राजा को वरदान है
उसे कोई मार नहीं सकता.
लेकिन साथ ही एक चेतावनी भी है,
उसे छोटे छोटे घावों से बचना होगा.
इन घावों में अगर चीटियां लग गयी
तो राजा को कोई नहीं बचा पायेगा.
राजा के पैरों तले अनेक चीटियां कुचली जाती
कभी राजा उन्हें गुस्से में कुचलता
कभी प्यार में
और कभी कभी तो यूं ही.
चीटियां परेशान थी
उन्हें राजा के घाव का इंतजार था,
ठीक उसी तरह जैसे सांप के घाव का
इंतजार रहता है चीटियों को.
एक दिन राजा ने ऐलान किया कि
उसे एक ही रंग पसंद है
बाकी रंग या तो राज्य छोड़ दे,
या अपना रंग फीका कर लें.
राज्य में अफरा-तफरी मच गई
कुछ ने राजा की बात मानते हुए
अपना रंग फीका कर लिया,
कुछ ने अपना रंग चटकीला
बनाये रखने की भरसक कोशिश की.
और इस जुर्म में जेल भी जाते रहे.
राजा के पैरों तले कुचले भी जाते रहे.
लेकिन कुछ रंग भूमिगत हो गए
राजा के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया
राजा ने भी इनके खिलाफ अपनी पूरी सेना उतार दी.
लेकिन भयानक दमन के बावजूद
विद्रोहियों ने राजा को एक छोटा घाव दे ही दिया
चीटियों को इसी बात का तो इंतजार था.
चीटियों ने पंक्तिबद्ध होकर
राजा के घाव पर हमला बोल दिया
राजा और उसके निजी सैनिक
चींटियों को मारते रहे!
लेकिन चींटियों की पंक्ति तो अंतहीन थी
दरवाजे, खिड़की सब बन्द कर दिए गए
लेकिन
कभी रोशनदान से,
किवाड़ों की झिर्रियों से,
तमाम सुराखों से
चीटियों का संकल्पबद्ध काफिला
आगे बढ़ता ही रहा
चीटियां मरती रही,
दूसरी चीटियां मरती चीटियों के
ऊपर से आगे बढ़ती रही !
राजा के घाव को गहरा बनाती रही !!
राजा के शरीर का तापमान बढ़ता रहा !!!
और अंत में राजा यह बुदबुदाते हुए मर गया
कि ‘आखिर राज्य में कितनी चीटियां है ????’
- मनीष आजाद
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