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जुर्म

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जब मैंने
मोटर साइकिल पर रखकर बम फोड़ा
जिसमे दर्जनों इंसान मारे गए
लेकिन मैं डरा नहीं
क्योंकि इस आतंकी करवाई के बाद भी
मेरे धर्म के प्रभावी लोग मेरे साथ खड़े रहें
और मेरे इस अपराध के सम्मान में
मुझे संसद में बैठा दिया

जब मैंने
दर्जनों पहलवानों की छाती पर हाथ मारी
तब भी मैं नहीं डरा
क्योंकि इस अपराध में भी
मेरे जात के प्रभावी लोग और पंडे पुरोहित
मेरे साथ चट्टान की तरह खड़े रहें

जब मैंने और मेरे अन्य दोस्तों ने
एक दूसरे धर्म की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया
और उसके बाकी परिवारों की हत्या कर दी
तब भी मैं नहीं डरा
क्योंकि इस घृणित अपराध में भी
मेरी जाति और मेरे धर्म के प्रभावी लोगों ने
मेरा भरपूर साथ दिया
और जेल से मुझे और मेरे साथियों की
ढोल नगाड़े के साथ रिहाई करवाई

जब मैंने
एक आदिवासी महिला के गुप्तांग मे पत्थर भर दिए
तब भी मैं नहीं डरा
क्योंकि इस बार मेरे साथ पूरी सरकार खड़ी रही
और इसके लिए मुझे राष्ट्रपति ने पुरस्कार भी दिया

लेकिन जब मैंने
न किसी की हत्या की,
न ही किसी का बलात्कार किया,
न किसी के घर डकैती की,
न ही कोई हथियार चलाया
तब मैं थोड़ा डरा
क्योंकि इस बार मैंने कोई अपराध नहीं किया था
लेकिन फिर भी सबने मन ही मन
और कुछ लोगों ने डर कर मुझे अपराधी माना लिया
क्योंकि इस बार एक सरकारी एजेंसी ने मुझे अपराधी कहा था
और ठप्पा लगाया था नक्सल और आतंकवाद का.

इसके बाद लगभग पूरा देश और समाज चुप हो गया
किसी ने न कोई छानबीन कि
ना ही किसी तरह कि कोई जांच पड़ताल
बस अखबार और मीडिया में छपी हेडलाइंस को सच मान लिया.

सबसे ज्यादा अफ़सोस इस बात हुआ कि
जिस समय मैंने कोई जुर्म नहीं किया था
उस समय
न तो मेरे जात के लोग मेरे साथ खड़े हुए
ना हीं मेरे धर्म के लोगों ने मेरे पक्ष में कोई रैली निकाली
सब बस चुप थे
क्योंकि उन्हें भी डर था कि अगर वो मेरे पक्ष में बोलें तो
बिना जुर्म के अपराधी बना दिए जाएंगे.

  • अनुपम कुमार

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