आज़ाद

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जो इंसान इंसान के लिए खड़ा नही होगा
वो कभी देश के लिए खड़ा नही होगा
क्योंकि देश के लिए खड़ा होने का मतलब है
करोड़ो इंसानों के लिए खड़ा होना
और इसकी शुरूआत एक इंसान के साथ
खड़ा होने के साथ ही शुरू होती है

जो व्यक्ति अपने घर में अन्याय के खिलाफ़ खड़ा नहीं होगा
अपने गांव में अन्याय के खिलाफ खड़ा नहीं होगा
वो कभी देश में हो रहे अन्याय के खिलाफ़ खड़ा नहीं होगा

छोटी लड़ाईयां लड़ने वाला ही बड़ी लडाईयां लडता है
घर में जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला ही
देश में हो रहे जुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठाता है

ऐसा कभी नही होता की कभी न विरोध करने वाला
अचानक विरोध कर दे
कभी न लड़ने वाला अचानक लड़ाई में उतर जाएं
यह एक प्रक्रिया है
जो इस से गुजरता है
वही न्याय के लिए युद्ध में उतरता है
वही क्रांतिकारी बनता है

लेकिन जहां चुप रहने की परम्परा हो
जहां सर झुका कर चलने की परम्परा हो
जहां आत्मसम्मान गिरवी रख कर जीने की परम्परा हो
वहां अन्याय के खिलाफ़ लड़ने की परम्परा कभी नहीं हो सकती है
जिस देश में ऐसी परम्परा हो
उसे गुलाम बनने से कोई रोक नहीं सकता

इसलिए देश को आज़ाद करने से पहले खुद को आज़ाद करो
और गुलाम बनाने वाली परम्परा तोडो
क्योंकि जो खुद आज़ाद होगा
वही देश को आज़ाद करेगा

  • विनोद शंकर
    30.1.2024

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