Home ब्लॉग जनवादी कवि व लेखक विनोद शंकर के घर पुलिसिया दविश से क्या साबित करना चाह रही है नीतीश सरकार ?

जनवादी कवि व लेखक विनोद शंकर के घर पुलिसिया दविश से क्या साबित करना चाह रही है नीतीश सरकार ?

9 second read
0
0
501
जनवादी कवि व लेखक विनोद शंकर के घर पुलिसिया दविश से क्या साबित करना चाह रही है नीतीश सरकार ?
जनवादी कवि व लेखक विनोद शंकर और विश्व आदिवासी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम का पोस्टर

केन्द्र की फासिस्ट मोदी सरकार के जनविरोधी कारनामों की सुर्खियां आये दिन देश को दुनिया के सामने शर्मिंदा करती ही रहती है, तब अब बिहार की नीतीश सरकार भी पीछे कहां रहने वाली है. इसने भी अपने कारनामों की फेहरिस्त बनाना शुरु कर दिया है. इस फेहरिस्त में शोहरत पाने के लिए उसने भी मोदी तरीका ढूंढ़ा है और सवाल उठाने वाले जनकवि और लेखकों पर अपने पुलिस को हमला करने के लिए छुट्टा छोड़ दिया है.

हम बात कर रहे हैं देश के जाने-माने कवि और लेखक विनोद शंकर के बारे में, जिनके घर पर नीतीश सरकार की पुलिस आ धमकी है. खबर है कि बिहार के कैमूर की पहाडियों से उभरते लोकप्रिय जनकवि और जनवादी लेखक विनोद शंकर पर हाल के दिनों में बिहार की नीतीश सरकार की पुलिस ने न केवल उनके घर पर दविश दी है बल्कि उनकी अनुपस्थिति में उनके घर जाकर उनके परिजनों के साथ गालीगलौज और अभद्र व्यवहार भी किया है. विनोद शंकर बताते हैं कि –

‘आज दोपहर एक बजे कैमूर एसपी बिना कोई वारंट के मेरे घर में घुस गया और मुझे गाली देते हुए मेरे घर में ये कहते हुए तलाशी लेने लगा कि मैने बंदूक रखा है. हालांकि इस तलाशी में उसे किताबों के अलावा कुछ नहीं मिला, फिर भी वो मेरे माता-पिता को बहुत गाली दिया और मेरे बारे में पूछता रहा कि मैं कहां गया हूं ? और क्या करता हूं ? उस समय मैं विश्व आदिवासी दिवस के कार्यक्रम के लिए कैम्पेन करने एक गांव में गया था और अभी घर वापस आया हूं.

‘मैं बिहार के मुख्यमंत्री से पूछता हूं कि मेरे घर में बिना कोई वारंट के कैमूर एसपी कैसे घुस गया ? और मेरे माता-पिता को कैसे गाली दे दिया ? उन्हे ऐसा करने का अधिकार कौन देता है ? मैं वांटेड व्यक्ति भी नही हूं. एक कवि के साथ-साथ राजनीतिक-समाजिक कार्यकर्ता हूं.

‘अगर पुलिस को मुझसे पुछताछ करना था, तो बुला लेते लेकिन ऐसे बिना बताएं मेरे घर में घुसना, तलाशी लेना और मेरे माता-पिता को गाली देना ये संविधान के किस धारा में आता है ? इसे मैं अपने नागरिक अधिकारों पर हमला मानता हूं. और बिहार के मुख्यमंत्री से जवाब चहता हूं कि कैमूर एसपी किस आधार पर मेरी गैर हाजिरी में मेरे घर में घुसा और मेरे घरवालों को डराया-धमकाया ?’

जनकवि और लेखक विनोद शंकर के यह तीखे प्रश्न बिहार की नीतीश सरकार और उसकी पुलिस के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है कि क्या उसने जनकवियों, लेखकों, पत्रकारों को भी निशाने पर लेना शुरू कर दिया है ? और यदि ऐसा ही है तो केन्द्र की मोदी सरकार और उसके फासिस्ट सरकार से अलग वह किस तरह है ? क्या वह 2024 के आम चुनाव में फासिस्ट मोदी सरकार को हटाकर ऐसी ही सरकार कायम करना चाहती है, जो सवाल पूछने वाले कवियों, लेखकों, पत्रकारों पर पुलिसिया हमला करवायें ?

मालूम हो कि कैमूर पहाडियों के बीच से निकले जनकवि और लेखक विनोद शंकर अनेक पुस्तक और हजारों कविताएं लिखी है जो देश की आम जनता की समस्याओं पर केंद्रित है और उसका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं. महुआ जैसी फसलें बेहतर प्रबंधन के साथ कितनी रोजगारपरक हो सकती है, यह उन्होंने अपनी पुस्तक ‘महुआ – मद्य नहीं खाद्य और औषध है’ के जरिए देश और सरकार के सामने प्रस्तुत कर इतिहास गढ़ा है.

हम समझते हैं कि इसी परिकल्पना का परिणाम है कि बिहार की नीतीश सरकार की पुलिस ने उनके घर पर दविश दी है क्योंकि लेखक कवि ‘बन्दूक’ नहीं रखते, किताबें रखते हैं, गोली नहीं रखते, परिकल्पना प्रस्तुत करते हैं. तब क्या यह मान लिया जाये कि नीतीश सरकार को परिकल्पनाओं से नफरत है ? रोजगारपरक दृष्टिकोण से असहमति है ? तब अनपढ़ गुंडा मोदी सरकार और ई. नीतीश सरकार में क्या अंतर रह जाता है ?

विदित हो कि केन्द्र की अनपढ़ गुंडा मोदी सरकार को देश के लेखकों, कवियों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों से नफरत है, उसे पुस्तकों से नफरत है इसलिए कि वह यह मानता है कि इस सृष्टि का निर्माण ही उसके आने के बाद हुई है, यही कारण है कि वह आये दिन देश उन तमाम लोगों को खत्म कर रही है जो उसे यह बताते हैं कि सृष्टि उसके आने से पहले भी थी और उसके मर जाने के बाद भी कायम रहेगी.

बहुत दिन नहीं बीता है जब इस अनपढ़ गुंडा मोदी सरकार ने 1947 की आजादी को मानने से इंकार करते हुए देश के संविधान को जलाने वालों के प्रति मौन सहमति दिया और ‘2014 में देश आजाद हुआ’ का नारा बुलंद करवाया. अपने गुंडों की मदद से देश के जाने-माने बुद्धिजीवियों की हत्याएं और जेलों में बंद करना शुरू किया. पुलिसिया गैंग कर इस्तेमाल कर उनको सरेराह पीटना शुरु किया. सुप्रसिद्ध इतिहासकार रामचन्द्र गुहा को सड़कों पर घसीटकर पीटा.

इतना ही नहीं, देश में सवाल पूछने वाले लेखकों, बुद्धिजीवियों को ‘टूलकिट गैंग’, ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ कहकर न केवल बदनाम ही किया बल्कि उसे देशद्रोही-आतंकवादी तक कहा. माहौल ऐसा बना दिया है देश में पुस्तक पढ़ने, पुस्तक रखने तक संदेह के दायरे में लाया, और अब जनकवि और लेखक विनोद शंकर के घर पर पुलिसिया दविश देकर बिहार की पढ़ी-लिखी मानी जाने वाली नीतीश सरकार ने भी साबित कर दिया कि वह भी अनपढ़ मोदी सरकार से पीछे नहीं रहना चाहती, कि वह भी पुस्तक रखने, पुस्तक पढ़ने और पुस्तक लिखने को अपराध मानने की हद तक जाने वाली है.

अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपनी आंखों के सामने विश्वविद्यालयों को जलाये जाते देखेंगे. नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों को देखने जाने के लिए टाइम ट्रैवल कर खिलजी तक जाने की जरूरत नहीं होगी, नीतीश सरकार का दौर ही पर्याप्त होगा इसे देखने के लिए.

Read Also –

‘मैं आंदोलनकारी किसानों के पक्ष में सक्रिय हूंं इसलिए ?’
बोलने की आज़ादी और नाकाम होता लोकतंत्र
बिहार में राजनीतिक जड़ता के प्रतीक नीतीश कुमार
महुआ पर प्रतिबंध : आदिवासियों, जंगलवासियों, गरीबों के अधिकारों पर हमला
अथ नीतीश-मोदी रिश्ता कथा
लकड़बग्घा की चीख : सोशल मीडिया से खफा लकड़बग्घा

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…