तेज़ बारिश और जल-भराव से समतल नज़र आती टूटी सड़कों के ज़ोखिम की परवाह ना करते हुए, 9 जुलाई की शाम 5.30 बजे क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा के मजदूर साथियों ने अपने हाथों में लाल झंडा और गले में तख्तियां लटकाए भारी तादाद में पंजाब रोलिंग चौक पर इकट्ठे होने शुरू हो गए और गगनभेदी नारों से आसमान गूंज उठा.
एक ओर, औद्योगिक नगरी फ़रीदाबाद का प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र सेक्टर 24, और दूसरी ओर घनी और विशाल ‘संजय कॉलोनी’ मज़दूर बस्ती के बीच, इस व्यस्त चौराहे पर काफ़ी लोग, इस कौतूहल से, बाहर देखने निकले कि मज़दूर ज़रूर किसी गंभीर मुसीबत से दो-चार हो रहे हैं, जो महिलाओं समेत, इतनी बड़ी तादाद में उस वक़्त प्रदर्शन करने निकले हैं, जब सारा शहर रविवार की छुट्टी के दिन भारी बारिश के बीच घरों से बाहर झांक भी नहीं रहा था.
सीआईडी अधिकारी ने भी 5 बजे एक बार फिर पूछना ठीक समझा कि ‘परधान जी, आपका प्रदर्शन होगा या बारिश की वज़ह से कैंसल हो गया ?’ जब लोगों को समझ आया कि ये मज़दूर, आज अपने लिए नहीं बल्कि मानेसर स्थित हिटाची कंपनी – जिसका नाम प्रोटेरिअल हो गया है – के ठेका मज़दूरों के 30 जून से चल रहे शानदार, बे-मिसाल आंदोलन को समर्थन देने, उनका हौसला बढ़ाने और उनके साथ अपनी वर्गीय एकजुटता रेखांकित करने निकले हैं; तो उनके चेहरे पर सुखद मुस्कान छा गई.
प्रदर्शन की ख़ासियत यह रही कि जो भी देखने के लिए रुके, वह फिर आख़िर तक रुके रहे. कुछ मज़दूर तो सभा समाप्ति की घोषणा के बाद भी डटे रहे. ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ को जानने के लिए सवाल पर सवाल करते रहे और अपने-अपने कारखानों में मज़दूर सभाएं कराने की पेशकश और उसकी स्वीकृति के बाद ही रुख़सत हुए.
आईएमटी, मानेसर के सेक्टर 8 में मारुती की विख्यात कंपनी के गेट नं. 3 के सामने मौजूद मारुती की वेंडर कंपनी; ‘प्रोटेरिअल (इंडिया) प्रा लि’, मूल रूप से जापानी कंपनी की भारतीय शाखा है, जो पहले ‘हिटाची’ के नाम से जानी जाती थी. यह कंपनी, मारुती-सुजुकी कारों में लगने वाले विद्युत उपकरण बनाती है. इस कंपनी में कुल 251 मज़दूर काम करते हैं, जिनमें 51 स्थाई और 200 ठेका मज़दूर हैं.
हर उद्योग में ही नहीं, बल्कि हर सरकारी विभाग में भी आज यही आलम है – ‘स्थाई मज़दूर कम करते जाओ और ठेका मज़दूर बढ़ाते जाओ’. पूंजी द्वारा, श्रम के तीव्रतम शोषण के मौजूदा कालखंड में मज़दूरों की हड्डियां तक निचोड़ लेने के लिए यह पद्धति मालिकों के लिए सबसे मुफ़ीद है. पूंजी के जमूरों की तरह काम कर रही सभी रंग-बिरंगी सरकारें, ठेका मज़दूरों को किसी भी सीमा तक बढ़ाने की खुली छूट मालिकों को देती जा रही हैं.
विगत 5 सालों में मंहगाई कहां पहुंच गई, क्या किसी को बताने की ज़रूरत है ? ‘प्रोटेरिअल’ नाम की इस जापानी कंपनी के प्रबंधन को इसका इल्म नहीं ? ठेका मज़दूरों को वही वेतन मिल रहा है जो 5 साल पहले मिलता था. ‘मंहगाई के अनुसार तो हमारा वेतन डबल हो जाना चाहिए. आप उतना नहीं कर सकते, लेकिन कुछ तो बढ़ाओ’, ये मज़दूरों की पहली मांग है. दूसरी मांग है, हर महीने कम से कम 1 छुट्टी हमें भी मिले. हम भी इंसान हैं. साथ ही, छुट्टी मज़दूर को अपनी ज़रूरत के हिसाब से लेने का हक़ हो.
प्रबंधन का कहना है कि जब कंपनी चाहे तब मज़दूर छुट्टी पर जाए. अपनी शादी के लिए छुट्टी मांगने वाले, एक मज़दूर को एचआर मैनेजर ये कह चुका है कि तुमने शादी कंपनी से पूछकर रखी थी, क्या ? ‘औद्योगिक विवाद क़ानून 1947’ के अनुसार, स्थाई कार्य के लिए अस्थाई अर्थात ठेका मज़दूर को नहीं रखा जा सकता.
कोई भी मालिक, ख़ुद सरकार भी इस क़ानून का पालन नहीं कर रहे. 240 दिन तक काम करने वाला हर मज़दूर, स्थाई होने का हक़दार है. प्रोटेरिअल में 10-10 साल से काम कर रहे मज़दूर, अस्थाई ही बने हुए हैं. ‘हमें ज़िन्दगी भर ठेका मज़दूर रखकर, श्रम अधिकारों से महरूम मत कीजिए. हमें स्थाई किया जाए’; ये मज़दूरों की तीसरी मांग है.
कंपनी प्रबंधन ने जब मज़दूरों की ज़ायज़ मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया तो 30 जून से प्रोटेरिअल के सारे के सारे 200 ठेका मज़दूरों ने, ‘प्रोटेरिअल (हिटाची) मज़दूर यूनियन’ बनाकर, आंदोलन शुरू कर दिया. कंपनी में वे जिस जगह काम करते थे, वहीं बैठ गए. धरना शुरू हो गया.
मज़दूर चाहते थे कि मैनेजमेंट उनसे बात करे. जापानी मैनेजमेंट मज़दूरों से बातचीत कर रास्ता निकालना जानता ही नहीं. उसे तो बस दमन ही मालूम है. कंपनी ने मज़दूरों को खाना देने से मना कर दिया, उनके पंखे भी बंद कर दिए. कुछ कैजुअल मज़दूरों ने मिलकर गेट पर धरना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने साथी आंदोलनकारियों के लिए खाने का बंदोबस्त किया लेकिन मैनेजमेंट ने खाना अंदर ले जाने से मना कर दिया. ये 6 जुलाई की बात है.
उस दिन भी ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ की 4 सदस्यीय टीम, हिटाची/ प्रोटेरिअल मज़दूरों का हौसला बढ़ाने, उनके साथ अपनी कामरेडाना एकजुटता प्रदर्शित करने तथा हक़ीक़त जानने के लिए मानेसर गई थी. लेबर इस्पेक्टर, पवन की मौजूदगी में खाने को लेकर बातचीत शुरू हुई, लेकिन कंपनी प्रबंधन अड़ा रहा.
एचआर मैनेजर, केशव गुप्ता ने शर्त रखी कि जब तक मज़दूर अपने मोबाइल उन्हें नहीं सौंपते, उन्हें खाना नहीं मिलेगा. ऐसी अमानवीय शर्त, इससे पहले कहीं भी और कभी भी नहीं रखी गई थी. कंपनी चाहती थी कि मज़दूरों का संबंध बाहरी दुनिया से कट जाए. लेबर इंस्पेक्टर की बात को प्रबंधन ने कोई महत्त्व नहीं दिया और लेबर विभाग को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. मतलब कुश्ती नूरा थी. कहना ना मानना और ना मानने को गंभीरता से ना लेना; सब नौटंकी की स्क्रिप्ट थी.
‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ ने वहां मौजूद पुलिस अधिकारियों से बात की, कि खाना रोकना अमानवीय है. मानव आयोग अगर जिंदा होता तो रोकने वाले अब तक गिरफ्तार हो चुके होते. पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘वे तो कानून- व्यवस्था की निगरानी के लिए हैं. खाने का फैसला एसएचओ ले सकते हैं.’ एसएचओ, मानेसर से बात हुई. उन्होंने कहा ‘आईएमटी के लिए अलग एसएचओ हैं, उनसे बात कीजिए.’ उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन उनका फ़ोन बंद था.
कंपनी प्रबंधकों के मोटे-मोटे पेट भरे हुए थे. उनके लिए सब कुछ सामान्य था. बाहर 4 घंटे से रखा खाना, ख़राब होने लगा था. कई घंटों की ज़द्दोज़हद के बाद, सिर्फ केले ले जाने दिए. ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ के अध्यक्ष तथा महासचिव ने कंपनी गेट पर, धरना-स्थल पर मज़दूरों को संबोधित भी किया. 5 मज़दूर 4 जुलाई को बेहोश हो चुके थे, जिनमें एक, ठीक होकर धरना-स्थल पर लौट आए थे, जब कि 4 मज़दूर, 6 जुलाई तक ईएसआई अस्पताल में भर्ती थे.
7 जुलाई को कंपनी ने, मज़दूरों को रात 12 बजे सूखी रोटियां खाने को दीं. मज़दूरों ने खाने से मना कर दिया और वे भूख हड़ताल पर चले गए. मज़दूर नहीं चाहते कि रोटी की ज़द्दोज़हद में, उनके संघर्ष के मूल मुद्दे ही दबकर ना रह जाएं.
इस बीच कंपनी मैनेजमेंट ने, हड़ताली मज़दूरों के विरुद्ध, अदालत में दावा (क्रमांक सी. एस.-1394-2023) दायर कर मांग की, कि मज़दूरों को बलपूर्वक हटाने की अनुमति दी जाए. मामले की सुनवाई अनिल कुमार यादव, सिविल जज की अदालत में 10 जुलाई को हुई और उसी दिन फैसला आ गया. फ़ैसले की प्रति ‘मज़दूर मोर्चा’ के पास है.
मज़दूरों के वकील श्रीभगवान ने अदालत में ज़िरह करते हुए कहा कि 10-10 साल से ये मज़दूर कंपनी में नियमित रूप से काम कर रहे हैं, लेकिन ठेका मज़दूर ही बने हुए हैं. अदालत ने दख़ल नहीं दिया तो ये ठेके पर ही रिटायर हो जाएंगे. महीने में मात्र 10,000 वेतन पाने वाले ये मज़दूर, इसलिए कंपनी के अंदर उनके काम करने की जगह पर ही बैठकर हड़ताल करने को मज़बूर हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी जगह दूसरे मज़दूर भर्ती कर लिए जाएंगे और उन्हें बॉउसरों से पिटवाकर भगा दिया जाएगा.
कंपनी की ओर से उनके कई वकील और उपाध्यक्ष के. के. कृष्णन उपस्थित हुए. जज साहब ने बातों में मज़दूरों से ख़ूब हमदर्दी दिखाई, लेकिन फैसला कंपनी के पक्ष में सुनाया.
‘प्रतिवादी पक्ष (मतलब मज़दूरों) को हुक्म दिया जाता है कि वे आदेश के 3 घंटे के अंदर, जिस जगह वे काम करते हैं, उसे ख़ाली कर दें. वे अन्यत्र किसी जगह, जहां कंपनी के काम में कोई रूकावट ना आए, शांतिपूर्वक आंदोलन करने को आज़ाद हैं. वे कंपनी की उत्पादन की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की रूकावट पैदा नहीं कर सकते. वे किसी भी अन्य मज़दूर अथवा अधिकारी के काम करने में कोई व्यवधान पैदा नहीं कर सकते.’
अदालत ने दोनों पक्षों से कहा कि वे तत्काल वार्ता शुरु करें और 3 दिन में समाधान निकालें. आंदोलनकारी मज़दूरों के साथ कंपनी दुश्मन जैसा व्यवहार नहीं करेगी या सभी की नौकरी सुरक्षित रहेगी, इस अहम मुद्दे पर अदालत मौन है. अदालत ने इस मामले को आगे सुनवाई के लिए 14 जुलाई की तारीख रखी है.
अदालत के आदेश का सम्मान करते हुए मज़दूर, अपने काम की जगह से हट गए. कंपनी की धूर्तता देखिए, उसने उनके आंदोलन के लिए अंदर एक कोने में टेंट लगा दिया. मज़दूर चालाकी समझ गए और वहां जाने की बजाए, कंपनी बिल्डिंग के ठीक सामने, प्रमुख गेट के अंदर, धूप और बारिश की परवाह ना करते हुए बाहर खुले में ही बैठ गए. कंपनी ने मज़दूरों से वार्ता भी शुरू की है. वार्ता समाधान निकालने का ईमानदार प्रयास है, या अदालत के कहने की खाना-पूर्ति की जा रही है, जिसे 14 जुलाई को अदालत के सामने प्रस्तुत किया जा सके; वक़्त बताएगा.
प्रशासन, सरकार, अदालतें और ‘मुख्य धारा’ का मीडिया, मतलब लोकतंत्र के चारों के चारों खम्बे मज़दूरों के विरुद्ध एक हो गए हैं. मज़दूरों के पास, अब बस एक ही ताक़त बची है. वह है; उनकी विशाल तादाद. उनकी ये खासियत कि कोई भी उत्पादन, कैसा भी निर्माण, उनके हाथों के बगैर नहीं होता. मज़दूरों की ये विशिष्टता उन्हें अजेय बनाती है, लेकिन इसके लिए एक शर्त है. उन्हें अपनी एकता फ़ौलादी बनानी होगी. वर्गीय चेतना की ऐसी ज्वाला प्रज्वलित करनी होगी कि देश में कहीं भी दमन हो, ज़ुल्म-ओ-ज़बर किसी भी कोने में हो, उसके प्रतिरोध की गूंज, सारे मुल्क में सुनाई दे.
अपने इसी फ़र्ज़ को पहचानते हुए, ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ ने, 9 जुलाई के इस आक्रोश प्रदर्शन का आह्वान किया था. ख़राब मौसम के बावजूद, मज़दूरों ने पूरे जोश-ओ-ख़रोश से उसमें भाग लिया. उत्साह उससे भी कहीं ज्यादा था, जैसा उनकी अपनी मांगों के लिए होने वाले आंदोलनों में रहता है. मज़दूर वर्ग के मुस्तक़बिल के लिए ये बहुत सुकून पहुंचाने वाली ख़बर है.
ठेका मज़दूरों, असंगठित मज़दूरों को संगठित किए बगैर मज़दूर आंदोलन किसी मुक़ाम तक नहीं पहुंच सकता. स्थाई मज़दूरों की तादाद लगातार कम होती जा रही है. वे अकेले अपने दम पर कोई आंदोलन नहीं चला सकते. वे उत्पादन को प्रभावित नहीं कर सकते, नतीज़तन उनके प्रतिरोध की धार कुंद हो चुकी है. ठेका मज़दूरों-असंगठित मज़दूरों को संगठित कर, गोलबंद करने की चुनौती, मज़दूर कार्यकर्ताओं को स्वीकारनी ही होगी.
मज़दूर, शहीद-ए-आज़म भगतसिंह, अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्लाह खां के कथनों के पोस्टर लिए हुए थे तथा उन्होंने गले में ये पट्टियां डाली हुई थी – ‘हिताची मानेसर के मज़दूरों के साथ इंसाफ करो’, ‘ठेका प्रथा पे हल्ला बोल’, ‘हिताची/ प्रोटेरिअल के बहादुर मज़दूरों के संघर्षों को लाल सलाम’, ‘मज़दूरों का दमन नहीं सहेंगे’, ‘मज़दूर-विरोधी खट्टर सरकार मुर्दाबाद’, ‘हिताची मानेसर के मज़दूरों को न्याय दो’, ‘हिटलरशाही का एक जवाब- इंक़लाब जिंदाबाद’, ‘फ़ासीवाद का एक जवाब- इंक़लाब जिंदाबाद’, ‘ठेका मज़दूरों संघर्ष करो- हम तुम्हारे साथ हैं’, ‘हिताची मानेसर के बहादुर मज़दूरों का साथ दो’, मालिक-पुलिस-प्रशासन-सरकार गठजोड़ मुर्दाबाद’, ‘प्रोटेरिअल हिताची के मज़दूरों का दमन नहीं सहेंगे’.
सभा, शुरू से आख़िर तक ज़ोरदार नारों से गूंजती रही. आस-पास के लोग, जो सभा में दर्शक की हैसियत से शामिल हुए, वे भी नारों का उत्साहपूर्वक प्रतिसाद लगातार देते रहे. बहुत ही ख़ुशी की बात है कि मज़दूरों से प्रतिबद्धता रखने वाला एकल-चैनल मीडिया, बड़ी तादाद में उपस्थित था. मज़दूर-मीडिया और सभी मज़दूर, हरियाणा सरकार के पुतला-दहन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे.
हरियाणा सरकार, मजदूरों में इतनी अलोकप्रिय है कि उन्हें सरकार के पुतले को ठोकर-लात-थप्पड़ मारने से नहीं रोका जा सकता. सरकार के प्रतीक पुतले को लतियाने से उपजी सुखदाई मुस्कान, उनके चेहरों पर बहुत देर तक बनी रहती है, और नारों में जोश और बुलंद हो जाता है ! मज़दूर वर्गीय चेतना सभी मज़दूरों तक पहुंचाने और अपने संगठन को मज़बूत करने के अहद के साथ सभा संपन्न हुई.
- फरीदाबाद से साथी सत्यवीर सिंह की रिपोर्ट
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