हिमांशु कुमार
फासीवादी कहेगा – गरीब आलसी होते हैं, मेहनती लोग अमीर होते हैं.
प्रगतिशील कहेगा – किसान मजदूर लोग तो बहुत मेहनत करने के बाद भी गरीब बने रहते हैं. यह असल में गलत राजनैतिक सिस्टम की वजह से होता है कि चालाक लोग दूसरे की मेहनत और दूसरे के संसाधनों का फायदा उठा कर अमीर बन जाते हैं. जैसे अदाणी आदिवासियों की ज़मीनों और मजदूरों की मेहनत का फायदा उठा कर अमीर बना है, मेहनत के कारण नहीं.
फासीवादी कहेगा – झुग्गी झोंपड़ी मे रहने वाले नशेड़ी और अपराधी होते हैं. इनके ऊपर पुलिस को सख्त कार्यवाही करनी चाहिये.
प्रगतिशील कहेगा – झुग्गी झोंपडियां हमारे समाज की गलत नीतियों के कारण बनी हैं. हमें इन नीतियों को सुधारने की कोशिश करनी चाहिये. पुलिस को झोपडियों में रहने वाले लोगों के साथ सख्ती करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती. हमें इन जगहों पर रहने वाले लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए झुग्गी झोपडियों में काम करना चाहिये.
फासीवादी कहेगा – औरतें कमज़ोर होती हैं, उन्हें अपने पिता या भाई से पूछे बिना घर के बाहर नहीं जाना चाहिये. औरतों को ढंग के कपड़े पहनने चाहियें. अपने साथ होने वाली छेड़छाड़ के लिए औरतों के कपड़े ज़िम्मेदार होते हैं.
प्रगतिशील कहेगा- आदमी और औरत एक बराबर होती हैं. समाज को ऐसा माहौल बनाना चाहिये जिसमें महिला रात को भी घूमने फिरने में डर महसूस ना करे. महिलाओं के साथ छेड़छाड करना पुरुषों की समस्या है इसलिए हमें लड़कों की शिक्षा पर ध्यान देना चाहिये कि वे महिलाओं के बारे में स्वस्थ ढंग से सोचें.
फासीवादी कहेगा- सेना, अर्ध सैनिक बल और पुलिस सर्वोच्च होती है. जो भी सेना, अर्ध सैनिक बल और पुलिस के बर्ताव पर सवाल खड़े करता है वह देशद्रोही है.
प्रगतिशील कहेगा- सेना, अर्ध सैनिक बल और पुलिस सरकार के आदेश पर चलती है. सरकार अमीरों की मुट्ठी में होती है इसलिए अक्सर सेना, अर्ध सैनिक बल और पुलिस अमीरों के फायदे के लिए गरीबों के विरुद्ध क्रूर बर्ताव करते हैं. इसलिए हम शासन को सेना, अर्ध सैनिक बल और पुलिस के बल पर चलाये जाने को पसंद नहीं करते. लोकतंत्र में जनता से बातचीत के द्वारा कामकाज किया जाना चाहिये.
फासीवादी कहेगा- राष्ट्र सर्वोपरी है. राष्ट्रभक्ति से बड़ा कोई कोई भाव नहीं है.
प्रगतिशील कहेगा- राष्ट्र भक्ति प्रतीकों से नहीं होती. झंडा लिए एक औरत का चित्र या तिरंगा झंडा या भारत का नक्शा राष्ट्र नहीं होता बल्कि राष्ट्रभक्ति वास्तविक होनी चाहिये. राष्ट्र का मतलब इसमें रहने वाले सभी गरीब, अल्पसंख्यक, आदिवासी होते हैं. इनके मानवाधिकारों और इनकी बराबरी का ख्याल रखना ही सबसे बड़ा काम होना चाहिये. इनके अधिकारों को कुचल कर राष्ट्र की बात करना ढोंग है.
फासीवादी कहेगा – पाकिस्तान आतंकवादी देश है. उसे कुचल देना चाहिये.
प्रगतिशील कहेगा – पाकिस्तान हमारा पड़ोसी देश है. पाकिस्तान हमेशा हमारे पड़ोस में ही रहेगा. हमें पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बना कर रखने चाहियें. हमारे बीच में जो भी झगड़े के मुद्दे हैं, उनका हल कर लेना चाहिये. हम पाकिस्तान से इसलिए भी नफ़रत करते हैं क्योंकि हम अपने देश के मुसलमानों से ही नफ़रत करते हैं. अगर हम मुसलमानों से नफ़रत करना बंद कर दें तो हमारी पाकिस्तान के प्रति नफ़रत भी खत्म हो जायेगी.
आतंकवादी हरकतें दोनों देशों की सरकारें करती हैं. दोनों मुल्कों के हथियारों के सौदागर दोनों मुल्कों के बीच डर का माहौल बनाते हैं, ताकि जनता हथियार खरीदने को मंजूरी देती रहे. लेकिन वह पैसा तो असल में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च होना चाहिये. भारत और पाकिस्तान के सिर्फ दो सौ परिवार ऐसे हैं जो हथियार खरीदी से कमीशन खाते हैं और चुनावों मे चंदा देते हैं और दोनों मुल्कों की जनता को एक दूसरे से डराते रहते हैं ताकि उनका धंधा चलता रहे.
फासीवादी कहेगा – सेक्युलर लोग देशद्रोही हैं. इन्हें पाकिस्तान भेज दो.
प्रगतिशील कहेगा – लोकतंत्र का मतलब बहुसंख्य आबादी का अल्पसंख्यक आबादी पर शासन नहीं होता. उसे तो भीड़तंत्र कहा जाता है. लोकतंत्र का मतलब है सभी नागरिक सामान हैं, सबकी इज्ज़त बराबर है, सबके अधिकार बराबर हैं. भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों की बराबरी की बात करने वाले लोगों को सिक्युलर और शेखुलर कह कर चिढाया जाता है. इसी तरह पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं के बराबर अधिकार की बात करने वाले मुस्लिम लोगों को पाकिस्तान के कट्टरपन्थी लोग गाली देते हैं और उन्हें भारत का एजेन्ट कहते हैं.
अगर यह समाज हर पैदा होने वाले बच्चे को एक ही स्तर का मकान, हर बच्चे को एक ही स्तर का स्कूल, हर बच्चे को एक ही स्तर का खाना नहीं देता तो यह संविधान के विरुद्ध है. अपने जन्म का स्थान चुनना किसी भी बच्चे के अपने वश में नहीं है, इसलिये बच्चा चाहे सफाई कर्मचारी का हो, चाहे किसी अम्बानी का, दोनों के बच्चों को जन्मजात बराबरी का अधिकार है. और यह बात आपके संविधान के पहले पन्ने पर लिखी हुई है, लेकिन समाज अभी भी इस बात को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं है. इसलिये सरकारें भी ऐसा क्यों सोचें ?
आज तो शहरी बच्चे – ग्रामीण बच्चे, बड़ी ज़ात के बच्चे – दलित बच्चे, साक्षर मां बाप के बच्चे – निरक्षर मां बाप के बच्चे, सब को भयंकर भेदभाव जन्म से मिलता है. इस तरह आप कभी भी अवसर की समानता, सामजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय को वास्तविक नहीं बना पायेंगे. समाज में समता के बिना शांति नहीं आयेगी. इस तरह सामजिक हिंसा के लिये यह समाज खुद ही ज़िम्मेदार है.
प्रकृति ने तो सभी को सामान बनाया है, पर समाज ने असमानता पैदा की है. और यह समाज, समानता की बात करने वालों को असामाजिक और आतंकवादी कह कर उन पर हमला कर देता है, अब बताइये असली असामाजिक तत्व कौन हैं ?
सोशल मीडिया पर अगर आप सांप्रदायिकता के अंधविश्वास के महिलाओं की दोयम स्थिति के या आर्थिक शोषण के विरुद्ध कुछ भी लिखो तो भाजपाई और संघी लोग आकर गालियां देते हैं. बाकी गालियों के अलावा इन भाजपाइयों और संघियों की फेवरेट गाली है कि ‘तू मुल्ले की औलाद है.’ मतलब तुम मुसलमान हो.
इन संघियों ने पिछले 100 साल मेहनत करके मुसलमान होना एक गाली में बदल दिया है. इस देश में हजारों धार्मिक विश्वास है. इस्लाम भी एक धार्मिक विश्वास है. अभी तक यह बात किसी भी तरह से साबित नहीं हो पाई है कि किसी एक धार्मिक विश्वास वाले लोग ज्यादा देशभक्त हैं और किसी दूसरे धार्मिक विश्वास वाले कम देशभक्त है.
भारत में जैसे दूसरे धार्मिक विश्वास है, वैसे ही मुसलमान भी एक धार्मिक विश्वास वाला समुदाय है. आजादी की लड़ाई सब ने मिलकर लड़ी. देश को बनाने में सभी धार्मिक समुदायों के लोग काम कर रहे हैं. भले बुरे लोग सभी समुदायों में हैं लेकिन एक खास समुदाय को देशद्रोही, कट्टर, अछूत, नफरत योग्य साबित करने के लिए एक राजनैतिक योजना जरूरी है. आरएसएस ने यही काम किया है.
याद कीजिए 2014 के चुनावों से पहले व्हाट्सएप पर किस तरीके से जवाहरलाल नेहरू, मोतीलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, फिरोज गांधी और राहुल गांधी को मुसलमान साबित करने वाले व्हाट्सएप मैसेज फैलाए जाते थे. गोया कि इन लोगों को इसलिए चुनाव में हराना चाहिए क्योंकि यह लोग मुसलमान हैं. अगर किसी देश में एक समुदाय विशेष का होना ही उसकी अयोग्यता बन जाए तो समझ लीजिए कि उस देश में एक राजनीतिक योजना काम कर रही है.
आप करोड़ों लोगों को अछूत बनाकर उन्हें राजनीति और दूसरे समाज निर्माण के कामों से दूर कर देते हैं. हजारों सालों तक भारत में ऐसा मेहनतकश जातियों को शूद्र घोषित करके किया गया. शूद्र घोषित करके समाज के सबसे बड़े तबके के लोगों को हथियार रखने, राजनीति में भाग लेने, व्यापार करने और युद्ध करने की मनाही कर दी गई थी. इसी वजह से हम गुलाम हो गए. मुट्ठी भर लोगों ने व्यापार, राजनीति और ज्ञान पर एकाधिकार कर लिया.
अब वही शुद्धतावादी विचार अपना रूप बदलकर मुसलमान बन चुके शूद्रों को नफरत का निशाना बनाकर दूर रख रहा है. राम मनोहर लोहिया ने कहा था जातिवाद हटेगा तो सांप्रदायिकता खत्म हो जाएगी. भारत के सवर्ण हिंदुओं को याद है कि आज जो मुसलमान है, पहले यह शुद्र थे इसलिए वह इन से नफरत करता है.
सांप्रदायिकता जातिवाद का ही बदला हुआ तथा छिपा हुआ रूप है. मजे की बात यह है कि जो लोग सवर्ण हिंदुओं से जातिवाद की लात खा रहे हैं, वही लोग सांप्रदायिक बनकर मुसलमान बन चुके दलितों को लात मारने में मजा महसूस कर रहे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सवर्ण हिंदू पुरुषों का संगठन है. यह सवर्णों की सत्ता, पुरुषों की सत्ता और अमीरों की हजारों सालों से चली आ रही सत्ता को बनाए रखने के लिए बनाया गया संगठन है.
आजादी की लड़ाई के दौरान भगत सिंह, अंबेडकर गांधी जिस बराबरी की बात कर रहे थे उससे परंपरागत शासक वर्ग घबरा गया था और उसने अपनी परंपरागत सत्ता को बनाए रखने के लिए आरएसएस का गठन किया था. इसलिए आरएसएस वाले इस बराबरी की मांग से घबराकर एक तरफ तो मुसलमानों को अपना दुश्मन कोशिश करते हैं, वहीँ यह कम्युनिस्टों से भी नफरत करते हैं. क्योंकि कम्युनिस्ट बराबरी की बात करते हैं और बराबरी की बात से संधियों को घबराहट होती है.
अब सवाल यह है कि क्या भारत इस नफरत की राजनीति के रहते अपनी आर्थिक हालात सुधर पायेगा ? क्या नागरिकों के बीच प्रेम और सद्भावना बनाए रखी जा सकेगी ? अगर भारत में नागरिकों के बीच नफरत इसी तरीके से बढ़ाई जाती रही और आर्थिक तौर पर इसी तरह बर्बादी जारी रही, तो भारत का भविष्य कैसा होगा उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते. भारत को जल्दी से जल्दी अपनी राजनीति की दिशा बदलनी पड़ेगी वरना उसे बर्बादी से कोई नहीं बचा सकता.
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