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चुनाव, उसके फैसले और विदेशी साम्राज्यवादी शक्तियां

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चुनाव, उसके फैसले और विदेशी साम्राज्यवादी शक्तियां
चुनाव, उसके फैसले और विदेशी साम्राज्यवादी शक्तियां
नन्द किशोर सिंह

देश में लोकसभा चुनाव होने जा रहा है. चुनाव की इस घड़ी में देश के नागरिकों, आम जनता और विशेषकर मतदाताओं की अग्निपरीक्षा होनी है. इस परीक्षा में मुल्क के मतदाताओं की जागरूकता, चेतना और विवेक के स्तर का माप होने वाला है. यह सच है कि जनता महान होती है, वही सर्वशक्तिमान होती है. उसके फैसले से ही देश की तकदीर की दिशा तय होती है. उसके जनादेश से ही यह तय होता है कि आने वाले 5 वर्षों के लिए किस पार्टी की सरकार बनेगी और उस सरकार की नीतियों के तहत देश की जनता को जीवन बसर करना होगा.

लेकिन उपरोक्त तथ्य सिक्के का सिर्फ एक पहलू है. दूसरा पक्ष यह है कि हमारा देश एक वर्ग विभाजित समाज होने के साथ-साथ जाति विभाजित समाज भी है. इस देश में विभिन्न धर्मों, समुदायों, भाषाओं, नृजातीय समूहों के लोग निवास करते हैं. इस जाति एवं नृजातीय समूहों में विभाजित समाज में ही हमें विभिन्न भाषा बोलने वाले आदिवासियों, दलितों, अत्यंत पिछड़े समुदाय के लोगों, अन्य पिछड़ी जातियों तथा अगड़ी जातियों के लोगों के दर्शन होते हैं, जिनके सामाजिक एवं आर्थिक हितों में भेद होता है.

हमारे देश में वर्ग एवं जाति का एक अंतर्गुम्फित सम्बन्ध पाया जाता है. आम तौर पर समाज के सबसे सम्पत्तिशाली एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से सशक्त एवं खुशहाल लोग अगड़ी जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों (मध्य जातियों) से आते हैं. देश के पूंजीपतियों, भूस्वामियों, अमीरों एवं धन्नासेठों को हम आसानी से उपर्युक्त समूह में पहचान सकते हैं. अपवादस्वरूप ही दलितों, आदिवासियों और अत्यंत पिछड़ों में हमें बड़े पूंजीपतियों एवं बड़े भूस्वामियों के दर्शन होते हैं.

हमारे देश का शासक वर्ग जो बुनियादी रूप से बड़े पूंजीपतियों और बड़े भूस्वामियों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है, वह विदेशी साम्राज्यवादी शक्तियों के समक्ष दंडवत की मुद्रा में खड़ा पाया जाता है. इनकी आर्थिक नीतियां साम्राज्यवादपरस्त होती हैं. निजीकरण, उदारीकरण और भूमंडलीकरण की नई आर्थिक नीतियों को अपनाने एवं लागू करने के मामले में भाजपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, अकाली, आप, राजद, जदयू, बीजद, शिवसेना, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस, तेलुगू देशम पार्टी, आदि शासकवर्गीय पार्टियों में कोई बुनियादी फर्क नहीं है. सत्तासीन होने पर आम जनता की छाती पर मूंग दलने में ये सभी पार्टियां एक दूसरे से होड़ करती हैं.

लेकिन फिर भी आज की तारीख में शासक वर्गों की सभी देश स्तरीय और क्षेत्रीय पार्टियों में सबसे जनविरोधी, दमनकारी, खतरनाक भाजपा है. पिछले 10 वर्षों तक केंद्र सरकार में सत्तारूढ़ रहकर उसने यह साबित कर दिया है. आरएसएस जैसे फासीवादी विचारधारा में यकीन करने वाले संगठन के इशारों पर चलने वाली भाजपा ने देश में मौजूद संसदीय व पूंजीवादी जनतंत्र की जड़ों को खोखला करने का काम किया है.

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में चल रही केन्द्र सरकार ने तमाम पूंजीवादी जनतांत्रिक संस्थाओं पर भीतर से ही कब्जा कर लेने की जुगत भिड़ाई है. ईडी, इनकमटैक्स, सीबीआई और एनआईए जैसी सरकारी एजेंसियों का खुल्लमखुल्ला दुरूपयोग करके विपक्ष को प्रताड़ित एवं साधनविहीन करने की जो मुहिम चलाई जा रही है, वह अप्रत्याशित है. राज्य मशीनरी का इतना भयंकर दुरूपयोग अविश्वसनीय लगता है, लेकिन बड़ी निर्लज्जता के साथ मौजूदा निजाम वही कर रहा है.

स्वतंत्र कही जाने वाली न्यायपालिका और प्रेस पर भी शिकंजा कसने की जोरदार तैयारी वर्षों से चल रही है. देश की मीडिया ‘गोदी मीडिया’ के रूप में पतित होकर अपने अवसान की दुखभरी कहानी बयां कर रही है. न्यायपालिका पर किये जा रहे हमले की एक बानगी यह है कि उच्चतम न्यायालय के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने राज्य सभा की सदस्यता ग्रहण कर ली है. इसमें न्यायपालिका की मर्यादा में इजाफा हुआ है या उसकी अवमानना हुई है, इसपर राय देश की जनता को बनानी है.

बहरहाल यह बात डंके की चोट पर कही जा सकती है कि धर्म एवं जाति का इस्तेमाल और उसका ध्रुवीकरण करके भले कोई पार्टी आम जनता एवं मतदाताओं को भ्रमित करके और उनकी आंखों में धूल झोंक कर चुनाव जीत ले लेकिन इससे हमारे महान देश और उसकी महान मेहनतकश जनता का भला होने वाला नहीं है. हर जाति, समुदाय, भाषा एवं मजहब के लोगों को सजग होकर अपने वर्गीय हितों के साथ-साथ देशहित को प्राथमिकता में रखनी होगी. अपने बहुमूल्य मत के महत्व को समझना होगा और उसका सदुपयोग करना होगा.

निश्चित रूप से देश को भयंकर महंगाई, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता और अंधराष्ट्रवाद के भंवरजाल से निकाल कर गुणवत्तापूर्ण एवं सर्वसुलभ शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, धर्मनिरपेक्षता एवं सच्चे जनतंत्र के रास्ते पर आगे बढ़ाने के लिए हमें एक ठोस निर्णय लेना होगा. इस लोकसभा चुनाव में फासिस्ट एवं साम्प्रदायिक भाजपा एवं उसके सहयोगियों को शिकस्त देने के लिए कमर कसना ही होगा. आम जनता और मतदाताओं से जीवंत सम्पर्क कायम करते हुए एक सच्चे जनतंत्र और शोषण विहीन समाज व्यवस्था के निर्माण के रास्ते को प्रशस्त करने के लिए सक्रिय होना ही होगा. यही वक्त की पुकार है, समय का आह्वान है और सच्चा युगधर्म है.

फासीवादी और साम्प्रदायिक भाजपा को लोकसभा चुनाव 2024 में हराया जा सकता है, बशर्ते इंडिया गठबंधन के भीतर मौजूद कुछ शासक वर्गीय क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं के अहंकार, परिवार प्रेम,जाति प्रेम एवं बेशुमार धन की अतिशय कामना पर लगाम लगा दी जाए. भाजपा जैसी फासिस्ट पार्टी और जदयू जैसे अवसरवादी दल तो बिहार में हारने के लिए तैयार बैठे हैं, शर्त यह है कि बिहार के जागरूक मतदाता जाति, धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर देशभक्ति, धर्मनिरपेक्षता, वर्गीय राजनीति को केन्द्र में रखकर वोट देना सीख लें.

सबसे बड़ी बात यह है कि अदूरदर्शिता एवं हठधर्मिता के प्रभामंडल में जीने वाले बौने राजनीतिज्ञों को आईना दिखाने और उनकी औकात बताने के लिए यदि प्रदेश के समझदार एवं सचेतन नागरिक एवं मतदाता कमर नहीं कसेंगे तो भला इस बात की गारंटी कौन करेगा कि इतिहास का कूड़ेदान फ़ासिस्टों तथा फिरकापरस्तों का बेसब्री से इंतजार कर रहा है.

मैं आज भी इसी लाइन के पक्ष में हूं कि फासिस्ट एवं साम्प्रदायिक भाजपा एवं उसके सहयोगियों को लोकसभा चुनाव में परास्त करने के लिए हमें विपक्षी दलों के सबसे सशक्त प्रत्याशी को वोट देना चाहिए. इसमें थोड़ा सा संशय भी मुझे नहीं है. यह बात जरूर है कि चुनाव के मौके पर फासीवाद के वास्तविक खतरे और उससे हिम्मत एवं दिलेरी के साथ लड़ने के ऐतिहासिक दायित्व का हमें भली-भांति भान है और उसी परिप्रेक्ष्य में फासिस्ट एवं साम्प्रदायिक शक्तियों के सम्पूर्ण पर्दाफाश को मैं वक्त की जरूरत मानता हूं. साथ ही अपने वर्तमान कार्यभार को दूरगामी लक्ष्य के साथ जोड़ना और आम जनता के समक्ष साफगोई से रखना भी एक क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टी की चुनावी नीतियों के अनुकूल समझता हूं.

यह सही है कि राजद जैसी शासक वर्गों की एक क्षेत्रीय पार्टी, जो अपने जातीय जनाधार पर जरूरत से ज्यादा गुमान करती है, के अहंकार, हठधर्मिता और अदूरदर्शिता ने मुझे कम्युनिस्ट स्वाभिमान के अनुकूल थोड़ा उत्तेजित अवश्य किया है और इसीलिए राजनीतिक ‘जोकर’ को हीरो समझने की भूल यदा-कदा जो संसदीय वामपंथी दलों के नेता करते हैं, उनको सजग और सचेत करने के इरादे से मुझे कई लेख लिखने पड़े.

पेरिस कम्यून के जमाने के बुर्जुआ वर्ग के उस धूर्त, काइयां, बौने राजनीतिज्ञ थियेर के अनुयाई लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जैसे अवसरवादी, भ्रष्टाचार में आकंठ लिप्त और अविश्वसनीय क्षेत्रीय शासकवर्गीय नेताओं की थोड़ी झलकियां ही तो हमने अपनी टिप्पणियों में दिखाई है.

यह सच है कि आज और तत्काल लड़ाई तो फासिस्ट हिटलर और मुसोलिनी के अनुयायियों से है और चुनाव और चुनाव के बाद फासिस्ट एवं साम्प्रदायिक शक्तियों को परास्त और नेस्तनाबूद करना हमारे तात्कालिक एजेंडे में शामिल है लेकिन हमें अंततः एक सच्चे जनवादी एवं समाजवादी समाज व्यवस्था के निर्माण की आधारशिला रखनी है, यह बात हमें डंके की चोट पर कहनी चाहिए.

विश्व सर्वहारा वर्ग के महान शिक्षक कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र में कहा है – ‘कम्युनिस्ट अपने विचारों एवं लक्ष्यों को छिपाना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं. हम खुलेआम एलान करते हैं कि हमारे लक्ष्यों की प्राप्ति विद्यमान समाज व्यवस्था के जबरन उखाड़ फेंकने से ही संभव है. कम्युनिस्ट क्रांति से शासक वर्ग कांपते हैं, तो कांपें ! सर्वहारा वर्ग के पास खोने के लिए अपनी बेड़ियों के सिवा कुछ नहीं है, पाने के लिए पूरी दुनिया है.’

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