‘देश के गद्दारों को- गोली मारो सालों को’ – डायर चीखा !! सिख, गुरखा और सिंध के आज्ञाकारी योद्धाओं ने फायर खोल दिया. 1650 गोलियां दागी, 379 लोग मरे, हजार से ऊपर घायल हुए. बाग की जमीन खून से लाल हो गयी. ये माकूल सजा थी, जो रेनिगनल्ड डायर ने तय की थी.
जांच के दौरान, हंटर कमीशन ने डायर से पूछा कि उसने लोगों को आने से रोकने के लिए, पहले ही फौजी पहरा क्यों नहीं लगाया ??डायर बोला – ‘मैंने उन्हें आने दिया. इन सबको मारने की ठान ली थी.’
आखिर इस बाग में जमा सारे लोग धारा 144 का उल्लंघन कर जमा हुए थे. सरकार से प्रदर्शन की अनुमति नहीं ली थी. मैदान बुक नहीं कराया था. देश के खिलाफ पॉलीटिक्स कर रहे थे. राजा के खिलाफ, सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे. काले कानून वापस लेने की मांग कर रहे थे.
रौलेट एक्ट, अमन और व्यवस्था बचाने के लिए बनाया गया था. इसकी मुखालफत, अराजकता को आमंत्रण था. बगावत बर्दाश्त नहीं होगी. गद्दारी बर्दाश्त नहीं होगी. सबक सिखाया जाएगा. पुश्तों तक रूह कांप जाए, ऐसा सबक सिखाया जायेगा.
सीतलवाड़ – ‘क्या मशीनगनें इसलिए नहीं चलवाई कि गाड़ियां अंदर नहीं जा सकीं ?’
डायर- ‘मैं तुम्हें जवाब दे चुका हूं. गाड़ियां अंदर पहुंचती तो मैं मशीनगनों से ही फायर खोलता. मेरा उद्देश्य क्रांतिकारियों के हौसले तोड़ना था.’
सीतलवाड़ – ‘या तुम्हारी कोशिश अंग्रेजी राज्य को बचाना था ?’
डायर – ‘नहीं, अंग्रेजी राज्य बहुत मजबूत है.’
डॉ. सत्यपाल और सैफुदीन किचलू, इन दो नेताओं को गवर्नमेंट ने कैद कर लिया था. ये लोग, उस गांधी के फालोवर्स थे जो देश भर में बगावत फैला रहा था. जिन्हें हर जगह निपटाया जा रहा था, दबाया जा रहा था. लेकिन ये बंगाल और पंजाब .. इनकी हिम्मत टूटती न थी.
भला क्या क्या नहीं किया था डायर ने. मार्शल ला लगाया. पुलिस की लाठी बराबर नजदीक कोई आये, तो कोड़े मारने के आदेश थे. सड़कों पर साष्टांग घिसट कर चलना था, वैसे ही जैसे ये लोग अपने देवताओं के सामने घिसटते हैं. आखिर ब्रिटिश राज भी भगवान से कम था क्या ??
इन तरीकों से दो दिन की शांति के बाद, फिर से खबर आई कि ब्लडी इंडियन पब्लिक मीटिंग करेंगे. मोहम्मद बशीर मीटिंग बुला रहा है. कन्हैयालाल उसका साथ दे रहा है. शहर में हड़ताल करेंगे, रैली निकलेंगे. ब्लडी कांग्रेस पीपल.. इनको शबक शिखाना मांगटा !
कर्नल रेनिगनल्ड एडवर्ड हैरी डायर, ब्रिटेन में ‘बुचर ऑफ अमृतसर’ के नाम से जाना जाता था. हंटर कमीशन की रिपोर्ट के बाद उसे बर्खास्त कर दिया गया. लेकिन बदनाम का ही नाम होता है. हत्यारों के प्रशंसको की कमी, जब बुद्ध और गांधी के देश में नहीं तो इंग्लैंड में क्यूं कम हो. उसका सम्मान किया गया और 26000 पाउंड का चन्दा करके, जनता ने इनाम दिया.
पॉपुलर धारणा के अनुसार डायर को उधमसिंह ने मौत के घाट उतारकर हिंदुस्तान का बदला लिया. गलत है, वो दूसरा डायर था – माइकल ओडायर. हत्यारे डायर की मौत, तपेदिक, हार्ट स्ट्रोक और लकवे के बाद, 23 जुलाई 1927 को हुई. तो क्या आखरी दिन, मौत के पहले, उसे आंखों के सामने जलियांवाला बाग के दृश्य दौड़ते दिखाई दिए होंगे ??
सुबह 11 बजे मीटिंग थी. बारह बजे तक भीड़ आती रही. साढ़े बारह बजे, पर ऊपर से सर्वे करने को हवाई जहाज गुजरा. पायलट ने डायर को बताया, कोई छह हजार लोग हैं. अब डायर ने फ़ौज इकट्ठी की. गाड़ियों में मशीनगनें लदवाई. बाग में सरकार के खिलाफ प्रस्ताव पढ़ा जा रहा था – ‘हिंदी में, उर्दू में, पंजाबी में, अंग्रेजी में. भीड़ बढ़ती जा रही थी. डायर की फौज घुसी. निकलने के रास्ते बंद कर दिए गए. ‘देश के गद्दारो को- गोली मारो सालों को’ – डायर चीखा !!
एक सौ चार साल हो चुके. दौर फिर वैसा ही लौट आया है, जब देश इंसान से बड़ा, और सरकार खुदा हो गई है. नए कानून है, भयावह अधिकार सम्पन्न नई अपराध संहिता आ चुकी है. मैं देख सकता हूं कि सत्यपाल, किचलू और बशीर फिर साथ- साथ बैठे हैं. इस बार संविधान की फटी हुई प्रस्तावना पढ़ रहे हैं. डायर का इंतजार हो रहा हैं.
- मनीष सिंह
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