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अगर वो मेरी बेटी होती…

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अगर वो मेरी बेटी होती
तो उसकी टूटी हुई
रीढ़ की हड्डियों पर
कोई कविता नहीं लिखता

अगर वो मेरी बेटी होती
तो उसकी धर्षित देह पर
कविता लिखने के पहले
मर चुका होता

अगर वो मेरी बेटी होती
तो कोमा में जाने से पहले
एक बार मुझे देख कर पूछती
बाबा,
क्या इसी दिन के लिए
बुझाई थी तुमने बत्तियां
मेरी मां को वासना मय
आलिंगन में लेने से पहले ?

प्रेम की परिभाषा को
बदलती हुई उसकी
सवाल भरी आंखें
क्या जवाब देता मैं
उस शीत ताप नियंत्रित कक्ष में
जहां लिखी जाती हैं
रोज़ नई परिभाषाएं

आदमी
किसी जन्नत का सपना नहीं है मेरी बिटिया
आदमी
बस एक उत्तीर्ण लिंग है

औरत बस एक छेद है
शुगर रोगी की आंखों की
रेटिना में बने
काले गह्वर की तरह

इस की तरफ़
स्वत: आकर्षित होती है
रोशनी
इतिहास
और, वर्तमान

तुमने
अपने आप को आईने में देखते हुए
जिस दिन पूछा था मुझसे
बाबा
मेरी भी शादी होगी क्या
मैं समझ गया था कि
तुम भी समझ चुकी थी
चेहरे और उसके
अक्स के बीच की दूरी को

तुम्हारी मृत्यु के बहुत पहले
मर गई थी तुम
जिस अकाल मुहुर्त में
मेरे और तुम्हारी मां के मन में
जागा था प्रेम
जंगली अमर बेल की तरह
थेथर
और शाश्वत

किसी मुआफ़ी के क़ाबिल नहीं हैं हम
बिटिया मेरी

  • सुब्रतो चटर्जी

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ROHIT SHARMA

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