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व्हाट इज योर क्रेडिट वर्थ ?

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व्हाट इज योर क्रेडिट वर्थ ?? यानी, कितना कर्ज मिल सकता है आपको ?? क्रेडिट, जिसे हिंदी में साख कहते हैं. विशुद्ध हिंदी में औकात कहते हैं, जो कोई वित्तीय संस्थान आपकी नापता है.

व्यक्ति और बैंक के बीच ऋण के लिए कोई फिक्स रूल नहीं, क्योंकि बहुत से पैरामीटर होते हैं, मगर एक ‘रूल ऑफ थम्ब’ है- अधिकतम, आपकी सैलरी का 60 गुना…! यानी, आपके टोटल 5 साल की कमाई। यह भी देखा जाता है कि आपके क़िस्त आपके कमाई की चौथाई के आसपास ही हो। आखिर भूखे रहकर आप क़िस्त भरोगे नहीं।

तो 5 साल की कमाई लोन में लीजिए, 20 साल में पटाइये. इससे ज्यादा कर्ज ले लिया या क़िस्त बनवा ली, तो वित्तीय संस्थान इस लोन को सुरक्षित नहीं मानता. वो और लोन नहीं देगा. सम्भव है कि वह और भी कर्ज दे दे, पर उसे कुछ और अपेक्षा रहेगी. फ़ॉर एग्जाम्पल- अगर वो पड़ोस का महाजन हुआ, पैसे आपको आपकी साल्वेंसी से ज्यादा दे रहा है, बेधड़क दे रहा है तो उसकी निगाह कहीं और है. शायद आपकी बहू बेटी पर बुरी निगाह रखता है. मदर इंडिया का सुक्खी लाला याद कीजिए.

यह देश पर भी लागू है. 2014 में आपका वार्षिक रेवेन्यु बजट जब 23 लाख करोड़ था, कर्ज 54 लाख करोड़ थे. 2 साल की आय के बराबर. यानी, वेल बिलो द रेड लिमिट. आज 220 लाख करोड़ है, आय 30 लाख करोड़. यानी, 150 के बाद आप रेड लिमिट क्रॉस कर गए हैं. इसके बाद औऱ पैसा पाने के लिए देश के प्रबन्धक जो गिरवी रखते गए हैं- वह है अस्मिता, सम्मान, इज्जत…! सर नवा आते हैं, राष्ट्र को लिटा आते हैं.

और पैसे लेकर कहां लगाए, उसका जवाब नहीं मिलेगा. यहां तो रिजर्व बैंक से छपे 88 हजार करोड़ की करेंसी कहां गयी, पूछने की फुर्सत किसी को नहीं.

क़िस्त दूसरा फैक्टर है. जो ज्यादा से ज्यादा, आपकी मासिक कमाई का 25% होनी चाहिए. फिलहाल क़िस्त पटाने में देश के रेवेन्यु का 45% जा रहा है. इसका मतलब घर चलाने, पेट और बिल भरने के लिए कम पैसा, या सुख सुविधाओं में कटौती करनी होगी.

ये कटौती जनता को करनी पड़ती है, नेता को नहीं. वो तो टैक्स बढाकर, महंगाई बढाकर निकल लेता है. 1 रुपये की माचिस पर 20 पैसे टैक्स मिलते हैं, 5 रुपये की हो जाये तो 1 रुपये टैक्स मिलेगा. और नेता बतायेगा, टैक्स रेवेन्यू बढा दिया है. जीएसटी की कमाई रिकार्ड तोड़ रही है. कितना शानदार प्रबंधन है ! देखो…!!

तो विदेशी महाजनों के सामने गिरती हुई औकात, अस्मिता बेचना, मंहगाई बेलगाम बढ़ना और शानदार प्रबंधन करके तीन ट्रिलियन की इकॉनमिक्स का उद्घोष…, ये स्क्रिप्ट किस जगह की लगती है आपको ?? ये हमारी मदर इंडिया की ही कहानी है.

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देश का कर्ज बढ़ने (मदर इंडिया) पर दो महत्वपूर्ण डिफेंस का उचित उत्तर दे रहा हूं.

पहला बहाना- करोना !

असलियत- जी हां, पोस्ट कॅरोना, सभी साउथ एशियन देशों का कर्ज 40 से 50 प्रतिशत तक बढ़ा है मगर भारत का 80 प्रतिशत तक बढ़ा है. हम सबसे हायर साइड पर हैं और करोना के पहले ही ढलान तेज हो चुकी थी. दरअसल भारत की कमर टूटी नोटबन्दी से और कुचली गयी जीएसटी से.

इस गवर्नमेंट की सबसे किलिंग चीज है-अन प्रिडिक्टबिल्टी. यानी, कुछ भी, कभी भी, जो मर्जी आये, फैसला कर देना…! अच्छी सरकार की नीति स्थिर, परिवर्तन प्रिडिक्टिबल होने चाहिए. आपका इन्वेस्टर, जो 5-10 साल की योजना बनाता है, वह सरकारी पॉलिसीज और लाभ हानि के गणित पर काम करता है. उसकी हिम्मत टूटती है, अगर वो गणित ही औचक बदल जाये…, कोई पुरानी नीति पलट जाए.

ये सरकार चुनावी लाभ के लिए, अम्बानी अडानी के हित के लिए, या मोदी जी के दिमाग में 8 बजे आने वाली आइडिया की वजह से- अचानक कुछ भी कभी भी कर देती है. सीक्रेसी इतनी कि किसी को कानोंकान खबर नहीं होती. पूर्वाभास नहीं होता.

भरोसा इतना घट चुका कि इस सरकार के दौर में इन्वेस्टमेंट नहीं लौटेगा. हां, काला पैसा, मॉरीशस रुट से इन्वेस्टमेंट बनकर आएगा, शेयर मार्केट गुलजार रहेगा मगर इससे सट्टेबाज कमाएंगे. मैन्युफैक्चरिंग, रोजगार, ग्रोथ और रेवेन्यू बढ़ेगा नहीं. कमाई खर्च की खाई बढ़ेगी, कर्ज बढ़ेगा. यानी, आयेगा, तो कर्जा ही !

दूसरा डिफेंस- केंद्र की कर्ज की किश्ते, कमाई का केवल 22-23% प्रतिशत है, मैनें 45% लिख दिया. दोनों चीजें सही हैं, कैसे..??

केंद्र कमाई तो अपना और राज्यों का जोड़कर दिखाती है, मगर कर्ज की क़िस्त सिर्फ केंद्र की. ऐसा क्यों ?? दरअसल जीएसटी के बाद एक मजेदार चीज हुई है. 2017-18 तक 13-14 लाख करोड़ का सेंट्रल बजट था और सारे स्टेटस का भी 15-16 लाख करोड़. राज्य अपना टैक्स लेते, अपना खर्च करते. केंद्र भी अपना टैक्स लेता, अपना खर्च करता.

मगर जीएसटी के बाद, सारे देश का रेवेन्यु पहले सेंटर के पास आता है. वो अपना हिस्सा रखकर, राज्यों को उनका हिस्सा बांटता है. यही कारण है देश का बजट जो UPA के समय 12-14 लाख करोड़ दिखता था, GST के बाद एकदम से 28 लाख करोड़ दिखने लगा.
जादू.. !!!

तो कमाई अब मोदी सरकार, राज्यों को मिलाकर जोड़ती है लेकिन कर्ज की किस्तें, सिर्फ सेंट्रल वाली ही शो करती है. इस गहरी फन्देबाजी के बीच सच्चाई जानने के लिए आपको राज्यों की किश्त अलग से जोड़नी पड़ेगी, जो टोटल 45 से 50% जाएगा.

  • मनीष सिंह

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