‘जेरूसलम की महिमा भी उसकी एक समस्या है’ – उम्बर्तो इको
जूडिया की पहाड़ियों में बसा जेरूसलम, एक मिथकीय मौजूदगी है. कहते हैं कि यह शहर धरती पर भी है और जन्नत में भी. तीन महान धर्मों की हकीकत, कल्पना, सपनों और त्रासदी का चश्मदीद गवाह है जेरूसलम.
5000 सालों में यह कम से कम 2 बार मिटा, 44 बार कब्जाया गया, 52 बार हमला हुआ, 23 बार घेरा गया. यहां की मिट्टी की हर परत में इतिहास की भी परत है. इतिहास का लगातार दोहराव शहर का खास सलीक़ा है. ये दुनिया कैसी थी, ऐसी क्यों है और कैसी होगी, इसे जानने की तलब लगे तो जेरूसलम का इतिहास पढ़ लीजिए.
तकरीबन आगरे की साइज और बरेली जितनी पॉपुलेशन वाला यह शहर, सारी दुनिया का इतिहास समेटे हुए है. शासक, धर्म और राजनीति के कूटनीतिक कॉकटेल से कैसे मंसूबे पूरा करता है, धर्म और राजनीति कब पूरक हो जाते हैं, इसे जानने के लिए जेरूसलम को जानिए.
पश्चिमी धर्म, सनातन धर्म (हिंदू जीवन पद्धति) से किस तरह भिन्न है, उनमें मजहबी अदावतें होते हुए भी समानताएं नज़र क्यों आती हैं, क्या वास्तव में धर्म अफीम है ? इनके उत्तर जानने की जिज्ञासा हो तो जेरूसलम को बांचिए.
इतिहास विषय से सख़्त नफ़रत करने वाला व्यक्ति भी इसे उस रोमांच से पढ़ सकता है जैसे कोई बेस्ट सेलर नॉवेल पढ़ रहा हो. स्कूल में जब तक इतिहास विषय कंपलसरी रहा, शिक्षा प्रणाली को लेकर हमेशा रोष रहा कि जो अब दफ़न हैं उन्हें क्यों पढ़ा जाए? तारीख़ को रटकर क्या मिलेगा ?
पर कॉलेज के बाद पढ़ा तो लगा कामयाब इंसान को इतिहास जानना ही चाहिए. बायोग्राफी पढ़कर एकाधिक जीवन का अनुभव मिलता है. पर बरास्ते इतिहास हम हजारों, लाखों की जिंदगी से होकर गुजरते हैं, दुनिया की तमाम फैकल्टी को साथ लेकर !
महाकाव्य महाभारत, दुनिया के हर रिश्ते और उनके बीच के मोह, प्यार, दांवपेंच, घृणा, बदला आदि के हर पहलू की पड़ताल करता है. प्रत्येक श्रेष्ठतम और निम्नतम कर्म इसमें परिभाषित हुआ है. येरुशलम, इतिहास का ऐसा ही महाकाव्य है, जिसमें तथ्य और किंवदंतियां दोनों हैं.
पवित्र धर्मों, पैगम्बरों और विश्व की आधी से अधिक आबादी के आस्था की भूमि पर नर संहार, भयावह हिंसा, विध्वंस, उन्माद, लूट, झूठ, रंजिश, फयाद, जिहाद, फरेब, धर्मांधता, अंधविश्वास, धर्म की आड़ के प्रपंच, अय्याशी, हवस, सत्ता लोलुपता, उपनिवेशवाद, प्रोपेगैंडा, कूटनीति, स्वार्थी गठजोड़ और बेबसी के सर्ग भी हैं.
जेरूसलम और उसके देश इज़राइल ने मुझे हमेशा आकर्षित किया, यासिर अराफ़ात को जानने से पहले से. जानने के बाद आकर्षण कम हो जाता है, पर इज़राइल के मामले में आप इसका उलट पाएंगे.
आकार में तो भारत से 150 गुना छोटा है, पर तरक्क़ी के पैमाने में मीलों आगे है. मसलन यदि आप इज़राइल में हों तो इसकी पूरी संभावना है कि यहां की तुलना में वहां आप 13-14 साल अधिक जिएं और यहां से 5-6 गुना ज्यादा कमाएं.
जेरूसलम, दुनिया के आगाज़ की ही नहीं अंजाम की दास्तां कहता है. यह दुनिया का केंद्र बिंदु और अस्तित्व में आने वाला पृथ्वी का पहला हिस्सा है.
इसी से दुनिया का विस्तार हुआ, यहीं आदम का सृजन हुआ. यह वही जगह है जहां कयामत के दिन सबका हिसाब होगा और दुनिया के सारे मखलुकात को दुनिया से उठा लिया जायेगा.
स्कूल की उम्र में ही, वर्ण, जाति व्यवस्था से मेरा ख़ासा परिचय था. ‘हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई’ सुन-सुन कर धर्म जान गया था. सरनेम से जाति और धर्म का पता लगा लेता था.
ब्रिटेन और अमेरिका में अधिकतर पेशे आधारित ‘टाइटल’ होते हैं, ऐसा समझ आता था. हां, कभी कभार गुप्ता, श्रीवास्तव, शर्मा जैसे सरनेम भ्रमित करते थे…
पर जिस बात ने मुझे लम्बे समय तक अचरज में डालकर रखा वो ये कि अलग मज़हब होने के बावजूद ‘अब्राहम’ टाइटल मुस्लिम, ईसाई और यहूदी तीनों में कैसे है ? महसूस होता था कि कोई तो डोर है तो इनके बीच !
- राजीव लखेड़ा
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