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यहां उजालों के अंधेरे हैं

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ग्रीन रूम में
मसखरा उतार रहा है
चेहरे का रंग रोगन
लाल लाल होंठों और नाक
के नीचे से उभर रही है
एक उथली हुई
बदबूदार लाश
गिद्ध की आंखों का मोतियाबिंद
उसे घ्राण के सहारे
जीने को बाध्य करता है

मसखरा सूंघ लेता है लाश
और ढाल लेता है
लाशों को टकसाल में
आख़िर खून में व्यापार है

कुछ मरियल कुत्ते
इंतज़ार में हैं
गिद्ध के हटने का
इनके सिर बहुत बड़े हैं
यक़ीन मानिए
इन कुत्तों की बहुत ख़ातिर है
बिरादरी में

मसखरा ख़ुश है
इसलिए नहीं कि आज स्टेज पर
उसने करोड़ों को हंसाया है
वरन इसलिए कि करोड़ों रोज़
उसे हंसाते हैं

2

पतझर के नंगे पेड़ भी मुझे
मरी हुई ख़्वाहिशों के साथ
ज़िंदा लोगों से बेहतर लगते हैं

ज़िंदा लोगों से जब
लाशों की बदबू आती है
तब समझ लेना
टखने भर पानी के नीचे
पत्थर हैं

आदमी के अंदर की मृतात्मा
झांकती है उसकी
भावशून्य आंखों से
सिले हुए होंठों से
और,
उन कसमसाती उंगलियों से
जिन्होंने कभी भी एक शब्द नहीं लिखा
क्रांति

वे बहते गए धारा के साथ
और एक दिन दफ़्न हो गए
किसी दियारा में चुपचाप

मौसम की संजीवनी तो
पेड़ों और आदमी
दोनों के लिए है
लेकिन, मौसम पेड़ों तक
चल कर आते हैं
क्यों कि पेड़ चल नहीं सकते
और आदमी को चल कर
जाना पड़ता है मौसम के पास
क्योंकि वह चल सकता है

3

बारिश में
जंगल के सारे सांप
जब पेड़ बन कर
पत्तों की जीभ से
चाटने लगे बारिश
तो मैंने समझा
डर की प्रतिक्रिया में कैसे
रस्सी बन जाती है
सांप

दूर शहर में
उंगली भर कूड़े दान के मुंह से
निकलती बदबू
जब स्वच्छ कर रहा होता है भारत
सुबह सबेरे
तभी
कोई टुच्चा सा नेता का
आदम क़द कट आउट
दूसरी आज़ादी दिलाने के लिए
खड़ा रहता है
चौराहे पर

उस समय मैं समझ जाता हूं
आदमी को चौपाया बनाने की साज़िश का
अगला पड़ाव मुंह पर बंधी पट्टियां होंगी

थाली से रोटी छीनने की प्रक्रिया सतत है
जैसे, मौसम छीन लेता है
मेरी आंखों का आहार
तुम्हारा रूप

मेरे घर के कोने में पड़ी
ख़ाली उज्वला के पेट में ऐंठन होती है
जो अति आहार से बने गैस से बिल्कुल अलग है
लेकिन, दर्द तो दर्द है
अपने अपने इरादे और तरीक़े से
तकलीफ़ देती है

इस समय मैं समझ जाता हूं कि
अनाज का हर दाना
रोटी बनने को अभिशप्त क्यों नहीं है

तुम्हारी बहस का हिस्सा
बनने की इच्छा लिए
मैं चुपचाप चला जाता हूं
वापस जंगल की तरफ़

मुझे चुननी है वहां
बारिश से बची लकड़ियां
कटे हुए पेड़ों के बीच
शाम के रात में
तब्दील होने से पहले

यहां उजालों के अंधेरे हैं
मुझे जाना ही होगा दोस्त…

  • सुब्रतो चटर्जी

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