अभी खबर आई है कि केन्द्र की मोदी सत्ता के रखवाले एनआईए भगतसिंह स्टूडेंट्स मोर्चा, बीएचयू के ऑफिस पर छापा मार रही है. इलाहाबाद में भी पीयूसीएल की उत्तर प्रदेश राज्य सचिव और मानवाधिकार कार्यकर्ता सीमा आजाद व उनके जीवनसाथी एडवोकेट विश्व विजय, एडवोकेट सोनी आजाद, सामाजिक कार्यकर्ता रितेश विद्यार्थी, लेखक मनीष आजाद के घर पर भी एनआईए द्वारा छापा मारा गया है.
अब तक जो खबर मिल पाई है उसके अनुसार सीमा, विश्वविजय, सोनी और रितेश को एनआईए अपने कहीं साथ ले गई है, जिसकी जानकारी नहीं मिल पा रही. खिरियाबाग, आजमगढ़ आंदोलन व संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल साथी राजेश आजाद के देवरिया जिले में स्थित उनके घर पर भी एनआईए टीम छापा कर रही है. ये फासीवादी सत्ता हर उस सर उठाए इंसान से डरती है, जिनके अंदर सच बोलने, लिखने और सच के लिए लड़ने का साहस है.
इसी तरह पिछले अगस्त माह में आदिवासी साहित्यकार विनोद शंकर और उनके परिवार को गत 7 अगस्त से बिहार पुलिस प्रताड़ित कर रही है. विदित हो कि आदिवासी साहित्यकार विनोद शंकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र हैं. उन्होंने वहां से इतिहास में ऑनर्स और परास्नातक की डिग्री ली है. वे पूर्व में भगत सिंह छात्र मोर्चा के सचिव भी रहे हैं.
उन्होंने भगत सिंह के बताए रास्ते पर चलते हुए अपना जीवन उत्पीड़ित जनता के लिए समर्पित कर दिया है. वे एक कवि और लेखक होने के साथ-साथ सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता भी हैं. हाल ही में जब बिहार सरकार ने आदिवासियों की जीविका के एक महत्वपूर्ण श्रोत महुआ को मादक पदार्थ घोषित कर उसे प्रतिबंधित कर दिया तो उन्होंने 6 महीने शोध करके एक महत्वपूर्ण पुस्तिका ‘महुआ मद्य नहीं, खाद्य और औषध है’ लिखा. बस क्या था नीतीश कुमार की पुलिस ने उन्हें माओवादी घोषित कर दिया और फर्जी मुठभेड़ में हत्या करने का ऐलान कर दिया.
विदित हो कि साहित्यकार विनोद शंकर आदिवासी समाज से आते हैं और अपने गांव के एकमात्र उच्च शिक्षा प्राप्त युवा हैं. उन्होंने बीएचयू से परास्नातक की पढ़ाई पूरा करने के बाद अपने गृह जिले कैमूर को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और आदिवासियों की समस्याओं को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिये जिसके बाद वे कैमूर मुक्ति मोर्चा, कैमूर के कार्यकारिणी सदस्य बन गए.
कैमूर मुक्ति मोर्चा की स्थापना मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. विनयन ने किया था. यह संगठन पिछले 40 सालों से जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ रहा है. कैमूर मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में विनोद शंकर और उनके साथी आदिवासी बहुल कैमूर पठार, जिसमें दो जिले कैमूर और रोहतास आते हैं, को 5वीं अनुसूची क्षेत्र में शामिल करने, कैमूर पठार पर छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम व पेशा कानून को लागू करने और वनाधिकार कानून 2006 को बहाल करने की मांग को लेकर लंबे समय से संघर्षरत हैं.
सितम्बर 2020 से जब से प्रचुर प्राकृतिक संपदा वाले कैमूर पठार के जल-जंगल-जमीन को हथियाने के लिए कैमूर पठार को देश का सबसे बड़ा बाघ अभ्यारण्य बनाने की घोषणा हुई. तब विनोद शंकर और उनके साथी आदिवासियों की हिफाजत के लिए परेशान हो गये और इस परियोजना को रद्द करने के लिए आंदोलन तेज कर दिया.
उन्होंने शांतिपूर्ण तरीकों से तमाम धरना, प्रदर्शन व सभाओं के अलावा 65 किलोमीटर का पदयात्रा भी अधौरा प्रखंड से भभुआ जिला मुख्यालय तक निकाला. इस पदयात्रा में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया. सितम्बर 2020 में बाघ अभ्यारण्य के खिलाफ अपने पहले तीखे प्रतिरोध में बिहार सरकार ने कैमूर पठार के 35 आंदोलनकारियों पर मुकदमा दर्ज कर दिया, जिसमें सबके साथ इस आंदोलन के अगुवा साथियों में से एक विनोद शंकर भी जेल में डाल दिये गए, जिन्हें बाद में कानूनी प्रक्रिया के द्वारा रिहाई मिली.
अब एक बार फिर केंद्र व राज्य सरकार कैमूर टाइगर रिजर्व की अपनी लुटेरी परियोजना में बाधा बन रहे सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं का दमन करने पर उतारू है. इस मामले में अभी कई लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है और विनोद शंकर को भी फर्जी मामले में फंसाकर पुलिस उनका तलाश कर रही है. गत 7 अगस्त को विनोद शंकर को नक्सली घोषित कर उनके घर पर बिना किसी वारंट के कैमूर एसपी द्वारा छापेमारी की गई.
कैमूर एसपी उनके घर से उनकी किताबें, डायरियां व बक्से तोड़कर महिलाओं के गहने और रुपये तक उठा ले गया. विनोद शंकर उस समय घर पर नहीं थे इसलिए गिरफ्तारी से बच गए. इसके अलावा विनोद शंकर के ही गांव बडीहा के एक अन्य व्यक्ति विजय शंकर सिंह खरवार के घर पर भी छापेमारी की गई और वन्य जीवों से सुरक्षा के लिए रखे गए ‘भर्राट’ नामक परम्परागत हथियार को जब्त कर उनके घर को मिनी गन फैक्ट्री घोषित कर दिया और विजय शंकर सिंह सहित उनके घर के तीन सदस्यों पर आर्म्स एक्ट व जनद्रोही कानून UAPA लगा दिया गया.
इसी तरह कैमूर बाघ अभ्यारण्य विरोधी एक और सामाजिक कार्यकर्ता रोहित कुमार को 3 दिन तक अवैध हिरासत में रखकर टॉर्चर किया. उनकी गिरफ्तारी के 3 दिन बाद 8 अगस्त को एक और नौजवान प्रमोद यादव के साथ औरंगाबाद के गोह थाने से गिरफ्तारी दिखाई. उनके ऊपर भी आर्म्स एक्ट व जनद्रोही कानून UAPA लगा कर जेल में बंद कर दिया.
विदित हो कि गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ता रोहित कुमार दुर्गापुर, पश्चिम बंगाल से कंप्यूटर साइंस में बीटेक और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता की पढ़ाई की है. बीएचयू में पढ़ाई करते हुए वे छात्र-छात्राओं, बुनकरों और वंचित लोगों को उनके हक-अधिकार के लिए संगठित करने का काम करते थे. पिछले 5 सालों से वो आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ता के रूप में कैमूर पठार पर सक्रिय थे. उनके एफआईआर में 16 लोगों को नामजद किया गया है, जिसमें एक नाम विनोद शंकर का भी है.
साहित्यकार विनोद शंकर और कम्प्यूटर इंजीनियर रोहित कुमार के साथ यह सब उस बिहार में हो रहा है, जहां नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली INDIA गठबंधन की सरकार है, जो सामाजिक न्याय की बात करती है. वहीं उत्तर प्रदेश की फासिस्ट भाजपा के राज में आज एनआईए तांंडव मचा रही है. सवाल है बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, साहित्यकारों, इंजीनियरों वगैरह को प्रताडित कर भाजपा और सामाजिक न्याय की बात करते नहीं अघाने वाली सरकार इससे क्या हासिल कर लेगी ? क्या यह कार्रवाई देश में माओवादियों को मजबूत करने की कवायद नहीं है ?
जिस तरह देश के तमाम बुद्धिजीवियों को यह सत्ता माओवादी बताकर लगातार प्रताड़ित कर रही है, गिरफ्तार कर रही है, हत्या करने का प्रयास कर रही है, वह माओवादियों को मजबूत करने की एक कोशिश के सिवा कर कुछ नहीं दिखता. मसलन, जिस तरह बिहार सरकार ने आदिवासी साहित्यकार विनोद शंकर को प्रताड़ित किया है और उनकी फर्जी मुठभेड़ में हत्या करने का घोषणा कर दिया है, उससे घबरा कर साहित्यकार विनोद शंकर माओवादियों के शरण में चले जाने को बाध्य हो गये हैं. आदिवासी साहित्यकार विनोद शंकर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट में साफ तौर पर लिखा है –
‘मेरे वकील ने बताया कि मुझ पर अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुआ है, फिर भी मुझे कैमूर एसपी पकड़ना चहता है. मेरी समझ में नही आ रहा है कि मामला क्या है ? क्या किसी को बिना एफआईआर के भी गिरफ्तार किया जा सकता है ? मेरे घर से छापामारी में कोई आपत्तिजनक वस्तु भी नहीं मिला है, फिर भी पुलिस लगातार मेरे घर पर दबाव बना रही है कि मैं बंदूक के साथ सरेंडर कर दूं, जो मेरे पास है ही नहीं. पुलिस मेरे घर पर जा कर कह रही है कि अगर विनोद शंकर पकड़ा गया तो हम उसे मार कर बरबाद कर देंगे, उसे जल्दी से हाजिर करवाओ.’
साहित्यकार विनोद शंकर इस सरकार को खुली चुनौती देते हुए कहते हैं –
‘मुझे पता है आईबी वाले फेसबुक पर मुझे पढ़ते हैं. उनसे मुझे कहना है कि मेरे घर के लोगों को परेशान मत करो. तुमलोगों के पास पूरी राज्य मशीनरी है तो फिर मुझे पकड़ो न, काहे मेरे घर के लोगों को धमकी दे रहे हो ?’
ऐसी खुली चुनौती एक ऐसा व्यक्ति ही दे सकता है जो ईमानदार हो और अपनी पूरी ईमानदारी से अपने लक्ष्य – आदिवासियों के हित – के प्रति समर्पित हो. ऐसी ईमानदारी रोज हत्या, बलात्कार, गरीबों को तंगोतबाह करने वाली भ्रष्ट सत्ता और उसके कुकर्मी कारिंदे पुलिसिया गिरोह में नहीं हो सकता, क्योंकि यह भ्रष्ट पुलिसिया गिरोह की ईमानदारी को साहित्यकार विनोद शंकर ने अपने पोस्ट में यह लिखते हुए तार-तार कर दिया है कि –
‘पुलिस कितना झूठ बोलती है. छापामारी किया है 7 अगस्त को और नकल में लिखा है 8 अगस्त को. खैर वो मेरे घर से ये सामान जब्त किया है. मोबाइल और पैसा का तो नाम ही नहीं लिया है. इन्ही जब्त पम्पलेट और चन्दा रसीद को आपत्तिजनक सामग्री बता रहा है. उसमें विश्व आदिवासी दिवस पर मेरे द्वारा लिखा गया पम्पलेट भी है. मेरे गांव से जिन लोगों को पकड़ा है उन पर तो उसने U.A.P.A. लगा दिया है. शायद पकड़ने के बाद मुझ पर भी ये धारा लगा दी जाएं.’
विनोद शंकर आगे लिखते हैं –
‘आखिर मुझे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने फर्जी कहानी गढ़ ही लिया. अब मेरे पास दो ही रास्ता है या तो मैं भूमिगत हो जाऊं और लड़ाई जारी रखूं या अपनी गिरफ्तारी दे दूं.’
साहित्यकार विनोद शंकर ने इस मक्कार शासक और उसके खूंखार हत्यारे-बलात्कारी पुलिसिया गिरोह के सामने ‘सरेंडर’ करने से साफ इंकार करते हुए अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए साहित्यकार विनोद शंकर ने अपनी एक कविता के माध्यम से खुली घोषणा करते हुए कहते हैं –
‘तुमने हमें असभ्य और जंगली कहा
हमने ध्यान नहीं दिया
तुमने हमें आदिवासी नहीं
अनुसूचित जनजाति कहा
जिसका हमने आज तक
मतलब ही नहीं समझा
अब तुम हमें माओवादी
कह रहे हो
जिसे हमने स्वीकार कर लिया है
ये मानते हुए कि
अब सिर्फ़ आदिवासी होने से काम नहीं चलेगा
भले ही इसके बदले में हमें
कितना भी बड़ा कीमत चुकाना पड़ेगा !
इसके अलावा और कोई रास्ता
नहीं है हमारे पास
अपना अस्तित्व बचाने का
तुम से मुक्ति पाने का
जिसका हमने भी कसम खा लिया है.’
लो अब भुगतो भारत के निकम्मे भ्रष्ट मूर्ख शासकों ! तुमने अपनी करनी से ही देश में माओवादियों की नई फसल बो दी है. एक ओर तुम माओवादियों को खत्म करने की बात करते हो, दूसरी ओर तुम माओवादियों की नई पौध तैयार करते हो. जाओ तुम अपनी नियति के लिए अभिशप्त हो. ज्ञात हो कि केवल बस्तर क्षेत्र में ही माओवादियों ने पिछले 30-40 सालों में तुम्हारे 1100 पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया है, तो देश भर की बात न करना ही बेहतर है.
भारत सरकार अपनी जनविरोधी नीतियों, हत्या, बलात्कार और देश के बुद्धिजीवियों को प्रताड़ित कर, सलवा जुडूम, डीआरजी जैसी नृशंस हत्यारी, बलात्कारियों की फौज खड़ी कर हर दिन माओवादियों की नई फौज खड़ी कर रही है. समझ सको तो समझो, वरना तुमको तुम्हारी नियति ही समझा देगी क्योंकि –
साहित्यकार बंदूक नहीं रखता
लेकिन जिस दिन साहित्यकारों ने बंदूक उठा लिया,
यकीन मानो
तुम धरती से मिटा दिये जाओगे !
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…हमने स्वीकार कर लिया है !
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