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बच्चे फिलिस्तीन के हो या बस्तर के…

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बच्चे फिलिस्तीन के हो या बस्तर के...
बच्चे फिलिस्तीन के हो या बस्तर के…

बच्चे फिलिस्तीन के हो
या बस्तर के
लूटेरे इन पर भी रहम नही करते हैं
और बागियों के बच्चो को तो
ये पेट में ही मार देते हैं
भविष्य का विद्रोही समझ कर

इनका बस चले तो विद्रोहियों का शरीर के
साथ-साथ इतिहास भी मिटा दे
हालांकी ये इसकी कोशिश भी
अपनी पूरी जी जान से करते हैं

जमीन की लड़ाई ही इस दुनिया में
अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई है
जमीन पर जिसका कब्जा होगा
उसी का अपने देश और
दुनिया पर कब्जा होगा

साम्राज्यवादियों के लिए
अन्तर्राष्ट्रीय सीमाएं भी कोई मायने
नही रखता है
उनके लिए तो आज भी
पूरी धरती एक चारागाह ही है
जहां वे अपने लाठी के दम पर
एशिया,
अफ्रीका और
लैटिन अमेरिका के किसानों के
फसल लगी खेत में भी
अपनी गाय चरा रहे हैं

फिलिस्तीन में तो इन लुटेरो ने
खेत के साथ-साथ
घर भी कब्जा कर लिया है
और अब घर के मालिक को ही
घुसपैठिया बता रहे हैं
और विरोध करने पर आतंकवादी कह रहे हैं
जबकी पूरी दुनिया जानती है कि
वहां आतंक कौन मचा रखा है !

2

यहूदियों तुम किसकी सन्तान हो
इब्राहीम की
दाऊद की
कार्ल मार्क्स की
रोजा लक्जमबर्ग
या आइस्टिंन की ?
मुझे तो तुम इन सब में से
किसी की सन्तान नही लगते हो

बुरा मत मानना मुझे तो
तुम उसी की संतान लगते हो
जिसने तुम सब का नरसंहार किया था

बस उस में और तुम में फर्क यही है की
वो पूरी दुनिया पर राज करना चहता था
और तुम पूरी दुनिया के यहूदियों के लिए
एक देश बना लिए हो

क्या तुम्हे लोकतंत्र और
जनवाद पर भरोसा नहीं है ?
क्या कोई नस्ल या धर्म
तभी सुरक्षित रहेगा
जब उसका एक अपना देश होगा ?

इस तरह तो जिस नस्ल या धर्म की
इस धरती पर जितनी संख्या है
उतना ही वह अपने लिए जमीन की मांग करेगा
और कोई देश बनाएगा तो कोई महादेश

शायद तुम से ही प्रेरणा ले कर
हमारे देश में भी कुछ लोग
हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं
पर ये सोच परमाणु बम से भी
ज्यादा खतरनाक है
जिसकी आग में ये
पूरी दुनिया ही जल जायेगी

जिस रास्ते पर तुम चल रहे हो
वो जमाना कब का बीत चुका है
काहे तुम ईसा मसीह और
मुहम्मद को कब्र से जगा रहे हो
वो जहां सो रहे है उन्हे सोने दो

ये दुनिया अब किसी पैगम्बर के उपदेश से नहीं
लोकतंत्र और संविधान से चलती है
यहां के खुली हवा में
जितना सांस लेने की आजादी तुम्हें है
उतना ही गाजा के बच्चो को भी है
जिनके उपर तुम बम गिरा कर भी नही छिन सकते !

  • विनोद शंकर

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