वो डरता है
बंदूकधारी सुरक्षाकर्मियों के घेरों के
बावजूद
वो डरता है
मज़बूत किले में हिफाज़त के
बावजूद
वो डरता है
झूठी डिग्रियों की सनद के
बावजूद
वो डरता है
इन्साफ़गाहों को अपनी वकालतगाह में बदल देने के
बावजूद
हर घंटे क़ीमती परिधानों में रंगमंच पर सजा वो
अस्ल में बहुत डरता है
क्योंकि
वो जानता है कि
तारीख़ में पहले भी कभी
घेरे टूटे हैं
किले ढहे हैं
झूठ के पहाड़ों को खोद के सच उजागर हुआ है
इंसाफ़ के क़ातिलों के सिंहासन डोले हैं
और ये कि
जनता कभी भी कह सकती है
कि
राजा नंगा है
- रुपरेखा वर्मा
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