आरबीआई इतिहास के सबसे विवादास्पक गवर्नर उर्जित पटेल को 2018 में भारी बेइज्जत करके आरबीआई के गवर्नर पद से भगाया गया था. कहने को तो यह है कि उर्जित पटेल ने ‘इस्तीफा’ दिया था लेकिन पहले भी पब्लिक डोमेन में यह बात थी और अब यह कंफर्म हो गया है कि दौलत के लालची मोदी सरकार की लपलपाती जीभ आरबीआई की संचित निधी पर थी, जिसे देने से उर्जित पटेल इंकार कर रहे थे. बस क्या था, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उर्जित पटेल पर इतना दवाब बनाया कि वह ‘इस्तीफा’ देकर अपनी बची-खुची इज्जत बचाया.
कहना न होगा तत्कालीन आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के कार्यकाल को आगे बढ़ाने से ढीठ नरेन्द्र मोदी ने इंकार कर दिया था और एक ‘पालतू बंदर’ उर्जित पटेल को लाकर आरबीआई गवर्नर के पद पर बैठा दिया था. लेकिन कहा जाता है कि योग्य गवर्नर उर्जित पटेल ने नरेन्द्र मोदी के लुटेरी नीतियों का समर्थन करने से इंकार कर दिया था और नरेन्द्र मोदी ने उन्हें ‘सांप’ बताते हुए उनको उनके पद से खदेड़ दिया था.
मोदी सरकार में ही वित्त सचिव रह चुके सुभाष चंद्र गर्ग ने अपनी नई किताब ‘We Also Make Policy’ में दावा किया है कि 14 सितंबर 2018 के दिन जब सरकार और RBI के टॉप ऑफिशियल के बीच बैठक थी, तब इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना आपा खो दिया और RBI गवर्नर उर्जित पटेल को ‘पैसे के ढेर पर बैठा सांप’ बता दिया.
दरअसल सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण खजाना खाली था और सरकार की नजर आरबीआइ की कम से कम एक तिहाई आरक्षित निधियों पर थी- जो लगभग तीन लाख बीस हजार करोड़ थी. उर्जित पटेल ये संचित निधि सरकार को देने से इन्कार कर रहे थे. 14 सितंबर, 2018 को पीएम मोदी की ओर से बुलाई गई एक बैठक के दौरान, पटेल ने एक प्रस्तुति दी जिसमें उन्होंने विनिवेश लक्ष्यों को बढ़ाने समेत कई समाधान दिए थे.
इस बैठक में तत्कालीन रेल मंत्री पीयूष गोयल, अतिरिक्त प्रधान सचिव पी. के. मिश्रा और RBI के डिप्टी गवर्नर भी थे. उर्जित इतिहास में सबसे स्वतंत्र आरबीआई गवर्नर के रूप में जाने जाना चाहते थे. सुभाष गर्ग ने किताब में लिखा है –
‘उर्जित पटेल ने कुछ सुझाव दिये थे. ये सभी सुझाव सरकार के लिए थे, RBI के लिए नहीं- क्योंकि उनके हिसाब से RBI पहले से कदम उठा रहा था. उनका मूल्यांकन कुछ इस तरह था कि RBI उस स्थिति में नहीं है और आर्थिक स्थिति के समाधान और सरकार के साथ मतभेदों को सुलझाने के लिए कुछ नहीं कर सकता है. इसी बात पर पीएम नाराज हो गए. मैंने उन्हें इस तरह पहली बार देखा था. उन्होंने उर्जित पटेल की तुलना पैसे के ढेर पर बैठे सांप से कर दी. क्योंकि RBI के रिजर्व पैसों को वे सरकार को नहीं देना चाहते थे.’
‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने सुभाष गर्ग की किताब का एक हिस्सा छापा है. गर्ग ने लिखा है कि प्रधानमंत्री ने ये बयान दो घंटे तक उर्जित पटेल, तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली और प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा सहित दूसरे अधिकारियों की बातों को सुनने और प्रेजेंटेशन देखने के बाद दिया था. 2 घंटे बाद उन्हें लगा कि कोई समाधान नहीं निकल रहा है. गर्ग ने अपनी किताब में कहा कि केंद्र और आरबीआई के बीच तनाव का असर पीएम मोदी पर पड़ा था, जिन्होंने पटेल को गवर्नर के रूप में चुना था और उनका बचाव किया था.
2018 के साल में आरबीआई ने सरकार को महज 30 हजार करोड़ रुपये का लाभांश दिया था जबकि बजट 66 हजार करोड़ रुपये का था, इसके कारण केंद्रीय वित्त मंत्री को केंद्रीय बैंक से और भुगतान की मांग करनी पड़ी, लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया. आरबीआई के नचिकेत मोर सरकार द्वारा मांगे गए अधिक लाभांश का खुलकर विरोध कर रहे थे लेकिन उन्हें कार्यकाल खत्म होने से पहले ही निकाल दिया. यह भी तात्कालिक विवाद की एक वजह बना.
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ प्रियरंजन दास ने एक लेख में स्पष्ट किया था कि ‘पिछले दिनों मोदी सरकार ने आरबीआई से जो 3.61 लाख करोड़ रुपये मांगे हैं, उसकी कड़ी नोटबंदी के ग़लत फ़ैसले से मिलती है.’ वो बताते हैं कि ‘सरकार आरबीआई से पैसे इसलिए मांग रही है क्योंकि सरकार ये सोच रही थी कि नोटबंदी से वो तीन या साढ़े लाख करोड़ रुपए काला धन पकड़ेगी. यानी ये राशि सिस्टम में वापस नहीं आएगी. सरकार सोच रही थी कि ये राशि वो आरबीआई से ले लेगी. अब वो हुआ नहीं तो सरकार बैंकों की मदद करने के नाम पर आरबीआई से साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये मांग रही है.’ यही बात चिदम्बरम भी कह रहे हैं.
सरकार का कहना है कि दुनिया के दूसरे केंद्रीय बैंक कुल परिसंपत्तियों का 16-18 फीसद रिजर्व में रखते हैं जबकि आरबीआइ 26 फीसद रखता है, हालांकि यह सिर्फ एक परसेप्शन ही बनाया जा रहा है क्योंकि विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसा नहीं है. कई केंद्रीय बैंकों पर किए गए अध्ययन में पता चला कि यह अनुपात चौदह प्रतिशत है.
जबकि आरबीआइ का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना अमेरिका, जापान, चीन से नहीं की जा सकती. यहां के बैंकिंग सिस्टम का बुनियादी ढांचा अभी भी बेहद मजबूत नहीं है. ऐसे में आरबीआइ के पास बड़ा रिजर्व फंड होना चाहिए जिसका इस्तेमाल वित्तीय संकट के काल में किया जा सके जो कि बिल्कुल सही है.
पूर्व वित्तमंत्री चिदम्बरम ने अपने लेख में स्पष्ट किया था कि – ‘रिजर्व बैंक के सालाना अधिशेष सरकार को हस्तांतरित करने के नियम 2013-14 में ही रघुराम राजन द्वारा स्पष्ट कर दिए गए थे. 2013-14 से ही सारा का सारा वार्षिक अधिशेष सरकार को हस्तांतरित कर दिया जाता है. फिर सरकार एक ऐसे मुद्दे को दोबारा क्यों खोलना चाहती है जिसका समाधान हो चुका है.’
लेकिन इसके बावजूद भी उर्जित पटेल पर बेजा दबाव बनाया और अब जाकर यह पता चला है कि सितंबर 2018 में आख़िर हुआ क्या था. बाद में दिसम्बर 2018 मे उर्जित पटेल ने इस्तीफ़ा दे दिया और उनके बाद रिजर्व बैंक गवर्नर बने शक्तिकांत दास ने पालतू होने का धर्म पूरी तरह से निभाया. अंतरिम सरप्लस के रूप में 28,000 करोड़ मोदी सरकार को चुनावी साल में ओर भेंट कर पूरी संचित निधि सरकार के हवाले कर दी.
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