Home कविताएं मैं एक मुस्लिम औरत हूं…

मैं एक मुस्लिम औरत हूं…

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मैं एक मुस्लिम औरत हूं
और मैं बिक्री के लिए नहीं हूं
मैंने आजादी की लड़ाई के लिए अपना जीवन उत्सर्ग किया
मैं ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़ी रही

मैं शाहीन बाग हूं
मैं वह आवाज हूं जिससे तुम आतंकित हो
कश्मीर में, मणिपुर में

मैं दमन के खिलाफ हूं
मैं तुम्हारा नाम लेती हूं
जामिया में, अलीगढ़ में
मैं इतिहास हूं
जिसे तुम धो-पोंछ देना चाहते हो

मैं भूगोल हूं
जिसे तुम निगल जाना चाहते हो

मैं बहन हूं
जो सभी सताए भाइयों के लिए खड़ी होती है

मैं मां हूं
जिसके बेटे गायब हो जाते हैं

मैं बीबी हूं
जो तुम्हारी बीमारी में तुम्हें आराम देती है

मैं देखभाल करने वाली हूं
मैं प्रेमिका हूं

मैं भूमि में हूं
मैं अग्नि में हूं
मैं आकाश में हूं
मैं आवाज हूं
क्रूर शासन के खिलाफ !

मैं नर्स, डॉक्टर, फाइटर, रिपोर्टर हूं
और भी बहुत कुछ

मैं बुर्के में हूं, बिना बुर्के भी
मैं बेजुबानों के लिए आवाज हूं

मैं अयूब हूं, मैं खानम हूं
मैं सिदरा हूं, मैं आजिम हूं,
मैं इस्मत हूं, मैं राना हूं

मैं असंख्य रोशनी हूं
सिंघु में जुगनू की तरह चमकती हूं

मैं एक मुस्लिम औरत हूं
मैं अपनी आंखों में रोशनी लिए हूं
तुम्हारे लिए

ओ कायर, ओह स्वेच्छाचारी अंधों !
हां
मैं एक मुस्लिम औरत हूं
और मैं नीलामी के लिए नहीं हूं.

  • मोमीता आलम
    (About the Poem : This poem is in protest against the heinous attempt of some right wing elements in India. They have made an app named Bulli Bai where they have put a list of names of muslim women for auction. In July last year this right wing element made a similar app named Bulli Deals. In recent years Muslim women in India are being targeted for their religious identity and for speaking up against the agendas of the Modi Government.)

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