हमारा खून हमेशा बहता रहा है
हम लिखते रहे हैं
शूरू से ही आजादी का इतिहास
जहां हम रह सके
खुली हवाओं के साथ
हमने कभी घुटने नहीं टेका किसी
सल्तनत के सामने
नहीं किया किसी
राजा से फरियाद
हम अपने ही दम पर
लड़ते रहे नदियों के लिए कि
कोई इनकी धारा को रोकने न पाए
बचाते रहे जंगल की हरियाली को कि
कोई इसे उजाडने न पाए
हमारा जल, जंगल और जमीन से
न जाने कैसा रिश्ता है कि
नही बरदास कर पाते हैं
इनकी तरफ उठी उंगलियों की ललकार
चाहे वो मुगल रहे हो या अंग्रेज
हमने हमेशा दिया है इन सबको
मुंहतोड़ जवाब
हमारी ये लड़ाईयां
अगर इतिहास के पन्नों में नहीं है
तो इसका है सीधा जवाब
मेरे बन्धु,
हमने किसी राजा के लिए नहीं लड़ा है
जिनका रहा है इतिहास गुलाम
हमने लड़ा है
इन जंगलों के लिए
इन पहाड़ों के लिए
जिन पर मर मिटने वालों के लिए
इतिहास में लिखने की
कोई परम्परा नहीं है
आगे से ऐसा होगा तो
उसमें सिकंदर का नाम नहीं होगा
नहीं होंगे अशोक महान !
- विनोद शंकर
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