सुब्रतो चटर्जी
मूल बात यह है कि हिंदू धर्म कोई कैथोलिक धर्म या इस्लाम की तरह संस्थागत धर्म नहीं है और शंकराचार्य कोई पोप या फ़तवा जारी करने वाले इमाम नहीं हैं इसलिए उनकी राय आम हिंदुओं के लिए कोई मायने नहीं रखता है. दरअसल हिंदू, धर्म से ज़्यादा एक संस्कृति है जिसे हम सब अपने अपने तरीक़ों से मानते आ रहे हैं.
हिंदू धर्म का पालन करने का मतलब भी ईसाई धर्म का अभ्यास करना या मुस्लिम का अभ्यास करना होना नहीं है. एक हिंदू मांस मछली खाते हुए भी हिंदू है और दूसरा शाकाहारी बन कर भी हिंदू है. इसी तरह से शैव हों या वैष्णव, सारे हिंदू हैं. चारों पीठों के शंकराचार्य अलग अलग संप्रदाय के होते हुए भी हिंदू हैं, यही इसका प्रमाण है.
अब अगर बात शुद्धतावादी एजेंडा की करें तो पूजा के नियम और विधि विधान भी अलग-अलग हैं. तांत्रिक पूजा की अलग विधि है और ग़ैर तांत्रिक पूजा की अलग विधि है.
बंगाल में दो प्रकार की काली पूजा होती है, श्मशान काली और रक्षा काली. पहली वाली पूजा तांत्रिक पूजा है और दूसरी वाली सात्विक पूजा. पहली वाली पूजा में पशु बलि होती है और दूसरी वाली में कोंहड़े की बलि सांकेतिक रूप से दी जाती है.
प्राण प्रतिष्ठा पंडितों द्वारा मंदिरों के देवी देवताओं को जनमानस में शक्तिशाली दिखाने के लिए रचा गया एक फ्रॉड के सिवा और कुछ नहीं है. ऐसे में अगर फ्रॉड लोगों का एक क्रिमिनल गिरोह दूसरे फ्रॉड लोगों से उनके एकाधिकार को राज सत्ता के बल पर छीन रहा है तो रार होना स्वाभाविक है.
कांग्रेस या दूसरे विपक्षी दलों ने एक बार भी यह सवाल नहीं उठाया है कि अगर पत्थर में प्राण डाला जा सकता है तो हम हरेक मुर्दे में प्राण क्यों नहीं मंत्रों के ज़रिए डाल सकते हैं ?
भारतीय संविधान वैज्ञानिक दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने की वकालत करता है और हमारे प्रधानमंत्री एक धर्मनिरपेक्ष संविधान की शपथ ले कर मंदिर का उद्घाटन, शिलान्यास और पत्थर में प्राण प्रतिष्ठा करने जाते हैं.
विपक्ष को लकवा मार दिया है. सुप्रीम कोर्ट पर मुर्दा शांति है और लोगों को जानवर जैसा जीवन यापन करने के लिए वैसे भी दिमाग़ का इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं है. यह स्वैच्छिक ग़ुलामों और स्वार्थी, चोरों और ठगों का देश बन कर रह गया है.
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