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मुक्ति

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अकेले कभी मत चलो
ऐसा मेरी मां कहती है
अगर कोई साथ नहीं
चल रहा है तो रूक जाओ
और तब तक लोगों को मनाओ
जब तक कि एक व्यक्ति भी
चलने के लिए तैयार न हो जाए

और जब चलो तो
किसी को साथ ले कर चलो
ताकी उस से बातें कर सको
सलाह ले सको
रास्ते में आई मुसीबत का
मिल कर सामना कर सको

जब मां ये कह रही होती है तो
मुझे कवि की ‘एकला चलो’ गीत याद आता है
जिसे मां ने कभी नही सुना है
फिर भी उसे खारिज कर रही होती है

मैं सोचता हूं
मां ठीक कह रही है
अकेले कविता लिखा जा सकता है
कोई आविष्कार किया जा सकता है
विज्ञान में कोई नया अध्याय जोड़ा जा सकता है
पर दुनिया को नहीं बदला जा सकता है
और नहीं शोषण को खत्म किया जा सकता है

इसके लिए तो जनता के साथ चलना होगा
जनता से सीखना और
उसे सीखाना होगा
और सभी शोषितों को मिल कर
मुक्ति पाना होगा
क्यूंकि अकेले-अकेले लड़ाई तो
किया जा सकता है
पर जीता नहीं जा सकता है !

  • विनोद शंकर
    19.12.2023

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