अमरीका समेत पश्चिम यूरोप के देशों द्वारा यूक्रेन सरकार को दी जाने वाली भारी सामरिक एवं आर्थिक सहयोग की बदौलत यूक्रेन एवं रूस के बीच पिछले एक साल से जारी युद्ध के रुकने को संभावना समाप्त-सी होती जा रही है. अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की यूक्रेन की राजधानी कीव का गुप्त दौरा तथा यह घोषणा कि हम रूस को यूक्रेन युद्ध में परास्त करके रहेंगे की प्रतिक्रियास्वरूप रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अमरीका एवं रूस के बीच हुए ‘न्यू स्टार्ट परमाणु संधि’ से रूस को अलग करने की घोषणा कर दी है. पूरी दुनिया में इसकी वजह से गहरी चिंता देखी जा रही है.
अमरीका और रूस के बीच वही अंतिम संधि थी जिसकी बदौलत परमाणु हथियारों एवं लंबी दूरी के मिसाइलों की संख्या को सीमाबद्ध किया गया था. इसकी जांच-परख अमरीकी विशेषज्ञ रूस जाकर एवं रूसी विशेषज्ञ अमरीका जाकर उनके सामरिक अड्डों का निरीक्षण करके करते थे. यह संधि 2010 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा एवं रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की सहमति के पश्चात उनके हस्ताक्षर से जारी किया गया था.
इस समझौते के अनुसार रूस और अमरीका अधिकतम 1550 परमाणु मिसाइल, 700 लंबी रेंज की मिसाइल और बमवर्षक बिल्कुल तैयार रख सकते हैं. आज रूस और अमरीका के पास पूरी दुनिया के परमाणु हथियारों के 90% हैं. साथ ही दोनों देश इसकी जांच और निगरानी भी समय-समय पर करते रहेंगे. इस समझौता से रूस के निकलने के परिणामस्वरूप अब वे एक-दूसरे के हथियारों की जांच नहीं कर सकते तथा दोनों इसकी तय सीमा से ज्यादा परमाणु बम, मिसाइल और बमवर्षक विमान बनाकर रख सकते हैं.
इस प्रकार यह एक नये परमाणु हथियारों की प्रतिद्वंद्विता को जन्म देगा. अन्य परमाणु सम्पन्न देश भी नये-नये परमाणु बम और मिसाइल बनाना शुरू कर सकते हैं. इससे विश्व में परमाणु युद्ध की संभावना बढ़ जाएगी तथा पूरी मानवता का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरन अमरीका ने जापान के दो शहरों पर परमाणु बम गिराए थे जिससे लाखों लोग जलकर भस्म हो गए तथा अन्य लाखों लोग भयानक बीमारियों से ग्रस्त हो गए. पूरा शहर राख का ढेर बन गया. मानव समाज इस त्रासदी को भूला नहीं है.
लेकिन अमरीका एवं इसके नाटो सैन्य संधि के सहयोगी देश, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, इत्यादि रूस को शिकस्त देने एवं उसकी आर्थिक-सामरिक शक्ति को ध्वस्त करने पर आमादा हैं. अपने इस कात्सित उद्देश्य की पूर्ति के लिए इनलोगों ने सोवियत रूस के अन्तिम राष्ट्रपति गोर्वाचिव को दिए अपने वादे को तोड़ दिया कि अगर गोर्वाचिव वारसा संधि को समाप्त कर देते हैं ता वे नाटो को भंग कर देंगे.
गोर्वाचिव के निर्देश पर सोवियत यूनियन ने वार्सा समझौते को समाप्त कर दिया, जिसके तहत पूर्वी यूरोप के देश पोलैंड, हंगरी, चेकोसलोवाकिया, रूमानिया इत्यादि से सोवियत सेनाएं वापस हो जाएंगी. लेकिन अमरीका एवं इनके अन्य पूंजीवादी साम्राज्यवादी सहयोगियों ने न सिर्फ नाटो को भंग नहीं किया, बल्कि वार्सा पैक्ट से बाहर आए रूस के पड़ोसी देश, पोलैंड, हंगरी, इत्यादि को नाटो में शामिल कर लिया.
पूर्वी यूरोप में अपना पांव पसारकर अमरीकी साम्राज्यवाद एवं उसके यूरोपीय सहयोगियों ने यूक्रेन को भी नाटो में शामिल करने की कवायद शुरू कर दी. पुतिन ने बार-बार चेतावनी दी कि वे ऐसा नहीं करें, अन्यथा इसका परिणाम बुरा होगा. यूक्रेन के नाटो में शामिल होने से अमरीका, इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस की सेनाएं वहां रूस की सीमा के पास अपना सैनिक अड्डा एवं मिसाइल सिस्टम तैनात करती. यूक्रेन की सीमा से अमरीकी मिसाइल मात्र 12 मिनट में मास्को पर बम गिरा सकती है.
रूस के लोग भूले नहीं हैं कि हिटलर की सेनाएं यूक्रेन के रास्ते ही रूस में घुसीं और तेजी से मास्को की ओर कूच कर गईं, क्योंकि वह समतल क्षेत्र है. मास्को को मुक्त कराने की ऐतिहासिक लड़ाई एवं बलिदान रूस के लोग भूले नहीं हैं. इतना ही नहीं, अमरीका एवं इंग्लैंड की योजना थी कि यूक्रेन से सटे काले सागर पर वे कब्जा कर वहां अपना नौसनिक अड्डा बनाएंगे तथा रूस को वहां से बेदखल कर देंगे. रूसी नेवी का केन्द्र ब्लैक सी (काला सागर) में ही है.
इस प्रकार अमरीकी साम्राज्यवाद एवं उसके नाटो सहयोगी रूस को बर्बाद करने एवं वहां अपनी कठपुतली सरकार बनाने कौ नीति पर काम कर रहे थे. सोवियत यूनियन के विघटन के बाद पूरी दुनिया पर अपना दबदबा बनाने का अमरीकी सपना पूरा करने में एक ही बाधा थी, रूस की विशाल सैन्य शक्ति (जिसमें उसको परमाणु क्षमता सबसे अहम थी). अपने इसी मंसूबे को पूरा करने के लिए इन्होंने पहले यूक्रेन की चुनी हुई सरकार को भीड़तंत्र का उपयोग करके अपदस्थ कर दिया एवं जेलेन्सकी सरकार को स्थापित किया.
इस सरकार ने 10 विरोधी दलों को प्रतिबंधित कर दिया है, जो यूक्रेन के नाटो में शामिल होने का विरोध करते थे. साथ ही लाखों उन यूक्रेनवासियों का भयानक दमन किया जो रूसी भाषा बोलते थे तथा रूस के साथ अच्छे रिश्ते के हिमायती थे. उन क्षेत्रों में यूक्रेन से अलग होने का आन्दोलन चल रहा था. वहां के लोगों का जबरदस्त दमन वर्तमान सरकार ने किया. रूसी सेनाओं ने उनको आजाद कर दिया.
फिलवक्त आवश्यकता इस बात की है कि युद्ध को रोका जाय. अगर ऐसा नहीं हुआ तो परमाणु युद्ध और विश्व युद्ध होने की संभावना पैदा हो जाती है. ऐसा हुआ तो पूरी मानवता तबाह और बर्बाद हो जाएगी. लेकिन ये तभी संभव है जबकि रूस को घेरने एवं बर्बाद करने की अमरीका एवं नाटो के मंसूबों पर लगाम दिया जाय. तभी समझौते के रास्ते पर चलकर युद्ध विराम एवं स्थायी शांति के लिए समझौता हो पाएगा. अमरीका के नेतृत्व में चलने वाले नाटो को भंग करने का निर्णय भी आज नहीं तो कल लेना पडेगा. अन्यथा ये दुनिया में कहीं-न-कहीं युद्ध को अंजाम देते ही रहेंगे. इस दृष्टिकोण के साथ शांतिप्रिय लोगों को पूरी दुनिया में गंभीर प्रयास करना होगा.
- अरविन्द सिन्हा
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