खाने को, पहनने को, चलने को, सोने को, बतियाने को
इस तरह का कोई भी दैनिक काम करने को
आजादी नही कहते है मेरे दोस्त
ये तो हम राजाओ के समय मे भी करते थे
अंग्रेजो के समय मे भी करते थे
और आज भी कर रहे हैं
आजादी का मतलब तो कुछ और होता है मेरे दोस्त
यह छोटा सा शब्द समेटे हुए है हमारी पूरी उड़ान को
हमारे वर्तमान को भविष्य को
समृद्धि के उस द्वार को
जो इंसान की हजारो साल से ख्वाहिश रही है.
आजादी का मतलब राजा के इशारे पर चलना नही होता है
उसके हाँ में हाँ मिलाना नही होता है
इसका मतलब तो उन बेडियों को तोडना होता है
जिसने जकड लिया है देश के पूरे शरीर को
जिसे अंग्रेजो ने डाला था
आज भी वह वैसे ही
हमारे हाथ और पांव में बंधी है
जिसे भारत भाग्य विधाता ने श्रृंगार समझ लिया है.
दिल्ली अपने को कुछ भी कह ले
कितना भी सज ले सवर ले
पर उस झोपड़ी में रहने वाले परिवार से आप
एक बार पुछ ले
जो बरसात मे जाग कर राते बिताते है
कुडे में अपना भविष्य तलाशते बच्चो के आँखो में देख ले
अगर उस में आजादी दिख जाये
तो मै भी देश को आजाद मान लूंगा.
पर आप आज जो आजादी मना रहे है
वो न तो मुझे कश्मीर में दिख रहा है
और न ही कन्या कुमारी में
झारखंड और छत्तीसगढ की तो
बात ही छोड़ दे
जहां आदिवासी अपना अस्तित्व बचाने के लिए हथियार उठा चुके है
वो तो मुझे लोकतंत्र के मंदिर
राज्य सभा में भी नही दिखा
जहाँ जनप्रतिनिधियों को उनकी औकात बता दी गई है.
फिर तुम किस झूठी आजादी का जश्न मना रहो हो
खुद को और दूसरो को बेवकूफ बना रहे हो
या तुम डर गये हो सच बोलने से
और राजा का हुक्म बजा रहे हो
तुम्हारे अंदर ये भी साहस नही बचा है कि
पूछ सको प्रधान सेवक से
किस चीज का आजादी मनाये
देश बेचने का
राम मंदिर बनने का
जल-जंगल-जमीन लूटने का
फौजी बूटो तले जनता को रौदने का
या भारत के हिन्दू राष्ट्र बनने का
अगर आप ये नही पूछ सकते तो
कोई मतलब नही आजादी मनाने का
शहीदो को याद करने का
जिनके अरमानो का गला घोटने के अलावा
इस देश के शासक वर्ग और कुछ नही कर रहा है
आज आजादी का जश्न मनाने का मतलब
उनके लूट और शोषण में भागीदारी करना है
जनता को तो आजादी मिली नही है
उसके लिए तो अभी लड़ाई जारी है.
- विनोद शंकर
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