्त 2013 में चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने राजकोट में कहा था कि ‘भारतीय रुपया और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दोनों ने अपनी आवाज खो दी है. आज रुपया अपनी मृत्युशय्या पर है और अपनी अन्तिम साँसें गिन रहा है, इसे एक डॉक्टर की जरूरत है.’ लेकिन मोदी सरकार के लगभग 10 साल बाद आज 1 डॉलर के मुकाबले रुपया 88 रुपये पार कर गया है जो उस समय 66 रुपये से कम था.

कोयला घोटाला, टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला और डिफेंस डील में अगस्ता वेस्टलैंड और बोफोर्स जैसे भ्रष्टाचार के मुद्दों को भाजपा और मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बहुत जोर-जोर से उठाया था. अन्ना आन्दोलन के जरिये उस समय यूपीए वाली कांग्रेस सरकार को घेरते हुए कहा था कि ‘मोदी सरकार बनते ही लोकपाल लायेंगे और काले धन को वापस लाकर लोगों में बाँटा जायेगा.’ तब जनवरी 2014 में मोदी ने अपने एक भाषण में कहा था कि ‘एक बार ये जो चोर लुटेरों के पैसे विदेशी बैंकों में है ना, उतने भी रुपये हम ले आयें, तो भी हिन्दुस्तान के एक-एक गरीब आदमी को मुफ्त में 15-20 लाख रुपये तो यूँ ही मिल जायेंगे.’ उसके बाद मोदी कहते हैं कि ‘सरकार आप चलाते हैं, पूछते मोदी को हो कि कैसे लाएँ ? जिस दिन भाजपा को मौका मिलेगा एक-एक पाई हिन्दुस्तान वापस लायी जायेगी… ये जनता के पैसे हैं, गरीब के पैसे हैं.’ लेकिन मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद टू-जी स्पेक्ट्रम और कोयला घोटाले के आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया गया.

पनामा पेपर्स के जरिये खुद स्विस बैंक ने 2014 के चुनाव से पहले ही 268 भारतीय खाताधारकों के धन की सूची सरकार को सौंप दी थी. इनसे कालाधन वापस लाने का वादा पूरा करने के बजाय मोदी सरकार ने इसके उलट विदेशों में कालाधन ले जाने की सीमा जो कांग्रेस राज में 75 हजार करोड़ डॉलर थी उसे बढ़ाकर 250 हजार करोड़ डॉलर कर दी. नोटबन्दी के दौरान सटोरियों, कलाबाजारियों, पूँजीपतियों और नेताओं ने अपने धन को विदेश भेजा जिसके चलते मोदी राज में विदेशी बैंकों में आम जनता से, गरीब से लूटा गया पैसा कई गुना बढ़ गया. लोकसभा में वित्त मामलों की स्टैंडिंग कमेटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में विदेशों में जमा कालाधन 34 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है. जुलाई 2021 को लोकसभा में काले धन पर पूछे गये सवालों के जवाब में वित्त मंत्रालय के राज्य मंत्री पंकज चौधरी बहुत ही बेशर्मी से कहते हैं कि ‘पिछले 10 वर्षो में स्विस बैंक में छिपाये गये काले धन का कोई आधिकारिक आँकड़ा नहीं है.’ हर हिन्दुस्तानी को 15 लाख रुपये देने वाली मोदी गारण्टी ने उल्टे गरीबों के खाते से पैसे निकालने का काम किया. जिस गरीब के बैंक खाते में न्यूनतम राशि से कम पैसे हो गये, उससे जु्माने के रूप में बैंकों ने खातों से कुल 21 हजार करोड़ रुपये की वसूली की है, यह जानकारी राज्यसभा में वित्त राज्यमंत्री ने दी है.

कल तक घोटालों और भ्रष्टाचार को मिटाने की बात करने वाली भाजपा और मोदी सरकार आज खुद घोटाले और भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है. डिफेंस का राफेल घोटाला, अडानी समूह घोटाला (हिंडनबर्ग रिपोर्ट), नोटबन्दी (जिससे विपक्ष कानूनी डाका कहता है) घोटाला, व्यापम घोटाला जिसमें अब तक 45 लोग मारे जा चुके हैं, लेकिन घोटाला करने वाले नहीं पकड़े गये. आयुष्मान योजना घोटाला, पीएम आवास योजना घोटाला, पीएम केयर फण्ड घोटाला जिसके ट्र॒स्टी प्रधानमंत्री मोदी है. इस फण्ड की कोई जानकारी नहीं ले सकता है. आरटीआई भी नहीं, कितना पैसा आया, कहाँ-कहाँ इस्तेमाल हुआ, इसकी कोई जानकारी नहीं ले सकता.

चुनावी बांड के जरिये चन्दे के बारे में सरकार का कहना है कि चुनाव के दौरान किस कम्पनी से, पूँजीपति से या विदेश से पैसा आया है, कितना आया है, वह पैसा कालाधन है या सफेद, यह जनता को जानने की जरूरत नहीं है. जब सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक को आदेश दिया की चुनावी फण्ड का हिसाब दे, तो उसने आनाकानी की. आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने स्टेट बैंक पर मानहानि का मुकदमा दायर किया और चुनावी बांड का खुलासा हुआ. इस बांड में चन्दा देने वालों के कारनामें तो गजब ही हैं. जिस एयरटेल कम्पनी ने अपना 300 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया, 340 करोड़ रुपये का चन्दा दिया. हफ्ता वसूली का विराट रूप. कुल मिलाकर 6,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा चन्दा मोदी की पार्टी ने वसूला और वो भी गली के गुण्डों नहीं बल्कि इडी, इनकम टैक्स के छापों के दम पर. भ्रष्टाचार मिटाने का दावा करने वाली मोदी सरकार का असली चेहरा खुलकर सामने आ गया है.

भ्रष्टाचार मुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा अब खुद भ्रष्टाचार युक्त हो गयी है. विरोधी पार्टियों के जिन-जिन भ्रष्टाचारियों के ऊपर मोदी की ईडी ने छापे मारे उनमें से ज्यादातर भाजपा में शामिल हो गये और भाजपा की ‘वाशिंग मशीन’ में धुलकर पाक-साफ हो गये. कल तक मणिपुर के कांग्रेसी नेता बिरेन सिंह भाजपा के शब्दों में ‘महाभ्रष्टाचारी’ थे. लेकिन आज वे भाजपा में आकर शिष्टाचारी और मणिपुर के मुख्यमंत्री बन गये हैं. इसी तरह महाराष्ट्र के एकनाथ शिन्दे और इसके साथ 25-30 विधायक जब तक उद्धव ठाकरे के साथ शिवसेना में थे, ये सब भाजपा की नजर में भ्रष्टाचारी थे. ईडी उनके खिलाफ छापे मार रही थी और जाँच कर रही थी. भाजपा में आने के बाद ये सभी दूध के धुले हो गये और ईडी की दिशा एनसीपी के नेता अजीत पंवार और उनके बाकी विधायकों की तरफ घूम गयी. 27 जून 2028 को भोपाल की एक रैली में मोदी ने एनसीपी के ऊपर 70,000 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार के आरोप लगाये और कहा कि ‘अगर इनकी घोटाले की गारण्टी है, तो हर चोर-लुटेरे पर कार्रवाई करने की मोदी की गारण्टी है.’ इसके एक सप्ताह बाद ही मोदी की गारण्टी ने कमाल कर दिया. जिन शभ्रष्टाचारियों के ऊपर कार्रवाई करके उन्हें जेल भेजना था उन्हें भाजपा में शामिल करके पाक-साफ कर लिया गया और अब 70,000 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचारी शिष्टाचारी हो गये. अजीत पंवार उपमुख्यमंत्री और उनके विधायक साथियों में से कुछ को मंत्री पद से नवाजा गया.

इसे कहते हैं, मोदी जी का सबका साथ, सबका विकास लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती है. सरकार की केन्द्रीय सतर्कता आयोग की सालाना रिपोर्ट के अनुसार 2022 में गृह मंत्रालय के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की 46 हजार शिकायतें आयी थी. 2021 में भी भ्रष्टाचार की सबसे ज्यादा शिकायतें थीं, रेलवे भ्रष्टाचार में दूसरे नंबर पर और बैंकिंग सेक्टर तीसरे स्थान पर था. बैंक घोटाले के 40,000 करोड़ रुपये में शामिल विजय माल्या, नीरव मोदी, नीशल मोदी, मेहुल चौकसी (जिसे प्रधानमंत्री मेहुल भाई कहकर पुकारते थे), जतिन मेहता और दूसरे आर्थिक अपराधी बैंकों से घोटाला करके भारत छोड़ विदेश भाग गये. यह जानकारी वित्त राज्य मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने राज्यसभा में दी. इस तरह अब तक मोदी सरकार ने पूँजीपतियों द्वारा बैंकों से लिये गये 14.50 लाख करोड़ रुपये एनपीए में यानी बट्टे खाते में डाल दिये.

सरकार ने इस पैसे को डूबा हुआ मान लिया है, यानी एनपीए की आड़ में पूँजीपतियों को जनता का पैसा लुटा दिया गया है. वरना आम आदमी को, चाहे वह छोटा दुकानदार हो, कर्मचारी हो, मजदूर हो, किसान हो, चाहे बेरोजगार युवा और छात्र ही क्‍यों न हों, बैंक जिस सम्पत्ति के कागज पर लोन देता है, उसकी वह नीलामी करवाकर अपना पैसा वसूल कर लेता है. लेकिन सिर्फ आम आदमी से, सरकार के आदमी से नहीं. यही है, मोदी सरकार और मोदी गारण्टी, जहाँ खुला खेल है, भ्रष्टाचार का, घोटाले का और बुलेट ट्रेन की रफ्तार से विदेशों में कालाधन ले जाने का.

नोटबन्दी की हकीकत

प्रधानमंत्री मोदी ने 8 नवम्बर 2016 की रात 8 बजे अचानक नोटबन्दी की घोषणा करते हुए कहा था कि ‘…भाइयो और बहतनो, मैंने सिर्फ 50 दिन माँगे हैं, 30 दिसम्बर के बाद मेरी कोई गलती निकल जाये, कोई गलत इरादा निकल जाये, आप जिस चौराहे पर मुझे खड़ा करेंगे मैं खड़ा होकर… देश जो सजा देगा वो भुगतने को तैयार हूँ.’ नोटबन्दी के फायदे बताते हुए कहा कि ‘इससे कालाधन पर, जाली नोटों पर और आतंकवाद पर अंकुश लगेगा.’ दो सप्ताह बाद अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में नोटबन्दी का बचाव करते हुए कहा था कि ‘सरकार ने यह कदम उत्तर-पूर्व और कश्मीर में भारत के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देने में इस्तेमाल हो रहे 4 से 5 लाख करोड़ रुपये तक को बाहर करने के लिए उठाया है.’ प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबन्दी के बाद जितना समय माँगा था, वह समय अब बहुत पीछे चला गया है. नोटबन्दी हुए अब 7 साल हो गये हैं. नोटबन्दी से फायदे हुआ है या नुकसान, इसका एक आकलन करना जरूरी है.

मोदी ने नोटबन्दी को अपने ‘मन की बात’ में ‘कैशलेस इकोनॉमी’ के लिए जरूरी बताया था. यानी आने वाले समय में लोग ऑनलाइन पेमेंट का तरीका अपना लेंगे. लेकिन नोटबन्दी के 2 साल बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आँकड़ों के मुताबिक 9 दिसम्बर 2016 तक आम लोगों के पास 7.8 लाख करोड़ रुपये कैश थे, जो जून 2018 तक बढ़कर 18.5 लाख करोड़ रुपये पहुँच गये. यानी कैश कम होने के बजाय आम लोगों के पास दोगुने से भी ज्यादा हो गया है. ‘कैशलेस इकोनॉमी’ का सबसे बड़ा मजाक तो सरकारी बस सेवायें उड़ा रही हैं जिनमें बिना कैश के आप यात्रा नहीं कर सकते.

नोटबन्दी से देश को कोई फायदा तो नहीं हुआ, हाँ इससे नुकसान क्या-क्या हुआ इस पर एक नजर डाल लेते हैं –

  1. नये जाली नोटों का पकड़ा जाना जारी है.
  2. आर्थिक विकास दर जहाँ 2015-16 में 8.01 प्रतिशत के आस-पास थी, वहाँ 2016-17 में घटकर 7.11 प्रतिशत और इसके बाद 6.01 प्रतिशत पर आ गयी. इसके चलते एक साल में 2.5 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है.
  3. 100 से ज्यादा लोगों की मौत नोटबन्दी के दौरान रात दिन लाइन में लगे रहने के चलते हुई, इलाज के लिए नगदी ना होने के चलते कितने लोग मरे, इसकी कोई गिनती नहीं है.
  4. शादी-विवाह के लिए पैसे ना होने के चलते कितनी ही शादियाँ टूट गयीं.
  5. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्विस (सीपीएचएस) के आँकड़ों के मुताबिक, नोटबन्दी के चलते 2016-17 के अन्तिम तिमाही में करीब 15 लाख नौकरियाँ खत्म हो गयीं.
  6. खुद भाजपा की मजदूर यूनियन ‘भारतीय मजदूर संघ’ ने कहा कि ‘इसके चलते असंगठित क्षेत्र की 2.5 लाख इकाइयाँ बन्द हो गयी हैं और रियल एस्टेट सेक्टर पर बहुत बुरा असर पड़ा है, बड़ी तादाद में लोगों ने नौकरियाँ गँवाई हैं.

मोदी सरकार के दावे के विपरीत नोटबन्दी से कश्मीर के आतंकी हमले पर भी कोई अंकुश नहीं लगा. राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल के एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने सदन में बताया कि ‘जनवरी 2017 से जुलाई 2017 के बीच नोटबन्दी के बाद कश्मीर में 184 आतंकवादी हमले हुए’, जो 2016 में नोटबन्दी से पहले इसी अवधि के दौरान हुए, 155 आतंकवादी हमलों से कहीं ज्यादा थे. फरवरी 2019 में पुलवामा हमला हुआ जिसमें सीआरपीएफ के 34 जवानों की जान गयी. पुलवामा के बाद 1067 आतंकी हमले हुए जिनमें 182 जवान शहीद हो चुके हैं. यह सिलसिला थमने के बजाय और तेज हो गया है. लगता है, नोटबन्दी का उल्टा ही असर हुआ है.

नोटबन्दी से नकली नोटो पर अंकुश लगाने की बात भी फिसड्डी साबित हुई है. 2021-22 की आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, 2020-21 की तुलना में पिछले साल 500 रुपये में 101.9 प्रतिशत यानी दोगुने नकली नोटों और 2000 रुपये में 54.6 प्रतिशत नकली नोटों की वृद्धि हुई है. नोटबन्दी के बाद 245 करोड़ से ज्यादा के नकली नोट अब तक पकड़े जा चुके हैं. इसका मतलब नकली नोटों पर नोटबन्दी का कोई असर नहीं हुआ है. देखने की बात यह है कि 99.3 प्रतिशत से ज्यादा बन्द नोट वापस बैंकों में आ गये हैं. इसमें कालाधन कितना है, यह आरबीआई को नहीं पता है. मतलब सारा धन सफेद है तो फिर नोटबन्दी क्‍यों की गयी ? यह एक बड़ा सवाल है कि इसके पीछे मोदी की क्या मंशा थी ?

नोटबन्दी के चलते आरबीआई को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा. आरबीआई को नये नोटों की प्रिंटिंग और ज्यादा नोट बाजार में जारी करने के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. इसके अलावा देशभर की एटीएम को नये नोटों के मुताबिक ठीक किया गया. इसके ऊपर भी बैंकिंग सिस्टम को करोड़ों रुपये का खर्च उठाना पड़ा. नोटबन्दी को लेकर अब एक सवाल यहाँ भी खड़ा होता है कि चलन में कुल 15.41 लाख करोड़ रुपये थे, इनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपये वापसी बैंकों में आ गये. जो नोट वापस नहीं आये वे 10,720 करोड़ रुपये हैं और उनके ऊपर देश की अर्थव्यवस्था को एक साल में 2.5 लाख करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा और आरबीआई को करोड़ों रुपये अलग खर्च करने पड़े. क्या यह सब वाजिब था ?

अभी तक हमने देखा कि प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबन्दी का जो उद्देश्य बताया था तथा चाटुकार मीडिया और अन्धभक्तों ने जिस तरह से नोटबन्दी को कालाधन, जाली नोट और आतंकवाद पर मोदी का मास्टर स्ट्रोक और सर्जिकल स्ट्राइक बताया था, उसके उलट यह जनता पर ही सर्जिकल स्ट्राइक साबित हुई है. छोटे कारोबारी तबाह हुए हैं. नोटबन्दी के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि ‘ये एक ऑर्गेनाइज्ड (संगठित) लूट है यानी लीगलाइज्ड ब्लण्डर है.’ मनमोहन सिंह के इस आरोप का भाजपा और मोदी सरकार के पास कोई जवाब नहीं है.

मोदी सरकार की योजनाओं की हकीकत

‘मेक इन इंडिया’ योजना के जरिये मोदी सरकार ने दावा किया था कि वह मैन्युफैक्चरिंग को जीडीपी का 25 प्रतिशत हिस्सा बनाने का लक्ष्य रखती है. लेकिन 2021 तक यह 15 प्रतिशत पर ही रुका हुआ है. सरकारी संस्था ‘सेंटर फॉर इकोनोमिक डेटा एण्ड एनालिसिस’ के अनुसार, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की स्थिति बहुत बुरी है. मैन्युफैक्चरिंग की नौकरियाँ बीते 5 सालों में आधी रह गयी हैं. मोदी राज में हमारा देश, बांग्लादेश जैसे छोटे प्रतिद्वन्दी से भी मार्केट शेयर हार चुका है यानी निर्यात में बांग्लादेश, भारत से आगे है.

रही बात ‘स्किल इंडिया’ (कौशल भारत) योजना की तो इस योजना को बनाने में 1,804 करोड़ रुपये खर्च किये गये और 500 करोड़ रुपये कम्पनियों को बाँटा गया, ताकि 2022 तक 50 करोड़ लोगों को स्किल्ड बनाया जा सके. लेकिन 6 जून 2017 को कुशलता विकास मंत्री रूड्डी ने इस योजना को बन्द करके इसकी विफलता का संकेत दे दिया. हमारे देश में पहले से ही आईटीआई, पॉलिटेक्निक, आईआईटी और सैकड़ों इंजिनियरिंग कॉलेजों से पढ़ाई करके हर साल लाखों कुशल नौजवान निकलते हैं. जब इन्हें ही रोजगार नहीं मिल पा रहा है, ऐसे में स्किल इंडिया योजना की जरूरत ही क्या थी ? रोजगार का आकलन करने वाली कम्पनी ‘एस्पायरिंग माइंड्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 80 प्रतिशत से अधिक इंजीनियरों को रोजगार नहीं मिलता है. फिर स्किल इंडिया योजना क्‍यों बनायी गयी और फिर बन्द क्यों कर दी गयी ? योजनाओं के नाम पर कहीं भ्रष्टाचार को बढ़ावा तो नहीं दिया गया ?

मोदी की आयुष्मान योजना : 50 करोड़ लोगों के इलाज की गारण्टी का सच

मोदी सरकार ने दावा किया कि आयुष्मान योजना देश के गरीबों के लिए बनायी गयी है और इस योजना के अन्तर्गत बने कार्ड धारकों को 5 लाख रुपये तक फ्री इलाज मिलेगा. शुरू में कुछ गरीबों को इस योजना का लाभ मिला भी, लेकिन बाद में आयुष्मान कार्ड बनवा पाना टेढ़ी खीर हो गया. कई जरूरतमन्द तो सरकारी ऑफिसों के धक्के खाने के बाद भी कार्ड नहीं बनवा पाये. यह भी किसी कमाल से कम नहीं कि प्राइवेट अस्पताल खुद मरीजों को आयुष्मान कार्ड बनाने की सलाह देने लगे. यानी इस कार्ड के जरिये उनकी भी मोटी कमाई हो रही थी. अब यहाँ भी सवाल यही उठता है कि यह योजना गरीबों के लिए है या इलाज के नाम पर व्यापार कर रहे बड़े-बड़े पाँच सितारा अस्पतालों के लिए ?

सरकारी संस्था नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने आयुष्मान भारत योजना में एक बड़े घोटाले को उजागर किया है. उसने बताया कि एक ही मोबाइल नंबर 9999999999 से 7.5 लाख लोगों का रजिस्ट्रेशन हुआ है. 1,39,300 लोगों का रजिस्ट्रेशन 8888888888 नंबर से हुआ है. एक और मोबाइल नंबर 9000000000 से 96 हजार लोगों का रजिस्ट्रेशन हुआ है. यह आँकड़ा देखकर आपको लग रहा होगा कि कोई मजाक चल रहा है लेकिन यह कोई मजाक नहीं, बल्कि लाखों लोगों की जिन्दगी पर कुठाराघात है.

घोटालेबाजों ने आयुष्मान योजना में मृतकों को भी नहीं बक्शा. कैग की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस योजना के तहत 88 हजार से अधिक मृत लोगों के नाम पर 215 हजार क्लेम किये गये हैं. तमिलनाडु में मात्र 7 आधार कार्ड पर 4,761 रजिस्ट्रेशन हुए हैं. इससे पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) ने भी जुलाई 2022 में इस योजना में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर किया था. अपराधियों पर कार्रवाई की बात तो दूर उनकी पौ बारह हो गयी. इस घपले ने सरकार के पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन के दावों की धज्जियाँ उड़ा दी हैं.

इतने बड़े घपले के बावजूद सरकार का बाल भी बाँका नहीं हुआ, अगर चाटुकार मीडिया ने सच नहीं छिपाया होता तो इतने बड़े घोटाले को झेल पाना मोदी सरकार के लिए सम्भव नहीं था. पहले सरकारी अस्पतालों को तोड़कर प्राइवेट अस्पतालों की महँगी चिकित्सा को बढ़ावा दिया गया, उसके बाद गरीबों के वोट को लुभाने के लिए आयुष्मान योजना लायी गयी. लेकिन घोटालों ने साफ कर दिया कि यह योजना बिलकुल तर्कसंगत नहीं है और यह सरकारी अस्पताल की सस्ती और सुलभ चिकित्सा का स्थान नहीं ले सकती.

प्रधानमंत्री आवास योजना घोटाला

आयुष्मान योजना की तरह ही सरकार ने इस योजना को भी देश के गरीबों के लिए बताया दावा किया गया कि जिनके पास अपना कोई घर नहीं है या उनके घर की स्थिति रहने लायक नहीं है, उन्हें घर मिलेगा. लेकिन इस योजना की हकीकत भी कुछ और ही है जो अब धीरे-धीरे सामने आ रही है.

प्रधानमंत्री आवास योजना में हो रहे भ्रष्टाचार के आरोप में सीबीआई ने डीएचएफएल डायरेक्टर्स कपिल बधावन और धीरज बधावन पर मामला दर्ज किया है और बताया कि उन्होंने गलत तरीके से फर्जी होम लोन के खाते खुलवाये और 14,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया. एक होम लोन पर गरीबों को दो लाख तीस हजार रुपये मिलते हैं, यानी 6 लाख 8 हजार से ज्यादा फर्जी खाते खुलवाये गये हैं. वहीं मध्य प्रदेश के देवास जिले में इस योजना की राशि गरीबों की जगह नेताओं और अधिकारियों ने अपनी जेब में रख ली. इस घोटाले में तीन एफआईआर दर्ज हुई है. एफआईआर में कई नाम हैं, मुख्य नाम में कांटाफोड़ नगर परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष भूरी भाई, अविनाश सोनानिया, महेश शर्मा और विजय कुमार शर्मा शामिल हैं.

उत्तर प्रदेश के 59 जिलों में भी 9,217 निवासियों को फर्जी तरीके से 54 करोड़ 61 लाख रुपये के घर दिये गये हैं लेकिन जाँच करने पर लाभार्थी और उनके पते सब फर्जी हैं इसलिए अब पैसे की रिकवरी नहीं हो पा रही है. अनेक अपराधी जाँच के दायरे से बाहर हैं.

झारखण्ड पलामू के मेदिनी नगर निगम में 2019-20 और 2020-21 की पीएम आवास योजना में 400 लोगों का नाम बदलकर घोटाला किया गया है. इसी तरह पूरे देश में पीएम आवास योजना में घोटाले हो रहे हैं. योजना गरीबों के नाम पर है लेकिन फायदा उठा रहे हैं सेठ, दबंग, पूँजीपति, नेता और अधिकारी. यही है मोदी का अमृत काल. अमृत महोत्सव काल में अपराधियों और घोटालेबाजों की चाँदी कट रही है. उन्हें कानून का भी खौंफ नहीं है. जब सैंया भये कोतवाल, अब डर काहे का.

भाजपा राज में एक से बढ़कर एक घोटाले होते रहे. मोदी सरकार और उसकी चाटुकार मीडिया उस पर पर्दा डालते रहे. इन घोटालों की अगर यहाँ लिस्ट ही दे दी जाये तो पूरी पुस्तिका भर जायेगी, लेकिन मुख्य धारा की मीडिया में उनका जिक्र हासिये पर भी नहीं है. नेता-मंत्री, पुलिस-प्रशासन, अपराधियों, पूँजीपतियों, मीडिया घरानों और स्थानीय गुण्डों का नापाक गठबन्धन ही देश पर काबिज है और देश का बेड़ा गर्क कर रहा है.

हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने की हकीकत

भारत की कुल आबादी का 18.6 प्रतिशत युवा है. मतलब भारत में आज 25 करोड़ से ज्यादा युवा हैं जिन्हें मोदी ने हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा किया था. लेकिन सच्चाई यह है कि केन्द्र सरकार ने विभिन्‍न पदों के 22 करोड़ 5 लाख अभ्यर्थियों में से लगभग सवा सात लाख अभ्यर्थियों को ही नौकरी दी है. नौकरी चाहने वाले बाकी लगभग 22 करोड़ युवा बेरोजगार ही रह गये हैं यानी सौ में से कुल 0.32 लोगों को ही रोजगार मिला है. सवाल यह है कि यह रोजगार देने वाली प्रक्रिया है या युवाओं की छँटनी करने वाली ?

आजादी के बाद आज देश में बेरोजगारी दर अपने चरम पर है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के अनुसार देश में बेरोजगारी दर अक्टूबर 2023 को 10 प्रतिशत पार कर गयी है. पिछले साल यह आँकड़ा 7.8 प्रतिशत था.

भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में काम करने लायक 84 करोड़ (कुल आबादी का 61 प्रतिशत) लोगों में 39 प्रतिशत ही काम पर लगे हैं. मतलब देश में बेरोजगारों की सेना 50 करोड़ के ऊपर पहुँच गयी है. देश में 2011-12 से लेकर 2017-18 के बीच 90 लाख नौकरियाँ सरकार खत्म कर चुकी है. आज मोदी सरकार युवाओं को रोजगार देने वाली नीतियाँ बनाने के बजाय रोजगार छीनने वाली नीतियाँ बना रही है. इसकी पुष्टि खुद मोदी सरकार के केन्द्रीय मंत्री श्री राम इंद्रजीत सिंह ने लोकसभा में की. उन्होंने बताया कि ‘2018-19 से लेकर 2023-24 तक देश में 1,06,500 से ज्यादा कम्पनियाँ बन्द हो गयी हैं.’ इन कम्पनियों के बन्द होने से कितने लोग बेरोजगार हो गये होंगे. और तो और, देश में सरकारी स्कूलों को बन्द किया जा रहा है. दरअसल ये स्कूलों का बन्द होना नहीं, बल्कि बच्चों की शिक्षा और युवाओं का रोजगार का खत्म हो जाना है. यह एक बहुत ही गम्भीर सवाल है कि क्या फैक्ट्रियाँ और सरकारी स्कूलों के बन्द होने से, देश में बेरोजगारी और गरीबी बढ़ेगी, यह बात मोदी के समझ में नहीं आती होगी ?

इस अमृत काल में मोदी अपने देश के युवाओं को बेरोजगार बनाने में अपने पड़ोसी देशों से बहुत आगे निकल गये हैं. विश्व बैंक के 2022 के आँकड़ों के अनुसार भारत में युवा बेरोजगारी 23.22 प्रतिशत रही है तो वहीं पाकिस्तान में 11.3 प्रतिशत, बांग्लादेश में 12.9 प्रतिशत, चीन में 13.02 प्रतिशत और भूटान में 14.4 प्रतिशत रही है.

भारत सरकार के राष्ट्रीय सैंपल सर्वे कार्यालय द्वारा रोजगार से जुड़ी आवधिक श्रम बाल सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार पिछले पाँच सालों में नियमित मजदूरी पाने वाले लोगों की संख्या 24 प्रतिशत से घटकर 21 प्रतिशत रह गयी है. महिलाओं की स्थिति तो और भी दयनीय है, जो 22 प्रतिशत से घटकर मात्र 16 प्रतिशत रह गयी है. अग्निपथ योजना की हकीकत से हम सभी वाकिफ हैं कि कितनी बेरहमी से सरकार ने सेना भर्ती प्रक्रिया पर अपनी तलवार चलायी.

मोदी राज में अगर थोड़ी बहुत भर्तियाँ निकलती भी हैं तो उनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. पिछले 7 सालों में 70 से ज्यादा भर्तियों में पेपर लीक हुए हैं जिनके चलते भर्तियाँ रद्द कर दी गयी हैं. दोबारा परीक्षा कितने दिनों या सालों में होगी इसकी कोई गारण्टी नहीं है. 6 फरवरी 2024 को संसद में पेपर लीक और नकल विरोधी कानून बना, जिसमें एक करोड़ रुपये जुर्माना और 10 साल तक की सजा का प्रावधान है लेकिन यह कानून पेपर लीक गिरोह के आगे बौना ही साबित हो रहा है. इसके बनने के कुछ दिनों बाद ही यूपी में आरओ, एआरओ और यूपी पुलिस की भर्ती परीक्षा का पेपर लीक हो गया और भर्ती रद्द हो चुकी है. 6 महीने के अन्दर दोबारा परीक्षा का आश्वासन दिया गया है. हम सब जानते हैं कि भार्तियाँ चुनाव के समय निकलती हैं, सिर्फ दिखावे के लिए. भर्ती को पूरा करने के बजाय उसे लम्बा खींचा जाता है.

पेपर लीक होना, फिर उसे रद्द कर देना, भर्ती प्रक्रिया को रोके रखना युवाओं के साथ धोखा है. बेरोजगार युवाओं को रोजगार के नाम पर लूटा जाता है, इसे हम दो उदाहरणों से समझ सकते हैं –

  1. पहला, यूपी पुलिस भर्ती जिसमें 50 लाख से भी ज्यादा अभ्यर्थियों से फॉर्म भरवाकर 200 करोड़ से भी ज्यादा रुपये वसूले गये.
  2. दूसरा, रेलवे और एनटीपीसी में ग्रुप डी की भर्ती के लिए 2.40 करोड़ फॉर्म भरे गये. सिर्फ फार्म की कीमत से बेरोजगार युवाओं से सरकार ने 750 करोड़ रुपये से ज्यादा की वसूली की. मोदी काल में सरकारी भर्ती के लिए 22 करोड़ से ज्यादा अभ्यार्थियों ने फॉर्म भरे. हम सहज ही अन्दाजा लगा सकते हैं कि इन बेरोजगार युवाओं से भर्ती के नाम पर कितने अरबों-खरबों की फीस वसूली गयी होगी. ऊपर से महँगी कोचिंग फीस, किताबें, और भर्ती गिरोह द्वारा रिश्वत के रूप में लाखों की बोली. ऐसा लगता है, जैसे देश की अर्थव्यवस्था बेरोजगारों की लूट के दम पर ही चल रही है.

ऐसे दौर में जब बेरोजगारी दर 45 साल के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर हो, लाखों रिक्त पदों को भरने के बजाय उल्टे रोजगार देने वाले 23 सार्वजनिक उपक्रमों को प्राइवेट करने का आदेश दिया जाना या उन्हें बन्द किया जाना मोदी के रोजगार देने वाले वादे की पोल खोल देता है. सरकार की इन्हीं रोजगार विरोधी नीतियों के चलते हर साल 13,870 बेरोजगार युवा (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार) आत्महत्या करने को मजबूर हैं.

कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए !

कहाँ तो प्रधानमंत्री मोदी को हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा पूरा करने के लिए भर्तियों पर पैसा खर्च करना था. इसके उलट बेरोजगार युवाओं से और मेहनतकश किसान-मजदूरों के खून-पसीने से वसूले गये टैक्स का लगभग 600 करोड़ रुपये हर साल मोदी अपने खान-पान, पहनावे और यात्रा पर खर्च करते हैं, करोड़ों का जहाज खरीदते हैं. हर साल 6,000 करोड़ रुपये प्रचार-प्रसार पर खर्च करना, बैंकों का करोड़ों रुपये लुटाकर अपने चहेते पूँजीपतियों को विदेश भाग जाने देना और 14 लाख करोड़ रुपये का बैंक कर्ज एनपीए के रूप में अपने यार पूँजीपतियों पर लुटा देना. क्या इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने ऐसा करने का कभी सपने में भी सोचा होगा ? इस पर भी मन नहीं भरा तो इन मनमानियों और अय्यासियों पर सवाल उठाने वाले पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में दूस देना और चाटुकार मीडिया से उनकी छवि धूमिल करवाना. नीचता और धूर्तता का ऐसा कीर्तिमान रचा जा रहा है जिसका इतिहास के पन्‍नों में सानी मिलना असम्भव है.

अपने चहेते पूँजीपतियों पर हजारों करोड़ रुपये लुटाने में जरा सी भी शिकन नहीं है, लेकिन युवाओं को रोजगार देने के लिए पैसा नहीं है. दो सौ साल पहले फ्रांसीसी क्रान्ति के समय जब जनता रोटी के लिए आन्दोलन करती थी तो फ्रांस की महारानी उसका मजाक उड़ाते हुए कहती थी, ‘अगर जनता के पास रोटी नहीं है तो केक खाये.’ आज नेताओं की जुबानें उस दौर के मंत्रियों से ज्यादा गन्दी और अश्लील हो गयी हैं. वे नसीहत देते हैं कि रोजगार नहीं है तो नौजवान पकोड़े तलें.

महिलाओं के सम्मान में भाजपा मैदान में

इसमें तो कोई शक नहीं है कि भाजपा मैदान में है लेकिन किस काम के लिए ? देश में पहली बार 11 सजायाफ्ता बलात्कारियों और हत्यारों को 15 अगस्त (2022) के दिन मोदी राज में रिहा कर दिया गया. इसके बाद भाजपा और मोदी समर्थकों द्वारा उनके स्वागत में सभाएँ करना, फूल माला पहनाकर उनका स्वागत करना, मिठाइयाँ बाँटना आखिर क्या दर्शाता है ? बलात्कारियों को फूल-माला पहनाकर भाजपा ने अपने हाथ गन्दे जरूर कर लिये हैं, लेकिन अरब का सारा इत्र छिड़कने से भी उसके गन्दे हाथों की बदबू कम न होगी.

देश की जिन महिला पहलवानों ने कुश्ती में पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया और टॉक्यो ओलम्पिक से मेडल लाने के बाद मोदी ने जिन महिला पहलवानों को अपना परिवार और बेटी कहा था, उन्हीं बेटियों के साथ यौन उत्पीड़न करने वाले बृजभूषण शरण सिंह के ऊपर किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई. उल्टा उसे बचाया गया, और विरोध प्रदर्शन कर रही उत्पीड़ित महिला पहलवानों के साथ बहुत ही अभद्र, शर्मनाक और क्रूर व्यवहार किया गया. उन्हें सड़क पर घसीटा गया, पीटा गया और फिर जेल में डाल दिया गया. क्‍या परिवार के मुखिया और एक बाप का यही कर्तव्य है कि वह कुकर्मियों को बचाये और न्याय माँगने वालों को सजा दे ?

यह काला धब्बा भी भाजपा सरकार पर लगना ही था कि उसी के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित महिला के साथ गैंगरेप करने वालों को बचाया गया. अपराधियों ने दरिन्दगी की सारी हदें पार करते हुए बलात्कार के बाद महिला की जीभ काट दी, रीढ़ की हड्डी तोड़ दी और दुपटूटे से गला घोंट दिया और मरा जानकर उसे छोड़कर भाग निकले. यह जातीय अहंकार की पराकाष्ठा तो थी ही साथ ही इस मामले में उत्तर प्रदेश प्रशासन ने वह शर्मनाक काम किया है जिसकी मिसाल मिलना मुमकिन नहीं. उसने पीड़िता के घर वालों को सूचना दिये बिना पीड़ित महिला की लाश को जला दिया, ताकि सुबूत मिटाये जा सकें और बलात्कारियों-हत्यारों को बचाया जा सके.

जम्मू के कठुआ में मासूम बच्ची के बलात्कारियों को बचाने के लिए भाजपा का तिरंगा यात्रा निकलना क्या महिलाओं का अपमान नहीं है ? क्या यह इन्सानियत की सारी हदें पार कर जाना नहीं है ?

मोदी के इस अमृत काल में बात यहीं तक नहीं रुकी, बल्कि इससे भी कहीं आगे बढ़ गयी है. मणिपुर में पुलिस और भीड़ के सामने महिलाओं को नंगा घुमाया गया, सरेआम उनका बलात्कार किया गया. इस तरह की घटनाओं पर मोदी की चुप्पी इस सरकार की महिलाओं के प्रति एक खास सोच और मानसिकता को दर्शाती है. ये तो कुछ उदाहरण हैं. भाजपा के 10 साल के कार्यकाल में ऐसी कई घटनाएँ हो चुकी हैं जो इनसानियत को शर्मशार कर दें. बस शर्म-लाज सरकार को नहीं आती.

मोदी राज में महिलाओं की असुरक्षा की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है. 26 जून 2018 को ‘द थामसन राइटर्स फाउण्डेशन’ की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश बन गया है. वहीं ‘इंडिया स्पेंड’ की रिपोर्ट के अनुसार 2007 से 2016 तक आते-आते महिलाओं पर होने वाले अपराधों में 83 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गयी है. अब हर घण्टे में चार बलात्कार हो रहे हैं. महिलाओं की हत्या के मामले में भी भारत अब दुनिया में प्रथम स्थान प्राप्त कर चुका है.

सरकार के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,45,256 मामले दर्ज किये गये हैं. वहीं उत्तर प्रदेश में महिला अपराध के सबसे ज्यादा 65,748 मामले दर्ज किये गये हैं, जहाँ योगी सरकार और उनके अन्धभक्त महिला सुरक्षा की बड़ी-बड़ी डींगे हॉकते फिर रहे हैं और तो और देश की राजधानी दिल्ली जो सुरक्षा के मामले में सीधे गृहमंत्री अमित शाह के अधीन आती है, यहाँ तो महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर राष्ट्रीय औसत 66.4 प्रतिशत के मुकाबले 144.4 प्रतिशत तक पहुँच गयी है.

महिलाओं को लेकर 33 प्रतिशत आरक्षण भी अभी तक जुमला ही बना हुआ है. 10 साल मोदी सरकार को हो गये हैं, लेकिन महिला आरक्षण बिल को लागू करने के बजाय 2029 तक टाल दिया गया है. महिलाओं के प्रति मोदी सरकार के इस चाल-चलन से आज सभी जागरूक, चेतनशील, इज्जतदार, स्वाभिमानी और इन्सानियत पसन्द लोग एकदम साफ देख और समझ सकते हैं कि भाजपा और मोदी किसके “सम्मान में है और किसके लिए मैदान में है.’

मोदी के ज्यादातर वादे इस ‘अमृत काल’ में विष पीकर मर चुके हैं. ‘वन रैंक वन पेंशन’ का वादा आज तक पूरा नहीं हुआ, जिसके लिए रिटायर फौजी आज भी धरना प्रदर्शन करने को मजबूर हैं. तो वहीं सौ शहर ‘स्मार्ट सिटी’ बनने के लिए तरस रहे हैं. हर राज्य एक एम्स अस्पताल की राह देख रहा है. आम जनता से किये गये और कितने वादे गिनाये जायें, क्योंकि यह सब तो चुनावी जुमले ही साबित हुए हैं.

मोदी राज में मजदूरों को क्या मिला ?

204 में प्रधानमंत्री बनने से पहले पटना रैली में मोदी ने कहा था, ‘मैंने रेलवे स्टेशन और ट्रेनों में चाय बेची है…’. उन्होंने यह भी कहा था, ‘जो लोग दिल्ली में राज कर रहे हैं उन्हें गरीबी के बारे में पता नहीं है. मेरा जन्म एक गरीब परिवार में हुआ है और मुझे गरीबी का बखूबी अहसास है.’ इन बातों से कोई भी भ्रम में पड़े बिना नहीं रह सकता कि यह आदमी प्रधानपंत्री बनने के बाद जरूर गरीब लोगों की सुध लेगा. बात उस समय की है जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. पश्चिम बंगाल के सिंगूर से किसानों ने टाटा के नैनो प्लांट को खदेड़ दिया था. मोदी सरकार ने भर अंकवार टाटा का स्वागत किया और गुजरात में टाटा को अपना प्लांट लगाने की अनुमति दी. टाटा को सस्ती जमीन, पानी और बिजली के साथ 0.1 प्रतिशत ब्याज पर 5970 करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया. इससे साफ हो गया कि मोदी पूँजीपतियों के अच्छे सेवक हैं. दूसरी तरफ जिस समय केरल में न्यूनतम मजदूरी 218 रुपये थी, उसी समय गुजरात के शहर में 106 और गाँवों में 88 रुपये न्यूनतम मजदूरी थी. इससे साफ है कि मोदी के जुमलों से अलग उस समय गुजरात में मजदूरों का भयानक शोषण होता था. मुख्यमंत्री मोदी ने ‘वाइब्रेंट गुजरात सम्मलेन’ में कहा था कि ‘गुजरात में मजदूरी की कोई समस्या नहीं है.’ सूरत में इसके एक हफ्ते बाद 30 हजार पावरलूम मजदूरों ने कम मजदूरी का विरोध करते हुए चक्का जाम कर दिया और पुलिस के हिंसक दमन के बाद उग्र होकर कई गाड़ियों में आग लगा दी.

2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने, उनके मजदूर विरोधी रवैये में तनिक भी बदलाव नहीं आया. कोरोना महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों पर जुल्म-सितम की सारी इंतहा पार कर दी गयी. उसी समय सरकार ने आपदा में अवसर का लाभ उठाते हुए मजदूरों के कानूनी हकों पर खुलेआम डाकेजनी की. उसने मजदूर विरोधी 4 श्रम संहिताएँ पास करा दी जो मजदूरों के हक में बने 44 केन्द्र और 100 राज्य स्तर के कानूनों की जगह ले लेंगे. आज मजूदरों को 12 से 14 घण्टे काम करना पड़ रहा है. उन्हें न्यूनतम वेतन की भी गारण्टी नहीं. इलाज-शिक्षा से वंचित करोड़ों मेहनतकश मजदूरों के लिए यह समाज व्यवस्था किसी नरक से कम नहीं है. महिला मजदूरों को गर्भधारण के समय मिलने वाली सरकारी सुविधाओं में कटौती कर दी गयी है.

यह कैसा विकास है कि देश के बहुसंख्यक मजदूरों को दो जून की रोटी के लिए भी जान-जोखिम में डालकर मजदूरी करनी पड़ रही है. छोटे-छोटे बच्चे अपना बचपन खोकर हानिकारक पेशों में खट रहे हैं. क्या हिन्दू और क्या मुसलमान सभी मजदूरों को पूँजीपतियों के जघन्य शोषण ने पीसकर रख दिया है. इस काम में सरकार एूँजीपतियों को हर सुविधा और कानूनी अधिकार मुहैया करा रही है. मजदूरों द्वारा अपने हक के लिए यूनियन बनाने और आन्दोलन करने को भी देश-विरोधी घोषित किया जा रहा है. मजदूर नेताओं को झूठे केसों में फँंसाकर जेल भेजा जा रहा है.

सबका साथ सबका विकास

दस साल पहले नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने केन्द्र की कांग्रेस सरकार को लताड़ते हुए कहा था, ‘भारत में सरकार सर्वव्यापी है फिर भी शासन की कमी है जिसके परिणामस्वरूप लोगों का संस्था पर से विश्वास उठ रहा है. भगवान सर्वव्यापी है और लोगों को भगवान पर भरोसा है, क्यों ? ऐसा इसलिए है क्योंकि भगवान भेदभाव नहीं करते, लेकिन सरकार करती है.’ ऐसा लग रहा है कि मुख्यमंत्री मोदी उस समय अपने बारे में ही भविष्यवाणी कर रहे थे. आज देश की जनता के अलग-अलग हिस्से सरकारी भेदभाव के शिकार हैं, चाहे वे मणिपुर के लोग हों, या अल्पसंख्यक मुस्लिम और ईसाई या आदिवासी और दलित समुदाय के लोग.

इधर निजीकरण का काफी शोर सुनने में आ रहा है. आइये देखें, यह क्या बला है और इसके बारे में सरकार की क्या नीति है ? दस साल पहले निजीकरण के लिए कांग्रेस को पानी पी-पीकर कोसने वाली भाजपा जब केन्द्र की सत्ता में आयी तो उसने इस मामले में कांग्रेस सरकार के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिये. जल, जंगल, जमीन, सरकारी संस्थाएँ और सार्वजनिक कम्पनियाँ सबकुछ निजी क्षेत्र के मुनाफाखोरों के हवाले किया जाने लगा. ‘देश नहीं बिकने दूँगा !’ का नारा लगाकर सत्ता में आये मोदी देश की सम्पदा को कौड़ियों के मोल बेचने लगे. इसे विकास के लिए जरूरी बताया जाने लगा.

यह कैसा विकास है जिसमें रक्षा क्षेत्र को पूरी तरह विदेशी पूँजी के लिए खोलकर देश की रक्षा के साथ ही समझौता कर लिया जाता है और इसे ‘रक्षा क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई’ का लुभावना नाम दिया जाता है ! अगर इसे ही विकास माना जाये तो क्या सरकार ने अपनी असफलता स्वीकार कर ली है जो रक्षा जैसे जरूरी क्षेत्र को विदेशी हाथों में सौंप रही है ? सरकार का यह कदम कितना खतरनाक है, इसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा के ही संगठन ‘स्वदेशी जागरण मंच’ को भी सरकार के इस कदम का विरोध करना पड़ा.

यह कैसा ‘सबका साथ सबका विकास’ है ! मोदी सरकार चुनाव के समय तो सबका साथ चाहती है, लेकिन सरकार बनते ही सबके विकास से अपना पल्ला झाड़ लेती है. चुनाव के समय नारा और वादा जनता को लुभाने और बरगलाने के लिए लगाये जाते हैं, मन्दिर-मस्जिद और कब्रिस्तान-शमसान के मुदुदे उछालकर उसका साम्प्रदायिक धुवीकरण किया जाता है और चुनाव जीतने के बाद मुट्ठीभर देशी-विदेशी पूँजीपतियों के लिए काम किया जाता है. 80 प्रतिशत जनता ठगी सी रह जाती है. अपराधियों और श्रष्टाचारियों को साथ लेकर किस तरह ‘सबका साथ सबका विकास’ किया जा रहा है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है और इसके बारे में हमने शुरू में ही काफी कुछ कह दिया है.

महँगाई, भ्रष्टाचार बढ़ाकर, जीएसटी लगाकर, नोटबन्दी करके, कोरोना लॉकडाउन लगाकर, देश के सार्वजनिक संस्थाओं का निजीकरण करके कीड़ियों के मोल में पूँजीपतियों को बेचकर, कुल मिलाकर देशी-विदेशी पूँजीपतियों को मालामाल करना, उनका ही विकास करना मोदी का सबसे बड़ा लक्ष्य है. शायद यही है मोदी सरकार का ‘सबका साथ, सबका विकास.’

मोदी की गारण्टी

आज साइन बोर्ड, अखबार और टीवी विज्ञापनों में मोदी की गारण्टियों से पूरा देश अटा पड़ा है. गाँव, शहर और सड़कें, सभी पेट्रोल पम्प, सभी सरकारी संस्थान, फेसबुक, वट्सेप, इन्सटाग्राम, यू-ट्यूब तथा हर तरह की इलैक्ट्रॉनिक मीडिया और सभी तरह की प्रिंट मीडिया मोदी गारण्टियों से भरा पड़ा है. लेकिन आज यह एक बड़ा सवाल है कि आखिरकार मोदी की असली गारण्टी क्या है ? मोदी काल में जमीनी हकीकत की गारण्टी –

  1. ख़ुद 10 लाख का सूट पहनने, हजारों रुपये के मशरूम खाने तथा हजारों-करोड़ के कार और जहाज में चलने की गारण्टी. दूसरी तरफ जनता को बेकफन और भूखा पेट मरने तथा बस और रेल डब्बों में दूँसकर जाने की गारण्टी.
  2. अपने लिए हजारों-करोड़ों का ‘सेंट्रल विस्टा’ बनाने की गारण्टी तो वहीं गरीबों के आवास योजना में घोटले की गारण्टी.
  3. मजदूरें को बेहद कम मजदूरी पर 12-16 घण्टे काम कराने की गारण्टी. पढ़े-लिखे मेहनतकश युवाओं को बेरोजगार रखने की गारण्टी. पेपर लीक, परीक्षा रद्द करने और बेरोजगारी को सबसे उच्च स्तर पर ले जाने की गारण्टी.
  4. मणिपुर में महिलाओं के नंगे परेड पर और अन्य सभी जगह हो रहे महिला उत्पीड़न पर चुप्पी साधनें की गारण्टी. महिला पहलवानों को घसीट-घसीट कर मारने और अपने बलात्कारी मंत्रियों को बचाने की गारण्टी. बलात्कारियों के समर्थन में तिरंगा यात्रा निकालने की गारण्टी.
  5. लखीमपुर खीरी के किसानों को कुचलकर मार देने वाले को बचाने की गारण्टी. अपने ही किये गये वादों को याद दिलाने के लिए सड़कों पर उतरे किसानों पर आँसू गैस, पैलेट गन और लाठी-गोली चलाने की गारण्टी.
  6. विरोधी पार्टियों के सभी भ्रष्टाचारियों को अपनी पार्टी में लाकर उन्हें बचाने और मंत्री बनाने की गारण्टी. विदेशों से कालाधन लाने के बजाय देश में ही कालाधन बटोरने और छिपाने (चुनावी बॉण्ड के जरिये) की गारण्टी.
  7. देश को कुल जीडीपी से भी ज्यादा का कर्जदार बनाने की गारण्टी.
  8. कोरोना जैसी महामारी में लॉकडाउन लगाकर मजदूरों को तड़पा-तड़पा कर मार देने की गारण्टी. झूठ बोलने, अन्धविश्वास फैलाने और लोगों में फूट डालकर आपस में लड़वाने की सबसे पक्की गारण्टी.

गारण्टी की यह सूची अन्तहीन है… !

साम्प्रदायिकता का फैलता जहर

हम सभी जानते हैं कि मोदी सरकार आरएसएस और अन्य हिन्दुत्ववादी संगठनों के उग्र हिन्दुत्ववादी विचारों पर चल रही है. अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में इन संगठनों का कोई योगदान नहीं था. लेकिन आज ये लोग आटा पोतकर रसोइयाँ बन गये हैं और देशभक्त होने का स्वांग रच रहे हैं. अंग्रेजी राज के दौरान इनका इतिहास दंगा कराने, हिन्दू-मुसलिम साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाने, अंग्रेजों की मुखबिरी करने और माफी माँगने से भरा हुआ है. अगर ये सफल हुए होते तो भारत को आजादी कभी न मिलती. लेकिन इनके इरादे पूरे न हो सके. कांग्रेस पार्टी और देश के क्रान्तिकारियों ने जनता के सहयोग से इनके साम्प्रदायिक एजेण्डे पर पानी फेर दिया.

हम जानते हैं कि सावरकर अंग्रेजों से माफी माँगकर जेल से वापस आ गये थे. आज हिन्दुत्ववादी ताकतों ने उन्हें वीर बनाने का अभियान छेड़ रखा है. उन पर फिल्म बनायी जा रही है और उनके जरिये महात्मा गाँधी जी की छवि को धूमिल करने की कोशिश चल रही है. 1948 में आतंकी नाथूराम गोडसे ने जब गाँधी जी की हत्या का जघन्य कार्य किया था, उसी समय गृहमंत्री सरदार पटेल ने गोडसे के संगठन आरएसएस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और आह्वान किया कि ‘नफरत और हिंसा की ताकतों को जड़ से उखाड़ फेंकों.’ प्रगतिशील ताकतों ने लगातार इनके साम्प्रदायिक और विभाजनकारी मुद्दे के खिलाफ संघर्ष किया है.

1990 के दशक में अमरीकी साम्राज्यवाद के दबाव के आगे झुकते हुए भारत सरकार ने आत्मनिर्भर विकास का रास्ता छोड़ दिया. उसने विश्व बैंक और आईएमएफ द्वारा प्रस्तावित अमरीका की नयी आर्थिक नीति को स्वीकार कर लिया. इसके बाद देश को देशी-विदेशी पूँजीपतियों के हितों के अनुरूप ढाला जाने लगा. किसानों, मजदूरों, छात्रों और महिलाओं के हितों पर हमला किया गया और उन्हें निचोड़कर धन्ना सेठों की तिजोरियाँ भरी जाने लगी. उनके विरोध को पुलिस प्रशासन के डण्डों से कुचला गया. उनके बीच धर्म, जाति और क्षेत्रीयता पर आधारित राजनीति को बढ़ावा दिया गया ताकि वे अपने ऊपर हो रहे हमलों के खिलाफ एकजुट न हो सकें और अपने हक की लड़ाई न लड़ सकें. वे एक बार फिर गुलाम बन गये. इस बार अपने ही देश के पूँजीपतियों के शासन के अधीन जो विदेशी पूँजी से समझौता कर चुके थे. शहीदे-आजम भगत सिंह ने बहुत पहले कहा था कि गोरे अंग्रेजों के चले जाने के बाद काले अंग्रेज या भूरे अंग्रेज के आ जाने से देश और देशवासियों की हालत नहीं बदलेगी.

देश की जनता को धर्म, जाति और क्षेत्र में बॉँट दिया गया. उसकी एकता तोड़ दी गयी. 1990 के दशक में ही बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद साम्प्रदायिक ताकतें बेखौंफ हो जनता में अपनी पैठ बनाने लगीं, नतीजन देश में कई हिन्दू-मुसलान के दंगे हुए और गुजरात में मुसलानों का नरसंहार कराया गया. ऐसे खौंफनाक मंजर सामने आये कि रूह कॉप जाये, लेकिन हुक्मरानों की आत्मा नहीं पिघली, वे जनता की लाशों पर अपने चुनाव की रोटियाँ सेंकते रहें. पूँजीपतियों ने भी अपने फायदे के लिए इन सबको खूब बढ़ावा दिया. इन सब गन्दे और आचरणहीन राजनीति के फलस्वरूप आरएसएस सहित सभी हिन्दुत्ववादी संगठनों का जबरदस्त उभार हुआ. 2014 में कांग्रेस विरोधी जन-भावना का दोहन करके और हिन्दुत्ववादी संगठनों के सक्रिय समर्थन से मोदी की भाजपा सरकार केन्द्र की सत्ता पर काबिज होने में सफल रही. यह भारत के इतिहास का एक बड़ा भयावह मोड़ साबित हुआ.

पिछले दस साल में पूरे देश में जातीय और साम्प्रदायिक दंगों को फैलाने, महिला विरोधी सोच को आगे बढ़ाने तथा अन्धविश्वास और पिछड़ी सोच को बढ़ावा देने में सभी हिन्दुत्ववादी संगठन पूरी तरह मुस्तैद रहे हैं. इसी का नतीजा है कि जनता का एक बड़ा हिस्सा आज साम्प्रदायिक मानसिकता से ग्रस्त हो गया है जो तर्क-विज्ञान के बजाय अंधविश्वास और साम्प्रदायिक बातों पर विश्वास करता है. फर्जी वाट्सएप्प मैसेज के जरिये उसे मुसलमानों, प्रगतिशील लोगों और विपक्षी पार्टियों से नफरत करना सिखाया जा रहा है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि हिन्दुत्ववादी संगठनों को मोदी सरकार का पूरा सहयोग प्राप्त है.

अगर ऐसी ताकतों का जवाब नहीं दिया गया और खामोश रहकर इनका मौन समर्थन किया गया तो देश का भविष्य अंधेरे के गर्त में चला जायेगा. क्रान्तिकारी कवि अवतार सिंह पाश के शब्दों में ‘सबसे खतरनाक वह रात होती है/जो जिन्दा रूह के आसमानों पर ढलती है/जिसमें सिर्फ उल्लू बोलते और हुआ-हुआ करते गीदड़/हमेशा के अंधेरे बन्द दरवाजों-चौगाठों पर चिपक जाते हैं.’ देश की ऐसी खतरनाक हालत हमारे सामने है. हमें हर हाल में इसका जवाब देना ही पड़ेगा. इसका मुकाबला करना ही पड़ेगा, नहीं तो पीढ़ियाँ गुलाम हो जायेंगी और हमारी ‘आत्मा का सूरज डूब’ जायेगा.

फासीवादी प्रवृत्तियों का उभार

करीने से बनायी हुई दाढ़ी और प्रेस किये हुए सुन्दर सजीले कपड़े पहने लच्छेदार भाषण देते मोदी को देखकर यही भ्रम होता है कि वह बहुत लोकप्रिय नेता है. सवाल यह उठता है कि अगर जनता उन्हें इतना ही अधिक पसन्द करती है तो वे विपक्षी नेताओं को सीबीआई और ईडी का डर दिखाकर अपने पाले में क्‍यों खड़ा कर रहे हैं ? उन्हें चुनाव के जरिये अपना उम्मीदवार जिताना चाहिए. यह मानना एक गलती होगी कि विपक्षी पार्टियों का जनाधार सिकुड़ चुका है. अगर सभी विपक्षी पार्टियाँ साथ मिलकर चुनाव लड़ जायें तो भाजपा के लिए अच्छी-खासी परेशानी खड़ी हो सकती है. मोदी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं इसलिए वे हाथ धोकर विपक्ष के पीछे पड़े हुए हैं और संवैधानिक संस्थाओं का कठपुतली की तरह इस्तेमाल करते हुए विपक्षी पार्टियों पर हमले कर रहे हैं. हमने पहले ही बता दिया कि विपक्षी पार्टियों के दागदार नेता भाजपा में शामिल होते ही कैसे दाग मुक्त हो जाते हैं.

इन बातों से स्पष्ट है कि संवैधानिक और लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख अब दाँव पर है और हम सभी जानते हैं कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के बिना मौजूदा लोकतंत्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. 1990 के दशक में शुरू हुई नव उदारवादी नीतियों के समय से ही जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले बढ़ते गये और न्याय पाने के उसके अधिकारों का खात्मा होता रहा जो आज बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक पहुँच गया कि देश में खुद लोकतंत्र ही खतरे में पड़ गया है.

आज साम्प्रदायिक ताकतें शासन-सत्ता के फासीवादी रूपान्तरण के लिए बेशर्मी से वित्तीय पूँजी की सेवा कर रही हैं और मजदूरों-किसानों और छात्रों-नौजवानों पर कहर ढा रही हैं. भारत में पूँजीपतियों की शह पर साम्प्रदायिक ताकतों की खुली गुण्डागर्दी चल रही है. मुसलमानों और इसाइयों पर अत्याचार की कोई इंतहा नहीं है. देश के कोने-कोने में दंगे-फसाद फैलाये जा रहे हैं. इतिहास को मनमाने तरीके से तोड़-मरोड़कर फिर से लिखा जा रहा है. लोकतांत्रिक संस्थाओं पर कब्जा किया जा रहा है और जनता के न्याय पाने के अधिकार को रौंद दिया गया है. महिलाओं के मध्ययुगीन उत्पीड़न को बढ़ावा दिया जा रहा है. बलात्कारियों को बचाया जा रहा है. इस खुली गुण्डागर्दी का विरोध करने वालों को धमकाया जा रहा है और न रुकने पर उन्हें झूठे केसों में फँसाकर जेल भेजा जा रहा है.

यह सब देख हिटलर के शासन की याद ताजा हो जाती है. हिटलर का प्रचारमंत्री गोयबल्स कहता था कि किसी झूठ को इतनी बार कहो कि वह सच लगने लगे और लोग उस पर यकीन कर लें. आज सरकार का एक झूठ सामने आता है, जब तक जनता उसे समझती है, उसका दूसरा, उसके बाद तीसरा, चौथा झूठ सामने आ जाता है. ‘हिन्दू खतरे में है’ इसी तरह का एक झूठ है जिसने कई लोगों के दिमाग को दूषित कर रखा है. झूठ की आड़ में एक एजेण्डा चलाया जा रहा है – वह है ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ का जिसमें मजदूरों, किसानों, महिलाओं, आदिवासियों और मुसलमानों पर हमले होते रहेंगे. इनकी बलि चढ़ाकर ही यह राष्ट्रवाद परवान चढ़ेगा.

वित्तीय पूँजी की शह पर यह जो फासीवादी एजेण्डा चलाया जा रहा है, वह बेहद खतरनाक है और देश को बर्बादी की तरफ ले जा रहा है. अगर इसे नहीं रोका गया तो यह विनाशकारी होगा. यह दानव भस्मासुर की तरह सबको खत्म करके ही मरेगा.

क्या करें ?

सच तो यह है कि भाजपा, आरएसएस और अन्य सभी हिन्दुत्ववादी संगठन ‘हिन्दू राष्ट्र’ निर्माण के तय मंसूबे और योजना के तहत देश को साम्प्रदायिक और फासीवादी साँचे में ढाल रहे हैं. वे अपने इसी एजेण्डे को पूरा करने के लिए एड़ी-चोटी का पसीना एक कर रहे हैं. देश के ज्यादातर पूँजीपति इस काम में उनके साथ हैं. उनके एजेण्डे का ही नतीजा है कि पिछले 10 वर्षो में हमारा देश आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, हर क्षेत्र में रसातल की ओर गया है लेकिन उन्हें इससे कोई मतलब नहीं, चाहे देश तबाह ही क्‍यों न हो जाये, उन्हें ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाना है.

इकबाल की ये लाइनें आज पहले से कहीं ज्यादा गम्भीरता से हमें देश और समाज के गहराते चौतरफा संकट का बोध करा रही हैं और इस संकट से उबरने का आहवान कर रही है –

बतन की फिक्र कर नादाँ, मुसीबत आनेवाली है
तेरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में ।
न सम्भलोगे तो मिट जाओगे, ए हिन्दुस्ताँ वालों
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में !

आज संकट की इस घड़ी ने कई लोगों को किंकर्त्तव्यविमूढ़ कर दिया है. वे समझ नहीं पा रहे हैं क्या करें ? कुछ लोग निराश-हताश हो खुद को कोस रहे हैं. संकट की इसी घड़ी में सच्चे दोस्त और दुश्मनों की पहचान होती है. नयी सेनायें सजती हैं और युद्ध का आगाज होता है. जब संघर्ष लाजमी है तो क्यों न कमर कसकर आगे बढ़ा जाये.

आज खामोश रहकर बैठे रहने का समय नहीं है. समय आ गया है कि हम नौजवान दिखा दें कि हम मुर्दा नहीं हैं. देश पर आयी इस विपदा का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं. भगत सिंह ने एक बार कहा था, ‘अगर कोई सरकार जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखती है तो जनता का यह अधिकार ही नहीं बल्कि आवश्यक कर्तव्य बन जाता है कि ऐसी सरकार को बदल दे या समाप्त कर दे.’

इतिहास में हमने देखा है कि जनता ने हलाकू, जार, चंगेज खाँ, हिटलर, मुसोलिनी और अंग्रेजी राज को धूल में मिला दिया. जनता की एकजुट ताकत के आगे कोई भी अत्याचारी सरकार टिक नहीं सकी. आतंक का मौजूदा शासन तभी तक कायम रह सकता है, जब तक जनता इसके खिलाफ एकजुट होकर खड़ी नहीं हो जाती. आज हम नौजवानों को आगे बढ़कर जनता को एकजुट करना चाहिए. जनता जब उठ खड़ी होगी तो वह अन्यायपूर्ण, अलोकतांत्रिक और तानाशाही शासन को करे के ढेर में फेंक देगी जो उसकी सही जगह है.

इन्कलाब जिन्दाबाद !!!

  • नौजवान भारत सभा द्वारा अप्रैल, 2024 में प्रकाशित पुस्तिका

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