धारूहेड़ा ज़िला रेबाड़ी, हरियाणा स्थित, ‘लाइफलॉन्ग प्रा. लि.’ नाम की कंपनी में 6 मार्च को बायलर फट गया, जिसमें बुरी तरह जले, कुल 40 मजदूरों में से अब तक 14 मज़दूरों की मौत हो चुकी है. 6 मजदूर रोहतक मेडिकल कॉलेज तथा 1 सफदरजंग अस्पताल में मौत से जूझ रहे हैं. डॉक्टर्स का कहना है कि 50% से ज्यादा जले व्यक्ति को मौत से बचाना मुमकिन नहीं होता. अस्पतालों में भर्ती ये मज़दूर भी 60 से 70% से ज्यादा जल चुके हैं, मतलब जीवित बचाना मुश्किल है. सफ़दरजंग अस्पताल के डॉक्टर का बयान है, 60% से अधिक जले, कन्हैया महतो की हालत चिंताजनक है, वह ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है’.
रोहतक मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स ने भी बताया है कि 70% जल चुके व्यक्ति कई बार कई दिन तक जीवित रहते हैं लेकिन उनके अंदर इन्फेक्शन फैलाने से नहीं रुकता और उनकी ज़िन्दगी बचाना संभव नहीं हो पाता. शासन, श्रम विभाग, हरियाणा सरकार और पुलिस का बिलकुल वही रवैय्या है, जो हमेशा रहता है. एफआईआर में मालिकों का नाम तक नहीं है, बस ‘शिवम कन्ट्रैक्टर’ नाम की ठेकेदार फर्म के मालिक का नाम है. उसकी भी गिरफ्तारी की कोई कर्फर्म सूचना अभी तक नहीं है.
कंपनी के डायरेक्टर्स/ मालिक जो मजदूरों के उत्पादन को बेचकर मुनाफ़ा कूटते हैं, जो मजदूरों की सुरक्षा के लिए सीधे जिम्मादार हैं, जो पिसे-पिटे उपकरणों को अनंत काल तक रगड़ते जाते हैं, उनकी कोई ज़िम्मेदार नहीं !! एक रिपोर्ट के अनुसार पुलिस को पता नहीं, कि कंपनी के मालिक कौन हैं. उसने ‘हरियाणा राज्य औद्योगिक विकास निगम’ से ये जानकारी मांगी है. जबकि गृगल ने 1 मिनट से भी कम समय में हमें सारी जानकारी उपलब्ध करा दी. चेयरमैन: अतुल रहेजा, डायरेक्टर्स: विजय कुमार, जतिन रहेजा, जीएम ऑपरेशन: अरुण सैनी और वित्त विभाग प्रमुख: हखीत सिंह खुराना. उम्पीद है, गिरफ़्तारी जल्द होगी.
मजिस्ट्रेट ने अपनी जांच रिपोर्ट में हत्यारे मालिकों के विरुद्ध कुछ नहीं कहा. मुख्य सचिव को उनकी सिफारिश है कि औद्योगिक सुरक्षा विभाग और श्रम विभाग के विशेषज्ञ जांच के बाद श्रम विभाग में स्थित औद्योगिक सुरक्षा विभागों में ताले लगा चुके हैं. सरकार का मानना है कि काराखानेदार अपने उद्योग में सुरक्षा उपाय ख़ुद कर लेते हैं !
इस कंपनी के एक बायलर में पहले दो बार ब्लास्ट हो चुका है, लेकिन मालिकों ने उनकी जगह नए बायलर लाने तो दूर, उनकी मरम्मत तक नहीं कराई. दरअसल, 14 मज़दूरों की मौत की ख़बर भी एक सप्ताह पुरानी है. हमने, अस्पतालों में भर्ती गंभीर रूप से जल चुके मज़दूरों का अपडेट जानने के लिए रोहतक पीजी आईएमएस तथा सफदसजंग हॉस्पिटल फ़ोन लगाए, ‘नो रिप्लाई’ आई तथा ईमेल की, लेकिन उस पर भी किसी ने जवाब देने की ज़हमत नहीं उठाई. अख़बार ने तो 21 मार्च के बाद से इसे कवर करना ही छोड़ दिया, मोदी भक्ति और सरकार की स्तुति को ही
स्पेस कम पड़ता है !
ऐसी भयानक घटनाएं लगभग रोज हो रही हैं. वे दुर्घटनाएं नहीं, हत्वाएं हैं, जिनके लिए कोई कार्यवाही नहीं होती. हत्यारे मालिक जेल नहीं जाते, यहां तक की थाने भी नहीं जाते. धारूडेडा में हुए मज़दूरों के इस भयानक हत्याकांड के विरोध तथा बिलखते परिवारों को इंसाफ दिलाने के लिए, ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, हरियाणा’ संयुक्त आक्रोश आंदोलन चलाने की अपील करता है साथ ही हरियाणा के मुख्यमंत्री को दिनांक 02.04.2024 को एक आवेदन भी दिया है –
‘आदरणीय महोदय,
दिनांक 16 मार्च को, धारूहेड़ा, रिवाड़ी स्थित ऑटोमोबाइल कल-पुर्ज़े बनाने वाली कंपनी, ‘लाइफलॉन्ग इंडिया प्रा. लि.’ के बायलर फट गए, जिससे भयानक विस्फोट हुआ और उस भीषण आग में, कम से कम 14 मज़दूर जिंदा जल कर मर गए. जख्मियों की तादाद तो सैकड़ों बताई जा रही है, लेकिन कम से कम 7 गंभीर रूप से जले हुए (60-70%) मज़दूर रोहतक मेडिकल कॉलेज तथा सफदरजंग हॉस्पिटल की आईसीयू में ज़िन्दगी-मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं.
‘डॉक्टरों को कहना है, उनका बचना भी मुश्किल है. यह विस्फोट अचानक या बे-वज़ह नहीं हुआ. इसी कंपनी में, इससे पहले भी, बायलर फटने की छोटी वारदातें हो चुकी हैं लेकिन मालिकों ने, घिसे-पिटे पुराने बायलर की जगह नए लगाने की तो छोड़िये, पुराने बायलर की मरम्मत कराने की भी ज़हमत नहीं उठाई. ज़रूरत भी क्या है, जब देश में मज़दूरों की ज़िन्दगी का कोई मोल ही नहीं !!
‘इतने मज़दूरों की संस्थागत हत्याओं के बाद भी मालिकों के विरुद्ध कोई आपराधिक मुक़दमा दायर नहीं हुआ है. एफ़आईआर में, बस, ठेकेदार कंपनी, ‘शिवम कॉन्ट्रैक्टर्स’ को ही आरोपी बनाया गया है.
देश में और खास तौर पर हरियाणा प्रदेश में, ये घटना कोई अपवाद नहीं है. सेक्टर 24 स्थित फैक्ट्री, ‘नरेश पॉलीमर’ नाम के फैक्ट्री में भी, 8 जनवरी को, बायलर फटने से, आग का भयानक विस्फोट हुआ था, जिसमें 3 मज़दूर गंभीर रूप से जल गए थे.
‘दरअसल ‘व्यवसाय की सुगमता’ के नाम पर, सरकार ने मालिकों को, हर तरह की मनमानी करने की छूट दी हुई है. कारखानेदार, देश के सभी श्रम क़ानूनों को पैरों तले कुचल रहे हैं, यूनियन बनाने का ज़िक्र सुनते ही वे, मज़दूर कार्यकर्ताओं पर टूट पड़ते हैं, माफ़ियाओं की जुबान में उन्हें आतंकित करते हैं. मज़दूरों की जान की सुरक्षा के लिए जो इंतेज़ाम किए जाने ज़रूरी हैं, वे उनकी बिलकुल परवाह नहीं करते. मज़दूरों को दरअसल, इंसान ही नहीं समझा जा रहा. उनकी जान इतनी सस्ती कभी नहीं रही.
‘श्रम क़ानूनों को लागू कराने वाले इदारों, जैसे श्रम विभाग, पीएफ और ईएसआईसी विभागों का कहना है कि उन्हें सरकारी हुक्म है कि मालिक जो करें, करने दो, कोई दखल मत दो. मालिकों की अनुमति के बगैर, कारखानों में पैर भी मत रखो. जाने कितनी ‘दुर्घटनाएं’ तो रिपोर्ट ही नहीं होतीं. कारखानेदारों, सरमाएदारों के, इतने अच्छे दिन, इससे पहले कभी नहीं आए. मज़दूर, कारखानों में हर रोज़ अपमानित होते हैं, ‘काम करना है, तो जैसा हम कहते हैं, करो, वर्ना भागो यहां से, तुम्हारे जैसे सैकड़ों आते हैं हर रोज़ गेट पर काम मांगने !’
ये मजदूर प्रेशर कुकर जैसे दम-घोटू माहौल में काम करने को मज़बूर हैं. जल्दी ही मज़दूर-आक्रोश भयानक तूफ़ान की तरह फूट पड़ने वाला है. धारूहेड़ा के इस भयानक अग्नि-कांड की जांच करने वाले मजिस्ट्रेट ने भी मुख्य सचिव, हरियाणा को सौंपी अपनी रिपोर्ट में, औद्योगिक सुरक्षा विभाग तथा श्रम विभाग के विशेषज्ञों की जांच की सिफारिश की है.’
इस आवेदन के साथ ही क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा ने सरकार से यह मांगें भी मांगी है, जो इस प्रकार है –
- 14 मज़दूरों के हत्यारे, अर्थात 14 परिवारों को तबाह करने वाले, ‘लाइफलौंग इंडिया प्रा लि, धारूहेड़ा’ के मालिकों को, हत्या की दफ़ा 302 के तहत गिरफ्तार करो. मृतकों के परिवारों को 1-1 करोड़, घायलों को 50-50 लाख रु. का मुआवज़ा तथा मृतक परिवार को नोकरी दिलाना सुनिश्चित करो.
- ज़रूरी सुरक्षा उपाय ना करने वाले, श्रम क़ानूनों का पालन ना करने वाले और ऐसी संस्थागत हत्याओं के ज़िम्मेदार कारखानेदारों के विरुद्ध कड़े आपराधिक क़ानून बनाओ, जिससे वे लंबे वक़्त तक जेलों में रहें.
- श्रम कार्यालयों के सुरक्षा विभाग को चुस्त-दुरुस्त करो. सभी कारखानों में सुरक्षा ऑडिट कराओ. घटना के जांच अधिकारी, माननीय मजिस्ट्रेट ने भी ये सिफ़ारिश की है.
- सभी श्रम क़ानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करो. मज़दूरों को न्याय, संगठित होने पर ही मिल सकता है. मज़दूर यूनियनों के पंजीकरण की प्रक्रिया सरल कर, ऑनलाइन करो. यूनियन ना बनने देने वाले मालिकों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करो. ‘ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926’ लागू होने के बावजूद भी लागू नहीं हो रहा.
- सबसे अहम, सारा उत्पादन कर, मालिकों के लिए मुनाफ़े के पहाड़ खड़े करने वाले तथा भूखे पेट किसी नाले के किनारे झुग्गी में सोने वाले मज़दूर को, वोटिंग के दिन के अलावा भी इंसान समझो. उनके जीवन का सम्मान करना सीखो.
अपनी इन मांगों के साथ क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा सड़कों पर भी विरोध प्रदर्शन कर रही है, लेकिन इसके बाद भी न तो कारखानेदार और न ही सरकार के कान पर जूं रेंग रही है. ऐसे में जरूरत है कारखाने में काम के दौरान मजदूरों की सुरक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए क्रांतिकारी आंदोलन तेज करने की.
- सत्यवीर सिंह
Read Also –
2030 तक भारत में बंधुआ मजदूरी को समाप्त करने के लक्ष्य की जमीनी हकीकत
‘सुपर ऑटो’ मालिकान द्वारा एक मज़दूर की हत्या और संघर्ष की कमजोरियां
3 अक्टूबर : देशभर में मजदूरों और किसानों ने आक्रोशपूर्ण तरीके से मनाया गया Black-day
वीनस फैक्ट्री के शहीद मज़दूर नेता कुन्दन शर्मा अमर रहे !
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]