लाख बुरे थे अंग्रेज मगर.., अब इसके आगे कोई भी मजेदार जुमला बनाया जा सकता है. पर कभी आपने सोचा कि अंग्रेज बुरे क्यों थे ?? क्या यह सच नहीं की भारत को समग्र रूप से सकारात्मक बदलाव देने वाला रेजीम कोई था, तो वह अंग्रेजों का था.
पहली बात तो ये कि 600 से ज्यादा रियासत और सम्पूर्ण हिंदुस्तान को जोड़कर, एक अंगूठे के नीचे लाने का काम, मौर्य और औरंगजेब के अलावे किसी ने किया तो वे अंग्रेज थे. मौर्य और औरंगजेब की लेगेसी तो बिखर चुकी थी, समेटकर उन्होंने हमें हस्तगत किया.
दूसरा- रेल, कारखाने, बिजली, नहर, सड़क, संचार, पोर्ट, पुलिस, प्रशासन, योरोपियन शिक्षा प्रणाली, सेना, संविधान…, सब कुछ एक प्रारंभिक स्वरूप में डेवलप करके उन्होंने दिया.
तीसरा- वे डेमोक्रेटिक थिंकिंग के लोग थे. वो खुद एक पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी के नीचे थे, तो अफसर चाहे जितने क्रूर हो, उनकी हदें तय थी. जलियावाला बाग कांड करने वाला डायर, मामले की जांच के बाद सेवा से बर्खास्त किया गया था.
आप सोचिये की अगर जर्मन या फ्रेंच होते ! रातोरात गांधी, नेहरू, सुभाष कहां उठाकर गायब कर दिये जाते ! नागरिक नरसंहार करके सामूहिक कब्रों में लोग दबा दिए जाते.
गांधियन मूवमेंट इसलिए चल सका क्योंकि सामने ब्रिटिश थे. जो नेगोशिएट करते थे. कभी किसी देश के विद्रोही लीडर को बकिंघम पैलेस में सम्मान से चाय पिलाई गई हो, यह इज्ज़त तो बेंजामिन फ्रेंकलिन को भी नहीं मिली.
तो अंग्रेज बुरे न थे, फिर हम क्यों उन्हें नफरत करते हैं. विदेशी थे, इसलिए…?? हां, एक कारण तो यह अवश्य है. पर एक और कारण था, जिसकी वजह से हमारे फोर-फादर्स अंग्रेजों को उखाड़ फेंकना चाहते थे. वो कारण था- कीमत.
अंग्रेजी राज, आर्थिक शोषण का राज था. विकास तो हुआ, मगर अविश्वसनीय ठेकों पर. यहां जो रेल बनी, यूरोप की रेलों से 5 गुना कीमत दी गयी. वही ब्रिटिश कम्पनी यहां असल लागत से कई गुना कीमत पर काम करती.
हर एक विकास का शोकेस, जो अंग्रेजो के दौर में आया- उसकी कीमत आम हिंदुस्तानी देता था. पांच, दस, बीस गुनी कीमत देता था.
अंग्रेज रजवाड़ों से प्यार से पेश आते. उद्योगपतियों और ठेकेदारों को फेयर ट्रीटमेंट देते. आम जनता को हिन्दू मुसलमान पॉलिटिक्स में उलझाए रखते.
कभी उन्होंने कांग्रेस बनाई थी तो मुसलमान मुखरता के विरुद्ध हिन्दू तुष्टिकरण करने को. रजवाड़ों के सामने प्रजा को खड़ा करने को. मगर एक समय के बाद जब कांग्रेस हाथ से निकल गयी, तो वह यह खेल हिन्दू महासभा औऱ मुस्लिम लीग के जरिये खेलने लगे.
हिन्दुओं को बांटने के लिए दलित कार्ड भी खेला. दरअसल अंग्रेजों का लाभ, भारतीय समाज के एक होने में नहीं, उसके बंटे होने में था.
आप अक्सर डायरेक्ट एक्शन और दंगों का दोष वहां की हिन्दू-मुसलमान कम्युनिटी को देते हैं. क्यों नहीं सोचते कि राज दरअसल किसका था ?? वो चाहता क्या था ?? दंगे रोकना…या चलने देना !!!
ठीक से देखिए, क्या आज का रेजीम ठीक वही अंदाज नहीं अपना रहा ?? वही विभाजन, वही सामाजिक ताने-बाने में तोड़फोड़ ताकि सत्ता बरकरार रहे. और सत्ता का लाभ महंगे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के माध्यम से अपनों-अपनों को दिया जाये, विरोध करने वाले को जेल, मुंह बंद.
आज जो लोग कर्ज लेकर बनी महंगी रोड की फोटो डालकर विकास दिखाते हैं, जो बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी की फोटो दिखा-दिखा कर विभाजन, दंगे, शोषण, मक्कारी और चोरी को जस्टिफाई करते हैं, उनसे पूछिए. फिर भला अंग्रेज बुरे क्यों थे ??
- मनीष सिंह
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