पिछले 13 अप्रैल से झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में शुरू हुआ माओवादियों के खिलाफ हिंसक अभियान हजारों सुरक्षा बलों के द्वारा अभी तक जारी है. इस पूरे अभियान में अब तक श्सुरक्षा बलोंश् द्वारा जंगलों माओवादियों को लक्ष्य कर सैकड़ों गोले मोर्टार व राॅकेट लांचर से दागे जा चुके हैं. इस पूरे मामले में दर्जनों लोगों के मरने की आशंका है. पर इसकी पुष्टी इसलिए नहीं हो पा रही है क्योंकि आदिवासी अपनी जान बचाने की कोशिश में जंगल-जंगल भागे फिर रहे हैं.
पश्चिमी सिंहभूमि जिले के गांवों में माओवादियों की खोज के लिए डोर टू डोर सर्च अभियान चलाया जा चुका है. ग्रामीण अपने घरों से फरार हो चुके हैं. गोईलकेरा बाजार के दुकानदारों को 5 किलो से ज्यादा चावल आदिवासियों को बेचने की पुलिस द्वारा नहीं दिया जा रहा है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि वे माओवादियों को रशद न दे सकें.
लेकिन सच्चाई ये है कि ये अनाज आदिवासियों के अपने घर-परिवार के लिए कम पड़ रहा है. मीलों पैदल चलकर बाजार आने वाले आदिवासियों के लिए संभव नहीं है कि वे हर रोज खरीददारी करने बाजार आ सकें. ऐसे में कई गांवों में आदिवासी परिवार भरपेट खाने से वंचित हैं तो तमाम परिवारों के भूख से मरने का संकट आ गया है.
इलाके के लोगों से मिल रही जानकारी के मुताबिक जंगल जाने वाले सभी रास्तों पर पुलिस और सुरक्षा बलों का सख्त पहरा लगा दिया गया है. सभी नदी-नाले यानी पानी के तमाम स्रोत पर पुलिस का पहरा है, ताकि माओवादी भूख और प्यास से तंग आकर समर्पण कर दें या फिर कमजोर हालत में लड़ाई के दौरान मारे जाएं.
माओवादियों के खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज किया जा चुका है. दो-तीन गांव के मुंडा (ग्राम प्रधान) को माओवादियों के हिमायती बताकर गिरफ्तार कर लिया गया है. हर बार की तरह कई माओवादियों को मार गिराने का दावा पुलिस के द्वारा किया जा चुका है, लेकिन पुलिस के हाथों एक भी माओवादी का लाश नहीं मिली है और ना ही एक भी हथियार.
अब तक के अभियान में सीआरपीएफ कोबरा के 4 जवान आइडी विस्फोट व माओवादियों की गोली से घायल हो चुके हैं. 15 अप्रैल को 2 व 20 अप्रैल को 2 जवान.
इधर हिन्दुस्तान अखबार में खबर छपी है कि माओवादियों के सारे बड़े नेता पुलिस घेराबंदी से बाहर निकल चुके हैं, फिर भी अभियान जारी है और लम्बे समय तक जारी रहेगा.
गौरतलब है कि हजारों सुरक्षा बलों द्वारा माओवादियों के खिलाफ महीनों तक 2011 और 2012 में झारखंड के सारंडा जंगल में अभियान चलाए गए. 2011 में चले माओवादी सफाए अभियान का नाम था श्आॅपरेशन एनाकोंडा-1 और 2012 वाले का नाम था ऑपरेशन एनाकोंडा-2. इस अभियान के बाद आदिवासियों के बसावद के इलाकों में सीआरपीएफ के दर्जनों स्थायी कैंपों की स्थापना कर दी गयी थी.
इन दोनों आॅपरेशनों में माओवादियों को कितना नुकसान हुआ, यह तो अंदाजा लगाना मुश्किल है क्योंकि इन दोनों ऑपरेशनों के बाद भी एक भी माओवादी का शव बरामद नहीं हुआ था, लेकिन आम जनता पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है.
बाद में गई फैक्ट फाइंडिंग टीमों ने खुलासा किया था कि सुरक्षा बलों ने सैकड़ों घरों को जला दिया है, कई घरों में लूटपाट किया है, कई ग्रामीणों के साथ बेरहमी से मारपीट किया है और कई महिलाओं के साथ बदतमीजी भी की.
पिछले 10-12 दिनों से जारी छापेमारी अभियान की सच्चाई को सामने लाने के लिये मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व प्रगतिशील नागरिकों की एक जांच टीम जरूर ही झारखंड के चाईबासा जिलान्तर्गत गोईलकेरा प्रखंड के सांगाजाटा गांव के आसपास के गांवों का दौरा करना चाहिए. इससे साफ होगा कि इस बार आदिवासियों के उपर भाजपा सरकार ने कितना कहर बरपा किया है.
– रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट
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S. Chatterjee
April 26, 2018 at 2:54 am
माओवादिओं के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान पुलिस के लिए व्यापार है इसमें अधिकारियों की मोटी कमाई है, इसलिए भी ये समय समय पर ऐसा करते हैं राजनीतिक पक्ष ये है कि झारखंड की असीम संपदा की खुली लूट के रास्ते आदिवासी और माओवादी दोनों आड़े आते हैं , इसलिए दोनों का ख़ात्मा ज़रूरी है
Sakal Thakur
April 26, 2018 at 3:24 am
भाजपा को जाना ही होगा भगाओ देश बचाओ