Home ब्लॉग पुलिस और न्यायिक गिरोह की क्रूरता के भेंट चढ़ी एक औरत की मां बनने की जिद !

पुलिस और न्यायिक गिरोह की क्रूरता के भेंट चढ़ी एक औरत की मां बनने की जिद !

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भारत का पुलिसिया और जांचतंत्र पूरी तरह गुंडों के गिरोह में तब्दील तो हो ही चुकी है, अब जो नया विकास हुआ है वह यह है कि न्यायिक तंत्र भी पूरी तरह सड़ गया है. निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के जज बिके हुए, दलाल और मानवीय संवेदनाओं से पूरी तरह शून्य है. ऐसे सड़ांध गिरोह न केवल देश की जनता पर भार बन गया है अपितु अपनी सड़ांध से समाज को भी सड़ा रहा है.

84 वर्षीय बुजुर्ग फादर स्टेन स्वामी को पानी पीने के लिए एक पाईप देने से जजों ने जहां इंकार कर दिया वहीं अब एक मां के अजन्मे बच्चे के हत्या में सहभागी बन गया. इस अजन्मे बच्चे की हत्या मानवीय गरिमा से हीन इन गुंडों ने किस तरह किया है, इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता कृपाशंकर सिंह ने अपने पेज पर सिलसिलेवार लिखा है, जो यहां प्रस्तुत है.

अनिता रायपुर, छत्तीसगढ़ की एक उड़िया बस्ती की लड़की है. वह घरेलू तनावों से मुक्ति के कारण रायपुर छोड़कर दिल्ली फिर यूपी आ गयी. उसकी एक और छोटी बहन है जो बचपन से ही क्रोनिक शुगर की मरीज है और अब कुछ दिन हॉस्पिटल तो कुछ दिन घर पर इलाज में रहती है.

अनिता कुछ दोस्तों की मदद से पूर्वी यूपी के देवरिया जिले के एक किसान नौजवान बृजेश कुशवाहा से 2010 में शादी कर ली. उसके बाद दोनों मुख्यतः अपने घर रहते हुए और खेती किसानी करते हुए ग्रामीण महिलाओं के बीच शिक्षा-दीक्षा और गांव के मजदूर-किसानों के बीच भगतसिंह-डॉक्टर भीमराव अंबेडकर-ज्योतिबा-सावित्री बाई फुले के विचारों का प्रचार भी करने लगे.  हालांकि कभी भी उनके द्वारा कोई व्यापक मंच या आंदोलन नहीं हुआ.

अनिता भी बचपन से ही हाइपो थायराइड की मरीज है, जिसके कारण गर्भावस्था में कई प्रकार के कंप्लीकेशन्स आने का खतरा रहता है और उसे यह खतरा बना हुआ था. हमारे महान यूपी की पूर्वांचल के समाज में एक शादीशुदा महिला का बच्चा न होना कितने उलाहना, ताने व खराब व्यवहार का कारण बनता है हम सभी परिचित हैं.

अचानक 8 जुलाई, 2019 की सुबह यूपी की कुख्यात ATS की टीम 20-25 की संख्या में ख़ुफ़िया कर्मियों के साथ अनिता-बृजेश के घर छापा डाला और उन्हें व उनके मोबाइल वगैरह को अपने कब्जे में ले लिया और बिना किसी को बताए उन्हें गांव से ले गए. उसी प्रकार देवरिया से ही दो अन्य लोगों को भी अपहृत कर के पुलिस लाइन देवरिया लाए. गांव घर के किसी को पूरे दिन पता नहीं चला कि इन लोगों को कहां और कौन ले गया है.

दिन भर उनके इलेक्ट्रॉनिक सामानों और साथ में लाए साहित्यों की जांच और उन सभी से सघन पूछताछ चलती रही थी. रात में उन सभी से कुछ कागजों पर दस्तखत करवाकर और 12 जुलाई 2019 को ATS मुख्यालय लखनऊ आने की नोटिस देकर छोड़ दिया गया. उस समय उनको किसी बरामदगी की कोई मेमो नहीं दिया गया था. फिर अनिता-बृजेश सहित इस प्रक्रिया में बुलाए गए अन्य लोग भी 12, 13, और 22 जुलाई को ATS मुख्यालय गए. वहां उनसे सघन पूछताछ की गई और यह कहते हुए छोड़ दिया गया कि आप लोगों के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है.

बाद में पता चला कि यह कारवाई 5 जुलाई 2019 को ATS द्वारा दर्ज एक FIR के विवेचना के संदर्भ में की गई थी. उसमें ATS के राजेश राय नामक हेड कॉन्स्टेबल ने एक कंप्लेन के द्वारा आरोप लगाया था कि कुछ संदिग्ध माओवादी यूपी-बिहार-मध्यप्रदेश-राजस्थान में मीटिंग करके लोगों को भड़का रहे हैं. इसमें मनीष, अमिता, ज्योत्सना, दिनेश, बृजेश, प्रभा, बिंदा और एक अज्ञात को अभियुक्त बनाया गया था. परंतु उस समय विवेचना के बाद सिर्फ मनीष और अमिता के खिलाफ पहचान छुपाने के कारण 120B, 419, 420, 467, 468, 471 IPC में आरोप पत्र आया था.

इस घटना के बाद अनिता और बृजेश खुद को पूरी तरह पारिवारिक जीवन में स्थिर होने के लिए समर्पित कर लिया. आजीविका के लिए खेती के साथ बैग सिलने की दुकान खोले और उनके खुद के बच्चे के लिए प्रयास और ज्यादा तेज किए. अनिता की हाइपो थायराइड की समस्या और बढ़ती उम्र के कारण अब यह और मुश्किल न हो इसलिए अनिता ने मातृत्व सुख के लिए जीवन से खतरा भी मोल लिया. इस दौरान भी ATS के लोग महीने-दो महीने में उनके घर जाते रहे.

अनिता किसी तरह 2022 के अंत में गर्भ को धारण करने में सफल हुई परंतु बहुत केयर के बावजूद उसका 5 माह का गर्भ 11 मार्च 2023 को अबो्र्ट कर गया. उससे अनिता को शारीरिक और मानसिक आघात लगा परन्तु वह हार नहीं मानी और पुनः जुलाई, 2023 में गर्भ धारण की. इस बार उसने अतिरिक्त सावधानी बरतने के लिए अपने गांव से देवरिया यूपी से रायपुर अपनी मां के पास जाने को तय किया ताकि शहर में रहते हुए अपनी मां की देखरेख में सुरक्षित प्रसव कर सके. इसलिए बृजेश ने मध्य सितम्बर में अनिता को रायपुर पहुंचा दिया.

परंतु अचानक खबर आई कि बृजेश को उसके घर देवरिया और अनिता को उसकी मायके से 18/10/2023 को यूपी ATS ने गिरफ्तार कर लिया. बाद में पता चला कि 16/10/2023 को ATS की तरफ से विवेचक ने मजिस्ट्रेट की कोर्ट से ऊपर वर्णित 2019 के मुकदमे में गैर जमानती वारंट जारी करवाया था. उनका कहना था कि अनिता और प्रभा उनके घर बार-बार दबिश देने के बावजूद भी मिल नहीं रहे और फरार हैं.

मजिस्ट्रेट ने 6/12/2023 तक गिफ्तार कर पेश करने का आदेश दिया परंतु ATS के विवेचक ने मात्र 1 दिन बाद 18/10/2023 को देवरिया और रायपुर से अरेस्ट कर लिया. मानो NBW में जादू हो उसके जारी होते ही उनके तथाकथित फरारी का हल मिल गया. अनिता व बृजेश को लखनऊ जेल में डाल दिया गया. लखनऊ में 2021 में गठित विशेष NIA/ATS कोर्ट में अनिता की जमानत लगाई गई.

उसके हाइपो थायराइड, अधिक उम्र, मार्च 2023 में 5 माह के प्रेग्नेंसी को आधार बनाते हुए इस बार के 4 माह की प्रेग्नेंसी को मुख्य आधार बनाते हुए सुरक्षित प्रसव के लिए जमानत की मांग की गई. महिलाओं व बच्चों के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौतों, भारत के संविधान के अनुच्छेद 51(C) में उल्लेख का हवाला दिया गया. अनुच्छेद 21 में अनिता व उसके भ्रूण के जीवन का सवाल रखा गया. गर्भवती मां की मानसिक-शारीरिक स्थिति व वातावरण का हवाला दिया गया और ऊपरी अदालतों के नज़ीर को भी कोर्ट को उपलब्ध कराया गया.

इसके अलावे 4 वर्षों से पहले के एक FIR, उसके 3 दिन बाद छापा और 4 वर्षों बाद तथाकथित इलेक्ट्रॉनिक सामग्री से CFL, लखनऊ द्वारा किसी वर्ड फ़ाइल की प्राप्ति पर संदेह व्यक्त करते हुए सवाल उठाया गया कि इस मामले में किसी घटना या खतरे का अस्तित्व नहीं है. ATS की पूरी कारवाई यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि इस मामले में किसी की गिरफ्तारी के लिए कोई औचित्य नहीं है क्योंकि यहां किसी प्रकार के ‘स्पष्ट और आसन्न खतरे’ की उपस्थिति नहीं है.

परंतु विशेष न्यायाधीश ने अभियोजन के तर्क कि वह भाग जाएगी, जंगल से संगठन चलाएगी और दो गवाहों के 164 CrPC का कथन साक्ष्य है, को आधार बनाकर गर्भवती होने के तथ्य को मानते हुए बेल देने से इंकार कर दिया. माननीय ने उनसे यह नहीं पूछा कि FIR 5/7/19 के बाद वह जब आपने बुलाया आई तो अभी गर्भावस्था में जंगल मे कैसे भाग जाएगी ? जब मामला इतना गंभीर था तो 5/7/19 को FIR दर्ज करने के बाद छापा डालने के लिए 8/7/19 का इन्तेजार क्यों किया गया था ?

उस समय आपको विवेचना के दौरान देश के खिलाफ अपराध का कोई साक्ष्य क्यों नहीं मिला ? इतने गंभीर मामले में लैपटॉप से एक वर्ड फ़ाइल प्राप्त करने में 4 वर्ष से अधिक का समय क्यों लगा ? और उसमें 2018 के किसी पत्र की बात है तो जो होना होता हो गया होता अभी गिरफ्तार करने की अर्जेंसी क्यों है ? परंतु अभी तो विशेष न्यायाधीश ने मात्र अभियोजन की इच्छा पर मुहर लगाना उचित समझा.

अभियोजन की कपोल कल्पित और स्पष्तः अगंभीर विवेचना को सही मानते हुए अनिता की व उसके भ्रूण में पल रहे बच्चे के जीवन के समक्ष आसन्न खतरे को दरकिनार किया. महिला-बच्चों के प्रति अंतरराष्ट्रीय व घरेलू नीतियों को दरकिनार किया. भारत के संविधान के भाग-3 मौलिक अधिकारों को दरकिनार किया और 437(1) CrPC में महिला, 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों, शिथिलांग, बीमार को जमानत देने प्रावधान को दरकिनार किया.

नतीजतन दिनांक: 09/12/2023 की शाम को जेल से बृजेश की भांजी व मेरे सहकर्मी हाई कोर्ट इलाहाबाद की अधिवक्ता के पास काल आया कि अनिता का भ्रूण अबो्र्ट कर गया है. अब वह स्वयं शारीरिक व मानसिक रूप से सदमे व खतरे में है.

अनिता का पहला अबॉर्शन भी हॉस्पिटल के गांव से दूर होने के कारण और सड़क की स्थिति खराब होने के कारण हुआ. गांव में गर्भवती महिला की समुचित देखरेख का न होना और खराब सड़क का होना भी हमारे राज्य की सांस्थानिक असफलता है. हम एक बीमार महिला की चुनौतीपूर्ण मां बनने की जिजीविषा को पूरा करने में मदद करने की जगह उसके लिए खतरा पैदा कर दिए. यह हमारे देश के सभ्य होने को कलंकित करने वाली घटना है.

अधिवक्ता कृपा शंकर सिंह की बातें यहां खत्म हो जाती है, लेकिन इस अजन्मे बच्चे की हत्या के कलंक से यह भारतीय पुलिसिया गिरोह और न्यायिक गिरोह कभी नहीं बच सकता है. भारत की दुखी पीड़ित जनता के हिय में भी यह होगा कि जितनी जल्दी हो इन गिरोहों को पाताल में दफन कर दे.

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अनिता आजाद के अजन्मे बच्चे की ‘हत्या’ का जिम्मेदार कौन ? 

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