Home गेस्ट ब्लॉग फरीदाबाद : ग्रीवांस कमेटी के सरकारी पाखंड की नौटंकी और खट्टर का खटराग

फरीदाबाद : ग्रीवांस कमेटी के सरकारी पाखंड की नौटंकी और खट्टर का खटराग

5 second read
0
0
178

जनता के लिए समस्या पैदा करने वाले ही उन्हें दूर करने का नाटक करते हैं. बिना ‘पाखंड के तो इस सरकार का कोई काम होता ही नहीं, हर काम पाखंड की तरह ही किया जाता है लेकिन उन पाखंडों में ग्रीबेंस सार्वजनिक रूप से किया जाता है. यह पाखंड कोई अकेले खट्टर नहीं कर रहे, इनसे पहले के सारे मुख्यमंत्री यही करके जनता को मूर्ख बनाते रहे हैं, खट्टर ने तो केबल उस परिपाटी को आगे बढ़ाया है.

सवाल यह पैदा होता है कि फरीदाबादवासियों की क्या समस्याएं हैं, यह केवल ‘फरीदाबाद आने पर ही पता लगता है ? क्या यह सब उन्हें चंडीगढ़ में बैठे नजर नहीं आ सकता ? क्या उन्हें सड़कों, सीबर, पेयजल, स्कूलों, अस्पतालों आदि की समस्याओं का ज्ञान वहां बैठे नहीं हो पा रहा ? यदि वास्तव में ही नहीं हो पा रहा तो सरकारी अफसरों-कर्मचारियों को इतनी बड़ी फौज पालने की जरूरत क्या है ? इनकी छुट्टी करो, खट्टर साहब खुद जाकर देखा करें और मौके पर ही हर समस्या का समाधान कर दिया करें, इतने बड़े अमले की कोई जरूरत हो नहीं !

दरअसल, खट्टर को सब कुछ पता है कि कहां क्या हो रहा है, कौन क्या लूट रहा है और कितना-कितना हिस्सा किस-किस को जा रहा है, वे सब जानते हैं. ग्रीबेंस कमेटी की मीटिंग को केवल घूमने फिरने यानी पिकनिक मनाने, अपने कार्यकर्ताओं से मिलने व अपने मनी कलेक्टरों से हिसाब-किताब लेने के लिए आने का एक बहाना मात्र है. प्रत्येक मुख्यमंत्री की तरह खट्टर के दौरे भी अधिकतर फरीदाबाद एवं गुड़गांव जैसे उपजाऊ जिलों में ही होते हैं, वे जींद, रोहतक, भिवानी जैसे जिलों में जाने से बचते हैं.

नौकरशाही पर बुरी तरह निर्भर सीएम खट्टर को अधिकारी हर तरफ सब्जबाग दिखाते हैं. ग्रीबेंस कमेटी की बैठक में आने वाली शिकायतों का चयन यही अधिकारी करते हैं. ग्रीबेंस कमेटी में सुनवाई के लिए प्रतिमाह सौ से अधिक शिकायतें रखी जाती है. भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि अधिकारियों की दिलचस्पी शिकायतों के चुनाव में नहीं बल्कि शिकायतकर्ता के चुनाव में रहती है.

बाकायदा जांच की जाती है कि शिकायतकर्ता की राजनीतिक मानसिकता क्‍या है. गैर भाजपाइयों की शिकायतें ठंडे बस्ते में डाल
दी जाती हैं क्‍योंकि इनमें से अधिकतर अधिकारियों के लिए समस्याएं खड़ी कर सकती हैं. भाजपा समर्थक या कार्यकर्ताओं की शिकायतें ही चुनी जाती हैं. यहां तक कि फरीदाबाद ग्रीवांस कमेटी मीटिंग की अध्यक्षता करते हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर विपक्षी विधायक भी कोई मुद्दा नहीं उठा सकते, मुख्यमंत्री उन्हें चुप कराते हुए कहते हैं कि यहां नहीं विधानसभा में अपनी बात रखना.

मुख्यमंत्री की सुनवाई के लिए अधिकतर ऐसी शिकायतें रखी जाती हैं जिनका समाधान छोटे कार्यालय के स्तर पर ही हो सकता है. यानी सार्वजनिक हित की या मुख्यमंत्री स्तर से निर्णय लिए जाने योग्य नहीं होती. या ऐसी शिकायतें रखी जाती हैं जिनमें तुरंत कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता. ग्रीवेंस कमेटी की इस बैठक में भी पंद्रह शिकायतों में व्यक्तिगत समस्याएं जैसे आपसी मारपीट, कब्जा (जिसका फैसला न्यायालय में ही हो सकता है), हूडा द्वारा कब्जा नहीं दिया जाना, निजी संस्थान द्वारा कर्मचारी की ग्रेच्युटी रोकना (इसका फैसला श्रम न्यायालय में होगा), रिश्तेदार द्वारा द्यूबबेल पर कब्जा किया जाना जैसी थी.

कुछ शिकायतें विभागों द्वारा सुनवाई नहीं किए जाने जैसे, कृषि बीमा राशि का भुगतान नहीं होने, पाकों की देखभाल नहीं होने की थी. एक आध शिकायत ही जन समस्या से जुड़ी यानी मुख्यमंत्री के निर्णय लेने योग्य पाई गई. आधा पौन घंटे के इस स्वांग में मुख्यमंत्री ने शिकायतें तो सुनीं लेकिन लापरवाही पाए जाने पर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का कोई आदेश नहीं दिया.

हां, उनकी बातों पर हॉल में बैठे भाजपा कार्यकर्ता तालियां बजा कर अपनी मानसिक गुलामी का सुबूत देते जरूर दिखाई दिए. अंत में सीएम बेठक की सफलता पर सबको धन्यवाद देकर रवाना हो गए.

खट्टर ने मोदी से ली है झूठ बोलने की प्रेरणा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्र झूठ बोलो, बार-बार झूठ बोलो, जब बोलो झूठ बोलो से प्रभावित मुख्यमंत्री ने ग्रीबांस कमेटी की बैठक के दौरान बड़ा झूठ बोला. डबल इंजन सरकारों के अंधभक्त भाजपा
कार्यकर्ताओं ने तालियां बजा कर खट्टर के सफेद झूठ की खूब तारीफ की.

ग्रीबांस कमेटी के दौरान शिकायतकर्ता किसान वेदपाल का मामला सामने आया. माइक पर खड़े वेदपाल ने अपना परिचय दिया और बैंक द्वार फसल बीमा राशि का भुगतान नहीं किए जाने की शिकायत की. इस पर सीएम खट्टर ने कहा कि बेदपाल आपसे तो मेरी पहले भी फोन पर बात हो चुकी है. मुझे आपका केस याद है. बाद में खट्टर बोले कि मैं प्रत्येक शनिवार दस हजार लोगों से फोन पर बात कर उनकी समस्याएं सुनता हूं और अभी तक दो लाख लोगों से फोन पर बात कर चुका हूं.

बस फिर क्‍या था क्‍या भाजपा कार्यकर्ता, क्या अधिकारी सबकी तालियों से कन्बेंशन हॉल गूंज पड़ा. तालियों से उत्साहित खट्टर बोले कि जिन लोगों से बात होती है उन्हें याद रखता हूं, जैसे वेदपाल से मेरी बात हुई थी. एक बार फिर तालियां बजीं. हालांकि बातचीत के दौरान वह कई संस्थाओं और अधिकारियों के नाम भूले बगल में बैठे डीसी हर बार उन्हें याद दिलाते जब जाकर वह डीसी की हामी मिलाते हुए कहते कि उस संस्था में शिकायत देनी होगी या अधिकारी से मिलना होगा.

मान लिया जाए कि खट्टर प्रत्येक शनिवार सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक दस हजार लोगों से लगातार बात करते हैं, यानी इस दौरान न तो वह नाश्ता करते हैं, न पानी पीते हैं, शौचालय भी नहीं जाते, लंच और शाम का टी ब्रेक भी नहीं लेते तो बह आठ घंटे यानी 480 मिनट लगातार बात करते हैं. इन्हें अगर सेकेंड में तब्दील किया जाए तो कुल 28,800 सेकेंड हुए यानी वह प्रत्येक व्यक्ति से महज 2.88 सेकेंड ही बात करते हैं. तीन सेकेंड से भी कम समय में तो सिर्फ दोनों ओर से अभिवादन का आदान प्रदान ही हो सकता है नाम पूछना और समस्या सुनना तो बहुत दूर की बात.

अगर खट्टर साहब की मानें तो उन्हें न सिर्फ नाम याद रहते हैं बल्कि लोगों की समस्याएं भी याद रहती हैं. अगर आठ घंटे के समय को बढ़ा कर प्रधानमंत्री मोदी की तरह 18 घंटे भी कर लिया जाए तो प्रति व्यक्ति केवल 6.48 सेकेंड का ही समय होता है, इसमें कितनी बात हो सकती है खुद हो अंदाज लगाया जा सकता है. अंधभक्तों ने भले ही तालियां पीटा लेकिन प्रज्ञावान नागरिक आंकड़ों के आधार पर खट्टर के इस दाबे को सफेद झूठ मानते नजर आए.

  • ‘मजदूर मोर्चा’ की खबर

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…