राम अयोध्या सिंह
कर्नाटक चुनाव में भाजपा और स्वयं मोदी की हार के बाद से संघ, भाजपा और मोदी के समर्थकों में अजीब-सी बेचैनी है. लग रहा है जैसे पासा पलट गया है, हर दाव उल्टा पड़ रहा है और हर बाजी हारते जा रहे हैं. संघ, भाजपा, अंधभक्तों और स्वयं मोदी अपने आपको अजेय समझते रहे हैं, पर जाने क्या हुआ है कि कर्नाटक चुनाव के बाद से सब कुछ उलट-पुलट गया है.
अपने नौ साल की कारगुजारियों, जनविरोधी नीतियों, निर्णयों और योजनाओं तथा अपने सनकीपन को समाचारपत्रों और मोदी मीडिया तथा पूंजीपतियों की पूंजी के बल पर एक छद्मावरण तैयार कर अपनी जिस अजेय छबि का निर्माण किया था, वह भरभराकर गिर गया है. संभाले नहीं संभल रहा है. अपनी तुगलकी फरमानों, मन की बातों, डपोरशंखी घोषणाओं, चुनावी रैली, सभाओं एवं रोड शो और अनावश्यक विदेश यात्राओं के माध्यम से अपनी अजेयता की जिस छबि का निर्माण किया था, देखते ही देखते तिनके की तरह उड़ गया.
कर्नाटक चुनाव के बाद नये संसद भवन का उद्घाटन और लोकसभा में स्पीकर की सीट के पास सेंगोल का प्रतिष्ठापन की अशुभ घड़ी को साधुओं, संतों और पंडितों की जमात भी शुभ में नहीं बदल सके. समाचारपत्रों, होर्डिंग और मीडिया में हर समय और हर जगह सिर्फ अपनी तस्वीर के प्रदर्शन के बावजूद लगातार मात खाते जा रहे हैं. उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के पुनरोद्धार के समय बने शिव की नौ मूर्तियां आंधी के एक ही झोंके में तिनके की तरह उड़ गईं. हर मूर्ति की लागत साठ लाख रुपये थी, और जिसे गुजरात के ठेकेदारों ने बनाया था.
इसके तुरंत बाद ही ओडिशा में सदी की सबसे भीषण रेल दुर्घटना हुई, जिसमें हजारों लोग मौत के ग्रास बने, वहां भी अपनी छबि चमकाने से बाज नहीं आये. इसी बीच पहलवान लड़कियों ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने लड़कियों का सेक्सुअल हरासमेंट किया है. उनके खिलाफ जंतरमंतर पर प्रदर्शन और धरना भी कई दिनों तक चले. इस क्रम में महिला पहलवानों के साथ दिल्ली पुलिस का रवैया क्रुरता की सारी सीमाएं लांघ गया.
सब कुछ उल्टा होते देख फिर इन्होंने विदेश यात्रा की राह पकड़ी, और चल पड़े जापान, जहां टोक्यो में जी-सेवेन की मिटिंग होने वाली थी. वहां भारत को क्या हासिल हुआ, यह तो आजतक भी खुलासा नहीं हुआ, पर मोदी मीडिया इसे इस तरह से प्रचारित करता रहा, मानो बिना मोदी के जी-सेवेन की मिटिंग का कोई अर्थ ही नहीं था. वहां इनकी उपलब्धि यही रही कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इनसे आटोग्राफ मांगा, और एक जगह टोक्यो के भारतवासियों ने मोदी के जयकारे लगाये, और फोटोग्राफरों ने इसे ऐसे प्रक्षेपित किया मानो मोदी दुनिया के सबसे विशिष्ट राजनेता हों !
वहां से बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मोदी जी पापुआ न्यूगिनी पहुंच गये, जहां के राष्ट्रपति ने इनका पैर छुआ. इस बात को इस रूप में प्रक्षेपित और प्रचारित किया गया मानो मोदी दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण सख्सियत हैं, जिनके आगे सभी नतमस्तक हैं. पुनः बिना किसी निर्धारित कार्यक्रम के अस्ट्रेलिया पहुंच गये, जहां इनके स्वागत में वहां का प्रधानमंत्री एयरपोर्ट पर आया तक नहीं. हां, सिडनी में भारतीयों की भीड़ में उसने मोदी जी को ‘बास’ कह दिया. इसे भी मोदी की उपलब्धि बताई गयी.
अस्ट्रेलिया में मोदी के रहते ही वहां बीबीसी द्वारा तैयार एक घंटे की डाक्यूमेंट्री भी प्रदर्शित की गई, जिसमें भारत की जमकर आलोचना की गई है. इधर, महीने से ऊपर हो गये मणिपुर को आग में धधकते हुए. हजार के करीब निर्दोष लोगों की जानें चली गईं. हजारों घर जला दिये गए, और करीब पचास हजार लोग बेघर होकर शरणार्थियों की तरह तंबुओं में पनाह लिये हुए हैं. अब भी मौत कि तांडव कम नहीं हुआ है. पांच हजार सरकारी हथियारों को छीन लिया गया और, साहब इधर चैन की बंशी (गिटार – सं.) बजा रहे हैं.
मणिपुर की यात्रा की तो बात ही दूर, मोदी ने मणिपुर के संबंध में अपना मुंह तक नहीं खोला. ऐसा कोई असंवेदनशील और नृशंस प्रधानमंत्री भी होता है क्या ? किसी राज्य को जलते और वहां के लोगों को मरते छोड़ देना ही राष्ट्रभक्ति और हिन्दुत्व है ? इसके साथ ही एक और भी अपशकुन हो गया. केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में लगाये गये सोने की चादरें एकाएक पीतल में परिवर्तित हो गईं. ऐसा तो आजतक न कहीं देखा गया और न ही सुना गया था !
उधर अमेरिका में राहुल गांधी की सफल यात्रा और विभिन्न सार्वजनिक मंचों से विद्वतजनों और विश्वविद्यालयों में छात्रों के बीच महत्वपूर्ण और सारगर्भित भाषण तथा भारतीय राजनीति और भारत सरकार की संविधान, लोकतंत्र, मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा अल्पसंख्यकों की चिंताजनक स्थिति में सरकार की आलोचना ने मोदी की मिडिया निर्मित छबि को ध्वस्त कर दिया.
ऐसी ही छिछालेदर की स्थिति में अपनी छबि बचाने के लिए मोदी ने ख़ुद ही अमेरिका यात्रा की योजना बनाई. जिस अमेरिका ने एक साल तक भारत में अपना राजदूत तक नहीं भेजा, उसी अमेरिका के आगे नतमस्तक होकर मोदी ने गुहार लगाई. मोदी की इस मजबूरी का फायदा उठाने के लिए जो-बाइडेन ने मोदी को अमेरिका आने का निमंत्रण दे दिया. यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह यात्रा सरकारी है या गैरसरकारी.
वैश्विक स्तर पर रूस और चीन के गंठजोड़ को देखते हुए अमेरिका के लिए यह जरूरी था कि वह भी एक ऐसा सहयोगी चुने, जिसके माध्यम से अपनी साख को बनाये रख सकता. अमेरिकी हथियार उद्योग की डवांडोल होती स्थिति को देखते हुए अमेरिका के लिए यह जरूरी था कि उसके पुराने पड़ चुके हथियारों का कोई खरीददार मिलता, और ऐसा खरीददार उसे भारत के रूप में मिल गया. अभी एक ही झटके में 24,000 करोड़ रुपये के ड्रोन की खरीद पर समझौता हो गया है.
जिस तामझाम, शोर-शराबे, बहुत बड़ी उपलब्धि और विश्व के सिरमौर नेता के रूप में प्रतिष्ठित होने के रूप में मोदी का देशी-विदेशी अंधभक्तों और मोदी मीडिया द्वारा प्रचारित और प्रसारित किया गया, वह अपने आप में एक अजुबा ही था. शोर ऐसा मचाया गया मानो अमेरिका का राष्ट्रपति मोदी के आगे गिड़गिड़ा रहा हो कि – हे विश्व के नायक, आप अमेरिका आकर हमारा उद्धार कीजिये. अमेरिका में न्युयॉर्क से लेकर वाशिंगटन तक भारतवंशियों को तैयार किया गया मोदी की जयजयकार करने के लिए. आर्केस्ट्रा वालों और ताली बजाकर स्वागत करने वाले भारतीयों को बड़ी मेहनत से बुलाया गया.
सबसे काबिलेतारीफ बात यह थी कि मोदी की इस यात्रा का समय भी इस प्रकार चुना गया कि वह अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के साथ-साथ हो. इसका मोदी ने भरपूर फायदा उठाया, और न्यूयॉर्क में योग करते हुए इसे भारत की महान उपलब्धि के रूप में प्रक्षेपित किया. आजतक मेरी समझ में यह नहीं आया कि योग से भारत या दुनिया को क्या फायदा हुआ ?
दुनिया के अधिकतर देशों में ट्रेनिंग से लेकर खेलकूद के मैदान, खेल मनोविज्ञान, प्रयोगशालाओं तथा मेडिकल की इतनी उत्तम व्यवस्था है कि वहां विश्व चैंपियन और ओलंपिक के खेलों में पदक जीतने वाले खिलाड़ी हर साल पैदा हो रहे हैं. शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए वे खुद ही इतना जागरूक हैं कि उन्हें योग की कत्तई भी जरूरत नहीं है.
भारत में भी बहुसंख्यक भारतीयों को योग से कोई मतलब नहीं है. यह सिर्फ खाये-पीये और अघाये लोगों का दिमागी फितूर है, जो यह दिखलाने का प्रयास करते हैं कि वे शारीरिक रूप में स्वस्थ रहने की इस भारतीय विधा को अपनाने के कारण ही स्वस्थ हैं. वास्तव में योग भी संघ और भाजपा की एक ऐसी योजना है, जिसके माध्यम से वह अपना प्रचार करती है.
बाबा रामदेव सहित अन्य योग गुरु जिन विशिष्ट लोगों को योग का पाठ सिखा रहे हैं, वे वही लोग हैं, जो न तो कभी शारीरिक श्रम करते हैं और न ही जिंदगी में कभी किसी खेल में भाग लिये होते हैं. ऐसे ही विशिष्ट लोगों के लिए खुबसूरत पार्कों और पांच सितारा होटलों में इसका बकायदा आयोजन होता है.
इसी योग और आयुर्वेद के नाम पर बाबा रामदेव आज अरबपतियों की श्रेणी में शामिल हैं. आजतक मैंने यह नहीं सुना है कि किसी व्यक्ति का कोई रोग योगासन करने से खत्म हो गया है. हां, इतना जरूर है कि योग और आयुर्वेद के माध्यम से भाजपा का प्रचार हो जाता है.
मोदी की यह अमेरिकी यात्रा का क्या महत्व है, इसका पता तो उनके न्यूयॉर्क पहुंचते ही पता चल गया. जिस भारतीय प्रधानमंत्री के आगमन की इतनी तीव्र प्रतीक्षा अमेरिकियों को थी, वह टांय-टांय फिस्स ही साबित हुई. यह कितने दुर्भाग्य और अपमानजनक है कि भारत के प्रधानमंत्री की आगवानी के लिए एयरपोर्ट पर राष्ट्रपति की तो बात ही छोड़िए, उच्च स्तरीय कोई भी पदाधिकारी नहीं आया. आया कौन तो एक प्रोटोकॉल अधिकारी, भारत का अमेरिका में राजदूत और संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का स्थायी प्रतिनिधि.
एक वह भी समय था, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू की अमेरिकी यात्रा में आगवानी करने के लिए एयरपोर्ट पर पहली दफा 1953 में अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन, और फिर 1963 में जॉन एफ. केनेडी खुद एयरपोर्ट पर गर्मजोशी से मिले थे. केनेडी तो नेहरू के साथ ही वाशिंगटन से न्युयॉर्क तक वायुयान में यात्रा भी की थी. राजीव गांधी को भी एयरपोर्ट पर आगवानी करने के लिए खुद राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन आये थे, और खुद छाता लगाकर साथ ले गये थे. और, एक यह आज का दिन है, जब भारत के प्रधानमंत्री की आगवानी के लिए कोई उच्च अधिकारी तक नहीं आया.
यही नहीं, करीब पचहत्तर कांग्रेस और सिनेट के सदस्यों ने राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा है कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ वार्ता में भारत में लोकतंत्र, संविधान, मानवाधिकार, अभिव्यक्ति के अधिकार, मीडिया पर प्रतिबंध और अल्पसंख्यकों के साथ बुरे व्यवहार पर गंभीरता के साथ बातचीत करने के लिए निवेदन किया है. वाल स्ट्रीट जर्नल के संपादक के साथ साक्षात्कार में तो मोदी के मुंह में दही ही जम गया था. कश्मीर में धारा 370 के संबंध में उन्होंने कोई जवाब ही नहीं दिया, सिर्फ यही अलापते रहे कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है.
इसी तरह मीडिया और हिन्दुओं के ध्रुवीकरण के संबंध में पुछे गये प्रश्नों पर भी मोदी चुप ही रहे. वाशिंगटन पहुंचते ही बड़ी संख्या में जुटी भीड़ ने मोदी गो बैक के नारे लगाये. मणिपुर के समर्थन में भी नारे लगे. आखिर कहां-कहां मोदी भागेंगे ? इन्हीं परिस्थितियों में अमेरिका अपने पुराने हथियारों को भारत के मत्थे मढ़ कर मुंह मांगी मुनाफा कमायेगा. अमेरिका कभी भी अपने राष्ट्रीय, आर्थिक और सामरिक हितों से अलग कुछ सोचता भी नहीं है. भारत बुरी तरह से अमेरिका के चंगुल में फंस चूका है.
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