तुम मुझे याद भी करोगी
तो हमेशा ग़लत कारणों से
क्योंकि मुझे सही वक़्त पर
सही बात करने की आदत नहीं रही कभी
जैसे उस दिन की बात है
जब तुम नख शिख श्रृंगार कर
बन गई एक सुंदर,
अनवद्य छवि
मेरे लिए नहीं
किसी के लिए नहीं
मेरी प्रतिक्रिया में ईर्ष्या का कारण ढूंढना
निरर्थक होगा
क्योंकि मैं जानता हूं
तुम जानती हो
तुम्हारे और आइने के बीच
आसमान के सिवा कभी कुछ नहीं रहा
उस दिन शायद तुम्हारी उपेक्षा ने
मेरे अंदर ला दिया था एक कैमरा
और, आदतन मुझे दिख गया
प्रसाद का एक टुकड़ा
जो तुम्हारे होठों के कोने पर ठिठक गया था
उस दिन तुमने व्रत तोड़ा था
मेरे हाथों
शायद इसलिए दिख गया मुझे
और मैंने पोंछ दिया उसे
अपनी खुरदुरी ऊंगलियों से
ग़लत वक़्त पर
ग़लत जगह पर
तुम्हें अक्षुण्ण रखने का
और कोई तरीक़ा नहीं मालूम था मुझे…
- सुब्रतो चटर्जी
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]