दुबले पतले सीधे-साधे
हमेशा करते क्रान्ति की बातें
ये बच्चे मुझे लगते हैं सबसे प्यारे
इन बच्चों को साथ चलते देखना
हमेशा हंसते और बोलते देखना
कितना अच्छा लगता है !
रात-दिन छात्रों से मिलते
उन्हें समझते और समझाते
पर्चे बांटते,
पोस्टर चिपकाते
छात्रों के हित के लिए
पूरे विश्वविद्यालय प्रशासन से टकराते
खुद जगते
सबको जगाते
देश दुनियां के संघर्षरत जनता के
खबरों से सबको अवगत कराते
ये कितने होनहार हैं लगते !
क्रान्ति का पाठ पढ़ते और पढ़ाते
छात्र-छात्राओं के लिए
पुलिस और गुण्डों से टकराते
नौकर और गुलाम बनाने वाले
इन शिक्षण संस्थानों मे छात्रों और
शिक्षको को क्रान्तिकारी बनाते
ये कितने गम्भीर हैं लगते !
सामंतों और शोषकों के संस्कृति को
तोड़ते अपनी संस्कृति खुद बनाते
जनता के दुःख-दर्द के गीत गाते
खुद उनके बीच जाते
उनके संघर्षों में कंधे से कंधा मिलाते
‘इंक़लाब जिन्दाबाद’ के नारे लगाते
ये कितने क्रान्तिकारी है लगते !
इन बच्चों का होना
भगत सिंह का होना है
उनके उम्मीदों और सपनों का
जिन्दा रहना है
इन्हीं बच्चों मे कोई बनेगा
लेनिन और माओ
और करेगा संघर्षरत जनता का नेतृत्व
ये सोच कर इन पर कितना गर्व होता है !
इन्ही बच्चों में
मै भी एक बच्चा हूं
जनता के संघर्षों,
सपनों और
उम्मीदों के गीत गाता हूं
और इनके साथ चलते हुए मर जाना चाहता हूं !
कभी ये सोच के भी
निराश हो जाता हूं कि
इन बच्चों के नही रहने पर
ये विश्वविद्यालय कितना सुना लगेगा
ये देश कितना सुना लगेगा
और ये दुनियां कितनी सुनी लगेगी
फिर हर जगह पसर रही
इस मुर्दा शान्ति को कौन भंग करेगा !
छात्रों और नौजवानों को
मजदूरों और किसानों के बीच
जाने को कौन कहेगा !
पर सच बात तो ये है कि
ये बच्चे आते-जाते रहेंगे
क्रान्ति के गीत गाते रहेंगे
याद दिलाते रहेंगे कि
जवानी का मतलब
किसी के प्यार में मरना
उसी में दिन-रात डुबे रहना और
टुटपुंजिया नौकरियों के लिए
खुद को बेचना नहीं होता है
जवानी का मतलब
बेहतर समाज के लिये
मर-मिटना होता है
- विनोद शंकर
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