कमलेश
अभी हाल में एक वरिष्ठ पत्रकार का इंटरव्यू पढ़ रहा था, इसमें उन्होंने कहा है कि ‘अब विचारों से दुनिया नहीं बदलती है. अब तकनीक ही है जो दुनिया को बदल रही है.’ अब मैं यह नहीं जानता कि इंटरव्यू में उस वरिष्ठ पत्रकार ने ठीक-ठीक क्या यही कहा था या फिर उन्होंने कहा कुछ दूसरी बात और इंटव्यू लेने वाले साथी समझ गये कुछ और. लेकिन उस पूरे इंटरव्यू को पढ़ने से जो बात छन कर आ रही है, वह यही है कि दुनिया को बदलना है तो विचारों से लैस होने की जरूरत नहीं है, तकनीक से लैस होना पहली शर्त है.
जब मैं इस इंटरव्यू को पढ़ रहा था तो देश के एक और चर्चित पत्रकार याद आ रहे थे जिन्होंने कुछ दिनों पहले गांधी मैदान में आयोजित पुस्तक मेले में अपने एक व्याख्यान में कहा था कि अगर आपके पास तकनीक है तो आप ठगे नहीं जाएंगे. तकनीक ने आपको पूरी तरह सक्षम बना दिया है और इसके लिए अब किसी खास विचार की जरूरत नहीं है. उस व्याख्यान में उन्होंने वामपंथी पत्रिकाओं का हवाला भी दिया था जिससे यह पता चला था कि विचारों से उनका मतलब वामपंथी विचार ही है.
ये दोनों चर्चित और वरिष्ठ पत्रकार ये बात कुछ अलग नहीं कह रहे हैं, दरअसल पूरी दुनिया में और खासकर अपने देश में कुछ ज्यादा यह चर्चा हो रही है. अपने देश में बुद्धिजीवियों की एक जमात है जो मानती है कि अब यदि आप दुनिया को बदलने की बात सोचते हैं तो विचारों को भूल जाइये. विचार अब अप्रासंगिक हैं और उनकी जरूरत अब पिछड़ी मानसिकता वालों को ही है.
सही है. तकनीक के महत्व को कोई भी नकार नहीं सकता है. तकनीक तब भी महत्वपूर्ण थी जब आदमी ढ़ोल और नगाड़े पीटकर अपने संदेश लोगों तक पहुंचाता था और आज भी उससे आप किनारा नहीं कर सकते, जब आप सोशल नेटवर्किंग साइट पर अपनी बात पूरी दुनिया में क्षण भर में पहुंचाते हैं. लेकिन सवाल यह है कि इस तकनीक के बल पर आप क्या करते हैं ? सोशल नेटवर्किंग साइट या तकनीक का जो भी अद्यतन माध्यम हैं उसके बल पर आप क्या करते हैं ?
जाहिर सी बात है कि आप अपनी बात कहते हैं या दूसरों की बातें समझने की कोशिश करते हैं. सूचनाओं से लैस होने की कोशिश करते हैं. अपनी बात कहने, दूसरों की बात समझने का मतलब क्या है ? सूचनाओं से लैसे होने का उद्देश्य क्या है ? या तो आप अपने विचारों को वहां रखते हैं या दूसरों के विचारों को समझने की कोशिश करते हैं. सूचनाओं के बल पर आप अपने विचारों को पुष्ट करते हैं. उन्हें एक तार्किक आधार देने की कोशिश करते हैं. तो तकनीक क्या हुई ? विचारों का संवाहक ही न ? अगर आपके पास विचार न हों तो आप इंटरनेट का क्या करेंगे ? जाहिर सी बात है किे पोर्न साइट देखेंगे.
दोस्तों, ऐसे हजारों उदाहरण हैं जहां विचार के बगैर तकनीक किस तरह आदमी को बरबाद करती है. याद कीजिए हाल में नमक की कमी हो जाने की अफवाह. मुठ्ठी भर लोगों ने मोबाइल जैसी अति आधुनिक तकनीक के बल पर इस अफवाह को सच्चाई बना दिया और एक दिन में सैकड़ों टन नमक बिक गया. टेलीविजन जैसी आधुनिक तकनीक विचारहीनता के कारण किस तरह समाज को पीछे धकेल रही है. सुबह में बाबाओं की जमात की किस तरह टेलीविजन के बल पर लोगों को बेवकूफ बनाने में लगी रहती है. मोबाइल यदि आपके पास है और आपके अंदर विवेक (जाहिर है कि यह विचार से जुड़ा मसला है) नहीं है तो आप किस तरह ठगे जा रहे हैं इसके सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं.
कुछ दिनों पहले तक यह मानकर चला जाता था कॉम डॉट (कॉमरेड का संक्षिप्त रूप) दुनिया को बदलता है क्योंकि उसके पास विचार होता है. लेकिन कुछ लोगों ने इसे उलट दिया है और उनका कहना है कि डॉट कॉम (इंटरनेट या आधुनिक तकनीक) ही दुनिया को बदल सकता है. क्या विचारों के बगैर आप खड़े हो सकते हैं ? दुनिया आज भी विचारों के बल पर ही बदली जा सकती है.
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