मैंने आपको जाने तो नहीं कहा था
बस इतना भर कहा कि
आप मेरे पास रहो
मेरे पहलू में बैठो
बातें करो मेरे साथ
जैसे बरसते हुए बादल
बातें करते हैं ज़मीन से
और जब अपना सबकुछ लुटा कर
निःस्व हो जाओ
खो जाओ कहीं खलाओं में
मैंने आपको जाने तो नहीं कहा था…
बारिश नदी भी है
और नाव भी
मैंने कहा उससे
जब थक जाऊंगा मैं
पतवार थामे हुए
क्या तुम थाम लोगे पतवार
या कर दोगे मुझे नदी के हवाले ?
उसका उत्तर उसके मौन में था
जिसे पढ़ने की कोशिश में
मैं आ गया हूं उससे बहुत दूर…
- सुब्रतो चटर्जी
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