हिमांशु कुमार
आपने कभी शांति को महसूस किया है ? कुत्ता भौंका, आपने ध्यान दिया कि शोर हो रहा है लेकिन कुत्ते के भौंकने से पहले और बाद में जो शांति है, क्या आपने उसका आनंद महसूस किया ?
आप बीमार होते हैं तो सबको बताने लगते हैं कि आज मेरी तबियत ठीक नहीं है लेकिन जब आप स्वस्थ होते हैं तो आपका ध्यान अपने स्वस्थ होने पर जाता है ? क्या आप अपने स्वस्थ होने का आनंद महसूस करते हैं ?
बहु कहना नहीं मानती, बेटा नालायक है, पेंशन का एक इंक्रीमेंट ज्यादा मिलना चाहिए था, पड़ोसी आपसे जलता है, इस तरह की शिकायतों के विचारों से आपका मस्तिष्क हमेशा भरा रहता है. लेकिन जीवन में जो सकारात्मक है, जिसके आनंद की तरफ आपने ध्यान ही नहीं दिया, जिसे महत्वपूर्ण नहीं माना.
रिश्ते एक विचार से ज्यादा कुछ नहीं है. विचार को इतना महत्वपूर्ण क्यों मानते हैं ? आप क्यों मानते हैं कि आपकी बात मानी जानी चाहिए ? आप हर रिश्ते को दोस्ती की तरह क्यों नहीं निभाते ?बजाय लोगों से अपनी बात मनवाने के आप उनकी बात क्यों नहीं मान लेते ? आप सब से प्रेम से बात क्यों नहीं करते ?
सबको देखकर मुस्कुराइए, उनकी सहायता कीजिए. बड़प्पन और अधिकार का घमंड छोड़ दीजिए. घर में झाड़ू लगाइए, खाना बनाइए, पड़ोसियों से भी पूछिए कि आप उनकी कुछ मदद कर सकते हैं क्या ? जीवन प्रतीक्षण खिल रहा है लेकिन आप अपने नकारात्मक विचारों में इतने खोए हुए हैं कि आप उसे महसूस नहीं कर पा रहे.
संसार को आप कैसे देखते हैं ? अपनी नज़र से या उधार की नज़र से ? असलियत में आप अपने दिमाग पर बचपन से थोपी हुई बातों के आधार पर दुनिया को देखते हैं इसलिए यूपी का ब्राह्मण पुरुष किसी स्त्री पुरुष के रिश्ते को एक नज़रिए से देखेगा, केरल की मुसलमान महिला अलग नजरिए से देखेगी, हालैंड का नास्तिक अलग नजरिए से देखेगा. एक ही मुद्दे को को 3 लोग अलग-अलग नजरिए से देख रहे हैं.
आपका नजरिया आपके मजहब, आपके जन्म के स्थान, आपकी जाति आपके लिंग आपकी आर्थिक स्थिति के कारण बना है. आप इस उधार के नजरिए पर बड़ा गुमान करते हैं लेकिन इसमें आपकी अपनी कोई मौलिकता नहीं है. आप एक झुंड की मशीन में बना प्रोडक्ट भर हैं, जो कुछ समय बाद एक्सपायर हो जाएगा. यह मशीन नए-नए पीस बनाती रहेगी. इसे ही आप अपनी ज़िंदगी कहते हैं.
यह मशीन आपको बनाते समय एक मज़हब का इंजेक्शन लगा देती है. जाति, राष्ट्रवाद, पितृसत्ता के टीके लगातार लगते रहते हैं. और आप एक फाइनल प्रॉडक्ट के रूप में समाज में अपनी लाइफ पूरी करके मर जाते हैं. आप आज़ाद होकर कभी नहीं सोच पाते
आप गुलामी में पैदा होते हैं, गुलामी में मर जाते हैं इसलिए आपको आज़ाद सोच का पता नहीं चलता. आजाद सोच बहुत आनंददायक स्थिति है. वही मुक्त करती है. आज़ाद सोच व्यक्ति को भी आज़ाद करती है और समाज को भी.
हमारा समाज, हमारी राजनीति, हमारे व्यक्तिगत संबंध गुलाम सोच के कारण बर्बाद हो रहे हैं. आजाद सोच आपमें वो योग्यता पैदा करती है कि आप एक इंसान को इंसान की तरह देख पाते हैं. इंसानों को और इंसानी रिश्तों को स्वस्थ्य नजर से देख पाते हैं. अभी तो आप एक बीमार समाज की बीमारी से पैदा हुए एक बीमार विकृत प्रोडक्ट भर हैं.
असल में इस समय पूरी शिक्षा व्यापार और पूंजीपतियों के लिए चलाई जा रही है. और पूंजीपतियों को करोड़ों बच्चों में से गिने चुने गुलाम चाहिए. इसलिए ज्यादा से ज्यादा बच्चों को नकारा, बेकार और फेल सिद्ध करना जरूरी है.
सरकारें जिनका काम रोजगार की व्यवस्था करना था, वह अब बच्चों को रोजगार दे नहीं सकती क्योंकि रोजगार जिन उद्योगों में पैदा होता है, उन उद्योगों के मालिक पूंजीपति अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए कर्मचारियों की संख्या कम करते जा रहे हैं और मशीनें बढ़ाते जा रहे हैं इसलिए अब उद्योग और व्यापार नए रोजगार नहीं दे सकते.
अपनी जिम्मेदारी से बचने का एक ही तरीका है कि ज़्यादातर बच्चों को फेल घोषित कर दो. बच्चों को ही नकारा और बेकार बता दो तो फिर बच्चे खुद को ही गलत अयोग्य और फेल मानकर चुप बैठ जाएंगे और सरकार से नौकरी नहीं मांगेंगे.
दुनिया का कोई इंसान अयोग्य नहीं है. किसी इंसान की परिस्थिति, उसकी गरीबी उसे किसी परीक्षा में पास या फेल करती है. भारत में करोड़ों बच्चे गरीबी के कारण परीक्षा में फेल होते हैं और पढ़ाई छोड़ देते हैं. इसे सोशल इकनोमी कहा जाता है.
अगर सामाजिक कारण किसी व्यक्ति को अशिक्षित या गरीब रखते हैं तो यह सरासर अन्यायपूर्ण स्थिति है, इसे बदलना सरकार और समाज की जिम्मेदारी है. लेकिन जो सरकार अमीरों और पूंजीपतियों की मुट्ठी में कैद हो, वह भला सामाजिक अर्थशास्त्र को क्या समझेगी और क्या बदलेगी ?
भारत में अगर कोई खालिस्तान की मांग करता है तो उसे जेल में डाल दिया जाता है. भारत को अगर कोई इस्लामी राष्ट्र बनाने की बात करे तो उसे भी जेल में डाल दिया जाएगा. ठीक इसी तरह हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग करने वाले को भी जेल में डाल दिया जाना चाहिए क्योंकि भारत का संविधान भारत को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करता है.
संविधान के विरुद्ध बोलने वाले को एक बराबर अपराधी मानकर उसके विरुद्ध समान दंड लागू होना चाहिए. मजहब देखकर, नाम देखकर कानून लागू करना बंद करो. बातें समान नागरिक संहिता की कर रहे हो लेकिन समान दंड संहिता लागू करने में भी तुम्हारी रूह कांपती है !
ढोंग करना बंद करो, सच्चे सरकारी सेवक बनो. संविधान की शपथ लेकर सरकार में बैठे हो गुंडे बदमाशों की तरह काम मत करो.
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