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27 जुलाई : उत्तर कोरिया विजय दिवस

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27 जुलाई : उत्तर कोरिया विजय दिवस
27 जुलाई : उत्तर कोरिया विजय दिवस

दुनिया के इतिहास में कई युद्धों का जिक्र है, पर कोई भी युद्ध 1950 के दशक में हुए पितृभूमि मुक्ति युद्ध (कोरिया युद्ध) जैसा खूनी और विध्वंसकारी नहीं था. 27 जुलाई, 1953 को यानी, आज से 70 साल पहले इस युद्ध की परिणिति जनवादी कोरिया की जीत के रूप में हुई. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कोरिया के दक्षिणी भाग यानी, दक्षिण कोरिया पर बलपूर्वक कब्जा करने के बाद अमेरिका ने जनवादी कोरिया यानी, उत्तर कोरिया जिसने पूर्ण स्वतंत्रता की राह अपनाई, उसके खिलाफ खूनी युद्ध की तैयारी तेज कर दी और इस तरह अमेरिका ने पूरे कोरिया को अपना उपनिवेश बनाने के लिए 25 जून 1950 की सुबह आक्रामक युद्ध छेड़ दिया.

यह युद्ध एक असमान युद्ध था. इस युद्ध में अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने अपने विशाल सशस्त्र बलों और अपने 15 सहयोगी (कठपुतली) देशों के सैनिकों के साथ-साथ जापानी सैन्यवादियों और दक्षिण कोरियाई कठपुतलियों को भी शामिल किया था. इस युद्ध में आश्चर्यजनक रूप से अमेरिका, जो आक्रामकता के अपने 100 साल के इतिहास में कभी नहीं हारा था और जो दुनिया में ‘सबसे मजबूत’ होने का दावा कर रहा था, को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा.

27 जुलाई : उत्तर कोरिया विजय दिवस
27 जुलाई : उत्तर कोरिया विजय दिवस

जबकि जनवादी कोरिया, जो पांच साल पहले जापानी औपनिवेशिक शासन से मुक्त हुआ था और जिसके पास केवल दो साल पहले से ही अपनी नियमित सशस्त्र सेना थी, वह उन साम्राज्यवादी ताकतों जिन्होंने इतिहास में पहली बार संयुक्त राष्ट्र सेना के रूप में उसपर हमला किया था, को नष्ट करके विजयी हुआ.

इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि जनवादी कोरिया जैसा एक छोटा, नव-स्वतंत्र देश द्वितीय विश्व युद्ध में विजेता संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाली सहयोगी साम्राज्यवादी ताकतों का सामना कर सकता है ! यही कारण है कि जब कोरियाई युद्ध के फैलने की खबर आई, तो दुनिया में कई लोगों ने युद्ध के ‘स्पष्ट अंत’ की भविष्यवाणी की. संयुक्त राज्य अमेरिका की घमंडी टिप्पणी थी कि उत्तर कोरिया का अस्तित्व ’72 घंटों में समाप्त हो जाएगा.’

तीन साल के इस युद्ध के दौरान युद्ध के मानव इतिहास में अभूतपूर्व बर्बरताएं की गईं. युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा कोरिया के उत्तरी आधे हिस्से पर प्रति वर्ग किलोमीटर औसतन 18 बम गिराए, जिसमें राजधानी फ्यंगयांग पर लगभग 4,28,000 बम गिराए गए, जो उस समय 52 वर्ग किमी चौड़ा और 370,000 की आबादी वाला शहर था. जिसका मतलब था कि प्रति व्यक्ति एक से अधिक बम इस शहर पर गिराए गए.

इस अंधाधुंध बमबारी ने कोरिया के उत्तरी हिस्से में सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों, कारखानों, रेलवे, स्कूलों, अस्पतालों और सांस्कृतिक प्रतिष्ठानों को नष्ट कर दिया और इसे राख में बदल दिया. अमेरिकी सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी द्वारा अपनाए गए सबसे क्रूर तरीकों का सहारा लेकर कोरिया के इस हिस्से में 12,31,500 निर्दोष लोगों को मार डाला, जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल थे.

इतना ही नहीं अंतरराष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन करते हुए अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने मानवता के खिलाफ रोगाणु और रासायनिक हथियारों जैसे सामूहिक विनाश के हथियारों का उपयोग करने जैसा अपराध किया और परमाणु बम के इस्तेमाल करने की धमकी दी.

कोरियाई जन सेना (Korean People’s Army) और कोरियाई जनता ने ‘जूछे विचार’ के आधार पर आत्मनिर्भरता की क्रांतिकारी भावना से लड़ाई लड़ी. महान क्रांतिकारी नेता काॅमरेड किम इल संग ने कहा था, ‘हमें अपनी समस्याओं का समाधान अवश्य करना चाहिए, चाहे कोई भी हमारी मदद कर रहा हो और हमें कोई भी मदद मिल रही हो…हमें अपनी ताकत से जीत हासिल करनी चाहिए.’ यह फौलादी इरादों वाले काॅमरेड किम इल संग ही थे, जिन्होंने इस पितृभूमि मुक्ति युद्ध का नेतृत्व किया.

अपने शानदार सैन्य ज्ञान, उत्कृष्ट साहस और सैन्य कमान की उत्कृष्ट कला के माध्यम से उन्होंने समग्र मोर्चे पर, सभी ऑपरेशनों और लड़ाइयों का नेतृत्व किया. इस तरह उनके नेतृत्व में पितृभूमि मुक्ति युद्ध में, प्रतिक्रियावादी बुर्जुआ सैन्य सिद्धांत को जूछे-उन्मुख क्रांतिकारी सैन्य रणनीति और सिद्धांत द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था. उन्होंने लगातार इस बात पर जोर दिया कि इस युद्ध का नतीजा केवल हथियारों से नहीं बल्कि हथियार थामने वालों की विचारधारा से तय होगा.

महान नेता कॉमरेड किम इल संग के नेतृत्व में कोरियाई जनता की जीत ने साम्राज्यवाद को मदद करने वाले शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और ‘अहिंसा’ जैसे संशोधनवादी और शांतिवादी सिद्धांतों को ध्वस्त कर दिया. काॅमरेड किम इल संग की कमान वाली कोरियाई जन सेना एक सच्चे लोगों की सेना, न्याय और मुक्ति की सेना थी. सेना और जन एकता की एक मजबूत भावना पूरे समाज में व्याप्त थी. यही पितृभूमि मुक्ति युद्ध में जीत का सारांश है.

काॅमरेड किम इल संग ने कहा था – ‘इस महान संघर्ष में हमारे लोगों ने पार्टी और सरकार के सही नेतृत्व में एकजुट होकर दृढ़ता से लड़ाई लड़ी और इस तरह युद्ध की कठोर परीक्षाओं का सफलतापूर्वक सामना किया और अमेरिकी साम्राज्यवाद और उसके कुत्तों को शर्मनाक हार देते हुए ऐतिहासिक जीत हासिल की.’

महान नेता काॅमरेड किम इल संग के नेतृत्व में वीर और गौरवशाली कोरियाई जन सेना ने अमेरिकी साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंका. अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने 4,05,498 अमेरिकी सैनिकों, 11,30,965 दक्षिण कोरियाई कठपुतली सैनिकों सहित 15,67,128 से अधिक लोगों को खो दिया और उनके कठपुतली देशों के 30,665 सैनिक मारे गए, घायल हुए या पकड़े गए; ‘एयर फोर्ट बी-29’ सहित 12,224 हवाई जहाज गिराए गए, क्षतिग्रस्त हुए या पकड़े गए, 7,695 बंदूकें, 3,255 233 टैंक और बख्तरबंद वाहन नष्ट कर दिए गए और भारी क्रूजर बाल्टीमोर और सातवें बेड़े मिसौरी सहित 564 युद्धपोत और जहाज डूबा दिए गए या क्षतिग्रस्त हो गए.

अमेरिकी साम्राज्यवादियों को जो नुकसान हुआ वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रशांत युद्ध के चार वर्षों में हुए नुकसान से लगभग 2.3 गुना अधिक था. यहां तक ​​कि आधिकारिक अमेरिकी आंकड़ों से पता चलता है कि कोरियाई युद्ध के प्रत्येक तीन वर्षों के दौरान उन्होंने वियतनाम युद्ध के प्रत्येक वर्ष की तुलना में दोगुने सैनिक खो दिए. अमेरिकी जनरल मार्क क्लार्क ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि वह बिना जीत के युद्धविराम समाप्त करने वाला पहला अमेरिकी कमांडर था.

इस पितृभूमि मुक्ति युद्ध में अमेरिकी अजेयता का मिथक चूर-चूर हो गया. जनवादी कोरिया की जीत ने दुनिया भर में राष्ट्रीय मुक्ति और क्रांतिकारी आंदोलनों को अमेरिकी नेतृत्व वाले साम्राज्यवादियों की औपनिवेशिक प्रणाली के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया. अमेरिकी साम्राज्यवादियों के खिलाफ जनवादी कोरिया की जीत और युद्ध में उसके तजुर्बे से सीख लेते हुए बाद में वियतनाम ने भी अमेरिकी साम्राज्यवाद को बुरी तरह से हराया. पितृभूमि मुक्ति युद्ध में जनवादी कोरिया की जीत विश्व क्रांतिकारी आंदोलन में एक महान योगदान था, क्योंकि इसने दिखाया कि अमेरिकी साम्राज्यवाद को उसके रास्ते में ही रोका और हराया जा सकता है.

27 जुलाई का यह विजय दिवस न केवल कोरियाई जनता बल्कि स्वाधीनता और समाजवाद के लिए संघर्षरत विश्व के कम्युनिस्ट और प्रगतिशीलों के दिल और दिमाग में हमेशा के लिए चमकता रहेगा. 27 जुलाई की भावना मानवता के घोर शत्रु पूंजीवाद और उसकी चरम अवस्था साम्राज्यवाद के खिलाफ दुनिया भर के लोगों को संघर्ष करने और जीतने के लिए हमेशा प्रेरित करती रहेगी.

  • ब्रजेश सत्या

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