Home कविताएं एक देश और तीन फासिस्‍ट…

एक देश और तीन फासिस्‍ट…

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एक बार एक देश था
उसमें एक फासिस्ट था
वह भाषण में शब्दों से खेलता था
कविताएं भी लिखता था तुक जोड़-जोड़कर
इशारों-इशारों में मंतव्य प्रकट करता था
जिसे हत्यारे और दंगाई समझ जाते थे
और फिर वह हत्यारों और दंगाइयों को
मर्यादा में रहने के लिए
प्यार से झाड़ पिलाता था और फिर
ढेरों शरीफ़ लोगों के साथ हत्यारे और दंगाई भी
उसके प्रति श्रद्धा से भर जाते थे !

एक दूसरा फासिस्ट था
जो कुशल योजनाकार था और
इतना भावुक था कि मसाला फ़िल्में देखते हुए
फूट-फूटकर रोने लगता था।
वह पूरे देश में उन्माद की ऐसी लहर फैलाता था
कि बरसों सड़कों पर खून का सैलाब
उमड़ता रहता था रह-रहकर
मंदिर से मंदिर तक यात्रा उसका शौक था
मुंह में राम बगल में छुरी रखता था !

एक तीसरा फासिस्ट था
जो हत्यारों के गिरोह की सरदारी कर चुका था
और ऐतिहासिक हत्याकांड रच चुका था.
तीसरा फासिस्ट जब सत्ता में था
और देश एक आततायी अँधेरे में डूबा हुआ था !

जब पहला मरा लंबा बुढ़ापा झेलकर
तब उसकी राख को लोटे में भर भरकर घुमाया गया
और दूसरा सत्तासीन होने के टूटे सपनों के साथ
बलात आरोपित संन्यास में आज भी
रो रो कर -बिलख रहा है.

उस देश में कुछ जनतंत्र को मानने वाले,
उदार जनवादी और वामपंथी लोग थे.
उनमें से कुछ हरदम मर्यादा में रहते थे
और संविधान और कानून-व्यवस्था से
बेहद भावुक होकर प्यार करते थे.
वे इतने सहिष्णु, सहृदय और मानवतावादी थे
इतने सहिष्णु, सहृदय और मानवतावादी थे कि
पूछो मत !
और वे निरपेक्षतः सापेक्षवादी भी थे !

उन्होंने पहले फासिस्ट की उदारता और शालीनता
और सहिष्णुता की भूरि-भूरि प्रशंसा की
और उसकी मौत पर जार-जार आंसू बहाए.
उन्होंने दूसरे फासिस्ट के प्रति गहरी हमदर्दी जताई और
उसे पहले से ख़राब लेकिन तीसरे से काफी अच्छा बताया.
उन्होंने कहा कि अब इस देश में कुछ
बहुत अच्छा तो हो नहीं सकता,
अगर तीसरे वाले की जगह पहले वाले जैसा कोई
फासिस्ट मिलता,
या दूसरे वाले की ही मनोकामना पूरी हो गयी होती
सत्तासीन होने की
तो कितना अच्छा होता.

इस तरह देश के सबसे भद्र,
सुसंस्कृत, शालीन, सदाशयी, शांतिप्रेमी,
उदार वामपंथी, प्रगतिशील राजनेताओं और बौद्धिक जनों ने
अपने सापेक्षवादी विचारों से और गहन सरोकारों से
अपने देश के आम जनों को समृद्ध बनाया
और अनुगृहीत किया

कल अगर कोई चौथा फासिस्ट आएगा सत्ता में
बर्बरता की साक्षात् मूर्ति,
एक वहशी हत्यारा,
पूंजी का और भी नंगा वफ़ादार चाकर
तो उस देश के लोकतांत्रिक उदार वामपंथी
राजनेताओं और बौद्धिक जनों का यह समूह
उसके मुकाबले तीसरे फासिस्ट को बताएगा
थोड़ा बेहतर और सापेक्षतः अधिक मानवीय
और इस तरह कुछ बेहतर की उनकी चाहत बनी रहेगी
और तलाश जारी रहेगी !

  • डरबन सिंह

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