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नवनाजी फासिस्ट जेलेंस्की और 31 देशों के फौजी झुंड नाटो का रुस के सामने अघोषित सरेंडर

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नवनाजी फासिस्ट जेलेंस्की और 31 देशों के फौजी झुंड नाटो का रुस के सामने अघोषित सरेंडर
नवनाजी फासिस्ट जेलेंस्की और 31 देशों के फौजी झुंड नाटो का रुस के सामने अघोषित सरेंडर

सर्वहारा के सबसे बड़े नेताओं में से एक लेनिन द्वारा निर्मित दुनिया का सबसे बड़े समाजवादी दुर्ग सोवियत संघ को चौथे नेता स्टालिन ने इस्पात की भांति संरक्षित किया था, जिसने पूंजीवादी-साम्राज्यवादी हमलों से सदा के लिए सुरक्षित कर दिया था, लेकिन एक गद्दार युक्रेनी ख्रुश्चेव ने साम्राज्यवादियों के सामने लज्जाजनक तरीके से सर्वहारा राज्य सोवियत संघ को खत्मकर न केवल सरेंडर करा दिया, अपितु उसे 15 टुकड़ों में विभाजित कर दिया.

अब, जब एक बार फिर अमेरिकी साम्राज्यवाद ने सोवियत संघ के एक सबसे बड़े टुकड़े रुस को ध्वस्त करने के लिए 43 टुकड़ों में बांटने की कोशिश में एकबार फिर यूक्रेनी गद्दार नवनाजी जेलेंस्की के कंधों पर सवार होकर जुट गया, तब रुस की जनता राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के नेतृत्व में साम्राज्यवादी अमेरिका के खिलाफ एकजुट हो गया और गद्दार नवनाजी जेलेंस्की वाली यूक्रेन पर हमला बोल दिया.

कहना न होगा सोवियत संघ की स्थापना काल से ही यूक्रेन दो हिस्सों में राजनीतिक और सांस्कृतिक तौर पर बंटा हुआ था. पूर्वी यूक्रेन जहां समाजवादी सोवियत खेमे के साथ रहा, वहीं पश्चिमी यूक्रेन साम्राज्यवादी खेमे के साथ था और द्वितीय विश्वयुद्ध में फासिस्ट हिटलर का फुट आर्मी बनकर समाजवादी सोवियत संघ पर जबरदस्त हमला बोला था, जिसे सोवियत संघ की लाल सेना ने महान नेता स्टालिन के नेतृत्व में धज्जियां उड़ा दी थी.

यहां यह बताना समीचीन होगा कि सोवियत संघ युग में गठित केजीबी जैसी अंतरराष्ट्रीय जासूसी संस्था विश्व में सबसे ताकतवर जासूसी संस्था है. खबर के अनुसार आज समूची दुनिया में केजीबी (अब उसका नाम बदल दिया गया है) के करीब 7 लाख जासूसों का विशाल फौज मौजूद है, जो सारी सूचनाएं रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तक पहुंचा रही है. हालत यह है कि नाटो के अधिकारी, ब्रिटिश के रक्षा मंत्रालय और युक्रेनी मंत्रालय तक रुस के जासूसों की जद में है. यूक्रेन विवाद पर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक मामलों के जानकार ऐ. के. ब्राईट लिखते हैं –

  • उत्तर कोरिया से एक विशाल जंगी जहाज पर लदे अत्याधुनिक हथियारों की खेप मास्को कूच से नाटो में हड़कंप.
  • पुतिन के ईरान से 1400 ड्रोन जल्दी भेजने की खबर लीक होने पर सीआईए ने ह्वाइट हाउस को दी चेतावनी.
  • क्यूबा वियतनाम का संयुक्त अत्याधुनिक आपात मेडिकल दस्ता पहुंचा रूसी कब्जे वाले यूक्रेनी इलाकों में।
  • चीन के 13 समुद्री जहाजों का बेड़ा हाइटेक हथियारों व भारी मात्रा में रसद सामग्री के साथ तैयार पुतिन के आदेश के इंतजार में.

अपुष्ट खबरों के मुताबिक पोलैंड खुफिया विभाग ने नेपाल का एक सैन्य दस्ता भी रूस पहुंचने की बात कही है. फिलहाल नेपाल के प्रधानमंत्री ने इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, हां नेपाल रक्षा विभाग के एक पूर्व अधिकारी ने यह जरूर कहा है कि ‘नेपाल के रूस से हमेशा दोस्ताना संबंध रहे हैं. ये रिश्ता आगे भी बना रहेगा.’ नेपाल के पूर्व रक्षा अधिकारी के इस बयान का क्या मतलब निकाला जाए, इस पर हर किसी की मति गच्चा खा रही है.

बहरहाल, 15 और 16 अगस्त को यूक्रेन पर रूसी सैनिकों की ताबड़तोड़ बमबारी ने नाटो के होश फाख्ता कर दिये हैं. इस दरम्यान रूसी सैनिकों ने यूक्रेन के सोलेदार इलाके में महज 3 घंटे में 2200 यूक्रेनी सैनिकों को ढेर कर दिया और सोलेदार में तैनात नाटो के लगभग 70 फीसदी सभी कैटगरी के हथियारों को अपने कब्जे में ले लिया. यह दृश्य इतना भयावह था कि लगभग 33 ऐसे टैंक जिस पर नाजी-नाटो घमंड करता है, रूसी सेना को वो एकदम लावारिस हालत पर मिले यानी, यूक्रेनी सैनिक टैंक छोड़कर या तो भाग रहे हैं या फिर खुद को गोली मार ले रहे हैं.

हालांकि पुतिन ने यूक्रेनी सैनिकों से आत्महत्या न करने की अपील की है और उन्हें अच्छा जीवन जीने की सहुलियत देने का भी वादा किया है. नाटो के वरिष्ठ अधिकारी ने रूसी सेना पर आरोप लगाया है कि उनके सभी फाइटर जेट को रूसी सेना जैमर से सेंसरलेस कर रही है, जिससे वो टारगेट को हिट करने से पहले ही इलेक्ट्रॉनिक बाइपास सूचनाओं से महरूम होकर आपात लैंडिंग की हालत पर आ रहे हैं. इस अजीबो-गरीब बयान पर रूसी रक्षा विभाग ने चुटकी लेते हुए कहा है कि – ‘हम समझ सकते हैं नाटो अब कितना ताकतवर रह गया है !’

लगभग 100 ईसा पूर्व स्पार्टाकस जैसे महान योद्धा ने दुनिया को संदेश दिया कि युद्ध दौलत से नहीं, हौसलों से फतह होते हैं, इस बात को हमेशा साम्राज्यवादी मुल्क प्रचारित करने से बचते रहे हैं. 18वीं सदी के औद्योगिक विकास की बुलंद संभावना में आह्लादित विश्व पूंजीवाद ने जब कल-कारखानों का बेड़ा डालकर जघन्यतम सस्ते श्रम की लूट मचाई तो मेहनतकशों के उस त्रासदपूर्ण हाहाकार में स्पार्टाकस की घोषणा सन्दर्भहीन होती प्रतीत हुई, लेकिन स्पार्टाकस के बाद एक और महान घटना पेरिस कम्यून ने एक बार फिर यह साबित किया कि संगठित हौसलों से ही दुनिया में एक शक्तिशाली न्यायिक जन-व्यवस्था स्थापित हो सकती है.

और 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में कार्ल मार्क्स ने परिवर्तन की संभावना पर अवश्यंभावी वैज्ञानिक राजनीतिक दर्शन जारी कर लुटेरों की मंशा और मंसूबों पर ‘हथौड़ा’ चला दिया और इसी दर्शन ने अक्टूबर क्रान्ति, चीनी समाजवाद, क्यूबा, वियतनाम, उत्तर कोरिया आदि देशों में समाजवाद के अकल्पनीय प्रयोग कर समूची पृथ्वी को न केवल राजनीतिक तौर पर दो खेमों में फाड़ दिया बल्कि उछड़ैल धार्मिक मानवतावाद को नंगा करते हुए विश्व राजनीति में समाजवादी मूल्यों पर दृष्टिघाती हमला कर मन मसोस कर न्यूनतम लोकतंत्रात्मक समीकरणों का भी निर्माण किया, जिसके चलते कम्युनिस्ट देशों ने सर्वांगीण उन्नति के मामले में दुनिया के पूंजीवादी खेमे से बाजी मार ली.

आस्ट्रेलिया, जापान, भारत, नार्वे, अमरीका व तमाम देश जहां के शासकवर्गों ने अपने मुल्कों में अपनी सहुलियत की लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं कायम की, सर्वांगीण उन्नति के मामले में अपने प्रस्थान बिंदु के इर्द-गिर्द ही भटक रहे हैं जबकि उत्तर कोरिया, वियतनाम, क्यूबा, चाइना आदि कम्युनिस्ट देश अपने मुक्ति संग्रामों में जीत हासिल कर महज दो दशकों के भीतर महाशक्तियां बन बैठी हैं. सुरक्षित आर्थिक जीवन स्तर, उन्नत शिक्षा प्रणाली, विचार प्रधान सैन्य विकास के बल पर पूरी दुनिया में इन देशों की तूती बोल रही है.

भूमंडलीकरण के खोखली चुंधियाहट के बीच इस दौर में जब साम्राज्यवादी देशों का औद्योगिक ढांचा मंदी के थपेड़ों से लहुलुहान है, तब दुनिया के हर गरीब को ज़रूरत की सस्ती चीजें जो भी मुहैय्या हो रही है, वो सब समाजवादी मुल्कों से आयातित वस्तुएं हैं. दुनिया में ऐसी कोई फैक्ट्री नहीं है जहां उत्तर कोरिया, चाइना की टेक्नोलॉजी न हो. मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी से लेकर भारी उद्योग निर्माण मशीनों के पुर्जे-पुर्जे पर कम्युनिस्ट देशों के नाम हैं और इन्हीं मानवतावादी देशों के नाम के चलते पुतिन जहां एक ओर चक्रवर्ती सम्राट का ताज हथियाने पर आमादा हैं, वहीं दूसरी ओर 31 देशों का कथित महाशक्ति झुंड ‘नाजी-नाटो’ अपनी अकाल मृत्यु की शैय्या पर आज महज अस्तित्व भर के लिए जूझते हुए खात्मे के कगार पर खड़ा हो गया है.

रुसी राष्ट्रपति पुतिन ने विक्ट्री डे परेड के दौरान अपने संबोधन में कहा कि – यूक्रेन पश्चिमी देशों का गुलाम बन गया है लेकिन हम जानते हैं कि हमें क्या करना है. सर्वोच्चता की कोई भी विचारधारा हमें स्वीकार नहीं है. पुतिन ने यूक्रेन की तुलना नाजियों से की और कहा कि रूसी मातृभूमि के खिलाफ युद्ध छेड़ा गया है. पुतिन पहले भी यूक्रेन और नाजियों की तुलना कर चुके हैं. पुतिन ने कहा कि इस युद्ध का नतीजा ही हमारी मातृभूमि की किस्मत तय करेगा. (अमर उजाला 9 मई 2023)

पुतिन एक मंझे हुए अन्तर्राष्ट्रीय नेता हैं और समूची दुनिया में वही एकमात्र नेता हैं जो ब्लैक बेल्ट धारी हैं. सबसे बड़ी बात पुतिन अखंड सोवियत संघ के कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता रहे हैं. सोवियत संघ विघटन के बाद पुतिन रूसी खुफिया विभाग केजीबी के प्रमुख तक रहे हैं. इस समय रूस यूक्रेन युद्ध में दुनिया की लोकतांत्रिक मीडिया पुतिन को एक ऐसा हीरो साबित कर रही मानो पुतिन अकेले ही नाटो पर नेस्तनाबूद कर देंगे जबकि उत्तर कोरिया और चाइना वरदहस्त के बिना पुतिन रूस-यूक्रेन युद्ध में कबके उखड़ गए होते.

खुद सीआईए ने रिपोर्ट में बताया है कि ‘पुतिन ने 2014 में क्रीमिया पर कब्जे के बाद से ही यूक्रेन पर आंख तरेर रखी थी और बहुत ही गुप्त तरीके से यूक्रेन युद्ध के लिए उत्तर कोरिया व चाइना से समर्थन लिया था. 2016 से फरवरी 2020 तक गुप्त तरीके से उत्तर कोरिया, चाइना और रूस के सेनाध्यक्षों की बीजिंग में करीब 13 बार मीटिंग हुई थी.’

पुतिन बार-बार कहते रहे हैं कि हम डालर का राज खत्म कर रूबल या अन्य साझा मुद्रा में व्यापार शुरू करेंगे लेकिन आम मेहनतकश के लिए वो किस तरह का राजनीतिक खाका चाहते हैं, इस पर पुतिन विरोधाभासी बयान देते रहे हैं इसीलिए उत्तर कोरिया और चाइना पुतिन के साथ एक विशेष सीमा तक मदद की बात भी करते हैं.

उत्तर कोरिया, चाइना अब लगभग रूस के साथ प्रत्यक्ष तौर पर आ खडे हुए हैं. चाइना कम्युनिस्ट पार्टी के बीते केन्द्रीय अधिवेशन में इस बात पर सहमति बनी कि नाटो-अमरीका के साम्राज्यवादी खात्मे के लिए चीन रूस को जरूरी मदद मुहैया करायेगा. हालांकि चीनी बुद्धिजीवियों का एक तबका मानता है कि रूस को मदद देने से समाजवादी मूल्यों में पहले से संशोधनवाद से हलकान चीनी समाजवाद असंतुलन की और भी पीड़ादायक स्थिति में जा सकता है.

वहीं दूसरी ओर उत्तर कोरिया बिना चाइना वरदहस्त के जापान से भावी युद्ध में अपने को कमजोर मानता है इसलिए चीन के साथ उत्तर कोरिया भी रूस के साथ आ गया है. इन तीनों महाशक्तियों के युद्ध गठबंधन के बाद अब रूस-यूक्रेन युद्ध महज यूक्रेन को जीतने तक हासिल नहीं रह गया है. इनका मकसद है न्यूयॉर्क और लंदन को जमींदोज कर देना. पिछले दो दिनों में बेलारूस और पोलैंड की सीमा पर रूसी तोपों के नाटो अड्डों को टारगेट कर नये धमाकों ने तीनों परमाणु महाशक्तियों को हाई अलर्ट पर रख दिया है.

काम की एक खबर ये भी है कि नाटो देश व अमरीका हर हाल में क्रेमलिन से बात करने की जुगत लगा रहे हैं और नाटो देशों व अमरीका को यह अच्छी तरह मालूम है पुतिन को किंतु परन्तु की भाषा बिल्कुल पसंद नहीं है. मतलब, पुतिन का ‘नाटो को पाटो’ का गेम सक्सेस हो गया. देखना यह होगा कि बिना न्यूक्लीयर टकराव के अगर युद्ध खत्म हो जाता है तो उत्तर कोरिया, चाइना फिर रूस के विस्तारवाद पर कैसे अंकुश लगायेंगे ?

ऐ. के. ब्राईट आगे लिखते हैं – रूस-यूक्रेन युद्ध में मेहनतकशों के लिए कोई जगह नहीं है, सचेतन तौर पर हम यूक्रेनी मेहनतकश अवाम की हर पीड़ा के साथ खड़े हैं, जिसमें इस युद्ध के चलते हजारों लाखों की तादाद में यूक्रेनी नागरिक दूसरे देशों में शरण लेने के लिए मजबूर हो गए हैं, हजारों बच्चे स्त्रियां व बेकुसूर लोग जान गंवा चुके हैं और आने वाले समय में बचे खुचे यूक्रेन में और भी भयावह दृश्य होने जा रहा है जब परमाणु विस्फोट की महाविभीषिका को समेटे दुनिया के नक्शे से ‘एक था यूक्रेन’ हो जायेगा.

रूस व नाटो दोनों ही विस्तारवादी हैं. हम यूक्रेन या दुनिया के किसी भी हिस्से में न्यूक्लीयर अटैक का विरोध दर्ज करते हैं. हम जापान के हिरोशिमा नागासाकी पर अमरीका के परमाणु विस्फोट के जबाब में रूसी परमाणु विस्फोट का समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि युद्ध का नजरिया मानवीय नहीं है, परन्तु वियतनाम, क्यूबा, ईराक, उत्तर कोरिया, चीन, ब्राजील सहित दुनिया के सभी जगहों पर मानवतावादी संघर्षों पर अमरीका के खूनी हस्तक्षेप से उपजे प्रतिशोधी अंतर्राष्ट्रीय जनाक्रोश का पुतिन इस वक्त प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

साथ ही पुतिन ने इसलिए भी इस युद्ध को बहुत रोमांचित बना दिया है कि वो बार-बार कह रहे हैं हम मानवता के शत्रु यूरोपीय देशों को सबक सिखायेंगे. पुतिन के इन शब्दों में कही न कही अमरीका द्वारा सोवियत रूस को तोड़ने की टीस झलकती है और निश्चित तौर पर अमरीका की क्रूर बादशाहत का खात्मा होना ही चाहिए. जो लोग रूस अमरीका को नागनाथ सांपनाथ बता रहे हैं, उनका दुनिया को देखने का बहुत तंग नजरिया है.

यह भारतीय अवसरवादी कम्युनिस्ट पार्टियों का भ्रामक दुश्प्रचार है कि इस युद्ध में रूस के साथ ज्यादा नजदीकी नहीं रखनी चाहिए. भारतीय कम्यूनिस्ट दलों की दलील है कि ‘रूस अपने हथियारों को बेचने के लिए बाजार तलाश रहा है.’ बावजूद रूस यूक्रेन युद्ध जारी है. हम उम्मीद करते हैं रूस इस युद्ध में विजय होगा उत्तर कोरिया चीन भारत दुनिया में मानवतावादी मूल्यों को बहाल करने में नये सिरे से एकजुट होंगे.

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ROHIT SHARMA

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