किसी भी धर्म में पर्व त्योहार उसकी रीढ़ की हड्डी होते हैं. पर्व त्योहार कब बनाए जाएं इसके लिए कैलेण्डर का होना ज़रूरी होता है. कैलेण्डर एक तरह से उस धर्म मज़हब रिलीजन के कितने पुराने होने का सबूत भी होते है. सवाल है ब्राह्मणिज्म का कैलेंडर कहां है ? और कब का है ?
रोमन अपने समय में रोमन कैलेण्डर बना लिये थे. ईसाईयों ने उसी रोमन कैलंडर को मॉडिफाई कर जीसस के जन्म के इर्द गिर्द से ग्रेगोरियन कैलेण्डर की शुरुआत तय की. इस्लाम ने भी हिजरी संवत मुहम्मद के समय मक्का मदीना आने-जाने के समय से तय कर ली. वहीं, भारत का राष्ट्रीय कैलेण्डर बौद्ध कैलेण्डर शक संवत है जो 78 AD से बुद्धिस्ट राजा कनिष्क के द्वारा चलाया गया बताया गया है.
उससे पुराना कैलेण्डर ‘युगाब्द’ कैलेण्डर है, जो बुद्ध के समय से माना जाता है और आज भी बुद्धिस्ट देश उसके हिसाब से अपने पर्व त्योहार मनाते हैं. भारत में जब कनिष्क ने बौद्ध धम्म का प्रचार प्रसार किया तब शक संवत बहुत ज़्यादा प्रचलित हुआ और पुराने सभी शिलालेख इसी बौद्ध कैलेण्डर का इस्तेमाल करने लगे.
नौवीं सदी में पहली बार विक्रम संवत का ट्रेस मिला, जो शक संवत की ही तरह था, बस 15 दिन का अंतर था. सीथीयन लोग जो की बुद्धिस्ट थे, उसका प्रयोग करते थे और उसे मालवा संवत के नाम से जाना जाता था, वो 58 BC से शुरू माना जाता था, लेकिन प्रयोग न के बराबर होने के कारण सबूत नगण्य है. यही मालवा संवत नौवीं सदी के बाद विक्रम संवत कहा जाने लगा. लेकिन भारतीय लोग शक संवत का ही प्रयोग करते रहे.
आज जिसे हिंद कैलेण्डर कहा जाता है, दरअसल वो बद्धिस्ट कैलेण्डर शक संवत है, जिसका पहला महीना चैत्य, बैसाख, … यानी बुद्ध स्तूप के प्रतीक चैत्य से पहला महीना शुरू होता है. (शक संवत को संवत ही लिखा है इंस्क्रिप्शन में लेकिन इतिहासकारों ने शक संवत कहना सुरू किया है कुछ काग़ज़ी स्क्रिप्चर्स के आधार पर.)
देश आज़ाद होने के बाद भारत सरकार ने बौद्ध शक संवत को वैज्ञानिक रूप से ढालने की कोशिश की, नतीजा यह हुआ कि बौद्ध संवत न सिर्फ़ भारत का राष्ट्रीय कैलेण्डर बना, बल्कि ब्राह्मणिज्म जो अब तक बौद्ध कैलेण्डर ही अपने तिथि पंचांग में इस्तेमाल करते थे, अब यह प्रचार करने लगे कि नासा जो करोड़ों रुपये खर्च कर सूर्य और चांद ग्रहण का पता लगाता है, वो ऋषिमुनियों के पंचांग से वो मात्र 11 रुपये दक्षिणा से ही बता देगा.
जानकारी के अभाव में लोग बुद्धिस्ट कैलेण्डर के क्रेडिट को ऋषि मुनियों का पंचांग समझ लेते हैं. क्या किसी को अब भी संदेह है कि ब्राह्मणिज्म का अपना कोई कैलेण्डर है या नहीं ? भारतीय भ्रमभाट इतिहासकार हमेशा की तरह बुद्धिज्म की कैलेण्डर उपलब्धि पर हमेशा की तरह नाक, कान, मुंह, आंख बंद कर प्रोपगैंडा को आगे बढ़ाते रहे.
क्या आपको याद है किसी भी इतिहासकार ने खुल कर कैलेण्डर पर कोई चैप्टर लिखा और बताया कि ब्राह्मणिज्म का अपना कैलेण्डर क्यों नहीं है ? उसके पंचांग में आज भी बुद्धिस्ट शक संवत् और विक्रम संवत ही क्यों प्रयोग हो रहे है ? अब जरा आप ये बताए भारत के सभी पर्व त्योहार किस कैलेण्डर के आधार पर मनाये जा रहे हैं ? उससे भी बड़ा सवाल फिर पर्व त्योहार किसके हैं ? क्या उसका भी ब्राह्मणीकरण हुआ है ?
सबसे बड़ा सवाल जब सभी धर्म, मज़हब, रिलीजन ने अपने अपने कैलेण्डर बनाये तो फिर ब्राह्मणिज्म बुद्धिस्ट कैलेण्डर के आधार पर पर्व त्योहार क्यों मना रहा ? जाहिर है ये इतिहास के 4 सबसे बड़े घोटाले हैं –
- बिना किसी पुरातत्व सबूत के सिंधु घाटी और 28 वें बुद्ध कालखंड के बीच फर्जी वैदिक काल स्थापित करना.
- वैदिक काल और वेद को स्थापित करने हेतु संस्कृत को भी पुराना बताना.
- पुष्यमित्र शुंग को वैदिक युग का पुनस्थापित करने वाला प्रचारित करना.
- ब्राह्मणवादी सभी पर्व त्योहार बुद्धिस्ट कैलेण्डर (शक संवत्, या मालवासंवत् (विक्रम संवत्) ) के अनुसार मनाते हुए भी ब्राह्मणवाद और पर्व त्योहार का बुद्धिज्म से पुराना बताना.
- रैशनल वर्ल्ड
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