थॉमस शेल्बी आपका हीरो हो सकता है, माइकेल करलियोन हो सकता है. मनी हेस्ट का प्रोफेसर और गेम ऑफ थ्रोन्स का बौना भी आपका हीरो हो सकता है.
हीरो वही होता है, जैसा आप दिखना, करना और बनना चाहते हैं. आपके भीतर के अविकसित, अधखुले, न बन सके व्यक्तित्व का पूर्ण विकसित प्रतीक, आपका हीरो है.
आपके और उस हीरो जैसा बन जाने के बीच एक दीवार है, जो मजबूरियों, कमजोरियो, नामर्दी, भय…और संसाधन, स्किल, सिचुएशन के अभाव से बनी है.
यानी, जिनका हीरो गोडसे है, उसकी मजबूरी, उसके सामने एक अदद गांधी की अनुपस्थिति है. बेचारे के पास पिस्तौल नहीं है, साहस नही, दम नहीं, मौका नहीं. षड्यंत्र रचकर देने को माफिवीर नहीं है.
बस ये सारे इंतजाम हो जाये, तो वह किसी गांधी पनपने के पहले ही तीन गोलियां, उसके सीने में उतार दें.
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आदर्शवादी लोगों के भी हीरो होते हैं. वे ऊंची शख्सियत होती हैं- गांधी, बुद्ध, नेहरू, नेपोलियन, मंडेला. पिता…, मगर वैसा बन पाना आसान नहीं होता तो इंसान पतली गलियां खोज लेता है. मैंने भी खोजा. ‘मैं गांधी प्रेमी हूं, गांधीवादी नहीं.’
यह बड़ा सुविधाजनक है. इसमे स्वीकार भी है, नकार भी. तो इस तरह, हम अपने हीरो से नकार खोज लेते हैं. और दूसरे के हीरो में नकार खोजकर, उसके तमाम फालोवर जमात को बेलज्जत कर देते हैं.
जैसे- नारीवादी, उन्हें श्रीराम को भगवान नहीं मानता, क्योंकि उन्होंने स्त्री को छोड़ दिया. अम्बेडकरवादी उन्हें मनुवादी कहता है, क्योंकि शम्बूक को मार दिया. छिपकर बाली की हत्या करना आलोचना का एक कारण है. राम का सम्पूर्ण रामत्व इन तीन छेद से देखकर वह खारिज कर देता है.
जूते के छेद से दुनिया देखो, तो दुनिया छोटी, छेद बड़ा प्रतीत होता है. आप गांधी को ब्रह्मचर्य के प्रयोग से खारिज कर ले, नेहरू को एडविना के नाम पर. बुद्ध बासी मांस खाकर मरे, तो वीगन बुद्धिज्म को ही खारिज कर देगा.
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मजेदार यह है कि खारिज करने वाले वही हैं, जो अपनी जिंदगी के हर कुकर्म पर किसी महान शख्सियत का उदाहरण देते हैं. 35 साल भीख मांगने वाला, मां से बर्तन मजाने वाला हट्टा कट्टा डौकीछोडवा भगोड़ा, बुद्ध की तरह धर्मोत्थान और राष्ट्रोद्धार के लिए पत्नी-त्यागी बताया जाएगा.
सारी धूर्तता, छल, डबल स्पीक, बैक स्टेटेबिंग चाणक्य उन्हें पर्सनली सिखाकर गए हैं. बन्धु बांधवों और प्रजा की हत्या की सीख, उन्हें गीता से मिली है.
मने घूम-घूमकर सारे भगवानों और महापुरुषों के तमाम दुर्गुण मिलाकर जो शख्स बने, महामानव वही है. वह आपका हीरो है. तारणहार है.
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क्योंकि वेब सीरीज के युग ग्रे शेड के हीरो का चलन है. झूठा, मक्कार, अपराधी, आपका हीरो हो सकता है. पर इसके रिपरकेशन सोचिये.
आसपास देखिए. व्यापार में धूर्तता है. ऑर्डर लिया, एडवांस लिया, डिलीवरी न दी. फोन करो-तो गाड़ी निकल गयी, माल चढ़ रहा, ड्रायवर छुट्टी पर है, पट्टा टूट गया है. झूठ पर झूठ…और वो बन्दा खुद को चाणक्य समझ रहा है.
चार आदमी का ऑफिस, चार खेमे दिखेंगे. सबकी अपनी राजनीति, किसे गिराना है, किसे फंसाना है. क्या चाल चल लूं. कैसे वादे करके वेतन बढ़वा लूं, किस तरह से लेट आऊं, जल्दी जाऊं. भले ही आने के पहले, जाने के बाद धेले भर का कोई काम न हो.
विशेषतर यूथ, ये इतनी यूजलेस पीढ़ी है कि इनकी जगह किसी मिडिल एज को नौकरी देना पसन्द करता हूं.
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‘बी सेल्फिश, बी रूथलेस’ इनका मंत्र है. सोशल मीडीया, व्हाट्सप स्टेटस पर राम, शिव, ग्वेरा की तस्वीर है. मुंह पर गाली है.
ईमानदारी बेवकूफी है, कर्तव्यनिष्ठा ढोंग है. सुनना मूर्खता, बोलना ज्ञान है, जिसे ये सब नहीं आता, मन लगाकर काम करता है, तो पप्पू है, भोंदू है, बॉस का चमचा है.
ये पहले भी था, पर अब असहनीय स्तर पर है.
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ठहरिए, थमिये जरा. किसे इमिटेट कर रहे हैं. कौन से गुण किससे सीख रहे हैं. अपना देखिए, अपने बच्चो का देखिए.
थोड़े ऊंचे प्रतिमान बनाइये तो सही. निजी जिंदगी में घटिया हीरोज चुनने वाले, नागरिक जीवन में घटिया नेता चुनते हैं, जो एक साथ 130 करोड़ का मुस्तकबिल बंधक बना सकता है.
भले ही अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता, मगर एक मछली, आराम से तालाब गन्दा कर लेती है. आपके मन के, मानस के तालाब को गन्दा करने वाला हीरो नहीं हो सकता. सो प्लीज…चूज योर हीरोज, केयरफुली…!
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राजीव के पास एक मैरून कलर की जोंगा जीप हुआ करती थी. निसान की जोंगा…राजीव खुद चलाते. अक्सर परिवार के साथ…! 1985 में जब वे प्रधानमंत्री बने, तो लगभग 40 की उम्र थी. बच्चे छोटे थे, कई बार उन्हें साथ लेकर निकलते.
इस बार फैमली लेकर नैनीताल आये. पीएम शहर में हो तो कितना भौकाल होगा, सोच लीजिए. प्रदेश का पूरा पुलिस महकमा लगा था. शहर छावनी बन गया.
राजीव को अटपटा लगा. अफसरों को बुलाकर ताकीद की- इतने बजे शहर में निकलूंगा, किसी तामझाम की जरूरत नहीं. हमें नार्मल मूव करने दें.
‘यस सर !’
लेकिन सिक्युरिटी ब्लू बुक के अनुसार, प्रोटोकॉल के अनुसार जो होना है, कैसे छोड़ दें. राजीव निकले, तो देखा…शहर में चप्पे चप्पे पर पुलिस, गाड़ियां. एकदम से तमतमा गए. गुस्सा फूट पड़ा- ‘हू इज इंचार्ज हियर ???’
भन्नाये पीएम के सामने अब इंचार्ज कौन बने ! डीजी, आईजी, डीआईजी सब मौजूद थे लेकिन इंचार्ज के नाम पर जिला एसपी को भेड़ दिया गया. वे गए सैल्यूट किया. अब जो अंग्रेजी में वार्तालाप हुआ, वो यह है –
– क्या मैंने साफ साफ नहीं कहा था कि मुझे इतनी सिक्योरिटी नहीं चाहिए ??
– यस सर !
– फिर भी आपने मेरी बात नहीं मानी
– यस सर !
– क्या प्रधानमंत्री के आदेश की कोई कीमत नहीं
– सर…!
IPS विक्रम सिंह बताते हैं, मैंने कहा –
‘गाइडलाइन के अनुसार प्रोटेक्शन के लिए हमें जो करना है, वो हम कर रहे हैं. इसमें प्रोटेक्टी के भी अधिकार सीमित हैं तो आपको अपनी सुरक्षा हटवाने का कोई अधिकार नहीं.’
राजीव फक्क !!
‘अगर आपकी ड्यूटी का मतलब, मेरा दिन खराब करना है, तो वह आपने बखूबी कर लिया है.’
गुस्से में भनभनाये गाड़ी में बैठे और उल्टे पांव वापस लौट गए. घूमने का प्लान कैसिंल !
अफसरों में जरा भय था. जाने अब क्या होगा. आपस में सलाह की, फिर संदेश गया कि अब सिक्युरिटी कम की जाएगी. वे घूम लें…
अफसरों ने तय किया कि सिक्युरिटी तो फुल रहे मगर वर्दी में लोग न रहे. राजीव भी थोड़ा संयत हो चुके थे. आगे भीमताल का प्लान था, वे निकले…
उन्होंने तो इजाजत बस इतनी दी कि डीएम, एसपी उनके साथ अलग एक गाड़ी में जा सकते हैं. इतना ही काफी था.
कई सिविल कार, मेटाडोर में सशस्त्र पुलिसवाले सादी वर्दी में बैठे. वे आगे आगे चले लेकिन पीएम से ओझल बने रहे. डीएम, एसपी पीछे चले एक जीप में. राजीव परिवार सहित जोंगा में बैठे, और पुलिस का प्लान फेल. जोंगा तो, ये जा, और वो जा…
उस दौर में जब एम्बेसडर और जीप ही भारतीय सड़कों पर राज करती थी. वो 60-65 की स्पीड पर खून फेंकने लगती. जोंगा 120 से अधिक तेज दौड़ने वाली रेस कार समझ लीजिए.
तमाम सिक्युरिटी गाड़ियों के रेडियेटर फूटे, कोई गर्म होकर खड़ी हो गयी. बहरहाल जैसे-तैसे सब भीमताल पहुंचे.
राजीव पहले ही पहुंच चुके थे. भुट्टा खाया, घूमे फिरे. सिक्युरिटी वाले उनके इर्द गिर्द पर उन्हें पता नहीं था. जिनके पास बड़ी बंदूकें थी, कहीं भी ओट में छुपे रहे.
ट्रिप बढ़िया रहा.
वापसी के पहले राजीव ने फिर इंचार्ज को तलब किया. एसपी पहुंचे. राजीव ने चाय पिलाई और कहा –
– सॉरी. यस्टरडे आई फ़ायर्ड अपऑन यू !
उन्होंने एसपी साहब को फैमली बुलाने को कहा. सबके साथ फोटो खिंचाये.
राजीव के 5 साल शानदार रहे. एक कम्प्यूटर छोड़, उनकी लेगेसी पर कभी ज्यादा चर्चा हुई नहीं. पंचायती राज, विदेश नीति, इंदिरा आवास, जवाहर रोजगार योजना, नवोदय विद्यालय, आर्थिक खुलापन, टैक्स सुधार…हर बॉल पे चौका छक्का. राजीव वाज ए ब्रिलिएंट एडमिनिस्ट्रेटर एंड ए इनेक्सपीरियंसड पोलिटीशयन…
वो भारत देश के लिए एक स्वर्णिम दौर था. जिस पर जब भी लिखा बोला गया, वो शाहबानो, तुष्टिकरण, बोफोर्स के कीचड़ से सानकर, बदनीयती से लिखा गया. पर जो उस दौर को जिये हैं, जानते हैं कि जिस धारा पर वो थे…अगर एक पंचसाला और मिला होता, तो देश आज जहां है, वहां से 25 वर्ष आगे होता.
वैसा पीएम दूजा नहीं आया. वे होते तो देश ऐसा बंटता नहीं. भीतर से बिखरता नहीं. समेटने की काबिलियत उनमें थी. लेकिन, उतना वक्त नहीं था.
अपनी सुरक्षा के प्रति बेपरवाही से उन्होंने परिवार को ही नहीं, इस देश के बहुसंख्य बौद्धिक, शांतिप्रिय, विकास चाहने वाले समाज को भी अनाथ छोड़ दिया. वी ट्रूली मिस राजीव…!
- मनीष सिंह
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