Home कविताएं पुष्पराज की कविताएं : हमारी क्षय हो !

पुष्पराज की कविताएं : हमारी क्षय हो !

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Puspa Rajपुष्पराज

सरकार के साथ सहकार करिए
और पूछिए कि सवाल क्या है ?
एक मुख्यमंत्री के लजीज बनिए
और कहिए कि युद्ध जारी है
जनता गोली दाग रही है
रेल पटरी से उतर चुकी है
और आप कह रहे हैं कि
स्त्रियों के नाम बदलने से क्रांति नहीं रुकती !

हिंदी कभी पिछड़ों की भाषा नहीं थी
पिछड़े आप हैं
जो जेल में बंद होकर
‘वोल्गा से गंगा’ लिखने की हिम्मत नहीं करते

पिछड़ा वह कवि है
जो महान राहुल सांकृत्यायन की विरासत
‘जादूघर’ की हिफाजत में खड़ा होने से डरता है
और हम निरापद को सीआईए का एजेंट कहता है !

सिर्फ दंगे कराना ही अपराध नहीं है
भरम फैलाना
प्रतिरोध, विद्रोह की गर्दन दबाना भी अपराध है.

एक मुख्यमंत्री के चारण
जिस हिंदी के विप्लवी कवि हों
उस हिंदी की जय हो,जय हो
हम अवारे की क्षय हो,क्षय हो !

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प्रगतिशील जो गतिशील होकर
मिलन सम्मेलनों में व्यस्त हैं
हिन्दी के चतुर्थ सप्तक को
हाथी पर चढ़ाकर घुमानेवाला प्रगतिशील
निकाल बाहर हुआ है.

कम्युनिस्टों के हत्यारे
तस्कर सम्राट के पुत्र के साथ खड़ा होने वाला
गतिशील लेखक संघ का मालिक है.
मालिक और मैनेजर में वर्चस्व का युद्ध छिड़ा है.

लेखक संगठन को धंधा बनाने वाले
जो राहुल सांकृत्यायन की विरासत के रक्षक नहीं
विरासत के भक्षकों के रक्षक हैं
उन चतुर-सुजान चालबाजों को पहचानो साथी !
धंधेबाज, चालबाज और मक्कारों को
किसी मुख्यमंत्री के आजू-बाजू सजाओ साथी !

जनता एक संगठन है
जुल्म एक दुःख है
विस्थापन एक त्रासदी है
विस्थापन नर्मदा का
या विस्थापन सुन्दरवती यक्षिणी का
विस्थापन के खिलाफ
जुल्म के खिलाफ होना
प्रतिवाद और प्रतिरोध
मानव धर्म है साथी

तो लेखक, कवि, पत्रकारों का धर्म समझो साथी !
अपनी-अपनी असल बचाओ साथी !!

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