Home कविताएं आदिवासी जनकवि विनोद शंकर की चार कविताएं : क्रान्ति

आदिवासी जनकवि विनोद शंकर की चार कविताएं : क्रान्ति

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1. क्रान्ति

बीसवीं सदी ने कई क्रांतियां देखीं
पर 21वीं सदी ने अब तक
एक भी क्रांति नहीं देखी है
जबकि इसका दो दशक बीत चुका है
और तीसरा दशक चालू है
इसलिए पूरी दुनिया का शोषक वर्ग बेकाबू है
क्योंकि उन्हें क्रांतियां ही नियंत्रित करती हैं
जब ये कहीं होगी
तभी पूरी दुनिया की जनता को राहत मिलेगी

क्रांति भले ही एक देश में ही क्यूं न हो
पर उसकी आंच पूरी दुनिया महसूस करेगी
इसलिए जो क्रांति के लिये काम करता है
वो पूरी दुनिया के लिए काम करता है
भले ही वो जंगल में ही
जनता को सचेत, संगठित और
हथियारबंद क्यूं न कर रहा हो
पर उसकी आंखों में पूरी दुनिया के
शोषित जन की मुक्ति का सपना रहता है

क्या गोरा क्या काला
क्या स्त्री क्या पुरुष
क्या दलित क्या आदिवासी
वो सबके लिए जीता और मरता है
एक नई दुनिया के लिए
रात-दिन संघर्ष करता है

पर कुछ सवाल हैं
जो उसे भी परेशान करते हैं
आखिर उसका संघर्ष, त्याग और बलिदान
दुनिया को क्यूं नहीं दिखता है ?
एक दलाल जो भारत जोड़ो यात्रा पर निकला है
एक दलाल जो देश के सारे संसाधनों को बेच रहा है
रात-दिन जनता को सिर्फ़ यही क्यूं दिखते हैं
या इन्हें जान-बुझ कर दिखाया जा रहा है
और इसी बहाने बहुत कुछ छुपाया जा रहा है
जिस पर बात करना
इस देश के बुद्धिजीवियों को भी चुभता है

पर इस तरह डर-डर कर लिखने से क्या होगा
सूचनाएं आज तोप से भी ज्यादा खतरनाक हो चुकी हैं
इसलिए इस मोर्चे पर भी युद्ध स्तर पे काम करना है
जैसे दलालों के बारे में रात-दिन लिखा जा रहा है
वैसे ही क्रांति के बारे में लिखना है

क्योंकि क्रांति पर लिखना
युरोप पर लिखना है
अफ्रीका पर लिखना
लैटिन अमेरिका पर लिखना है
एशिया पर लिखना है
यानी
पूरी दुनिया पर लिखना है

क्रांतियां इसलिए नहीं रुकी हुई हैं कि
क्रांतिकारी पार्टी नहीं है
या संघर्ष या शहादत नहीं हो रहा है
बल्कि इसलिए रुकी हुई हैं कि
क्रांति का प्रचार नहीं हो रहा है
झूठे लोकतंत्र का पर्दाफाश नहीं हो रहा है !

2. तुम इनकी बात करना

उनके जीवन में दु:ख ही दु:ख है
पर वे दु:खों का रोना नहीं रोते हैं
सुबह से लेकर शाम तक काम करते हैं
और घर आ कर रूखा-सुखा खा कर सो जाते हैं
वे वर्षों से ऐसे ही जीवन जीते आ रहें हैं

उनके घरों में भी मां है पिता है
पत्नी है बच्चे हैं
वे सब भी काम करते हैं
फिर भी उनकी गरीबी दूर नहीं होती है

किसी के कमाई से
रोटी का जुगाड होता है
तो किसी के कमाई से कपड़ा
तो किसी के कमाई से वे
दैनिक उपयोग की वस्तुएं खरीदते हैं

यह सब परिवार शहर के चकाचौंध से दूर
पर शहर में ही रहते हैं
सड़क किनारे झोपड़ियां बना कर गुजर बसर करते हैं
जहां आए दिन पुलिस धमकाती है
जेल भेज देने का डर दिखाती है
यह जगह खाली कर कही और
चले जाने को कहती है

पुलिस की गाली और मार सह कर भी वे अडे हैं
शहर में वर्षों से ऐसे ही पडे है
जिनके लिए सरकार के फाईलो में कोई योजना नहीं है
जिनके लिए चुनाव के समय कोई वादा नहीं है
जिनके लिए सरकार का भी कोई मतलब नहीं है

ये गरीबों में सबसे गरीब है
नीची जातियों में सबसे नीचे
पर इनके विचार और कर्म सबसे उपर है
ये बिना काम किए नहीं खाते हैं
किसी के साथ जोर-जबरदस्ती नहीं करते हैं
और शान्ति से जीना चाहते हैं
इसे ही कमजोरी समझ
सब इनका फायदा उठाते हैं

कोई इनकी जवान होती लड़कियों के साथ
छेड़खानी कर देता है
कोई कुढो के ढेर में कुछ ढूंढते
इनके बच्चों को मार देता है
कोई इनसे काम करा कर पूरे पैसे नहीं देता है
और मांगने पर इन्हें ही चोर ठहरा देता है

ये जीती जागती निशानी है
इस दुनिया के सभ्यता और संस्कृति के
जो इतनी गिरी हुई और भ्रष्ट है कि
इंसान को इंसान नही समझती है
उसकी मजबुरी का हर तरह से फायदा उठाती है
जब भी कोई देश की तरक्की की बात करता है
तो तुम इनकी बात करना
जिन्हें देखते ही विकास के सारे दावों की
हवा निकल जाती है !

3. हमें ही जलना होगा

हक की लड़ाई
भाड़े के सिपाहियों से
नहीं लडा जाता है
हमें खुद सिपाही बनना होगा
अपनी जमीं अपना आसमां के लिए लड़ना होगा

कोई और नहीं आएंगा बचाने
हमें ही खुद को बचाना होगा
भाग कर कहां जाएंगें
जालिमों से हर जगह टकराना होगा

फसल हमने बोया है
तो हमें ही फसल काटना होगा
एक-एक दाने का हिसाब
रखना होगा

बाग है हमारा
तो हमें ही माली बनना होगा
हर एक पौधें को
अपने हाथों से सींचना होगा

मत भागो इस दुनिया से
जैसा भी है हमारा है
इसे हमें खुद बदलना होगा

अंधेरा है घना तो क्या ?
हमें खुद मशाल बनना होगा
दूसरों को छोड़ो
पहले हमें ही जलना होगा !

4. गोबर

कॉमरेड तुम गोबर कब बनोगे
अरे प्रेमचंद के गोदान की गोबर नहीं
गाय और भैस के गोबर बनने की बात कर रहा हूं
जिसे किसान खाद के रूप में
इस्तेमाल करते हैं

तुम्हें पता है गोबर की बराबरी आज तक कोई
रसायनिक खाद नहीं कर पाया है
इससे सिर्फ़ फसल ही अच्छी नहीं होती
इस से मिट्टी भी अच्छी रहती है

यह अन्न उगाने के साथ-साथ
भोजन पकाने के भी काम आता है
और मिट्टी के घरों में आंगन पोतने के भी

गोबर जिस जमीन पर पड़ जाता है
वो फिर बंजर नहीं रहती है
वहां वनस्पतियां फूलने-फलने लगती है

कॉमरेड इस देश को गोबर की जरूरत है
जो इसकी मिट्टी में मिल जाएं
और इसे उर्वर बना दे
ताकी विज्ञान का पौधा यहां फल-फूल सके !

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