20 अक्टूबर, 2023 को नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय बैठक में ऐतिहासिक किसान आंदोलन के खिलाफ न्यूज़क्लिक एफआईआर में निराधार, बेईमान भरे और झूठे आरोपों पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली आरएसएस-भाजपा समर्थित सरकार के खिलाफ भारी गुस्सा व्यक्त किया गया है.
एफआईआर में किसानों के आंदोलन को राष्ट्र-विरोधी, विदेशी और आतंकवादी ताकतों द्वारा वित्त पोषित बताया गया है. न्यूज़क्लिक के पत्रकारों पर विदेशी फंडिंग लेकर एक साजिश के तहत किसान आंदोलन को मदद करने का आरोप लगाया गया है. एफआईआर में
लिखा है –
‘ ….गुप्त इनपुट प्राप्त हुए हैं कि भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बाधित करने, भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करने और भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा को खतरे में डालने के इरादे से साजिश के तहत भारत विरोधी भारतीय और विदेशी संस्थाओं द्वारा भारत में अवैध रूप से करोड़ों की विदेशी धनराशि का निवेश किया गया है
… इसके जरिये आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं को बाधित करने, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और नष्ट करने के लिए उकसाने की भी साजिश रची है. यह पता चला है कि इस उद्देश्य के लिए कुछ भारतीय संस्थाओं और अहितकारी विदेशी प्रतिष्ठानों के बीच एक पारस्परिक रूप से लाभप्रद गठजोड़ स्थापित किया गया था.
उपरोक्त सांठगांठ का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को कई सौ करोड़ रुपये का भारी नुकसान पहुंचाने और भारत में आंतरिक कानून व्यवस्था की समस्याएं पैदा करने के उद्देश्य से किसानों के आंदोलन को समर्थन, सहायता, वित्त पोषण से एक-दूसरे को सहायता देना, समर्थन करना था.’
पूरा देश जानता है कि किसानों का ऐतिहासिक आंदोलन एक प्रतिबद्ध, देशभक्तिपूर्ण आंदोलन था, जो 1857 और विदेशी लूट के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन के साथ समानता रखता था. इस आंदोलन ने कृषि से सरकारी समर्थन वापस लेने और अडानी, अंबानी, टाटा, कारगिल, पेप्सी, वॉलमार्ट, बायर, अमेज़ेंन और अन्य के नेतृत्व वाले निगमों को खेती, कृषि मंडियों और खाद्य वितरण को सौंपने के लिए 3 कृषि कानूनों को लाने की नापाक योजना को सही ढंग से पढ़ा.
मोदी सरकार द्वारा देश पर जो 3 कृषि कानून थोपे गए, उनमें अनुबंध खेती कानून कानूनी रूप से किसानों को वह उगाने के लिए बाध्य करता है जो कॉरपोरेट खरीदेगा, उन्हें महंगे इनपुट (बीज, उर्वरक, कीटनाशक, ईंधन, सिंचाई, प्रौद्योगिकी, सेवाएं) खरीदने और सम्बंधित कंपनी को ही अपनी फसल बेचने के लिए अनुबंधित किया जाएगा.
कृषि मंडी अधिनियम ने बड़ी कंपनियों के गठजोड़ को ऑनलाइन नेटवर्किंग और निजी साइलो के साथ सबसे कम कीमत पर फसल व्यापार पर हावी होने की अनुमति देने के लिए सरकारी संचालन, सरकारी खरीद और मूल्य निर्धारण (एमएसपी) पर रोक लगा दी थी. आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम से जमाखोरों और कालाबाजारियों को आजादी दी जा रही थी.
भारत के किसान केंद्र सरकार के इस छल से जुझ रहे हैं. उन्होंने आरएसएस-भाजपा की भारत के लोगों को खाद्य सुरक्षा से वंचित करने, किसानों को कंगाल बनाने, कारपोरेट निगमों के अनुकूल फसल पैटर्न बदलने और भारत के खाद्य प्रसंस्करण बाजार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मुक्त प्रवेश की अनुमति देने की कॉरपोरेट योजना का पर्दाफाश किया. इन कारपोरेट गुलामी के कानूनों के खिलाफ देश के किसान एक होकर उठे, अशांत सागर में लहर की तरह उठे, दिल्ली को घेर लिया और जिद्दी मोदी सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया.
इस प्रक्रिया में किसानों ने पानी की बौछारों, आंसूगैस के गोले, बड़े कंटेनरों से सड़क अवरुद्ध करने, गहरे सड़क कटाव, लाठीचार्ज, ठंड, बरसात और गर्म मौसम का सामना किया. 13 महीनों में उन्होंने 732 किसान शहीदों का बलिदान दिया. उन्होंने भारत के सबसे असहाय और वंचित वर्गों के लिए मीडिया और अदालतों में न्याय के लिए आवाज उठाई. साम्राज्यवादी शोषकों के हितों की रक्षा करने वाली फासीवादी सरकार के दमन के सामने यह उच्चतम गुणवत्ता का देशभक्तिपूर्ण आंदोलन था.
भारतीय किसान 1.4 अरब लोगों को खाना खिलाते हैं. वे 68.6% आबादी को जीविका और काम प्रदान करते हैं. कृषि जैसे बुनियादी ढांचे में सरकारी निवेश, लाभदायक खेती को बढ़ावा, गांव के गरीबों के जीवन का विकास और किसान-मजदूर सहकारी समितियों के सामूहिक स्वामित्व और नियंत्रण के तहत आधुनिक खाद्य प्रसंस्करण, विपणन और उपभोक्ता नेटवर्क की सुविधा ही अर्थव्यवस्था और लोगों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है. ऐसा रास्ता ही भारत के साथ-साथ भारत के लोगों को भी समृद्ध बनाएगा.
हालांकि, कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सेवा में, मोदी सरकार ने किसानों पर एक और हमला किया है. इसने एक़ अलोकतांत्रिक कानून, यूएपीए का उपयोग किया है, जो सरकार को नागरिकों पर आतंकवादी होने का आरोप लगाने की अनुमति देता है, इसलिए यह कानून स्पष्ट रूप से राष्ट्रविरोधी है, इस कानून के तहत दशकों तक आरोप को साबित किए बिना और वर्षो तक जमानत से इनकार कर लोगों को जेल में डाला जा रहा है.
केंद्र सरकार ने किसान आंदोलन का समर्थन करने के लिए लिखने वाले न्यूज़क्लिक मीडिया हाउस पर भी आरोप लगाने के लिए यूएपीए का दुरुपयोग किया है. न्यूज़क्लिक ने केवल वही कर्तव्य निभाया जो एक सच्चे मीडिया को करना चाहिए. आंदोलन के दौरान किसानों की समस्याओं और एकजुट संघर्ष के बारे में सच्ची रिपोर्ट करना ही जनपक्षधर और स्वतंत्र पत्रकारों का काम था.
भाजपा सरकार हास्यास्पद एफआईआर का इस्तेमाल यह अफवाह फैलाने के लिए कर रही है कि किसानों का आंदोलन जन-विरोधी, राष्ट्र-विरोधी और न्यूज़क्लिक के माध्यम से आतंकवादी फंडिंग द्वारा समर्थित है, यह तथ्यात्मक रूप से गलत है. यह किसान आंदोलन
की खराब छवि चित्रित करने और हमारे देश के किसानों के हाथों मिली अपमानजनक हार का बदला लेने के लिए साजिशन व शरारतपूर्ण ढंग से लगाया गया आरोप है.
मोदी सरकार, 3 काले कानूनों को वापस लेने के बाद, अब फिर से किसान आंदोलन पर विदेशी वित्त पोषित और आतंकवादी ताकतों द्वारा प्रायोजित होने का झूठा आरोप लगाने की कोशिश कर रही है ! यह सब तब है जब आरएसएस और भाजपा कृषि में एफडीआई, विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों, बड़े निगमों को बढ़ावा दे रहे हैं ! वे भारतीय किसानों की निंदा करने और बर्बाद करने के लिए गहराई से प्रतिबद्ध हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा एक मजबूत भारत के निर्माण के लिए किसानों की अर्थव्यवस्था और देश की गरीबों की खाद्य सुरक्षा को बचाने, विदेशी लूट को रोकने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फिर से जीवंत करने के लिए प्रतिबद्ध है. संयुक्त किसान मोर्चा निम्न मुख्य मुद्दों की मांग करता है –
- सभी फसलों के लिए एमएसपी@सी%50+2 की कानूनी गारंटी हो.
- चार श्रम संहिताओं को निरस्त करें, न्यूनतम वेतन 26000 रुपये प्रति माह सुनिश्चित हो.
- दो लाख करोड़ रुपये आवंटित करके मनरेगा योजना को मजबत करें, मनरेगा में मजदूरों को 200 दिन का काम और 600 रुपये दैनिक मजदूरी सुनिश्चित करें.
- बिजली विधेयक 2022 को निरस्त करें जिसका उद्देश्य निजीकरण है और बिजली क्षेत्र का विनियमन बंद करो. रेलवे, एयरलाइंस, बंदरगाह, एफसीआई, बीमा, बैंक, राष्ट्रीय राजमार्ग और यहां तक कि रक्षा क्षेत्र सहित सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों का निजीकरण और संविदाकरण करना बंद करो.
- किसानों और कृषि श्रमिकों के परिवारों के लिए व्यापक ऋण माफी और 40000 रुपये की मासिक पेंशन के साथ खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास का अधिकार दो.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों और भारत के लोगों को बेरहमी से धोखा दिया है. 2014 और 2019 के आम चुनावों में भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में किए गए किसी भी वादे को लागू नहीं किया है. अब प्रधानमंत्री और भाजपा देश के किसानों के खिलाफ झूठे आरोप और अफवाह फैलाकर किसान आंदोलन को निशाना बना रहे हैं. इस संदर्भ में, नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त किसान मोर्चा महासभा ने गहरी पीड़ा और विरोध व्यक्त किया था और मोदी सरकार को झूठी न्यूज़क्लिक एफआईआर को तुरंत वापस लेने और पत्रकार प्रबीर पुरकायस्थ और अमित चक्रवर्ती को रिहा करने की चेतावनी दी थी.
संयुक्त किसान मोर्चा 1 से 5 नवंबर 2023 तक झूठी एफआईआर का पर्दाफाश करने के लिए मोदी सरकार के खिलाफ गांव स्तर पर प्रचार अभियान चलाएगा. इस अभियान में एफआईआर के मकसद को समझाते हुए और कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मदद के लिए मोदी सरकार को किसानों की अर्थव्यवस्था का गला घोंटने से रोकने के लिए किसानों को एकजुट करने के लिए गांवों में घर-घर जाकर पर्चे बांटे जाएंगे.
6 नवंबर 2023 को अखिल भारतीय विरोध दिवस के रूप में मनाया जाएगा और न्यूज़क्लिक के खिलाफ लिखी झूठी एफआईआर की प्रतियां तहसील और जिला मुख्यालयों पर जलाई जाएगी. संयुक्त किसान मोर्चा ने पांच चुनावी राज्यों में ‘कॉरपोरेट का विरोध करो! भाजपा को सजा दो! देश बचाओ !’ नारे के साथ प्रचार करने का भी फैसला किया है.
संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और महासंघों के संयुक्त मंच के बैनर तले 26-28 नवंबर 2023 को सभी राज्यों की राजधानियों में राजभवन के समक्ष किसानों और श्रमिकों का 72 घंटे का दिन-रात का महापडाव आयोजित किया जाएग़ा. हम किसानों और श्रमिकों से अनुरोध करते हैं कि वे उपरोक्त विरोध संघर्षों में बड़े पैमाने पर शामिल हों और लोगों के बीच किसान विरोधी, मजदूर विरोधी नरेंद्र मोदी सरकार को बेनकाब करें.
संयुक्त किसान मोर्चा के घटक संगठन ‘क्रांतिकारी किसान यूनियन’ के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अवतार सिंह महिमा से विभिन्न सवालों पर एक बातचीत –
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