सुब्रतो चटर्जी
समाजशास्त्रियों को भारत में पिछले एक दशक में बढ़ती हुई बेरोज़गारी की समस्या, बेरोज़गार बच्चों के विवाह की समस्या और इसके चलते समाज में बढ़ रहे व्यभिचार की समस्या के अंतरसंबंधों पर गहन विचार विमर्श और डेटा एनालाईसिस की ज़रूरत है.
आने वाले समय में यह समस्या एक विकराल रूप धारण करने जा रही है. भारत चीन नहीं है, जहां पर जनसंख्या का निगेटिव ग्रोथ हो रहा है. भारत आज भी 2:1 के रेशियो पर चल रहा है.
बेरोज़गार युवाओं की अनियंत्रित फ़ौज किसी भी दिशा में जा सकती है, चाहे वह संगठित अपराध का रास्ता हो, नशेबाजी हो या व्यभिचारी रोज़गार के रास्ते पर हों. मोदी सरकार की फ़ासिस्ट पूंजीवादी नीतियों के चलते सार्थक रोज़गार, जिससे एक गुणवत्ता पूर्ण रोज़गार मिले, की संभावनाएं ख़त्म हो गई हैं.
ऐसे में आने वाले बीस सालों में समाज का संपूर्ण लंपटीकरण तार्किक परिणति है. कृषि से कम होती आय धीरे-धीरे ग्रामीण समाज की संरचना में परिवर्तन ला रहा है. फलस्वरूप लोगों को रोज़गार की तलाश में शहरों की तरफ़ जाना पड़ रहा है. शहरों में भी क्वालिटी रोज़गार नहीं है.
शहरों में गांव के बंधन भी नहीं है. लोक लाज की परिभाषाएं बदल जातीं हैं. ऐसे में लंपट बनना बहुत आसान है. ग्रामीण बेरोज़गारी दर ज़्यादा है शहरों के बनिस्पत. इसलिए गांव के विशाल लंपटों की फ़ौज को आपने हाल में ही अयोध्या की फ़ासिस्ट नौटंकी में देखा है.
कुल मिला कर स्थिति यह है कि इस विषय पर गंभीर अध्ययन की ज़रूरत है. क्या कहीं पर कोई चर्चा हो रही है या लोगों को ममता, नीतीश, मोदी जैसे दो टके के नेताओं पर सोचने से फ़ुरसत नहीं है या मध्य युग में लौटने के सपने में खोए रहने से फ़ुरसत नहीं है ?
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ममता लुच्ची और गिरगिट नीतीश के बयानों के बाद अब कांग्रेस को मल्लिकार्जुन खड़गे को अगला प्रधानमंत्री डिक्लेयर कर देना चाहिए. वैसे भी कॉंग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, कम से कम इन बेगैरत नेताओं और मायावती और केजरीवाल जैसे छुपे हुए संघियों को जनता के सामने नंगा करने का मौक़ा तो मिलेगा.
बाक़ी फ़ैसला जनता के हाथों छोड़ देना चाहिए कि उसे दलितों के मुंह पर मूतने वालों का रामराज्य चाहिए या दलित प्रधानमंत्री चाहिए. आप मानें या न मानें 2024 का चुनाव मोदी बनाम राहुल ही होगा, भले ही बहुदलीय लोकतंत्र का ढोंग कुछ सालों तक अभी और चलेगा.
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