फर्क

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आखिर तुमने भी मान
लिया कि नक्सली सिर्फ वही नही होते
जो तुम्हारे खिलाफ सशस्त्र संघर्ष कर रहे है
एक नई दुनिया का सपना देख रहे है
तुम्हारी नजरों में तो नक्सली वो बच्चा भी हो सकता है
जो पहला दिन ही स्कूल गया हो
और टीचर से कोई सवाल पूछ दे
वो नौजवान भी हो सकता है
जो बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठा दे
वो किसान भी हो सकता है
जो फसल का उचित दाम न मिलने पर सड़क जाम कर दे

सच में इस देश में नक्सली
कोई भी हो सकता है
बस वो सच और झूठ का
फर्क करना जान जाएं
और तुम्हारे (राज्य सत्ता) हां में हां
मिलाने से इंकार कर दे
जैसे आदिवासी कर रहे हैं
जैसे दलित कर रहे हैं
जैसे मुसलमान कर रहे हैं
यहां तक की मजदूर-किसान और छात्र-नौजवान भी कर रहे हैं

पर सुनो वो भी तुम्हें कुछ कह रहे हैं
तुम्हारे अंधराष्ट्रवाद के गुब्बारे में
अपनी बातो से छेद कर रहे हैं
जिसमे राष्ट्र के नाम पर सिर्फ
कुडा-करकट भरा है
जिसे बहुत पहले ही हमे फेंक देना चाहिए था
पर अब फेंक रहे हैं
और राष्ट्रवाद की परिभाषा
फिर से तय कर रहे हैं

जिसमें जनता को कुछ भी कह लो
वो देशद्रोही नहीं होती
और देशद्रोही को कुछ भी कह लो
वो देशप्रेमी नहीं होगा
ये बात हम समझ गए हैं
और समझा रहे हैं
देशप्रेम का एक नया गीत गा रहे हैं

अब इससे कोई फर्क नहीं पडता कि
तुम हमें क्या कह रहे हो ?
अब फर्क इससे पड़ता है कि
हम तुम्हें क्या कह रहे हैं ?
इसका असर देखना हो तो देखा लो
उन बगावतों में
जहां उम्मीद कि किरण झिलमिला रही है
इंकलाब कि आवाज आ रही है

  • विनोद शंकर

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