बाल्टिक देशों में से एक जिस लिथुआनिया में नाटो शिखर बैठक के नाम से पूरी दुनिया एक अंजाने डर में घिर गई थी, उस बैठक में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसे कोई बेहद प्रासंगिक कदम कहा जाये. खबरों के मुताबिक लगभग 80 देशों के प्रतिनिधियों से भरा नाटो विलनियस शिखर बैठक एक ऐसी चिल्ल-पौं की भेंट चढ़ गया जहां नाटो व नाटो समर्थक देश जान की भीख मांगते प्रतीत हुए.
हालांकि ये बैठक अघोषित रूप में यूक्रेन युद्ध को केंद्र में रखकर आयोजित थी लेकिन रूस ने 11 व 12 जुलाई को विलनियस में जब नाटो समिट चल रहा था, यूक्रेन में ऐसा बारूदी कहर बरपा दिया कि नाटो खुफिया मुखबिरों को वारजोन से यह रिपोर्ट देने के लिए मजबूर होना पड़ा कि यूक्रेन को नाटो शामिल करने का मतलब रूस से नाटो की बची खुची ताकत का खात्मा करवा लेना. क्रेमलिन ने तो बैठक शुरू होने से पहले ही कह दिया था कि यूरोपीय देशों की कोई भी गिरोहबंदी पश्चिमी देशों को रूस से नहीं बचा सकता.
अमरीकी राष्ट्रपति बाइडन ने माना कि ‘यूक्रेन को अब नाटो में शामिल करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि रूस, यूक्रेन के लगभग 35 फीसदी हिस्से पर कब्जा कर चुका है और कब्जाये हिस्से सामारिक-व्यापारिक रूप से यूक्रेन की रीढ़ हैं.’ यानी कि नाटो देश यूक्रेन में अब सिर्फ अस्तित्व की लड़ाई के लिए मदद कर रहे हैं.
हालांकि यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने क्रुद्ध होकर नाटो देशों को ‘देख लेंगे’ की चेतावनी तक दे डाली है लेकिन जेलेंस्की की ये चेतावनियां व रुसवाइयां अब अर्थहीन हो चुकी हैं. दुनिया भर में कल से वो वीडियो वायरल हो गया था जिसमें जेलेंस्की नाटो समिट खत्म होने के बाद हताश होकर किनारे पर अकेले खड़े थे. नाटो समिट खत्म होते ही क्रेमलिन ने दहाड़ते हुए कहा कि-
‘नाटो समिट ने दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध के बेहद करीब ला दिया. रूस की सेना नाटो के सभी 32 देशों से एक साथ युद्ध करने के लिए तैयार है. नाटो देशों ने अगर रूस के किसी भी हिस्से में सैन्य कार्रवाई की तो रूस सीधे इसका जबाव न्यूक्लियर बम से देगा, फिलहाल रूस का यूक्रेन पर युद्ध रोकने का कोई इरादा नहीं है.’
क्रेमलिन ने अमरीका द्वारा यूक्रेन को क्लस्टर बम देने की बात पर कहा –
‘हम क्लस्टर का जबाव क्लस्टर से देंगे और हमारे क्लस्टर बम अमरीकी क्लस्टर बम से कई गुना अधिक शक्तिशाली हैं.’
बहरहाल, युद्ध जारी है और रूस ने एक बार फिर पिछले 24 घंटे में यूक्रेन की राजधानी कीव पर 123 से अधिक मिसाइलें दाग दी हैं. यूक्रेन ने दावा किया है कि उसने इन मिसाइलों में से 73 मिसाइलें हवा में ही ध्वस्त कर दी हैं. यूक्रेन ने ये भी कहा है कि उसने रूस के दो जनरलों को भी मार डाला है. रूसी जनरलों की मृत्यु पर क्रेमलिन ने कहा है कि ‘हम उन मिसाइलों की जांच कर रहे हैं कि मिसाइलें किस नाटो देश की हैं. हम उस देश को सीधे तौर पर सबक सिखायेंगे.’
मीडियाई रिपोर्टों के अनुसार रूसी जनरलों की मौत ब्रिटेन से मिले स्टार्म शेडो से हुई है. हालांकि ये तो सुनिश्चित है कि न्यूक्लियर बम की चपेट में इंग्लैंड सबसे पहले इतिहास बनेगा बाकी अमरीकी ह्वाइट हाउस, जर्मनी, रोम तक रूसी न्यूक्लियर विध्वंस का बवंडर मच उठेगा.
विलनियस नाटो बैठक खत्म होने के बाद बेलारूस, ईरान, उत्तर कोरिया, चीन व अरब देशों ने रूस को प्रत्यक्ष तौर पर हर तरह की मदद मुहैया कराने की बात कही है. कहा जा रहा है कि नाटो ने रूस की घेराबंदी के लिए 3 लाख सैनिकों की तैनाती कर दी है लेकिन अमरीकी खुफिया विभाग सीआईए के एक गुप्त दस्तावेज से लीक हुई खबर की मानें तो रूस की कोई घेराबंदी नहीं हुई है बल्कि सभी सैनिकों को रूस द्वारा नाटो समिट के बाद संभावित आक्रमक रूख पर अलर्ट रहने को कहा गया है.
बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने एक बेहद चौंकाने वाली बात कहकर नाटो देशों के होश फाख्ता कर दिए हैं. लुकाशेंको ने कहा कि ‘हम अपने व पड़ोसी देश रूस की सुरक्षा के लिए नाटो देशों से सतर्क हैं. रूस द्वारा न्यूक्लियर अटैक फरवरी 2022 में ही रूस द्वारा यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई के साथ सुनिश्चित हो गया था. न्यूक्लियर अटैक सिर्फ रूस ही नहीं करेगा, इसमें हमारे मुख्य सहयोगी देश भी शामिल होंगे…’.
समाचारों के अनुसार नाटो महासचिव ने यूक्रेन को निकट भविष्य में नाटो सदस्य नहीं बनाये जाने की बात कही है. नाटो महासचिव ने कहा है कि यूक्रेन नाटो सदस्यता हासिल करने वाली सभी आवश्यक शर्तें पूरी नहीं करता है. उधर जेलेंस्की अलग-थलग पड़े नाटो समिट खत्म होने के बाद अपनी पत्नी के साथ वापस राजधानी कीव को रवाना हो गए, सिवाय नाटो देशों से हथियारों की मदद देते रहने के कोरे आश्वासनों के.
जेलेंस्की अब आधे यूक्रेन के ही राष्ट्रपति बचे हैं … और … नाटो हो या पुतिन, इन्हें आधी अधूरी चीज बिल्कुल पसंद नहीं है. इसलिए यूक्रेन से आहिस्ता पीछे हटना नाटो को रूस का डर है और पुतिन का यूक्रेन पर फतह हासिल करना नाटो को सबक सिखाने का सख्त इरादा है…और….जीत के बाद पुतिन के इरादे कितने बुलंद हौसलों से लबरेज हो उठेंगे, इसकी कल्पना मात्र से ही नाटो देशों में अभी से मातम पसर गया है.
भारतीय मीडिया में पुतिन के जैकारे
समझ में नहीं आता कि भारतीय मीडिया रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस का यशगान क्यों कर रहा है. जेलेंस्की की सेना को कुचल रही रूसी सेना पर भी भाषाई दोहरा मापदण्ड का इस्तेमाल हो रहा है – ‘रूसी सेना ने 12 हजार यूक्रेनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया’ और ‘यूक्रेनी सेना ने रूस के सौ से अधिक सैनिकों पर हमला किया’ जैसे शब्द बोलकर भारतीय मीडिया रूस को रियायत देती नजर आती है. जबकि पिछले दिनों रूस ने भारत सरकार द्वारा अमरीका व नाटो देशों से हथियारों की खरीद करने वाले एक करारनामें का विरोध करते हुए धमकी भरे लहजे में तेल निर्यात को रोकने की बात तक कह डाली थी.
भारतीय मीडिया ने रूस के इस बड़बोलेपन पर मीडियाई रस्म निभाने से ज्यादा कोई रिपोर्टिंग नहीं की. हालांकि दक्षिण एशिया में भारत के आर्थिक दबदबे को भांपते हुए रूस ने बाद में एक और बयान दिया जिसमें कहा गया कि ‘हम भारत के साथ अपने परंपरागत मित्रवत संबंधों को और मजबूत होने की आशा रखते हैं. भारत के हर कठिन घड़ी में रूस भारत के साथ खड़ा है.’ इस बयान के बाद जर्मनी ने कहा कि ‘भारत के प्रति रूस की टिप्पणी को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. रूस चाहता है कि भारत, यूरोपीय देशों से नहीं बल्कि रूस से हथियार खरीदे.’
इस बयान के बाद चीन ने भी रूस को सफाई दी कि वह भारतीय सीमाओं पर कोई अतिक्रमण नहीं कर रहा है. उधर पाकिस्तान ने गुपचुप तरीके से यूक्रेन को हथियारों की मदद देने की जो मंशा बनाई थी, भारत ने उसका नैतिक विरोध किया था जिसके बाद जिनपिंग ने कोई घुड़की पाकिस्तान को भी जरूर दी जिससे पाकिस्तान ने यूक्रेन को मदद देने वाला अपना कदम पीछे खींच लिया.
रूस यूक्रेन युद्ध पर भारतीय तटस्थता को यूरोपीय देश पचा नहीं पा रहे हैं. यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने तो संयुक्त राष्ट्र संघ को भारत पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की नसीहत तक दे डाली थी. हाल-फिलहाल भारत किसी भी तरह दुनिया के देशों में चल रहे युद्धों का समर्थन नहीं करता है लेकिन अमरीका द्वारा ताइवान में लगातार अपने सैन्य बेसों को विस्तार देने की मंशा के पीछे अमरीका चाहता है कि चीन उकसावे में आकर कुछ अनर्गल कदम उठाए और इससे नाटो-अमरीका को दक्षिण एशिया में हस्तक्षेप करने का बहाना मिल जाए.
चीन जब सैन्य कार्रवाई के लिए एक्शन लेगा तो इससे भारत को असुरक्षित महसूस होने का मनोविज्ञान आकार लेगा और तब पश्चिमी देश भारत को अपने हथियार खरीदने के लिए बाध्य कर सकते हैं. हालांकि फिलहाल ये सभी समीकरण यूक्रेन युद्ध में रूस की हार से ही संभव हैं लेकिन रूस की हार तो छोड़िए यहां तो अमरीका-नाटो देश भी रूस से जान बख्श देने की मौन अपील मुद्रा में आ गए हैं. लेकिन पुतिन शत्रुओं की जान बख्श देंगे इसकी कल्पना हरगिज नहीं की जा सकती. इसीलिए भारतीय मीडिया ही नहीं बल्कि समूची अंतर्राष्ट्रीय मीडिया भी अपनी रिपोर्टों से पुतिन को कम आंकने वाले शब्द डिलीट कर चुकी हैं.
रूस चीन की बादशाहत के वैश्विक रूझान
अपने देश का हिंदी बेल्ट मीडिया भले ही सपना चौधरी के ठुमकों को ब्रेकिंग न्यूज बताने में लगा हो लेकिन दुनिया के बाकी देशों में ऐसी निठल्ली पत्रकारिता नहीं होती है. खबर है कि चीन ने कोबाल्ट व लिथियम की सप्लाई पर प्रतिबंध लगाने की बात कहकर समूची दुनिया में सनसनी फैला दी है. इससे पहले भी चीन कुछेक खनिजों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लगा चुका है.
कोबाल्ट, लिथियम का उपयोग इलैक्ट्रिकल कार , मोबाइल फोन निर्माण, बैटरी इत्यादि में किया जाता है. पूरी दुनिया की इन खनिजों के लिए चीन पर निर्भरता ह. भले ही कुछ दो चार और देशों में भी लिथियम कोबाल्ट निकलता हो लेकिन वहां भी चीन की कंपनियां ही इसे प्रोसैस करती हैं. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विश्लेषकों के अनुसार इससे पूरी दुनिया का इलेक्ट्रिकल बाजार एक तरफ होगा और चाइना बाजार एक तरफ भी होगा तो तब भी इलेक्ट्रिकल उत्पादों के लिए चीन पर निर्भरता पूरी दुनिया की मजबूरी होगी.
बताया जा रहा है कि अमरीका ने जबसे ताइवान को हथियारों की आपूर्ति का आश्वासन दिया है, तभी से चीन अमरीका से चिढ़ा हुआ है और अब चीन ने अपने दांव चलने शुरू भी कर दिये. अमरीका की 82% लीथियम की आपूर्ति अभी तक चीन से हो रही थी और पूरी दुनिया में गुणवत्ता के पैमाने पर चीनी खदानों से प्रोसेस किया लीथियम बहुत अधिक लोकप्रिय है. चीन द्वारा इन खनिजों पर प्रतिबंध करने के बयान पर दुनिया के मानवाधिकार संगठनों ने चीन से इस पर पुनर्विचार करने की मांग की है.
हालांकि चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति पुतिन का नंबर एक दुश्मन अमरीका को घुटनों के बल रगड़-रगड़ कर चित्त करने की संयुक्त राजनीतिक परियोजना इससे आगे बढ़ती दिख रही है. अमरीकी ह्वाइट हाउस की तरफ से चीन को इस पर संयम बरतने की नसीहत दी गई है. उधर उत्तर कोरियाई न्यूज एजेंसी बेल्टा के इंटरनेशनल पालिटिकल एनालिसिस सेक्शन द्वारा लीथियम और कोबाल्ट पर चीनी प्रतिबंध को मानवता के प्रति सचेत जिम्मेदारी व जबाबदेही करार दिया गया है.
चीनी टेलीविजन समाचारों के अनुसार ‘चीन कभी भी युद्ध की तरफदारी नहीं करता है, यह जरूरी है कि यूरोपीय देशों को अधिकाधिक हिंसक बनाने वाले सारे व्यापारिक संबंध चीन द्वारा रद्द किए जायेंगें.’
फिलहाल अमरीका रूस यूक्रेन युद्ध में गलफांस लगाये एक तरफ नाटो देशों की अगुवाई में फंसा है तो दूसरी तरफ रूस से अपने अस्तित्व की मौन भीख में फंसा है. अमरीका को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि वह अब भी हिरोशिमा नागासाकी तबाही के दौर का अमरीका है. अब आधी दुनिया परमाणु संपन्न देशों से लैस है. ग़लती से अमरीका ने अपना वर्चस्व दिखाने की कोशिश की तो अमरीका अनगिनत हिरोशिमा नागासाकी में बदल जायेगा.
और इसे भूमंडलीकरण का श्रीगणेश करने वाला अमरीका भी बखूबी जानता है कि भूमंडलीकरण के नतीजों ने न केवल उसकी बादशाहत पर कुठाराघात किया है बल्कि ईरान बेलारूस जैसे देश भी उसको युद्ध के लिए ललकार कर उसकी वैश्विक दुर्गति का पंचनामा कर रहे हैं.
- ऐ. के. ब्राईट
Read Also –
यूक्रेन युद्ध : अमरीका के नेतृत्व में चलने वाले नाटो को भंग करो
लिथुआनिया नाटो शिखर बैठक से पहले यूक्रेन बाहर : यूरोप को पुतिन और एशिया को जिनपिंग करेंगे कंट्रोल
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]