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‘अडानी के महा-घोटालों की जांच करो’ – क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा

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‘एक राजा था. उसकी जान एक तोते में बंधी थी. तोते की टांग टूटती, तो राजा की भी टूट जाती…’ , बचपन में दादियों के सुनाए ये किस्से हम सभी ने सुने हैं. पिछले एक साल में, अडानी के काले कारनामों के जो काले चिट्ठे उजागर हुए हैं, और उनके अख़बारों की सुर्खियां बनते ही जिस तरह मोदी सरकार, अडानी से ज्यादा बेचैन हुई है, उससे साबित होता है कि मोदी सरकार की जान वाक़ई अडानी समूह के साथ बंधी हुई है.

इसी साल, 24 जनवरी को प्रकाशित हुई ‘हिंडेनबर्ग रिपोर्ट’ ने अडानी समूह के घोटालों को नंगा कर के रख दिया था. साबित कर दिया था कि अडानी-बंधुओं का पूंजी का काला साम्राज्य किस क़दर नंगई से, पहले, गुजरात राज्य सरकार और बाद में केंद्र की मोदी सरकार की मिलीभगत, संरक्षण, प्रोत्साहन, बे-ईमानीपूर्ण लिप्तता के सहारे खड़ा हुआ है.

क्रिकेट के खेल में, जैसे अंतिम ‘स्लॉग ओवर्स’ में यह जानकर कि मैच तो अब ख़त्म होने वाला है, जितने बटोर सकें उतने रन बटोर लिए जाएं, बल्लेबाज़ अंधाधुंध बल्ला घुमाता है; बिलकुल उसी तरह, पूंजीवाद के ये अंतिम ओवर हैं, जिनमें बॉलर और अंपायर की मिलीभगत से, अडानी धुआंधार बल्लेबाज़ी कर रहा है.

‘हिंडेनबर्ग रिपोर्ट’ ने, अडानी के काले कारनामों की सच्चाई तो अकाट्य तरीक़े से उजागर कर दी थी, जिसके परिणामस्वरूप उसके शेयर भरभराकर गिरे थे, लेकिन उस रिपोर्ट में सबूत प्रस्तुत नहीं किए गए थे. ‘आपको सबूत चाहिएं तो अदालत में हमारे ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़दमा दायर करो, सबूत हम अदालत में ही प्रस्तुत करेंगे’, यह कहा गया था.

‘आर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट OCCRP’, दुनियाभर के 100 प्रतिष्ठित पत्रकारों का एक साझा मंच है, जो दुनियाभर के साम्राज्यवादी लुटेरों द्वारा किए जा रहे घोटालों की जांच करता है. उनकी सभी खोजी रिपोर्टें, तथ्यों, सबूतों पर आधारित होती हैं, इसलिए विश्वसनीय होती हैं. दुनिया के नामचीन अख़बार जैसे गार्डियन, फाइनेंसियल टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट आदि उनकी रिपोर्ट को ख़रीदकर छापते हैं. दुनियाभर के शेयर बाज़ार उनसे प्रभावित होते हैं. उसी ओसीसीआरपी की 31 अगस्त की रिपोर्ट के अनुसार –

‘दो व्यक्तियों, संयुक्त अरब अमीरात के नासिर अली शाहबान अली तथा ताइवान के चांग चुंग लिंग, गौतम अडानी और मारीशस के नागरिक, उनके बड़े भाई विनोद अडानी के काले कारोबार में, लम्बे समय से साझेदार तथा उनकी अनेक कंपनियों में डायरेक्टर रहे हैं. यह गिरोह, मारीशस फण्ड/ बरमूडा फण्ड नाम की बेनामी कंपनियों के माध्यम से, लम्बे समय तक, अडानी समूह की कंपनियों के शेयर ख़रीदकर, उनके दाम बढ़ाने का फर्जीवाड़ा करता रहा है.

‘इस फर्ज़ीवाड़े से बेशुमार मुनाफ़ा कूटा गया है. इस गोरखधंधे की ‘सलाहकार’, विनोद अडानी की कंपनी है, जो अपनी ‘बहुमूल्य सलाह’ द्वारा मनमाना धन लूटती आई है. इतना ही नहीं, नासिर अली शाहबान अली तथा ताइवान के चांग चुंग लिंग के मालिकाने की बेशुमार दौलत वाली कंपनियों का काम, खुद, विनोद अडानी के कर्मचारी देखते हैं. इसलिए यह कहना मुश्किल है कि इस विशाल धन का असली मालिक कौन है, कौन, किसके लिए काम कर रहा है.’

ओसीसीआरपी रिपोर्ट बताती है –

‘सेबी एक्ट 1992 के अनुसार, किसी भी सूचीबद्ध कंपनी के, कुल शेयर का कम से कम 25%, पब्लिक को ख़रीदने के लिए उपलब्ध रहना ज़रूरी है, लेकिन अडानी कंपनियों में जाने कितनी बार, यह 10% से भी नीचे रहा है, मतलब कंपनी के मालिकों और उनके लगुए-भगुओं ने ही सारे शेयर ख़रीद लिए, जिसके परिणामस्वरूप अडानी के शेयर, पिछले 5 सालों में 1000% तक बढ़े.’

फाइनेंसियल टाइम्स, उसी रिपोर्ट के आधार पर आगे लिखता है कि भारत में शेयर बाज़ार सम्बन्धी सरकारी निगरानी व्यवस्था ठप्प पड़ चुकी है. उनका इशारा 2011 से 2017 तक सेबी के चेयरमैन रहे यू के सिन्हा की ओर है, जिन्होंने अडानी को क्लीन चिट देकर, सेबी की चेयरमैनी छोड़ दी और अडानी की कंपनी एनडीटीवी में डायरेक्टर बन गए. मतलब, सेबी में अडानी के अप्रत्यक्ष नौकर होने की बजाए, प्रत्यक्ष नौकर बन गए !!

अडानी ने एक बयान ज़ारी कर कहा, कि यू के सिन्हा की ‘निष्ठा’ बेदाग़ है, उसपर ऊंगली नहीं उठाई जा सकती !! उन पर क्या, अडानी के दरबार में जो भी है, मनुष्य या जानवर, सब के सब हीरे हैं, किसी की भी निष्ठा पर प्रश्नचिन्ह नहीं !! ऊंगली उठाकर, कौन तुड़वाएगा भला अपनी ऊंगली !!!

रिपोर्ट ने आगे, यू के सिन्हा की निष्ठा का ख़ुलासा भी किया है. जनवरी 2014 में, अर्थात मोदी-काल वाली ‘असली आज़ादी’ मिलने से महज़ 3 महीने पहले, दो सरकारी एजेंसियां, अडानी के शेयर बाज़ार घोटालों की जांच कर रही थी. राजस्व ख़ुफ़िया निदेशालय (DRI) ने सेबी को लिखा कि वे अडानी के शेयर फर्जीवाड़े की जांच कर रहे हैं. पत्र के साथ एक सीडी भी भेजी गई थी, जिसमें अडानी के पॉवर प्रोजेक्ट्स के लिए मंज़ूर क़र्ज़ की रक़म को, शेयर बाज़ार की ओर मोड़कर, उसे शेयर हेराफ़ेरी में इस्तेमाल होने की प्रक्रिया के सबूत मौजूद थे.

मई 2014 में, मतलब ‘अमृतकाल’ आने से बस चंद रोज़ पहले, राजस्व ख़ुफ़िया निदेशालय ने, अडानी से वसूली का एक नोटिस भी सेबी को भेजा था. मोदी राज़ आने के बाद, वह जांच यू के सिन्हा ने संभाल ली और 3 साल में वह जांच पूरी कर, अडानी को बेक़सूर पाया !! निष्ठा हो तो यू के सिन्हा जैसी !! कुछ लोग खामखां, अडानी द्वारा अपना नया-कोरा हवाई ज़हाज़ तेल समेत, मोदी जी को 2014 के लोक सभा चुनाव प्रचार के लिए, दिए जाने पर सवाल उठाते हैं !! मोदी जी के चुनाव जीतने पर, अडानी का सब कुछ दांव पर लगा था !!

फ़ासीवादी स्वरूप इख़्तियार करने के बाद पूंजीवाद का जलवा देखिए कि 31 अगस्त को, ठोस, लिखित, दस्तावेज़ी सबूतों के साथ आई, ऐसी जान-लेवा रिपोर्ट के बाद भी, अडानी के शेयर मात्र 2% गिरे, बल्कि एसीसी का शेयर तो उसके बाद भी बढ़ा था !! अडानी के दोस्तों, ताबेदारों के हाथ कितने लंबे-चौड़े हैं, शेयर बाज़ार को अच्छी तरह मालूम है !!

‘हिंडेनबर्ग रिपोर्ट’ आने के बाद से ही अडानी फर्ज़ीवाड़े की जांच के आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं. वह मामला अपनी अदालती गति से चल रहा है, और जब तक अडानी चाहेगा, यूँ ही अनंत काल तक चलता रहेगा या खुद अपनी मौत मर जाएगा. अडानी को, 31 अगस्त वाली रिपोर्ट के आने की भनक लग गई थी. सेबी और अडानी, मतलब दो जिस्म एक जान !! इसीलिए सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम रिपोर्ट दाख़िल की थी.

अडानी ने ‘हिंडेनबर्ग रिपोर्ट’ को देश पर हमला बताया था और उनकी इस घोषणा के बाद, भाजपा की ट्रोल आर्मी उसे देश पर हमला बताने में ही पिल पड़ी थी. ओसीसीआरपी की इस रिपोर्ट को उसने पहली रिपोर्ट का नया संस्करण बताया है और इसे बकवास बताया है.

अडानी के विदेश साझेदारों का तार्रुफ़

नासिर अली शहबान अली : 2007 में, राजस्व ख़ुफ़िया निदेशालय ने गौतम अडानी के अवैध हीरा व्यापार की जांच की थी. उस फर्ज़ीवाड़े में भी संयुक्त अरब अमीरात की सलाहकार कंपनी, ‘अल जवाडा ट्रेड एंड सर्विसेज’ के डायरेक्टर, नासिर अली शहबान अली का नाम आया था.

ओसीसीआरपी रिपोर्ट के अनुसार, यह अली, खाड़ी स्थित कंपनी ‘गल्फ आरिज़ ट्रेडिंग एफ़ज़ेडई (यूएई)’ नाम की कंपनी का मालिक है, जो मारीशस स्थित कंपनी ‘मिड ईस्ट ओसियन ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट’ कंपनी के मुनाफ़े को हथियाने वालों में प्रमुख हिस्सेदार है.

‘गल्फ एसिया ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट’ (ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड्स) को नियंत्रित करने वाली कंपनी भी उसी की है. ये सारी कंपनियां, आपसी तालमेल द्वारा विशालकाय धन को देश से बाहर ले जाकर, विभिन्न ठिकानों पर घुमा-फिराकर देश में वापस लाती रही हैं, और इस कलाबाज़ी का अंजाम, अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों द्वारा, धन-वर्षा में हुआ, जिससे अडानी, दुनिया के लुटेरों की लिस्ट में दूसरे नंबर पर पहुंच गया.

क्वार्टज़ पत्रिका की रिपोर्ट के मुताबिक़ यह अली, दुबई में ‘अडानी वाला अली’ नाम से मशहूर है, जिसने 2009 में भी एक कंपनी बनाई थी, जिसे उसने विनोद अडानी को बेच दिया. फर्जीवाड़े की इन कंपनियों की खुदाई में और गहरा जाएंगे तो सर चकराने लगेगा!!

नासिर अली शहबान अली, अरब का मुसलमान है. अडानी की ठगी का एक अहम और पुराना षडयंत्रकारी है. मेवात के उत्पातियों, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल को इससे कोई आपत्ति नहीं. हिन्दू-मुस्लिम एकता द्वारा ठगी हो रही हो, लाखों करोड़ की कर चोरी का फर्जीवाड़ा हो रहा हो, तो भगवा ब्रिगेड को कोई आपत्ति नहीं !! बस मेहनतक़श हिन्दू-मुस्लिम एक नहीं होने चाहिएं !! देश के किसान-मज़दूर जब हिन्दू-मुस्लिम में बंटने से इंकार करते हैं, तब ही इस भगवे कुनबे के पेट में हौल क्यों होने लगती है ?

चांग चुंग लिंग : अडानी के इस घोटालेबाज साझेदार की प्रोफाइल तो और भी धांसू है !! अडानी और लिंग की यारी और भी पुरानी है. उसका पहला परिचय है कि वह ‘गुदामी इंटरनेशनल’ का डायरेक्टर था. अडानी द्वारा, 2002 में रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज में दायर रिटर्न के अनुसार, गुदामी इंटरनेशनल, अडानी इंटरप्राइजेज की सहायक कंपनी है. मतलब साफ़ है, अडानी नाम का अपना गुजराती भाई, सच में, वसुधैव कुटम्बकम में विश्वास करने वाला महापुरुष है !!

अगुस्टा वेस्टलैंड नाम के मंहगे हेलिकॉप्टर ख़रीदी में भी एक भारी घोटाला हो चुका है. उस फ्रॉड में 2018 में जिन कंपनियों के लिप्त होने का पता चला था, उनमें अडानी-लिंग वाली यह कंपनी गुदामी इंटरनेशनल भी थी. गुदामी इंटरनेशनल ने, ‘मोंटेरोसा इन्वेस्टमेंट होल्डिंग’ नाम की एक विशालकाय निवेश कंपनी में भी विशालकाय निवेश किया हुआ है, और इन दोनों कंपनियों ने मिलकर ‘टीम भावना’ के तहत अडानी की अनेक कंपनियों में कुल 4.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया हुआ है !!

लिंग साहब ने, ‘ग्रोमोर ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट’ में भी भारी निवेश किया हुआ था. वे, दरअसल जो भी करते हैं, भारी ही करते हैं !! यह कंपनी 2011 में अडानी पॉवर नाम के महासागर में समा गई और समाने की इस प्रक्रिया में अडानी-लिंग जोड़ी को फ़क़त 423 मिलियन डॉलर का मुनाफ़ा हुआ. अडानी और लिंग, दोनों भाई, जिसे भी छू लेते हैं सोना हो जाता है !!

पता नहीं क्या रहस्य है कि असंख्य कंपनियों में जहां मुनाफ़े की दर लगातार गिरती जा रही है, अडानी-लिंग की कंपनियों में मुनाफ़ा हमेशा छप्पर-फाड़ ही होता है !!! चांग चुंग लिंग का बेटा, चांग चिंग टिंग, बाप से भी ज्यादा होनहार है !! बेटे की कम्पनी, ‘पीएमसी प्रोजेक्ट्स’ और अडानी की कंपनियों में भारी लेनदेन चलता रहता है. टिंग, अडानी की ओर से इंटरनेशनल कांफ्रेंस भी भागीदारी भी करता है.

सेबी ने जो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल की है, उसमें कहा है कि उसने लिंग के बेटे टिंग की कंपनियों की छानबीन भी की है, लेकिन छानबीन में छनकर क्या बाहर निकला, इसका ख़ुलासा नहीं किया. इसका मतलब टिंग भी लिंग की तरह पाक़ साफ़ ही पाया गया होगा !! अडानी-लिंग-चिंग की यारी इतनी गाढ़ी है कि तीनों सिंगापूर में एक ही घर में निवास करते हैं !!

‘फ़ासीवादी सत्ता भयानक लेकिन अस्थिर होती है’

अडानी को जब भी चोट पहुंचती है, अडानी से ज्यादा दर्द भाजपा और व्यक्तिगत रूप से मोदी को होता है. ‘हिंडेनबर्ग रिपोर्ट’, 24 जनवरी को प्रकाशित हुई थी. ‘ये देश पर हमला है’, अडानी से भी ज्यादा शोर भाजपाईयों ने मचाया था. इतने बड़े घोटाले के उजागर होने पर भी, अडानी को डूबने से बचा लिया गया.

31 अगस्त को आई ‘ओसीसीआरपी’ रिपोर्ट, ठोस दस्तावेज़ी सबूतों के साथ आई है. जिस दिन इस रिपोर्ट से तहलका मचना था, उसी दिन, ‘एक देश एक चुनाव’ का जुमला उछालकर, दरबारी मीडिया के गले का पट्टा खोल दिया गया. रिपोर्ट पर चर्चा पीछे धिकल गई. जैसे जनवरी महीने में जांच के आदेश हुए थे, वैसे ही इस बार भी जांच के आदेश हो जाएंगे.

जब ईडी जैसी जांच एजेंसियां अडानी के विरुद्ध कुछ नहीं कर रहीं, तो सेबी जैसी निरीह संस्था क्या जांच करेंगी. संसद में हल्ला मचेगा, उसका भी फ़ायदा सत्ताधारी दल उठाएगा, जैसे पहले जेपीसी की मांग के दौरान उठाया था. अधिकतर दिन संसद नहीं चलेगी और आखरी दो घंटे में सारे प्रस्तावित काले क़ानून पास करा लिए जाएंगे.

ये है, आज सत्ता का असली स्वरूप. मेहनतक़श किसान-मज़दूर वर्ग की तो जाने दीजिए, उनकी ये क्यों चिंता करेंगे, लेकिन क्या ये सत्ता, आज, पूंजीपति वर्ग के औसत हित की चिंता कर रही है ? शासक वर्ग ने, अपनी सत्ता को सुचारू रूप से चलाने के लिए, जो नियम क़ानून बनाए हैं, क्या उन्हीं को पैरों तले नहीं कुचला जा रहा ?

‘खेल’ के क़ानून तोड़ने वाले, सरमाएदार को दंडित करना और सभी सरमाएदारों को अपने व्यवसाय करने के लिए समान धरातल मुहैय्या कराना, मौजूदा सत्ता की ज़िम्मेदारी है. यह मज़दूर वर्ग के हित में नहीं, बल्कि मालिक वर्ग के हित में है. क्या उसका कोई सम्मान हो रहा है ? उत्तर है नहीं.

इस बिन्दू की और गहन विवेचना की जाए तो निष्कर्ष निकलेगा कि ‘खेल’ के अपने बनाए नियमों, क़ानूनों का पालन नहीं हो रहा, मतलब सत्ता ख़ुद को कमज़ोर करती जा रही है. अस्थिर करती जा रही है. पूरे का पूरा तंत्र, जिन चार खम्बों पर स्थिर खड़ा था, वे खोखले होते जा रहे हैं.

अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन के नेता, जेओर्जी दिमित्रोव ने बिलकुल सही कहा था, ‘फासीवादी सत्ता भयानक लेकिन अस्थिर (ferocious but unstable) होती है’. फ़ासीवादी सत्ता, बुर्जुआ मापदंड से भी, हर रोज़ कोई ना कोई अपराध कर रही होती है. इसीलिए उसे सवाल नहीं चाहिएं, बोलने की आज़ादी देना मंज़ूर नहीं, अधिक से अधिक दमनकारी काले क़ानून चाहिए. हर रोज़, नया झांसा चाहिए.

इस प्रक्रिया के साथ साथ ही, लेकिन, एक और काम हो रहा है. सत्ता का असली कुरूप चेहरा लोगों को स्पष्ट नज़र आ चुका है. जिस बात को लोग सुनने को तैयार नहीं होते थे, उसी बात को अब वे दूसरों को समझा रहे होते हैं. भगवा ब्रिगेड, जो दिवाली से पहले चीनी झालर का बहिष्कार कर चीन को सबक़ सिखाने का पाखंड रचती है, उसे लिंग और टिंग के साथ मिलकर, अडानी की लूट से, कोई तक़लीफ़ नहीं !!

ग़रीब पशुपालकों को हिंदुत्व के लिए ख़तरा बताकर, उनपर गिद्धों की तरह टूट पड़ने वाले, हिंदुत्व के शूरवीरों को, अरबी, नासिर अली शहबान अली की ठगी से कोई समस्या नहीं !! क्या किसी ने संघ परिवार के किसी अंग द्वारा अडानी के विरोध में कोई शब्द सुना ? किसे दोष दें ? इतने ठोस सबूत मिलने, मोदी और अडानी, दोनों के रंगे हाथों पकड़े जाने, नंगई उजागर हो जाने के बाद भी, हम कुछ नहीं कर पाए, सारी दुनिया हैरान है !!

  • इंडियन एक्सप्रेस, 1 सितम्बर से साभार

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