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धारा 295-ए रद्द हो क्योंकि…

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भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295 (A), किसी भी भाषण, लेखन, या संकेत को दंडित करती है जो ‘पूर्व नियोजित और दुर्भावनापूर्ण इरादे से’ नागरिकों के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करते हैं, इसके दो या फिर अधिकतम तीन साल की सजा व आर्थिक दंड का प्रावधान है.
धारा 295-ए रद्द हो क्योंकि...
धारा 295-ए रद्द हो क्योंकि…

धारा 295-ए भारत के क़ानूनों की एक ग़ैर-जनवादी धारा है, जिसे ख़त्म किया जाना चाहिए. यह धारा धार्मिक भावना को ठेस पहुंचने को बहाना बनाकर जुबानबंदी करने का सरकारी हथियार है, जिसका इस समय भाजपा पूरी तरह ग़लत इस्तेमाल कर रही है. सिर्फ़ एक यही धारा नहीं है, बल्कि देशद्रोह (124-ए) और यू.ए.पी.ए. जैसी अन्य ऐसी कई धाराएं हैं, जो नागरिक अधिकारों को ख़त्म करके हुकूमत के दमन का हथियार बनती हैं.

भारत का संविधान अंग्रेज़ों के औपनिवेशिक संविधान की ही पैदाइश है. इसकी बहुत सारी दमनकारी धाराएं अंग्रेज़ों वाली ही हैं, जो भारत की जनता का दमन करने के मक़सद के लिए बनाई गई थी. इसलिए ऐसी धाराओं को ख़त्म करना और नागरिकों के अधिकारों की गारंटी और हुकूमत के हाथों में बेहिसाब ताक़तें ना देने वाले क़ानून बनाने की मांग आज के समय में जनवादी अधिकारों की अहम मांग बनती है.

बीती 22 जनवरी को भाजपा द्वारा राम मंदिर के निर्माण के नाम पर जो सांप्रदायिक राजनीति की गई है, उसके बाद पंजाब सहित कई राज्यों में इस सांप्रदायिक राजनीति की आलोचना करने वालों पर धारा 295-ए के तहत केस दर्ज किए गए हैं और गिरफ़्तारियां की गई हैं. पंजाब में तर्कशील कार्यकर्ता सुरजीत सिंह दौधर और भुपिंदर फ़ौजी, बरनाला जि़ले के इक़बाल सिंह धनौला, बठिंडा जि़ले की शाइना आदि पर धारा 295 और 295-ए के तहत पर्चे दर्ज हुए हैं.

अयोध्या में राम मंदिर एक ऐसा मसला है, जो भाजपा और संघ परिवार की सांप्रदायिक राजनीति के तर्कश का अहम तीर है. 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराने के बाद भी यह फ़ासीवादी टोला राम मंदिर के नाम पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करता रहा है. अब इस तमाशे को शिखर पर लेकर जाते हुए बीती 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन किया गया है.

इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किया गया और यह पूरा समागम धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक था. यह 2024 के लोकसभा चुनावों को सांप्रदायिक क़तारबंदी द्वारा जीतने की तैयारी का उद्घाटन था. यह राम मंदिर का नहीं, बल्कि भारत में राम राज्य बनाने का सांकेतिक उद्घाटन था, जिसके द्वारा भाजपा हुकूमत ने यह संदेश देने की कोशिश है कि जिस तरह राम मंदिर के निर्माण का सपना भाजपा हुकूमत ने पूरा किया है, उसी तरह राम राज्य निर्माण का सपना भी यही हुकूमत पूरा करेगी.

इस राम मंदिर के निर्माण के लिए देश में जश्न का माहौल बनाया गया. हिंदुत्वी कट्टरपंथियों ने इसे हिंदुओं की धार्मिक श्रद्धा और ख़ुशी के समागम की जगह मुसलमानों पर हिंदुओं की जीत के जश्न के रूप में प्रचारित किया और कई जगह मुसलमानों के साथ टकराव खड़ा करने की कोशिश की. जब धार्मिक मसले को ऐसे सांप्रदायिक राजनीति का हिस्सा बनाया जाता है, तो समाज के सचेतन हिस्सों द्वारा इसका विरोध किया जाना ज़रूरी होता है.

राम मंदिर के नाम पर हुई राजनीति की आलोचना करने वालों को चुप करवाने के लिए भाजपा 295-ए का इस्तेमाल कर रही है. धर्म जैसे संवेदनशील मसले पर आलोचना संजीदा और सृजनात्मक भाषा में होनी चाहिए और धर्म की जगह मुख्य तौर पर सांप्रदायिक राजनीति को निशाना बनाया जाना चाहिए. लेकिन अगर कोई भाषा की संजीदगी नहीं भी रखता, तो भी उसे 295-ए के तहत जेल में बंद करना बिल्कुल भी जायज़ नहीं है.

धर्म के नाम पर नफ़रत फैलाना, जनता को भड़काना, धार्मिक अल्पसंख्यकों को बेइज़्ज़त करना, उनके ख़िलाफ़ हिंसा करना यह सब संघ-भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति के तहत हो रहा है. लेकिन इस अंधे-बहरे क़ानून की नज़र में यह कोई ज़ुर्म नहीं है, लेकिन इसका विरोध करना जुर्म घोषित किया जा रहा है.

सार्वजनिक मंचों से मुसलमानों का क़त्लेआम करने, औरतों के साथ बलात्कार की बातें करने वाले और अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थानों को नुक़सान पहुंचाने वाले हिंदू कट्टरपंथियों के ख़िलाफ़ इस भगवा ब्रिगेड की हुकूमत में कभी भी धार्मिक भावनाएं भड़काने का मुकदमा दर्ज नहीं होता. 2014 में भाजपा के दिल्ली का तख़्त पर बैठने के बाद बहुत सारे पत्रकारों, बुद्धिजीवियों पर ऐसे मुकदमे दर्ज किए गए हैं.

इस तरह धारा 295-ए सांप्रदायिक राजनीति की सही आलोचना करने के जनवादी अधिकार को छीन रही है. इसके कारण इस धारा को ख़त्म करने और इसके तहत दर्ज किए गए सारे पुलिस केस रद्द करके गिरफ़्तार किए गए व्यक्तियों को रिहा करने की ज़ोरदार मांग की जानी चाहिए.

  • गुरप्रीत, (मुक्ति संग्राम से)

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