Home कविताएं तुम्हारे बिना मेरे नाम का कोई अर्थ नहीं है

तुम्हारे बिना मेरे नाम का कोई अर्थ नहीं है

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इसी तरह
बीच बीच में
तुम मुझे याद आती रही
जब वे मेरी पीठ से सटी चादर को
जबरन खींच कर
मुझे बर्फ़ की सिल्ली पर
लिटा रहे थे
सिर्फ़ इसलिए कि उन्हें यक़ीन नहीं था कि
मेरा नाम वाक़ई मेरे मरे हुए
माता पिता ने रखा था
क्योंकि उनके राशन कार्ड पर
या वोटर रजिस्टर पर
कहीं भी मेरा नाम नहीं दिख रहा था

वे अपनी बूटों को
मेरी जीभ पर डालकर
एक स्वीकारोक्ति की कोशिश में थे

मुझे याद आ रहा था
तुमसे किया गया एक वादा लौटने का
उन्होंने कहा कि
बेतुकी हैं मेरी बातें
मेरी हड्डियों से लटकते हुए मांस की तरह
मेरी उम्र का पता देते हुए

हरेक संगीत सिंफ़नी नहीं होती

उनके संगीन की ठंढी नोक पर
मेरे गर्म लहू का इंतज़ार
क्रमशः लंबा होता जा रहा है
और यही उनके खीज की वजह है
जिसे बताने के लिए
करोड़ों पेड़ कट जाते हैं अभ्यारह्न में
करोड़ों शब्द गढ़े जाते हैं
और करोड़ों शब्द मान लिए जाते हैं
असंसदीय

अगर मुझे किसी नाम की तलाश होती तो
मैं मैं न होता
इसके वावजूद कि वे वे ही होते

इस असंसदीय संसार में
मैं तुम्हारा नाम अपने होंठों पर नहीं ले सकता
यद्यपि मुझे मालूम है कि
तुम्हारे बिना मेरे नाम का कोई अर्थ नहीं है

  • सुब्रतो चटर्जी

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